Saturday 25 February 2012

एक खुला दरवाजा

जब खुदा अपना दरवाजा बंद कर लेता है तब...दुनिया अपना दरवाजा खोल देती है...अपनी बाँहें फैला देती है ..समेट लेती  है अपने आँचल में, अपनी गोद में, इस तरह कि अपना ही होश नहीं रहता, ऐसे कि उसके प्यार का नशा जागते हुए  भी सोते रहने को मजबूर कर देता है, ख्वाब दिखाता  जाता है  ...

जब खुदा अपना रास्ता बदल देता है तब ....दुनिया का हर रास्ता खुल जाता है....उसका हर रास्ता जाना पहचाना हो जाता है..हर गली अपनी और हर मोड़ ठिकाना बन जाता है...खुदा जब अपना दरवाजा बंद कर लेता है तो...दुनिया के सारे दरवाजे, खिड़कियाँ और परदे खुल जाते हैं..हर चेहरा, हर नाम, हर पता, हर वो रास्ता जो कहीं आगे जाता है या नहीं जाता या आगे जाकर बंद हो जाता है , वो सब आगे बढ़कर गले लगाने  लगते हैं ...और आखिर में भुला देते हैं कि कौनसी वजह थी, कौनसा सफ़र था, कौनसा रास्ता था, कौन था, कहाँ था ...कुछ था भी या नहीं...

और इसलिए खुदा के बंद दरवाजों को हमेशा खटखटाते रहना चाहिए, याद दिलाते रहना चाहिए...उसे नहीं खुद को, कि कहाँ जाना है, क्यों जाना है, किस राह पर रुकना है और इसलिए  कि कहीं हम खो ना जाएँ ....

8 comments:

अजय कुमार झा said...

वाह ,कमाल का दर्शन है भावना जी । बहुत खूब । अच्छी पोस्ट

Namisha Sharma said...

good...

Unknown said...

philosopher bhavnaji bahut badhiya.... your writing is getting matured one... u r capable to write whole book...

मनीष said...

mujhe samajh nahi aaya, ye likha kya hai aapne?

Aniket said...

hey good one ..and crispy

RAJANIKANT MISHRA said...

khud ka darwazaa hi nhi khatkhatana chate hum... kab kaun sa jinn nikal aaye...

Bhavana Lalwani said...

kam se kam koi jawaab toh milega .. us jawaab ki aas mein hi sahi .. ek baar darwaja khulwaa k toh dekho .. pata toh chale ki Khuda ke ghar mein koun koun rahta hai

RAJANIKANT MISHRA said...

१.

खटखटा तो दूँ,
दरवाज़ा
तेरा, खुदा
या खुद का।
बंद हैं, दरवाज़े
हम तीनो के।

२.

एक ही, सांकल
छूटना है
हमें।
बस मौत आर पार है।

३.

तहखानो के
खुले दरवाज़े,
तमाम ज़िन्न कैद जिनमें।
बंद कर रखा है,
तहखानों को,
खुद के अन्दर।