"धड़कते हैं दिल कितनी आज़ादियों से, बहुत मिलते जुलते हैं इन वादियों से" .....
"क्या खूबसूरत गाना है, लिरिक्स क्या कमाल का है.; कहानी की शुरुआत के लिए इससे बेहतर पंच लाइन और क्या होगी ?"
"तुम एक घनघोर decadent रोमांटिक किस्म की प्राणी हो. इससे ज्यादा बेहतर लाइन तुमको सूझ भी नहीं सकती "..
"क्या मतलब घनघोर डीकैडेंट ?? हम क्या कोई जीवन का फलसफा झाड़ने बैठे हैं या फिर तुम्हारी तरह यथार्थवाद की गठरी लादे फिरें ?"
"अच्छा सुनो, वहाँ नीली डेन्यूब के किनारे कैसा महसूस होता होगा ? मैं वहाँ जाना चाहती हूँ ; देखना छूना चाहती हूँ वहाँ की आबो हवा, वहाँ का संगीत, डेन्यूब का पानी और ..."
" अच्छा, आज दिन तक तुमने ये सूखी नदी जो इधर झालामण्ड के पास बरसात में बहती है, वो तो कभी देखी नहीं। वहाँ तक कभी गई भी नहीं और डेन्यूब देखने का इरादा है। "
, "ये भी तो हो सकता है कि जो इंसान कभी अपने आस पास के लैंडस्केप से भी परिचित ना रहा हो, वो एक दिन.... "
"हाँ, वो एक दिन अंतरिक्ष की सैर पर जायगा, सारी पृथ्वी का भ्रमण करेगा और बेहद रंग बिरंगे travelogue लिखेगा. ज़रूर लिखेगा और उसके पहले अपने डिकइडेंट होने को सार्थक करेगा। "
"तुम हद दर्जे के निराशावादी हो। "
"और तुम हद दर्जे की कल्पनावादी । "
"मैं कुछ बेहद दिलचस्प किस्म की किस्सा बयानी करना चाहती हूँ ; जैसे वो पुराने ज़माने की बेहद खालिस किस्म की हिंदी के मुहावरे और लहजा। या फिर पूर्वी भारत के लैंडस्केप, जहां पहाड़, नदियाँ, मैदान, हरे भरे जंगल और ...... "
"तुम फिर नोस्टालजिक हुईं। तुम कभी अतीत से बाहर निकलोगी या नहीं ?'
"अतीत एक सुरक्षित जगह है, वहाँ सब कुछ एक निरंतरता में है. वहाँ कुछ बदलेगा नहीं और ... वहाँ एक स्वर्णयुग जैसा अहसास होता है। "
"ये तुम्हारी ओरिजिनल लाइन है ?"
"नहीं, इसे मैंने एक उपन्यास में पढ़ा था। क़ुर्रतुल ऐन हैदर के नावेल आखरी शब् के हमसफ़र। और उसमे .... "
"मुझे पहले ही समझ लेना चाहिए था कि तुम्हारे साहित्य की दुकान वहीँ एक जगह खुलती और बंद होती है। "
"एक बात बताओ, दो साल तक तुमको कभी मेरी याद नहीं आई ? तुमने कभी फ़ोन करने तक की जहमत नहीं की उन दिनों। शायद इसलिए कि तुम और मैं दोनों बोर हो गए थे ? मुझे ये अजीब सा लगता है कि दो बरस अजनबी बने रहने के बाद, एक बार फिर से परिचय का सागर उमड़ना। ठीक वैसे जैसे पढ़ाई के दिनों में रोज की बतकहियाँ .... तुम्हे कैसा लगता है ?"
"मुझे कुछ भी नहीं लगता , मैं इतना दिमाग नहीं लगा सकता तुम्हारी तरह. . मुझे दिन भर के छत्तीस हज़ार काम होते हैं, अब तुम सरकारी बाबू हो, काम कुछ है नहीं तो बस ख्याली बहस शुरू। "
"हाँ, और तुम खालिस कॉर्पोरेट वाले बाबू हो। तुम्हारे छत्तीस हज़ार कामों की लिस्ट में मेरा नंबर कहाँ आ सकता है ?"
"तुम खुद ही नहीं चाहती थी कि तुम्हे कोई याद करे, कांटेक्ट करे .... क्या तुम चाहती थी ?'
"इस अंतहीन बहस का कोई फायदा नहीं. ये सब समय और दिलचस्पी की बातें हैं। "
"तुम हमेशा इस तरह का कोई डायलाग चिपका कर बात बदलने का हुनर रखती हो । मैं पूछता हूँ कि क्या तुम चाहती थीं कि कोई तुम्हे याद करे, फोन करे , मिलने आये ?"
"शायद हो सकता है कि मैं ऐसा ही चाहती थी पर ज़ाहिर नहीं होने दिया। "
"और इस नौटंकी की वजह ?"
"मैं अपने आप को miserable नहीं दिखाना चाहती , किसी की दया की मोहताज नहीं होना चाहती .... "
"Miserable तो तुम अभी भी हो। इतना कितना सोचती हो और कोई किसी का मोहताज नहीं बन जाता। और जो तुम दूसरों के लिए सोचती हो वैसा दुसरे नहीं सोचेंगे क्या तुम्हारे लिए ?"
"मेरे ख्याल से हम कहानी लिखने बैठे थे, उसकी आउटलाइन सोच रहे थे. "
"हाँ, कहानी लिखो; कुछ वही घिसा पिता सपाट सा। तुम्हारी इमेजिनेशन को एक फ्रेशनेस की ज़रूरत है। ताज़ी धुप, हवा और पानी .... बाहर आओ इस किताबी किस्से से। '
"बाहर बारिश हो रही है , तिरछी बारिश है शायद। खिड़की के कांच पर बौछार दिख रही है। "
"ये बारिश के दिन हैं. मौसम हर चार महीने में बदलता है। तुम अपना मौसम क्यों नहीं बदलतीं ? तुम्हारा कैलेंडर तो .... "
"मुझे अब बारिश अच्छी नहीं लगती। सारे रास्ते बंद , धूप ताजी हवा का अता पता नहीं। सब तरफ सीलन। "
"कौनसा मौसम अच्छा है , जिसमे तुमको ताज़ी हवा दिखती है ?"
"सब एक से हैं। सपाट और सीधी लकीर जैसे। "
"अगर कभी मौसम बदला तो क्या तुमको बदलाव अच्छा लगा था ? या लगता है ? तुम इतना सवालों और संदेहों में क्यों उलझती हो ये तुम्हारा एक खोल में बंद बेवकूफाना किस्म का इंटेलेक्ट ; साइलेंट ट्रीटमेंट फॉर अदर्स। तंग नहीं हो जाती तुम इन सबसे ?"
"साइलेंट ट्रीटमेंट अपना सेल्फ रेस्पेक्ट और वैल्यू जताने का एक तरीका है। "
"हाँ, ज़रूर ; फिर भले ही उस तरीके से खुद अपना ही नुकसान हो जाए। और किसको वैल्यू दिखानी है ? क्या तुम सोचती हो कि किसी बात को सुलझाने का यही सही तरीका है ?"
"ये सुलझाने का नहीं, बात को ख़त्म करने का तरीका है। एक रॉयल साइलेंस .... जब लोग आपको taken for granted लेने लगते हैं या जब कोई चीज़ समझ या पसंद से बाहर हो तब। "
"गॉड सुनयना, तुम इस किस्म के बोगस निष्कर्ष पर कैसे पहुँचती हो ? ये taken for granted वाला ? ये तुम्हारी अपनी Insecurity है, इसे दूसरों की गलती कहना बंद करो। "
"सुनयना, तुम्हे अब शायद याद भी नहीं कि तुम्हारा ये रॉयल साइलेंस कितना लम्बा चला था और उस साइलेंस को तोड़ने की और तुम तक पहुँचने की कितनी कोशिशें की थीं. मैंने। याद है तुमको ?? फिर तुम एक दिन नींद से जागीं अपने उसी पुराने Attitude और अवतार में और तुमने सोचा कि लो सब कुछ पहले जैसा हो गया। "
'तुम आज इतने Cruel और सख्त क्यों हो रहे हो ?"
"क्योंकि मैं तुम्हारी इस ड्रामा स्टोरी से ऊब गया हूँ। तुम वक़्त के धागे कस के रखने की कोशिश कर रही हो जबकि वक़्त भागता जा रहा है। "
"बारिश अभी भी चल रही है. कब रुकेगी ?"
"मैं कोई इन्दर देवता का सेक्रेटरी हूँ जो मुझे पता होना चाहिए। खैर, मैं चाय बना रहा हूँ तुम भी पियोगी ?"
"नहीं, मैं चाय नहीं पीती। "
"तो ग्रीन टी , कॉफ़ी , लेमन टी ?"
"नहीं अभी सिर्फ ठंडा दूध बिना शक्कर का, उस से मेरी .... "
"तुम और तुम्हारे नुस्खे। कभी इन लकीरों के बाहर आकर देखा है तुमने ?"
"मुझे यही सूट होता है। "
"अब इस वक़्त तुम सचमुच Miserable ही लग रही हो। "
"क्यों ?"
क्रमशः
"क्या खूबसूरत गाना है, लिरिक्स क्या कमाल का है.; कहानी की शुरुआत के लिए इससे बेहतर पंच लाइन और क्या होगी ?"
"तुम एक घनघोर decadent रोमांटिक किस्म की प्राणी हो. इससे ज्यादा बेहतर लाइन तुमको सूझ भी नहीं सकती "..
"क्या मतलब घनघोर डीकैडेंट ?? हम क्या कोई जीवन का फलसफा झाड़ने बैठे हैं या फिर तुम्हारी तरह यथार्थवाद की गठरी लादे फिरें ?"
"अच्छा सुनो, वहाँ नीली डेन्यूब के किनारे कैसा महसूस होता होगा ? मैं वहाँ जाना चाहती हूँ ; देखना छूना चाहती हूँ वहाँ की आबो हवा, वहाँ का संगीत, डेन्यूब का पानी और ..."
" अच्छा, आज दिन तक तुमने ये सूखी नदी जो इधर झालामण्ड के पास बरसात में बहती है, वो तो कभी देखी नहीं। वहाँ तक कभी गई भी नहीं और डेन्यूब देखने का इरादा है। "
, "ये भी तो हो सकता है कि जो इंसान कभी अपने आस पास के लैंडस्केप से भी परिचित ना रहा हो, वो एक दिन.... "
"हाँ, वो एक दिन अंतरिक्ष की सैर पर जायगा, सारी पृथ्वी का भ्रमण करेगा और बेहद रंग बिरंगे travelogue लिखेगा. ज़रूर लिखेगा और उसके पहले अपने डिकइडेंट होने को सार्थक करेगा। "
"तुम हद दर्जे के निराशावादी हो। "
"और तुम हद दर्जे की कल्पनावादी । "
"मैं कुछ बेहद दिलचस्प किस्म की किस्सा बयानी करना चाहती हूँ ; जैसे वो पुराने ज़माने की बेहद खालिस किस्म की हिंदी के मुहावरे और लहजा। या फिर पूर्वी भारत के लैंडस्केप, जहां पहाड़, नदियाँ, मैदान, हरे भरे जंगल और ...... "
"तुम फिर नोस्टालजिक हुईं। तुम कभी अतीत से बाहर निकलोगी या नहीं ?'
"अतीत एक सुरक्षित जगह है, वहाँ सब कुछ एक निरंतरता में है. वहाँ कुछ बदलेगा नहीं और ... वहाँ एक स्वर्णयुग जैसा अहसास होता है। "
"ये तुम्हारी ओरिजिनल लाइन है ?"
"नहीं, इसे मैंने एक उपन्यास में पढ़ा था। क़ुर्रतुल ऐन हैदर के नावेल आखरी शब् के हमसफ़र। और उसमे .... "
"मुझे पहले ही समझ लेना चाहिए था कि तुम्हारे साहित्य की दुकान वहीँ एक जगह खुलती और बंद होती है। "
"एक बात बताओ, दो साल तक तुमको कभी मेरी याद नहीं आई ? तुमने कभी फ़ोन करने तक की जहमत नहीं की उन दिनों। शायद इसलिए कि तुम और मैं दोनों बोर हो गए थे ? मुझे ये अजीब सा लगता है कि दो बरस अजनबी बने रहने के बाद, एक बार फिर से परिचय का सागर उमड़ना। ठीक वैसे जैसे पढ़ाई के दिनों में रोज की बतकहियाँ .... तुम्हे कैसा लगता है ?"
"मुझे कुछ भी नहीं लगता , मैं इतना दिमाग नहीं लगा सकता तुम्हारी तरह. . मुझे दिन भर के छत्तीस हज़ार काम होते हैं, अब तुम सरकारी बाबू हो, काम कुछ है नहीं तो बस ख्याली बहस शुरू। "
"हाँ, और तुम खालिस कॉर्पोरेट वाले बाबू हो। तुम्हारे छत्तीस हज़ार कामों की लिस्ट में मेरा नंबर कहाँ आ सकता है ?"
"तुम खुद ही नहीं चाहती थी कि तुम्हे कोई याद करे, कांटेक्ट करे .... क्या तुम चाहती थी ?'
"इस अंतहीन बहस का कोई फायदा नहीं. ये सब समय और दिलचस्पी की बातें हैं। "
"तुम हमेशा इस तरह का कोई डायलाग चिपका कर बात बदलने का हुनर रखती हो । मैं पूछता हूँ कि क्या तुम चाहती थीं कि कोई तुम्हे याद करे, फोन करे , मिलने आये ?"
"शायद हो सकता है कि मैं ऐसा ही चाहती थी पर ज़ाहिर नहीं होने दिया। "
"और इस नौटंकी की वजह ?"
"मैं अपने आप को miserable नहीं दिखाना चाहती , किसी की दया की मोहताज नहीं होना चाहती .... "
"Miserable तो तुम अभी भी हो। इतना कितना सोचती हो और कोई किसी का मोहताज नहीं बन जाता। और जो तुम दूसरों के लिए सोचती हो वैसा दुसरे नहीं सोचेंगे क्या तुम्हारे लिए ?"
"मेरे ख्याल से हम कहानी लिखने बैठे थे, उसकी आउटलाइन सोच रहे थे. "
"हाँ, कहानी लिखो; कुछ वही घिसा पिता सपाट सा। तुम्हारी इमेजिनेशन को एक फ्रेशनेस की ज़रूरत है। ताज़ी धुप, हवा और पानी .... बाहर आओ इस किताबी किस्से से। '
"बाहर बारिश हो रही है , तिरछी बारिश है शायद। खिड़की के कांच पर बौछार दिख रही है। "
"ये बारिश के दिन हैं. मौसम हर चार महीने में बदलता है। तुम अपना मौसम क्यों नहीं बदलतीं ? तुम्हारा कैलेंडर तो .... "
"मुझे अब बारिश अच्छी नहीं लगती। सारे रास्ते बंद , धूप ताजी हवा का अता पता नहीं। सब तरफ सीलन। "
"कौनसा मौसम अच्छा है , जिसमे तुमको ताज़ी हवा दिखती है ?"
"सब एक से हैं। सपाट और सीधी लकीर जैसे। "
"अगर कभी मौसम बदला तो क्या तुमको बदलाव अच्छा लगा था ? या लगता है ? तुम इतना सवालों और संदेहों में क्यों उलझती हो ये तुम्हारा एक खोल में बंद बेवकूफाना किस्म का इंटेलेक्ट ; साइलेंट ट्रीटमेंट फॉर अदर्स। तंग नहीं हो जाती तुम इन सबसे ?"
"साइलेंट ट्रीटमेंट अपना सेल्फ रेस्पेक्ट और वैल्यू जताने का एक तरीका है। "
"हाँ, ज़रूर ; फिर भले ही उस तरीके से खुद अपना ही नुकसान हो जाए। और किसको वैल्यू दिखानी है ? क्या तुम सोचती हो कि किसी बात को सुलझाने का यही सही तरीका है ?"
"ये सुलझाने का नहीं, बात को ख़त्म करने का तरीका है। एक रॉयल साइलेंस .... जब लोग आपको taken for granted लेने लगते हैं या जब कोई चीज़ समझ या पसंद से बाहर हो तब। "
"गॉड सुनयना, तुम इस किस्म के बोगस निष्कर्ष पर कैसे पहुँचती हो ? ये taken for granted वाला ? ये तुम्हारी अपनी Insecurity है, इसे दूसरों की गलती कहना बंद करो। "
"सुनयना, तुम्हे अब शायद याद भी नहीं कि तुम्हारा ये रॉयल साइलेंस कितना लम्बा चला था और उस साइलेंस को तोड़ने की और तुम तक पहुँचने की कितनी कोशिशें की थीं. मैंने। याद है तुमको ?? फिर तुम एक दिन नींद से जागीं अपने उसी पुराने Attitude और अवतार में और तुमने सोचा कि लो सब कुछ पहले जैसा हो गया। "
'तुम आज इतने Cruel और सख्त क्यों हो रहे हो ?"
"क्योंकि मैं तुम्हारी इस ड्रामा स्टोरी से ऊब गया हूँ। तुम वक़्त के धागे कस के रखने की कोशिश कर रही हो जबकि वक़्त भागता जा रहा है। "
"बारिश अभी भी चल रही है. कब रुकेगी ?"
"मैं कोई इन्दर देवता का सेक्रेटरी हूँ जो मुझे पता होना चाहिए। खैर, मैं चाय बना रहा हूँ तुम भी पियोगी ?"
"नहीं, मैं चाय नहीं पीती। "
"तो ग्रीन टी , कॉफ़ी , लेमन टी ?"
"नहीं अभी सिर्फ ठंडा दूध बिना शक्कर का, उस से मेरी .... "
"तुम और तुम्हारे नुस्खे। कभी इन लकीरों के बाहर आकर देखा है तुमने ?"
"मुझे यही सूट होता है। "
"अब इस वक़्त तुम सचमुच Miserable ही लग रही हो। "
"क्यों ?"
क्रमशः
3 comments:
सही है। अगली कड़ी आए अब।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (19-07-2019) को "....दूषित परिवेश" (चर्चा अंक- 3401) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
mishra ji, agli ki bhi agli aa gai aapne padha ki nahin ???
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