Thursday, 15 August 2013

चलो कही चलते हैं

ज़िन्दगी तू  मुझसे खफा और मैं तुझसे 

ज़िन्दगी तू मुझसे परेशान और मैं तुझसे 

ज़िन्दगी तुझे मैं नापसंद और मुझे तू पसंद नहीं 

ज़िन्दगी तू मेरी आकांक्षाओं, महत्वकांक्षाओ और सपनों से परेशान  और मैं तेरी लगाईं हुई बंदिशों से 

ज़िन्दगी मैं तुझसे थक गई हूँ और तू तो  जाने कब से मुझसे थक कर अपना हाथ छुड़ा चुकी है.

ज़िन्दगी  तू मेरी नित नई  इच्छाओं के कभी ना खुटने वाले खजाने से झुंझलाई हुई है और मैं तेरे मन के रीते हुए घड़े को देखकर रोये जाती हूँ.
ज़िन्दगी ना तूने मुझसे कुछ पाया और  ना मुझे कुछ दिया 

ज़िन्दगी  ना  जाने कैसे हर रोज़ हम एक दूसरे  का  साथ हँसते हँसते  निभाये जा रहे हैं 

ज़िन्दगी हर रोज़ तू उसी पुराने रास्ते पर मुझे उठाये ले चलती है और हर सुबह मैं एक नए रास्ते की तलाश में अलग अलग दिशाओं में भागती  जाती हूँ  … लौट आने के लिए उसी पुराने रास्ते पर.

ज़िन्दगी तू मुझसे खफा और मैं तुझसे  फिर भी हम चले जा रहे हैं एक साथ, एक ही रास्ते पर अलग अलग मंजिलों की तरफ  ….  जानते  हुए कि रास्ते का अंत नहीं और मंजिल का कोई नाम कोई ठिकाना नहीं फिर भी हम चले जाते हैं।


4 comments:

Satish Chandra Satyarthi said...

अच्छा लिखा है आपने..

Bhavana Lalwani said...

thank u

Namisha Sharma said...

"zindagi tu aur maine ek dusare ke liye nhi hai par phir bhi sang sang chal rahe hai.." good Bhavana !

Bhavana Lalwani said...

thanks my dear frnd .. its nice to see u back in blogging world.