हालांकि ये स्थिति भी ज्यादा देर तक नहीं ठहर सकी .. उसने खुद को एकबारगी फिर से फूलों की टहनियों और उस खरगोश की तलाश में व्यस्त कर लिया। पर जाने क्यों वो उत्साह अब मंद पड़ गया था। और तभी उसकी आँखें जा टिकीं उस "फूल" पर .. वही जो झील में था .. अब भी वहीँ था .. उसे वो फूल चाहिए था ..बस चाहिए था .. लेकिन कैसे मिले .. दूर था .. "उह्ह किसे परवाह है .. मुझे चाहिए बस " .. उसने सोचा।
उसने यहाँ वहाँ देखना और तलाशना शुरू किया शायद कुछ मिल जाए .. थोड़ी देर बाद उसे किसी पेड़ की एक टूटी हुई लेकिन कुछ लम्बी टहनी या डाल जैसा मिल गया .. "शायद ये काम कर जाए".
उस टहनी को थामे वो पानी में उतरी .. पानी ठंडा था, इसके अलावा झील की तली काफी चिकनी और फिसलन भरी भी थी .. इसलिए वो धीरे धीरे सावधानी से कदम बढ़ा रही थी .. और अब काफी हद तक पानी के भीतर थी। वो सब फूलों के गहने, जो उसने पहन रखे थे, अब धीरे धीरे ढीले होकर खुलने लगे थे और पानी की सतह पे बिखरने लगे थे सिर्फ वो फूलों का ताज उसके सर पर अभी तक खिला हुआ था लेकिन उसने खुद ही उसे हटा दिया। अचानक से उसे कुछ महसूस हुआ ... ठंडा पानी .. जिसकी छुअन बेहद रहस्यमय थी ..एक मदहोश कर देने वाला नशा उस पर छा रहा था .. उसने खुद को खो जाने दिया .. उस जादुई लम्हे और उस अलौकिक अनुभव में .. गहरे तक डूब जाने दिया खुद को ..पानी जैसे उसके शरीर की बाहरी परत को भेदता हुआ अन्दर तक समा रहा था .. उसकी आत्मा को भिगो रहा था ..कुछ वक़्त तक वो ऐसे ही रही .. पानी में .. उस वजह को भी भूल गई जो (फूल) उसे यहाँ पानी के भीतर लेकर आया था .
कुछ देर बाद अचानक जैसे वो नींद से जागी .. एक ख्याल उसके दिमाग में आया और उसे थोडा डर लगा .. वो उस जादुई दुनिया से बाहर निकल आई .. उसने अपने होश संभाले और एक बार फिर से उस फूल की तरफ देखा .. धीरे से .. ध्यान से उसने अपने हाथ में थामी हुई टहनी को आगे बढाया और उस फूल को उसके डंठल के साथ खींचा .. दो चार कोशिशों के बाद उसने फूल को अपनी तरफ खींच लिया और डंठल समेत तोड़ भी लिया और फिर वो झील से बाहर निकल आई।
वो फूल, दुसरे आम फूलों से कुछ ज्यादा ही बड़ा था .. उसकी खुशबू , लड़की के मन मस्तिष्क पर छाने लगी थी या शायद अब भी वो उस रहस्य के आवरण में खोई हुई थी, उसे महसूस कर रही थी । उसने अपने बालों का एक ढीला सा जूडा सा बनाया और वो फूल उसमे लगा दिया ..और फिर दुबारा झील की तरफ गई .. झील के आईने में खुद को देखा .. फूल उसके बालों में बेहद खूबसूरत लग रहा था या ये महज़ उसकी कल्पना थी जो उस फूल को और उसे भी खूबसूरत बना रही थी ? उसे मालूम नहीं था
और तभी एक बार फिर से उसने वो खरगोश देखा .. पेड़ के पास जाने क्या कर रहा था .. दोनॊ को एक एक दूसरे की उपस्थिति का पूरा अहसास था और दोनों एक दूसरे से कभी नज़रें मिलाते तो कभी नज़रें चुराते .. लड़की मुस्कुरा रही थी और खरगोश अपनी चमकीली आँखें झपका रहा था। कुछ देर बाद खरगोश पेड़ों के एक झुरमुट की और भाग चला .. जिज्ञासा, लड़की को खरगोश के पीछे ले गई .. उस झुरमुट के अन्दर ..
और क्या था वहाँ .. वहाँ तीन चार खरगोश और भी थे। उसने अपने चारों और देखा और उसका चेहरा चमक उठा बच्चों जैसी ख़ुशी और उत्साह से .. एक बार फिर से उसके मन मस्तिष्क और उसकी आत्मा झूम उठी उस नज़ारे को देखकर, भूल गई कि थोड़ी देर पहले क्या था, क्या नहीं था .. और फिर अगले कुछ ही क्षणों में लड़की ने उन नर्म नाजुक छोटे दोस्तों के साथ खेलना शुरू कर दिया या उन्होंने उसका हाथ थाम लिया, कह पाना मुश्किल है .. लेकिन इतना ज़रूर था कि एक दुसरे का साथ उन्हें बहुत पसंद आ रहा था और वो उसका पूरा मज़ा ले रहे थे। कुछ घंटे और बीत गए .. वो भूल गई, समय को, समय के बंधनों को और शेष जगत को .. यहाँ तक कि उसे नींद आ गई .. नींद में उसे ख्वाब आ रहे थे .. ख्वाब "उस पार" के, ख्वाब परछाइयों के, प्रतिबिम्बों के और हाँ खरगोशों के भी।
अचानक एक तेज़ आवाज़ ने उस जगह की खामोशी को तोडा .. कोई पुकार रहा है .. वो जाग गई ..
"ये किस किस्म का शोर है?" वो बुदबुदाई और झील की तरफ लौटी।
वो लड़का, वोही .. यहाँ वहाँ घूम रहा था .. सब तरफ उसका नाम पुकारता ढूंढ रहा था ..
"जून .. जून .. कहाँ हो तुम ?"
वो उसे वापिस आया देख कर हैरान थी .. कुछ देर यूँही खामोश खड़ी रही और उसकी हरकतों को देखती रही।
आखिर लड़के की नज़र उस पर पड़ी .. " तो तुम यहाँ हो " .. लड़का उसे देख कर खुश था ... हालाँकि वो हांफ रहा था लेकिन एक बड़ी सी मुस्कान उसके चेहरे पर बिखर गई। लड़की ने इसे देखा, समझा और उसकी तरफ बढ़ आई .. वो अब भी उसे आश्चर्य से देख रही थी।
"कुछ बोलो ना .. मैंने तो सोचा था कि तुम अब तक जा चुकी होंगी लेकिन देखता हूँ कि तुम अब भी .."
"हाँ मैं यहीं थी .." लड़की ने धीरे से जवाब दिया। लड़के ने उस अनकही ख़ुशी को और उस छुपाये गए उत्साह को देख लिया था ..जान लिया था, समझ लिया था जो उसके शब्दों के पीछे से झाँक रहा था।
"तो तुम वापिस कैसे आ गए .. मैंने सोचा था कि तुम चले गए हो, तुम्हारे लोग तुम्हे बुला रहे थे ना .."
"हाँ, कुछ काम था, पर मैंने कर लिया और वापिस आ गया .. ये देखने कि क्या तुम अब भी यहीं हो या .." अब उसकी साँसे सामान्य होने लगी थी।
वो उसके शब्दों को गौर से सुन रही थी ..
"तो क्या कर रही थी तुम इतनी देर तक ..और डर नहीं लगा तुम्हे".
"डर किस बात का ?"
"ये जगह, बिलकुल अकेले .." लड़के ने वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया और अचानक जोर से चिल्ला कर पूछा ... "वो सारे फूल कहाँ गए?"
पहले तो वो हंसी, फिर थोडा रुक कर उसने कहा .. " चले गए, खो गए".
"खो गए?? कहाँ?" वो कुछ समझ नहीं पाया .. हज़ारों ख्याल उसके मन को झिंझोड़ने लगे।
लेकिन लड़की अब भी मुस्कुरा रही थी, उसकी आँखें एक रहस्यपूर्ण तरीके से चमक रही थी, कुछ देर तक खामोश रही वो जैसे कोई बड़ा राज़ छुपा रही हो, फिर एक बार खिलखिलाई और उसने वही जवाब दोहरा दिया .. " खो गये."
लड़का अब् भी उलझन में था .. कुछ पूछना चाहता था लेकिन जानता नहीं था कि कैसे पूछे ..
"क्या तुमने इसे नहीं देखा ?" लड़की ने अपने बालों में लगे फूल की तरफ इशारा किया .. उसका चेहरा अब एक विजेता के जैसी ख़ुशी से दमक रहा था। एक पल को लड़का कुछ समझ नहीं पाया लेकिन फिर अगले ही क्षण उसने झील की तरफ देखा (झील ज्यादा दूर नहीं थी ) और फिर उस फूल की तरफ .. .
"तुमने ये कैसे किया .."? लड़के की आँखें आश्चर्य से फ़ैल गई।
वो मुस्कुराई .. "बस कर लिया ... मैं पानी में गई, और फूल को एक टूटी टहनी की मदद से तोड़ लिया।" वो ऐसे बता रही थी जैसे कोई छोटा बच्चा स्कूल में होमवर्क के लिए मिली तारीफ़ के बारे में बता रहा हो।
"तुम पागल हो हो ..?? पानी में गई !!!!!!!!!!!!"
"हाँ .." उसने लापरवाही से जवाब दिया।
"तुम पागल हो, बिलकुल पागल. ये खतरनाक हो सकता था .. तुम जानती नहीं क्या ?"
" ऐसा कुछ भी नहीं था, ना तो ये कोई बड़ा खतरनाक काम था और ना ही इसमें कोई परेशानी लगी।"
लड़की की आवाज़ में एक लापरवाही और उपेक्षा सी थी उसके सवालों के लिये. और शायद इसलिए, लड़के ने कहे गए शब्दों से कहीं ज्यादा सुना और जितना उसके कहने का अर्थ था उस से कहीं ज्यादा समझा भी. और अब लड़के का उत्साह और ख़ुशी जो उस से मिलने पर था, अब फीका पड़ने लगा.
लेकन इस सबसे बेखबर वो अब फिर से पेड़ों के झुरमुट की ओर जा रही थी।
"अब तुम कहाँ जा रही हो?" वो अब भी उलझन से घिरा था।
"मैं ... मैं वो ..मैं तुम्हे कुछ दिखाना चाहती हूँ ..चलो .. चलो ना ".
लड़के ने हालाँकि आगे कुछ नहीं पूछा और वो उसके पीछे चलता गया लेकिन अब दिल में एक भारीपन था. और अब वो दोनों झुरमुट के पास थे. लगा जैसे लड़की थोड़ी निराश सी हुई हो, खरगोश और उनका कोई नामोनिशान आस पास नहीं था।
"वो खरगोश कहाँ गए?"
"कौनसे खरगोश?"
"यहीं तो थे, उन्ही के साथ तो मैं पूरा वक़्त खेल रही थी जब तुम यहाँ नहीं थे".
अब लड़का थोडा और हैरान परेशान हो गया .. "मैंने तो यहाँ कभी कोई खरगोश नहीं देखे."
'पर वो यहीं थे ..अच्छा चलो रहने दो .. ज़रा इसे देखो तो .."
लड़की अब एक बड़े से बरगद के पेड़ की तरफ गई और पेड़ से लटकती उसकी लम्बी जड़ों के एक जोड़े को थाम लिया, जो बिलकुल एक कुदरत के बनाये झूले जैसा लग रहा था। वो उस पर बैठ गई और धीरे धीरे झूलने लगी .. झूला गति पकड़ने लगा .. ऊपर उठता हुआ और फिर नीचे आता हुआ ..
"अरे, ध्यान से, कहीं गिर ना जाओ". लड़का परेशान था।
लड़की हंसी .. और उस लम्हे में लगा जैसे कोई झरना बह निकला हो ... ऊँचे पहाड़ों से गिरता हुआ .. आश्चर्य के साथ लड़का उसे फिर से देख रहा था .. " तुम पागल हो .."
झूले की गति अब काफी बढ़ गई थी पर जैसे इतना काफी नहीं था .. लड़की ने अब उन टहनियों के झूले को गोल घेरे में घुमा के झूलना शुरू किया और लड़का अब पूरी तरह अचंभित था .. उस लड़की की हंसी और उमंगें जैसे हवा में चुम्बकीय तरंगें पैदा कर रही थी और हर उस चीज़ को अपने में समाती जा रही थी जो वक़्त के उस लम्हे में, धरती के उस टुकड़े पर मौजूद था। लेकिन लगता नहीं था कि लड़की को इस सबका भान था, वो तो सिर्फ झूलने का आनद ले रही थी। लड़के ने महसूस किया वो अपनी आँखें नहीं हटा पा रहा उस से .. उस लड़की से .. या शायद वो हटाना ही नहीं चाहता .. जो भी था .. लड़की ने इस बात को समझ लिया।
लड़की ने उसकी आँखों को देखा .. उनमे लालसाएं थीं, आकांक्षाएं थीं, महत्वाकांक्षाएं थी, अपेक्षाएं थीं और … और बहुत कुछ था … और उसकी आँखों में लड़के ने एक सपना देखा जो झिलमिलाते हुए पर्दों के पीछे छिपा था . वो आगे बढा …
"तुमने अभी तक मेरा नाम नहीं पूछा".
"मैं जानती हूँ तुम्हारा नाम ।" एक और बेपरवाह जवाब.
" तुम जानती हो !!!!!!!!!!!!, लेकिन मैंने तो तुम्हे नहीं बताया, फिर कैसे । कैसे तुम जानती हो ?" लड़का अब उसके ठीक सामने आकर खड़ा हो गया.
"क्या …" एक क्षण के लिए उसकी हंसी रुक गई और वो निरुत्तर हो गई.
लड़के ने अपना सवाल दोहराया … लड़की की मुस्कान फिर से लौट आई. दूर अज्ञात क्षितिज को देखते हुए उसने कहा …
" तुम्हारा नाम छलावा है … तुम्हारा नाम है सतरंगी आभास, भ्रम, तृष्णा … "
लड़के ने झूले को कस कर पकड़ लिया और उसकी तरफ देखने लगा लेकिन लड़की ने कोमलता से उसका हाथ हटाया और रुक चुके झूले से उठ खड़ी हुई.
लड़का खामोश था लेकिन शायद कुछ कहना चाहता था.
लड़की ने सुन लिया … वो मुड़ी … लेकिन ये क्या …
हर चीज़ … उसके चारों ओर, वो लड़का … सब कुछ एक भंवर में समाता और गायब होता जा रहा था. वो डर कर चीखी … उसने अपना हाथ आगे बढाया शायद कुछ थामने के लिए या पकड़ने के लिए … लेकिन तब तक देर हो चुकी थी.
"रुकॊऒऒओ … " उसकी साँसे तेज़ तेज़ चल रही थी पसीने से नहा गई थी वो.
" बिटिया, सोना … क्या हुआ … कुछ नहीं बस एक बुरा सपना ही था, शांत हो जा". ये उसके माता पिता थे.
और तभी उसके सेलफोन की रिंग टोन बज उठी … "छोटी सी कहानी से बारिशों के पानी से सारी वादी भर गई … "
2 comments:
मर्मस्पर्शी दृश्य प्रस्तुत करती कहानी।
सादर
Nice one
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