Thursday, 8 March 2012

जो कहीं नहीं है ..

वो जो तेरे साथ गुज़रा, वो वक़्त, वो लम्हा अब भी मेरी साँसों में जिंदा है...अब उसकी ही  खुमारी में आने वाला वक़्त भी गुज़र ही जाएगा.. वो जो गुज़र गया, वो बेशकीमती था पर उसे संभाल के  कहीं रख सकें ऐसा कोई कोना नहीं मिला..

कुछ गुज़रा वक़्त, कुछ उसकी याद, कुछ उसके फीके पड़ते निशान, कुछ उसकी खींची हुई लकीरें जो अभी फीकी नहीं पड़ी हैं, कुछ उनसे जुड़ा, कुछ अलग होता हुआ सा,  कुछ पीछे छूटता हुआ सा,  कुछ  उसे  फिर से पा लेने की ख्वाहिश, कुछ उसे फिर से लौटा लाने की चाह,   कुछ उसे रोक लेने की कोशिश,  कुछ उसे एक बार  फिर से महसूस करने की ख्वाहिश...कुछ है, कहीं है, जाने कहाँ खोया, कब खोया, कैसे खोया ..पर फिर से उसे ढूंढ लाने और बाँध कर रख लेने की ख्वाहिशें... 



"तेरे इश्क का एक कतरा इसमें मिल गया था, इसलिए मैंने ज़िन्दगी की सारी कडवाहट पी ली थी"
आखिरी पंक्ति "अमृता प्रीतम की है.  

1 comment:

Namisha Sharma said...

isiliye vo lamha maine apne dil mi sambhal ke rakha hai..
sundar likha hai Bhavana