ज़िन्दगी तू मुझसे खफा और मैं तुझसे
ज़िन्दगी तू मुझसे परेशान और मैं तुझसे
ज़िन्दगी तुझे मैं नापसंद और मुझे तू पसंद नहीं
ज़िन्दगी तू मेरी आकांक्षाओं, महत्वकांक्षाओ और सपनों से परेशान और मैं तेरी लगाईं हुई बंदिशों से
ज़िन्दगी मैं तुझसे थक गई हूँ और तू तो जाने कब से मुझसे थक कर अपना हाथ छुड़ा चुकी है.
ज़िन्दगी तू मेरी नित नई इच्छाओं के कभी ना खुटने वाले खजाने से झुंझलाई हुई है और मैं तेरे मन के रीते हुए घड़े को देखकर रोये जाती हूँ.
ज़िन्दगी ना तूने मुझसे कुछ पाया और ना मुझे कुछ दिया
ज़िन्दगी ना जाने कैसे हर रोज़ हम एक दूसरे का साथ हँसते हँसते निभाये जा रहे हैं
ज़िन्दगी हर रोज़ तू उसी पुराने रास्ते पर मुझे उठाये ले चलती है और हर सुबह मैं एक नए रास्ते की तलाश में अलग अलग दिशाओं में भागती जाती हूँ … लौट आने के लिए उसी पुराने रास्ते पर.
ज़िन्दगी तू मुझसे खफा और मैं तुझसे फिर भी हम चले जा रहे हैं एक साथ, एक ही रास्ते पर अलग अलग मंजिलों की तरफ …. जानते हुए कि रास्ते का अंत नहीं और मंजिल का कोई नाम कोई ठिकाना नहीं फिर भी हम चले जाते हैं।