भूख सबको लगती है, इंसान हो या जानवर, कोई इस प्राकृतिक आवशयकता से परे नहीं है ..ऐसा इस नश्वर संसार में कोई नहीं हो सकता जो कहे कि मुझे भूख नहीं लगती...और फिर हमारे देश में तो पितरों को भी साल में एक भोजन करवाया जाता है (हाँ उनके नाम पर पंडित और ब्राह्मण खाना खाते हैं..)और भी बहुत से मान्यताएं, विश्वास भोजन को लेकर हमारे हिन्दुस्तान में मिल जायेंगे, कहने का अर्थ सिर्फ यही है कि बगैर खाए हम रह नहीं सकते, ना जीते जी न मरने के बाद ..पर ये सब तो हमारा विषय नहीं है..
दरअसल भूख के बारे में लिखने का ख़याल आया क्योंकि ....अब..क्या कहें ...चलिए रहने दीजिये..आप लोग खुद ही समझदार हैं..
भूख की philosophy , सिद्धांत, nature या और जो भी कुछ नाम रख लें ...वो बहुत सीधी और सरल है ...अक्सर जब बहुत ज्यादा भूख लगी होती है तब उस समय खाने के लिए कुछ ऐसी चीज़ नहीं होती जो पसंद आये या जो मन भर के खाने की इच्छा हो ( मन अगर भर जाए तो पेट तो उसके बहुत पहले ही भर जाता है ..)
पर अगर किसी कारण से मूड बिगड़ा हो, दिमाग का temperature १०० डिग्री के आस पास हो या आ जाने की संभावना बन गई हो..तो ऐसे में भूख भी उतनी ही ज्यादा और जोर से लगती है (यहाँ क्रिया की प्रतिक्रया का सिद्धांत तुरंत अपना असर दिखाता है, ऐसा मेरा व्यक्तिगत अनुभव है) पर अब इसमें मुसीबत ये हो जाती है कि गुस्से के कारण खाने का मूड नहीं होगा. जैसे ना खाने से समस्या सुलझ जायेगी या दुनिया में कोई बड़ा भारी परिवर्तन आ जाएगा. ऐसा कहीं कुछ होता नहीं, उल्टा गुस्सा और भूख दोनों मिलकर सिरदर्द, थकान और पता नहीं कौन कौन सी मुसीबतों की जड़, फूल-पत्ती, डाली, टहनी सब एकसाथ बन जाते हैं.
भूख हमें लगी है, पर खाना हम नहीं खायेंगे, लोग पूछते पूछते थक जायेंगे पर हम नहीं खायेंगे...क्योंकि एक तरफ अपनी जिद भी है..उसको भी बनाए रखना है और दूसरी तरफ मन में अच्छा भी लग रहा होता है कि चलो हमें खाने की और अपना ये दुर्वासा रुपी क्रोध का अवतार त्याग देने की मनुहार की जा रही है (मतलब हम महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं ) ..पर अब इस झमेले में फिर ये भी होता है कि आखिर बेचारी भूख खुद भी थक जाती है और २-४ घंटे के लिए या ऐसे कुछ समय के लिए भूख महसूस होना बंद हो जाता है. इसके पीछे का विज्ञान या कारण तो मुझे नहीं पता पर मेरे ख्याल से इसकी वजह मानसिक उदासीनता है. अगर जिद पकड़ ही ली है कि नहीं खाना.. या किसी और वजह से खाने का मन नहीं है तो फिर ये एक तरह का adjustment ही है कि कितनी देर तक भूख बर्दाश्त करने की क्षमता है. ये हमारी सहनशक्ति की भी परीक्षा है...कि भूखे रहकर भी दिमाग को कितना शांत रखा जा सकता, अच्छी नींद ली जा सकती, सपने देखे जा सकते हैं..और कब तक अपनी आवाज़ को शांत और स्थिर रखा जा सकता है..
भूखा रहना आसान काम नहीं है, भूख न लगे ये भी हो नहीं सकता.. थोड़ी देर के लिए भूख का अहसास गायब हो सकता है पर फिर जल्दी ही और ज्यादा तीव्रता के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने लगता है... पर फिर देखने की बात सिर्फ इतनी ही है कि कितनी देर और कब तक बिना खाए काम चल सकता है या चलाया जा सकता...ये शरीर और मन दोनों की मिलीजुली परीक्षा है और अक्सर शरीर से पहले मन थकने लगता है...भूखे पेट होने से ज्यादा ...भूख लग रही और "इतनी या उतनी देर" से कुछ खाया नहीं है..ये फिकर ज्यादा असरदार होती है.. और ऐसे में अगर किसी ने आपको खाना खाने के लिए जैसे तैसे मना लिया (रोना धोना वगैरह) तो दिल को बड़ी तसल्ली हो जाती है..कि ( चलो आखिर इतनी देर बाद कुछ तो खा लिया). ...और आपकी प्रतिज्ञा भी रह गई कि "मुझे नहीं खाना."
पर अब एक अंतिम बात और कहना चाहूंगी कि भूख और भूखे पेट के बारें में इतना सब वाणी विलास भरे पेट ही हो सकता है...खाली पेट रह कर भूख पर कुछ लिखा गया तो रांगेय राघव के शब्दों में.." जब नफरत से प्रेम करने वाली आँखों का पानी घास पर गिरता है तो घास झुलस जाती है, जब दर्द देख कर गिरता है तो बन्दूक की गोली बनकर और जब इंसान को भूखा देखता है तो वह गुलामी का दस्तावेज बन जाता है."
भूख से हम लड़ नहीं सकते..हारना ही नियति है..पर कुछ देर के मन-बहलाव के लिए अपनी बात मनवा लेने के लिए, अपने होने का अहसास दिलाने के लिए, अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करने के लिए, अपना गुस्सा दिखाने के लिए..भूख एक बहुत सशक्त हथियार है..
7 comments:
bahut hi achha hai, yah lekh apki gahari vicharshilata aur kalpana-shakti ka ek achha udahard hai.
" जब नफरत से प्रेम करने वाली आँखों का पानी घास पर गिरता है तो घास झुलस जाती है, जब दर्द देख कर गिरता है तो बन्दूक की गोली बनकर और जब इंसान को भूखा देखता है तो वह गुलामी का दस्तावेज बन जाता है.",..sahi kaha aapne..
sarthak prastuti..
वाह क्या बात है एक बहुत ही साधारण विषय पर बहुत ही रोचक एवं सार्थक पोस्ट ...
बहुत ही बढ़िया।
सादर
कल 08/जून/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
हाँ सही कहा. पर भूख भी तो जिद्दी है. भरते रहिये और ये भूख है कि ख़त्म ही नहीं होती.
@nihar ranjan ji .. jis din bhookh khatm ho jaayegi us din jeevan bhi khatm hi ho jaayega.
@yashwant ji.. thank u.
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