इस दुनिया का हर आदमी एक कहानी है।  उसका बोलना, चलना, रहना,  व्यव्हार, जीवन सब कुछ एक लम्बी ऊबा देने वाली कहानी है जिसके प्लाट और थीम को हर समय प्रेडिक्ट करने की कोशिश की जाती है।  दुनिया का ये सारा कारोबार, ये जगमग, ये  कोलाहल इन ढेर सारी कहानियों का ही एक मिला जुला सा  ताना बाना  है।  इस तरह ये दुनिया एक बहुत बड़ी कहानी है जिसमे कई सारी उप कथाएं और अनगिनत किरदार हैं।  
इतनी सारी कहानियों के बीच रहते रहते आदमी अक्सर अपनी खुद की कहानी जिसका वो सबसे मुख्य पात्र है,  उसे  भूल कर दूसरों की कहानी में उलझ जाता है। वैसे कहानियां उलझने उलझाने के लिए ही बुनी जाती  हैं।   किसी एक कहानी का हीरो  किसी दूसरी कहानी का विलेन बना हुआ दीखता है।  जो लोग एक कहानी में दोस्त हैं  वही लोग किसी दूसरी कहानी में छिपे दुश्मन भी हो सकते हैं।  ऐसा इसलिए होता है कि इंसानी दुनिया दिल और दिमाग दोनों  के घालमेल से चलती है।  कौनसी तार कहाँ से शुरू होकर कहाँ जुड़ती है और कहाँ से वापिस मुड़ जाती है ये तो शायद सृष्टि का मालिक भी नहीं समझ पाता होगा।  
बहुत सारी कहानियां तो बस आदमी के दिमाग में ही उपजती और फिर वहीँ  गुम हो जाती हैं।  आदमी अपने हिसाब से कहानी को तोड़ता मोड़ता जाता है , घटनाएं जो कभी हुईं तो कभी ना हुईं परउनकी एक श्रृंखला अपने दिमाग में जोड़ता जाता है. फिर इस तरह दिमाग के कूड़ा घर में बहुत सारी तहें परतें जमा होती जाती हैं.  आदमी का दिमाग एक मोहनजोदड़ो की कोई साइट बन जाता है, जिसे अगर खोदा जाए तो परत दर परत बहुत सारे ढाँचे निकलेंगे.... आधी पूरी कच्ची पक्की कहानियों के।  
आदमी का होना भी एक कहानी है।  एक निरंतर चलती लाइव कहानी।  सिनेमा के परदे पर दिखाई  जाए  या किसी नाटक के मंच पर, इसका  रहस्य रोमांच, प्रेम और घृणा ,  भय और निर्भीकता सारे द्वंद्व  एक सामान तीव्रता से बहे जाते हैं।  हम सब अपनी अपनी इन लाइव कहानियों  को जी रहे हैं  और  एक दुसरे के मनोरंजन या जुगुप्सा का साधन  बने हुए हैं.  

 
4 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-06-2018) को "मौसम में बदलाव" (चर्चा अंक-2999) (चर्चा अंक-2985) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, २ महान क्रांतिकारियों की स्मृतियों को समर्पित ११ जून “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
तभी तो इस दुनिया को माया कहते हैं..यहाँ जो दिखता है वह होता नहीं और जो है वह दिखता नहीं..
तभी तो इस दुनिया को माया कहते हैं..यहाँ जो दिखता है वह होता नहीं और जो है वह दिखता नहीं..
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