Sunday 15 January 2012

ख़्वाबों - ख्यालों का बुलबुला : इन्टरनेट

इन्टरनेट एक महासागर है. प्रशांत महासागर से भी ज्यादा गहरा सागर. इसका विस्तार हमारी धरती से भी आगे तक चला गया है (ब्रह्मांड का कौनसा कोना या कोई दूर दराज की आकाशगंगा सब ही तो मौजूद है सिर्फ एक क्लिक पर).  इस सागर की गहराई ऐसी है कि संसार के सारे सागरों का पानी भी इसमें समा जाए फिर भी जगह बची रहेगी. इस सागर में आप मन चाहे जितना तैर सकते हैं, डूबना चाहे तो वो भी संभव है, इसकी गहराई का कोई अंत नहीं है.. लेकिन इन्टरनेट के संसार के पास ऊँचाई  का आयाम नहीं है, उसकी तलाश भी बेकार है..यहाँ से आप कहीं ऊपर उठ सकते हैं या किसी हिमालय की ऊँचाई को नाप सकते हैं..ऐसा ख्याल मुझे तो  समझ नहीं आता... मगर पिछले कुछ वक़्त से कुछ  ख्याल मन में आ रहे थे .. अब इसे मेरा पूर्वाग्रह  कहिये या अनुभव या मेरा observation या खाली दिमाग की कसरत...

इन्टरनेट एक आभासी दुनिया है, एक virtual reality virtual world ...है ना.. पर फिर भी यहाँ हम जिन लोगों से मिलते हैं वो असली होते हैं (अब यहाँ fake profiles को छोड़ दीजिये). वो नाम, वो तसवीरें, उनके जीवन और उसमे होने वाली घटनाएं भी असली और सच होती हैं (कुछ हद तक....बाकी...भगवान् जाने).. उनसे हम बातें करते हैं, साथ - साथ हँसते हैं, हंसाते हैं, कभी कभी दुखी भी हो जाते हैं (शायद ..) कभी उन में से किसी को याद भी करते हों...पर फिर भी यहाँ कोई चीज़, इंसान, कोई रिश्ता (नाम चाहे जो रख लीजिये) वो हमेशा के लिए नहीं होता..जब तक  स्क्रीन ऑन है तब तक आप हैं और इन्टरनेट का असली या नकली(जैसा भी) संसार है. एक बार स्विच ऑफ किया तो सब वहीँ ख़त्म. इन्टरनेट का महासागर, उसके जीव जंतु, झाडी-पौधे  सब वहीँ सो जाते हैं..उनका अस्तित्व बस उस स्क्रीन पर आकर रुक जाता है (कभी कभी असल ज़िन्दगी में भी आ जाते हैं, फोन या personal मीटिंग के ज़रिये..पर..)

पर ये सारा मामला उतना सीधा, सरल और साधारण भी नहीं है...अभी कुछ दिन-हफ्ते हुए एक किताब पढ़ी,  "I Too had a Love Story"  और फिर एक दिन यूँही किसी ब्लॉग को छान रही थी, वहाँ कुछ  budding या already "बेस्टसेलर" लेखकों की आने वाली या आ चुकी किताबों का विवरण दिया हुआ था.. अब संयोग से जिन  २-४ किताबों का introduction मैंने पढ़ा, वो सब लव stories थीं, शुरुआत इन्टरनेट से, फिर फोन और उसी में सारा किस्सा शुरू होकर राम जाने कौन कौन से ट्विस्ट-turns  लेता जाता है..असल ज़िन्दगी में उस इन्सान से मिलना या उसको जानना तो अभी दूर किसी ५-६वे अध्याय में होगा...कहानी तो फिलहाल शुरू हो गई और अच्छे से चल भी गई...मैं यहाँ उन किताबों या उनके लेखकों का कोई मज़ाक नहीं बना रही..आखिर ये किताबे और उनकी कहानियाँ बाज़ार में खूब बिकती हैं तो ज़रूर कुछ वजह से ही..

पर ऐसा क्यों हो रहा है कि हम इन्टरनेट पर अपने लिए ऐसे रिश्ते तलाश कर रहे हैं, रिश्ते बना रहे हैं और उनको बनाए भी रखना चाह रहे हैं( शायद..यकीन से नहीं कह सकती..) कारण ये है कि इन्टरनेट हमारी ज़िन्दगी का एक विस्तार, एक ब्रांच, एक नया आयाम बन गया है. जो खूबसूरत है, जहाँ हर पल कुछ नया है, जहाँ विकल्पों की कोई कमी नहीं, जो आपको तब तक अपनी गोद में खिलाता रह सकता है जब तक आप चाहें.... यहाँ बहुत सी सहूलियतें हैं  (अपनी असली पहचान  बताइए, ना बताइए..बढ़ा - चढ़ा कर बताइए..जो मन करे सो बताइए, कौन आ रहा है आपको देखने या पूछने..) पर जब इतना सब कुछ यहाँ अनिश्चित है, विश्वास करना ज़रा मुश्किल है, तब क्यों लोग यहाँ अपने लिए दोस्त और जाने कौन कौन से सम्बन्ध तलाश लेते हैं..उनकी असल ज़िन्दगी में ऐसी कौनसी कमी है या क्या ऐसा है जो मिल नहीं रहा वहाँ, इसलिए यहाँ इन्टरनेट पर ढूँढने चले आये हैं.. मेरे एक मित्र तलत बारी ने इन्टरनेट इस्तेमाल करने वालों के बारे में एक बहुत सटीक बात कही..उनके अनुसार तीन किस्म के लोग यहाँ आते हैं..

१. एक वो, जो अपनी frustration (कुंठा) दूर करने आते हैं (कुंठा कैसी भी हो सकती है..वो सवाल यहाँ नहीं है).
२. दूसरे वो,  जिनके लिए  इन्टरनेट खुद को एक सेलेब्रिटी की तरह पेश करने का जरिया है. फोटो अपलोड करना, उन पे ढेर सारे कमेंट्स आना, अनगिनत दोस्त (जाने-अनजाने)...
३. तीसरे वो है,  जिनके लिए ये इन्टरनेट एक गुड्डे -गुडिया का खेल है. यहाँ गुड्डा भी अच्छा है, गुडिया भी बहुत अच्छी है..उनके लिए ये सारा कुछ एक प्यारी सी  खूबसूरत फिल्म की तरह चल रहा है.

मेरे ख्याल से बहुत से और लोग भी उपर्युक्त  व्याख्या से सहमत होंगे..

दरअसल, हम सब एक खूबसूरत ख्वाब तलाश कर रहे हैं, ऐसा ख्वाब जो हर तरह से सही है, मुकम्मल है, अच्छा है, प्यारा सा लगता है और हम चाहते हैं कि वो बस यूँही बना रहे.  और जो हमारी असल ज़िन्दगी में हमें मिल नहीं  पा रहा या मिल भी रहा हो तो भी  और बेहतर या और ज्यादा  की चाह हमें यहाँ  इस आभासी दुनिया में ले आती है. हम बस यहाँ अपनी पसंद की एक दुनिया बना लेते  हैं, जिसके  आवरण में हम अपने  असल ज़िन्दगी के पैबंद और कमियों को बड़ी सफाई से छुपा लेते हैं..ये सोच कर कि असल ज़िन्दगी में  न सही, इस छलावे की  दुनिया में तो हम, हमारा जीवन रंगीनियों से लबरेज़ नज़र आये..

   इसी ख्वाब या मृग मरीचिका की खोज इन्टरनेट में पूरी हो रही है..जहाँ हर कोई खुद को परफेक्ट रूप में पेश करता है, यहाँ हर कोई cheerful  है, full ऑफ़ energy है, cool  है और बस "बहुत अच्छा है". दिल को अच्छा लगता है, क्योंकि अभी तक यहाँ स्क्रीन पर हम उस इंसान के या उस रिश्ते के सिर्फ एक ही पक्ष को तो देख पाएं हैं, अभी दूसरा पक्ष जो असल व्यावहारिक ज़िन्दगी में होता है, उस से तो  वास्ता पड़ा ही नहीं..कब पड़ेगा इसका अता  पता भी नहीं..ये खुली आँखों का ख्वाब जो हम नेट के ज़रिये देख रहे हैं उसका ज़मीनी रंग कैसा है, कैसा नहीं है, क्या असल में वो ख्वाब ठीक वैसा ही है जैसा वो नेट पर दिखाई दे रहा है? और सबसे बड़ी बात क्या असल में कहीं सचमुच उस ख्वाब का कोई अस्तित्व भी है? शायद ना हो..शायद हो भी..पर दोनों ही सूरतों में हमारे हाथ क्या लगना है??   सम्बन्ध की जो गर्माहट हमें इन्टरनेट के ज़रिये महसूस हो रही है, जो महत्व हमें मिलता नज़र आता है,  जो जगह हम अपने लिए और उन दूसरों के लिए बना कर बैठे हैं, असलियत में उसकी कहीं कोई अहमियत है भी या नहीं...उन लोगों की नज़र में, अपनी नज़र में..अगर असल ज़िन्दगी  में वो इंसान हमें मिलते तो क्या तब भी उनके साथ वैसा  ही रिश्ता बन पाता...

या ऐसा क्यों है कि असल ज़िन्दगी में जो लोग, रिश्ते हमारे  आस-पास हैं,  उनमे कुछ कमी सी लगती है?

देखा जाए तो,  इन्टरनेट कुछ और नहीं पर शब्दों का एक बेहद हसीन  इंद्रजाल है, जिसमे हम खुद को और दूसरों को उलझाए और बहलाए रखते हैं...जहाँ हर बात का (Hello, Good Morning , Good Night  कहने  तक ) का एक customized version होता है दो लोगों के बीच..पर अगर नहीं  होता तो असल ज़िन्दगी में उनको बाँध सके,  ऐसा कोई एक धागा नहीं होता..हो भी नहीं सकता..भौगोलिक दूरियां..अगर हम ना भी माने तो भी और बहुत सी दूरियां इस समाज और दुनियादारी के लिहाज से महत्त्व रखती ही हैं..एक सीमा आती है, जब हम चाहते हैं कि ये सपना,  ये  इन्टरनेट का इंद्रजाल सच हो जाए, स्क्रीन से बाहर निकल आये.  हम या तो इसे पूरी तरह पा लेना चाहते हैं..या फिर इसे ख़त्म ही कर देना चाहते हैं..किसी नशे की आदत की तरह ख़त्म तो ये हो नहीं सकता, बस एक के बाद एक तसवीरें, नाम बदलते रहते हैं. कल तक  जिन से हम महीनों तक बातें कर रहे थे..अपनी खुशियाँ, सुख-दुःख साझे कर रहे थे.. अचानक या धीरे धीरे से, इस या उस कारण से उनके साथ communication कम होता जाता है और आखिर पूरी तरह ख़त्म भी हो जाता है.

कोई कह सकता है कि इतने लम्बे वक़्त से जिन लोगों से हम बात कर रहे हैं,  उनको इतना या उतना जानते हैं..क्या उन पर भी विश्वास ना करें? क्या अपनी बुद्धि पर भी नहीं? तो इसका जवाब भी तलत ने बड़ी सरलता से दिया.." लम्बे वक़्त तक एक इंसान से बातचीत खुद उस इंसान को ही भुला देती है कि वो क्या है? पहले वो हमें बताता है कि वो कौन है, क्या है. फिर हम उसे बताते हैं कि वो ऐसा है या वैसा है या कैसा है.. और फिर सामने वाला भी उसी बात को सही, सच मान कर reply करता जाता है."  

 और इस तरह ये एक श्रृंखला चलती जाती है. यहाँ इन्टरनेट पर हम हर रोज़ नए नए रंग में रूप में उस सामने वाले इंसान की नज़र और पसंद के हिसाब से ढलते जाते हैं. और इस तरह अलिफ़ लैला का ये किस्सा कभी ना ख़त्म होने की तर्ज़ पर चलता रह सकता है..कम से कम तब तक, जब तक कि दोनों में से एक को कोई और बेहतर, ज्यादा दिलचस्प "विकल्प" ना मिल जाए..और इसलिए जैसा कि
 मैंने शुरुआत में कहा था, यहाँ इस सागर में आप डूब सकते हैं, तैर सकते हैं, लेकिन फिर भी अंत में थक कर सूखी ज़मीन का कोई कोना, कोई किनारा  तलाशना ही पड़ता है..


लेकिन इन्टरनेट का सपना नहीं रुकता..एक की जगह कोई दूसरा आ जाता है..दूसरे  की जगह तीसरा, यानी यहाँ किसी की कोई ख़ास जगह या भूमिका नहीं है. .हमारे नश्वर संसार का सबसे अच्छा उदाहरण है इन्टरनेट..मेरे एक इन्टरनेट वाले दोस्त ने ही एक बार मुझसे  कहा था कि, एक दिन ये सब कंप्यूटर, इन्टरनेट केबल्स, ये सब crash  हो जायेंगे तो क्या तब हम बात नहीं करेंगे एक दूसरे से? तब क्या हमारा एक-दूसरे के लिए  कोई अस्तित्व नहीं होगा? क्या उस सूरत में हम कभी नहीं मिलेंगे?

सवाल अपनी जगह बिलकुल वाजिब थे पर  मैं इन सारे सवालों का कोई जवाब नहीं दे पायी थी..जवाब था भी नहीं मेरे पास.. और मजे की बात ये है कि उस सवाल करने वाले से अब मेरी सच में बिलकुल बात नहीं होती...ऑनलाइन होते हुए भी, visible होते हुए भी नहीं....


4 comments:

Jitin™ Sukhnani™ said...

Nicely written...
Just a few suggestions,
1. many words like, "Shaayad" and "Mere khayaal se" have been used excessively, which makes article look biased. I'm not saying that one shouldn't express his/her views, but its extremely important to pass the baton of thoughts from our mind to others, being neutral in the process.
2. Internet is a giant tree in itself, which has evolved through the span of 40 years, in this period, it has witnessed many wars, inventions, historical personalities and many other things, so we can't summarize this in just some lines, however author has tried her best to do justice with this essay.
There can be no ratings or reactions for this essay, as "Khule man ki udaan ka koi aayam nahi hota, ise kisi dor mein nahi baandha jaa sakta, naa hi hawaa me udne ke liye majboor kiya jaa sakta hai, ye to sirf apni raah chalta hai, aur kya???"
Keep writing...
Jitin

Arun said...

nicely composed article..based on social networking websites.. this article is the truth of social net websites. The author has questioned that "y people neglect the people near to us and prefer for some new relationship" the reason behind is simple, people never get satisfied with what they have...but always go in search something better then before.. no matter how much good or caring the previous thing can be.

It can be insane but now a days people have become more filmy and there tots too have transformed in a filmy way where most of the things goes on a happy note..lol

But these websites are pretty much useful if v utilize in a right way.

Apart from talking only about fb, orkut, twitter and all that stuff, internet is also a revenue generating source for many millionaires in the world. I relate internet with SUGAR as it is good for our health until the intake of it Excess, as sugar can convert into poison if the intake exceeds

Bhavana Lalwani said...

I am pasting here Aniket's views/opinion about the article----

hi
I read your blog on social networking last weekend, I agree with some of ur points that their is much difference between real life and virtual life and we should accept such difference. However , I'll otherwise on some of the issues, I don't know but u've took totally extreme position on use of social websites. It might be u got bored with social networking. It is absolutely fair on ur part to comment in such a way because human being has certain limitations and he can not not bare the things after that certain threshold.

While comparing real life and social networking u feel , real life is better and friends , people to whom we meet every now and then are more close to ourselves , it is true , however I would beg to differ on this issue. I feel facebook or any other site is merely mean in our life of making friends and meeting point. In real life too we use certain means to find our friends or meeting other friends.

For me what is important is how we use these means in our life then it might be some school where we get our friends or facebook where we serach to express our self and find friends. I always thing social networking websites are virtual but this virtual is part of our real life , it is in our real life only we make decision to enter in such virtual world. when we try to live in virtual world then after some time we feel boredom instead I feel these websites needs to be used to understand new people and take our decision whether to continue with some one.

U said that after some time we do not talk with friends even though they are online and we usually do not these online friends in real life. I think this analogy can be linked to our real life too , think of some relatives whom u do not meet often or some people or friends were close to u at certain point of time and today they are not so much close or not even ur memory like some friends in school days or college days. so I feel these things are context specific and need to be understood in those particularities.

Human nature influences in shaping these conditionality, we often get frustrated with some things in real life same happens with social networking . swhich is virtual part of our real life and I think we both met through this virtual life and meet some time in real life through phone or message , so I think it depends on ur will power how u want to respond to ur virtual life and do I need to connect persons of virtual life in real life

मनीष said...

isme shak nahi ki yeh ek behtareen lekh hai, par ye koi khwaab, koi khayal nahi hai, ek hakikat hai jiski ek alag duniya hai, apane protocols hai, apna najariya hai. ...aur kyuki mai ek computer expert hu bas yahi kahunga ye ek shuruaat hai...