Tuesday, 28 August 2018

एक थीसिस चाँद पर


आज मैंने बरसो बाद रात के आसमान में, काले सलेटी बादलों के  मेले में छिपते छिपाते चाँद को देखा।  एक सफ़ेद मोती, चांदनी का थाल, आसमान की चादर पर टंका रेशम का टुकड़ा। ये चाँद फूली हुई रोटी कैसे लग सकता है ??? रोटी तो हलके भूरे गेहुएँ रंगत वाली और छोटी छोटी काली चित्तियों वाली होती है।  चाँद तो झक सफ़ेद मोती है। जब देखता है कि  आदमी तो घूरे ही जा रहा है तब  बादलों के परदे से बाहर निकल बिलकुल सामने आकर खड़ा हो जाता है, अपने पूरे ऐश्वर्य और भव्यता को लपेटे, समेटे।  जिसकी ठंडी रौशनी वाली नज़र भी आदमी को नज़र चुराने के लिए धकेलती हुई  सी लगती है। तब तक सामने खड़ा रहेगा जब तक कि आदमी नज़र हटा ना ले।  चाँद  को  एकटक घूरना किस कदर मुश्किल है , उसकी छटा ही ऐसी है कि नज़र खुद ही दूर हट जाती है ; तभी ना कहावत बनी कि नज़र लगे से भी मैला होता है रंग; कहीं चाँद के लिए ही किसी ने गढ़ा होगा ये मुहावरा। फिर भला चाँद फूली हुई रोटी कैसे हो गया ?? 

रोटी तो गरम लोहे के तवे पर सेकी और आग की लपटों पर पकाई जाती है।   चाँद का नाज़ुक सफ़ेद ठंडा रूप और रोटी की गरम ताज़ी खुशबू , कहीं कोई मेल ही नहीं। 
रोटी तो ज़मीन से निकला खरा सोना है जिसको आदमी अपनी मेहनत की आग में तपा के अनाज के रूप, रंग और स्वाद  में  ढालता है।    फिर चाँद फूली हुई रोटी कैसे हो गया ?? 

चाँद  आसमान की किसी  एक ही जगह पर  खड़ा रहता है या चलता जाता है ,  ये प्रश्न बादलों से पूछा जाना चाहिए क्योंकि वही चाँद को  एक झीनी परदे वाली पालकी में बिठाये चलते हैं, जिसमे कभी चाँद दीखता है कभी छिप जाता है। ये बादल चाँद के राज़दार है , कब, किसने, कहाँ चाँद से बात की, उसे देखा, निहारा  ?? चाँद ने किसको देखा, क्या कहा, क्या पूछा या बताया ? चाँद जब छुपा था तब कहाँ था और जब कहीं  भी नहीं था तब कहाँ था ?? चाँद अपने आप में एक रहस्य है, आदमी के धैर्य की परीक्षा है; अभी दिखेगा, फिर नहीं  भी दिखेगा ; अभी कल परसो तक गोल था बिलकुल मोती की तरह, लेकिन आज ज़रा कम गोल या अर्ध वृत्त सा कुछ दिख रहा है। चाँद के पास कितनी  बातें हैं कहने के लिए, सुनने के लिए।  चाँद बटोही।  चाँद डाकिया।  चाँद हमसफ़र।  

 फिर ऐसा नाज़ नखरों  वाला  चाँद फूली हुई रोटी कैसे हो  गया ??

  चाँद की रौशनी भी अलग अलग रंग  बिखेरती  हुई चलती है।  जब काले बादलों में चाँद छिपता है तब भी उसकी हलकी सफ़ेद गुलाबी झाईं  बादलों के पार दिखती है और आदमी अंदाज़ा लगाता है कि देखो चाँद अभी यहां इस बादल के पीछे है।  चाँद की आभा में सफ़ेद  रंग की जाने कितनी परतें दमकती हैं,  फिर चाँद फूली हुई रोटी कैसे हो गया ? चाँद तो किसी महल के झरोखे पर परदे की ओट में खड़ी किसी  सुंदरी  सुकन्या  का रूप है। 

चाँद को फूली हुई  रोटी  कैसे  ???  चाँद तो कवियों का काव्य और साहित्य का सारंग  है।  कितने सारे नाम धरे हैं चाँद के;  हर नाम का एक अर्थ है, विस्तार है , प्रतीक हैं और कहानी है।  यह शिव की जटाओं का श्रृंगार है। इसे देख कर व्रत उपवास खोले जाते हैं। राजवंशों  का आदि और आरम्भ।  

फिर नींद आ गई मुझे।  सुबह जब जागे और प्राणायाम का अनुलोम विलोम करने बैठे तब तक चाँद की स्मृति शेष हो चुकी थी।  अब आज याद आया कि उस रात चाँद को देखकर कितने ख्याल आये थे। 


2 comments:

radha tiwari( radhegopal) said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (29-08-2018) को "कुछ दिन मुझको जी लेने दे" (चर्चा अंक-3078) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी

radha tiwari( radhegopal) said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (29-08-2018) को "कुछ दिन मुझको जी लेने दे" (चर्चा अंक-3078) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी