"बरसात के दिनों में लोगो का ट्रैफिक सेंस और ट्रैफिक मैनर्स सब जाग जाते हैं",
आगे वाली कार ने इंडिकेटर दिया और धीरे धीरे टर्न हुई, साथ वाला बाइकर भी मुड़ने के लिए हाथ से इशारा कर रहा था और रश्मी की कार का स्टीयरिंग बाईं तरफ मुड़ने लगा. उसने पास वाली सीट पर रखे पूजा के सामान वाली डलिया को देखा। आटे का दीपक, एक छोटी डिब्बी में देसी घी, और एक कागज़ में सिमटे हुए थोड़े से हरे मूंग के दाने और गुड़ की एक डली। गाडी एक मिठाई की दुकान के बाहर रुकी। और अब दस मिनट बाद उस डलिया में मिठाई का छोटा डिब्बा भी जगह बनाये बैठा था.
"किस मूर्ख ने कहा था कि बारिश के दिनों में उसके शहर का नज़ारा बिलकुल किसी वाटर कलर पेंटिंग जैसा हो जाता है, ज़रा यहां आकर देखो तो पता चले कि …" बरसात में भीगी मिट्टी जो अब सडकों पर खड्डों के आस पास फिसलन के रूप में सुशोभित थी, उसको देख कर रश्मी को अपने नए शलवार सूट के रंग रूप की फ़िक्र होने लगी. चूड़ी बाजार वाले विनायक मंदिर के बाहर जैसे तैसे पार्किंग की जगह मिली। रश्मी ने पूजा वाली डलिया संभाली और दुपट्टा सिर पर रखते हुए तेज़ कदमों से मंदिर के भीतर चली गई.
"अब ये तीसरा बुधवार हो गया." उसने खुद से कहा, कार का स्टीयरिंग इस वक़्त सिविल लाइन्स की खुली सडकों पर पंख तौल रहा था. "अब थोड़ी देर में ऑफिस होगा और मैं और वही सब रोज़ के किस्से" … रश्मी ने स्पीड कम कर दी, उसे कहीं जाने की या पहुँचने की जल्दी नहीं है. इसके बजाय वो याद करने की कोशिश कर रही है कि अगले बुधवार विघ्नविनाशक को क्या खिलाना है कि झट से प्रसन्न हो जाए. जैसा अनीता ने बताया था, पहले हफ्ते मोतीचूर के लड्डू, दुसरे हफ्ते में बूंदी के लड्डू, तीसरे में ये मोदक और अब चौथे हफ्ते में चांदी का वरक लगा पान .... और पांचवे हफ्ते में .... यानि आखिरी हफ्ते में रोली उनकी सूंड में कस के बाँध आनी है, जिस से कि उनको याद रहे …
तीन हफ्ते बाद
दृश्य एक
"तो कोई प्रोग्रेस है उस मैटर में ?" गीता ने कॉफ़ी के साथ चिप्स कुतरते हुए पूछा।
रश्मी ने ना में सर हिला दिया। ये सवाल अब उसे हद दर्जे तक चिढ़ा देता है लेकिन गीता को वो कुछ नहीं कह सकती।
दृश्य दो
"मैंने तुझे कहा था ना कि रिशु को इक्कीस सोमवार शिव पार्वती वाले मंदिर में भेजना और साथ में बताशे का प्रसाद और .... " कमला बुआ का ख्याल है कि रश्मी इक्कीस में से सिर्फ पांच छह बार ही गई होगी
"दीदी, रिशु गई थी और उसने सात मंगलवार मंदिर के पीपल पेड़ की परिक्रमा भी की थी और पांच बुधवार गणेश जी को हरी दूब भी और वो .... मम्मी उसकी तरफ से सफाई दे रही है या उसकी मेहनत और लगन के बारे में बता रही है ये रिशु यानी मिस रश्मी की समझ से बाहर है.
"रिशु, तू लड्डू कौनसी दुकान से लेती है ?"
" ये बाहर मैन रोड पर है ना श्याम स्वीट्स, वहीँ से … क्यों ?"
"बस यही गड़बड़ हुई है, तभी मैं कहूँ, ऐसा कैसे हो सकता है ? मैंने आज तक जिन लड़कियों को ये उपाय बताया सबका रिश्ता तीसरे या चौथे हफ्ते में तय हो गया, बस तेरा ही नहीं हुआ. अरे ये श्याम स्वीट्स के लड्डू बेकार हैं, देसी घी कम और डालडा ज्यादा होता है. वो गोपाल मिष्ठान भंडार से लेने चाहिए थे लड्डू, मोतीचूर के ऐसे लड्डू बनाता है कि मुंह में रखते ही घुल जाए."
" ये श्याम स्वीट्स वाला तो लड्डू तौलते टाइम थोड़ा भी एक्स्ट्रा वजन होने पर लड्डू में से टुकड़ा तोड़ लेता है." छोटा गगन भी अब अपना ज्ञान बताने में पीछे क्यों रहे. रश्मी अपने घर के इस छोटे शैतान को घूर रही है.
" क्या !!!!!!!! खंडित प्रसाद !!!!!!!! राम राम … तभी मैं कहूँ, शारदा कि रश्मी का काम अब तक क्यों नहीं हुआ. एक तो डालडा के लड्डू ऊपर से खंडित भी. अब ऐसे तो विनायक जी कैसे प्रसन्न होंगे ????" कमला बुआ ने पांच परमेश्वर स्टाइल में अपनी अंतिम राय दे डाली।
शारदा यानी रिशु की मम्मी के माथे पर लकीरें दिख रही हैं, "इतने हफ़्तों की मेहनत पर पानी फिर गया सिर्फ इस श्याम स्वीट्स वाले के कारण। लेकिन इस लड़की में भी अक्ल नहीं है, कहीं और से लड्डू नहीं ले सकती थी, पूरा शहर घूमती फिरती है अपनी गाडी में. और सब दुकाने क्या बंद पड़ी रहती हैं."
"गणेश जी को बताना चाहिए था ना कि उनको कौनसी दुकान के लड्डू पसंद है, अब मुझे कोई सपना आएगा क्या … " रिशु झुंझला रही है. ये क्या मुसीबत है, आस्था से ज्यादा प्रसाद और उसकी क्वालिटी इम्पोर्टेन्ट हो गई है आजकल, ये देवी देवता भी काफी choosy हो गए हैं.
दृश्य तीन
"और सुनाओ, कोई नई खबर." व्हाट्सप्प पर एक मैसेज फ़्लैश हुआ.
"वही सब रूटीन लाइफ है यार, नया क्या होगा। तुम बताओ, तुमको तो अच्छी जगह पोस्टिंग मिल गई है. कोई एप्रोच या यूँही … " ?
"अरे बहुत पापड बेले हैं इसके लिए, दो साल से तो घर से दूर इस जंगल में पड़ा था. भगवान से लेकर इंसान तक सबकी मन्नतें मांगी, तब जाकर काम हुआ."
"अच्छा, और प्रसाद में क्या चढ़ाया ?" रश्मी को श्याम स्वीट्स के डालडा वाले लड्डू याद आ रहे हैं जिनके कारण उसकी सारी मेहनत बेकार गई.
"प्रसाद तो यार कई तरह का चढ़ाना पड़ता है. गए वो ज़माने जब वो बूंदी के लड्डू से काम चल जाता था. अब तो भगवन भी रोज़ यही एक जैसा खा खा के बोर हो गए हैं."
"हाँ, पर गणेश जी को तो आज भी वही लड्डू ही चाहिए।"
"किसने कहा ?? तुम ना रश्मी इस मामले में एकदम इडियट हो. अरे भगवान को भी वैरायटी पसंद होती है. उनको रोज़ कुछ नया खिलाओ,अलग अलग मिठाई से लेकर पिज़्ज़ा और ब्राऊनी …सब चीज़ टेस्ट करवाओ भगवान को, तभी प्रसन्न होंगे और वरदान देंगे। अब ऐसे सूखे लड्डू खिलाने और काम करवाने के दिन तो चले गए."
व्हाट्सप्प वाले ने रश्मी के ज्ञान चक्षु खोल दिए. इतना डिटेल में तो कभी सोचा ही नहीं था. प्रसाद तो यही लड्डू, मावे की मिठाई वगेरह ही सुना था लेकिन अब भगवान भी मॉडर्न हो गए हैं तो उनकी पसंद भी बदल गई होगी।
दृश्य चार
" सुन रिशु, तेरे ऑफिस जाने के रास्ते में ये लिंक रोड वाला कबाड़ी मार्किट आता है ना."?
" हाँ क्यों, कुछ काम है ? क्या देना है कबाड़ी वाले को ?"
" अरे देना कुछ नहीं है, सुन कमला का फोन आया था, उसने बताया कि वहाँ कबाड़ियों की दूकान के बीच में एक छोटा मंदिर बना हुआ है जिसकी बड़ी मान्यता है और .... "
"मैंने तो आज दिन तक उस रास्ते में कोई मंदिर नहीं देखा ?" रिशु खीज रही है कमला बुआ की इस भारत एक खोज पर और अब उसे पता है कि आगे क्या आदेश मिलेगा।
"अरे छोटा सा कोई मंदिर बताया है दुकानो के बीच में. तू एक बार जाके देख तो सही … क्या पता …"
" जिस से शादी करने के लिए मैं इतने सब जतन कर रही हूँ, कुछ उसको भी फ़िक्र है या नहीं। उसको शादी करनी है मुझसे इसी जन्म में या नहीं ?? ऐसा कहाँ का राजकुमार है ?? ये सब क्या मेरे अकेले की ही सिरदर्दी है ?? अब यही काम रह गए हैं, कबाड़ियों की दुकानो के बीच मंदिर ढूँढती फिरुँ मैं।" रश्मी के गुस्से के आगे कबाड़ी बाजार वाला मंदिर और उसके देवता फ़िलहाल बिहाइंड दी कर्टेन हो गए हैं.
दृश्य पांच
" सुन रिशु, तू एक बार मेरी बात मान के देख, आखिर इसमें हर्ज़ क्या है, जहां इतनी जगहों पर तू मन से या बेमन से गई है वहाँ एक और सही. समस्या का समाधान होने से मतलब है।" गीता समझाना चाहती है और मनवाना भी चाहती है.
"मैं इन सब rituals से और इन बेसिर पैर की बातों से तंग आ गई हूँ. यहां हर कोई सलाह देने बैठा है, हर कोई अपने आज़माये या बिना आज़माये तरीके मुझे बताता फिरता है. और अब तो मुझे इस आडम्बर से नफरत हो गई है."
"मैं सब समझती हूँ रिशु पर दुनिया हमारे हिसाब से तो नहीं चलती ना, अब आडम्बर है या और कुछ, एक बार फिर से विश्वास करके देख. कौन जाने इस बार …"
(इच्छा नहीं है एक बार फिर इस रास्ते जाने की लेकिन बहस करने की भी इच्छा नहीं है और दूसरा रास्ता भी क्या है. ये भी कर के देख ही लो. )
तो अब रश्मी और गीता बैठे हैं पुराने शहर की गलियों के अंदर एक पुराने से मंदिर में जो पुजारी का घर भी है. सुना है कि यहां सिर्फ शादी की तारीख ही बताई जाती है अगर और कोई सवाल या ख्वाहिश हो तो किसी और मंदिर में जाइए। इस जगह तो केवल इसी एक समस्या का समाधान मिलेगा। आपसे बस इतनी ही अपेक्षा है कि अपनी श्रद्धा मुताबिक एक लिफाफा रख जाइए माँ पार्वती के चरणों में और फिर बस इंतज़ार करिये कि कब माँ आप पर कृपा फरमाती हैं. वैसे पुजारी का दावा है कि आज दिन तक उसने जाने कितने ही लोगो के ब्याह की तारीख बताई और उस तारीख तक या उसके कुछ आगे पीछे उनका विवाह हुआ भी है. उसकी शर्त भी यही है कि अगर आपका "काम" ना हो तो बेझिझक अपना लिफाफा वापिस ले जाइए।
तो अब यहां आस्था की एक और परीक्षा है.
छह महीने बाद
"बेटा रश्मी, 23 सितम्बर तो कल बीत गई, आप अपना लिफाफा वापिस ले जा सकती हैं."
"रहने दीजिये ना अंकल, लिफ़ाफ़े का ऐसा क्या है, मुझे वापिस नहीं ले जाना। आप मंदिर के किसी काम में लगा देना।"
"नहीं बेटा, आप इसे वापिस ले जाएँ।"
दृश्य छह
"तो अब, ये उपाय भी नाकाम ही रहा." मम्मी उदास सी बैठी हैं और कमला बुआ फोन पर किसी से बात कर रही हैं.
"सुन रिशु, तेरे बाँए अंगूठे की छाप चाहिए एक सफ़ेद कागज़ पर." कमला बुआ थोड़ी जल्दी में लग रही हैं. और उसी जल्दी में रिशु के ऑफिस बैग से इंक पैड निकाला गया और उसके अंगूठे की छाप ली गई.
कुछ घंटे बाद
"हाँ, तो बैठ अब यहां मेरे पास, देख ये जो लाल किताब वाले पंडित हैं ना ये अंगूठे की छाप देख कर समस्या का हल बताते हैं और समस्या क्या आदमी का भूत भविष्य वर्तमान सब बता देते हैं. पूरे दो हज़ार दिए हैं, अब तेरा घर बस जाए गुड़िया।
सुन, इन्होने कुछ बहुत सटीक उपाय बताये हैं और ये CD भी दी है इसमें सब रिकॉर्ड है जो उन्होंने तेरे बारे में बताया। उन्होंने कहा है कि तुझ पर पिछले जन्म का एक बड़ा भारी दोष है जिसके निवारण के लिए पुष्कर जाकर पूजा करवानी होगी और उसके अलावा भी कुछ उपाय करने होंगे। क्या करना है कैसे CD में रिकॉर्ड है."
कमला बुआ की डीवीडी फुल स्विंग पर चालू थी.
"एक तो हर शुक्रवार को देवी के मंदिर में पीले नींबू पर कुंकुम लगा कर ऐसे नौ नींबू ले जाने हैं , नींबू आधे कटे होने चाहिए और … "
"हर बुधवार गणेश जी को …"
"हर पूर्णिमा को भगवान शिव का दूध से अभिषेक और …"
छन्नन की आवाज़ हुई, रश्मी के हाथ से चाय का कप गिर गया है.
"हाय, इतनी ज़रूरी बात के बीच ये क्या अपशगुन …"
Image Courtesy : Jai Google Baba
P.S. : सात आसमान से आगे बैठे परम पिता अब मेहरबानी करके मुझ पर गुस्सा ना होना, मैं तो पहले से ही तुम्हारे बनाये नियम कायदों से परेशान हूँ. :) :) :)
3 comments:
भगवान बचाये
पोस्ट पढ़कर ऐसा लगा ज्यों कमला बुआ निर्मल बाबा से नावाकिफ़ हैं. क्या पता शक्ति की 'क्रूपा' वहीँ रुक रही है. लड्डू से अच्छा आय का दशांश वही दान कर दिया जाय.
पोस्ट की महत्वपूर्ण नायिका रश्मी 'आधुनिक' सी लगी. दुकान-दुकान चक्कर लगाने से अच्छा है बूँदी खुद से बना लेती. भला लड्डू बनाना कौन सा राकेट साइंस हैं...(पन इंटेंडेड :) )और नहीं आता है तो हमारे पास भेज दीजिए. एक आदत सी हो गयी है. जिंजर-गार्लिक पेस्ट जो सिरका में डूबा होता और स्वाद-व-सुवास हीन हो जाता है वही लोग इस्तेमाल करते हैं. वरना गार्लिक की दो कलियाँ और जिंजर को मिलाने में क्या वक़्त लगता है.
वैसे हमारे गाँव में युवतियां पूर्णिमा के दिन ज्योत्स्ना-स्नात होकर.. नाव में बैठ कर 'झिझिया' खेलती है. वह एक आनंददायक अभ्यास होगा (पता कोसी नदी).
और हाँ क्यों ना कमला बुआ से भी यह वार्ता की जाय कि समाज के बनाये नियम स्थान और काल-विशेष के लिए उपयुक्त होते हैं. अब युवतियों के लिए रौशनी का जरिया बस वातायन या कोई चन्द्रकुमार ना रहा....पश्चिम की युवतियां तो इसी युग में जीवन का हर सुख (यथा करियर, मातृत्व )प्राप्त करती है.विवाह की अनिवार्यता तो समाज तय करती है. वो भी अपने सुख के लिए. इति.
बहरहाल....पोस्ट अच्छी लगी.
प्रशंसनीय
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