Wednesday, 25 January 2012

बाबुल जिया मोरा घबराए, बिन बोले रहा न जाए।
बाबुल मेरी इतनी अरज सुन लीजो, मोहे सुनार के घर मत दीजो।
मोहे जेवर कभी न भाए।


बाबुल मेरी इतनी अरज सुन लीजो, मोहे व्यापारी के घर मत दीजो
मोहे धन दौलत न सुहाए।

बाबुल मेरी इतनी अरज सुन लीजो, मोहे राजा के घर न दीजो।
मोहे राज करना न आए।

बाबुल मेरी इतनी अरज सुन लीजो, मोहे लौहार के घर दे दीजो
जो मेरी जंजीरें पिघलाए। बाबुल जिया मोरा घबराए।


प्रसून जोशी द्वारा लिखित एक बेहतरीन रचना 

2 comments:

Pallavi saxena said...

जैसा आपका शीर्षक वैसे ही प्रस्तुति ....

Chaitanya Sharma said...

बाबुल मेरी इतनी अरज सुन लीजो, मोहे लौहार के घर दे दीजो
जो मेरी जंजीरें पिघलाए। बाबुल जिया मोरा घबराए।
कमाल के अर्थपूर्ण भाव.......
Dr. Monika Sharma