एक थी दुनिया..इस भरे-पूरे ब्रह्मांड में कहीं किसी एक कोने, अपने में सिमटी हुई एक छोटी सी दुनिया.
(अब शीर्षक से और इस introduction से आप confuse ना हों..."एक थी दुनिया" कहने का मेरा मतलब सिर्फ इतना है कि जिस संसार में हम सब रहते है ..वहाँ हम सब की अपनी अलग-अलग दुनिया होती है... छोटे छोटे संसार, मेरा , आपका , किसी और का या कह लीजिये लगभग हर इंसान की अपनी एक दुनिया होती है..जो उसके आस-पास रहती है, उसके साथ सोती-जागती और सांस लेती है. ये दुनिया बनती है, घर-परिवार, दोस्त-रिश्तेदार, पास-पड़ोस, दफ्तर, स्कूल-कॉलेज , बाज़ार वगैरह से. कहने का अर्थ है कि जितना हम चाहें , उतना इस दुनिया का विस्तार किया जा सकता है और ना चाहें तो इसे छोटा भी किया जा सकता है )
...तो ऐसी ही कहीं एक दुनिया थी, जिसमें रहती थी एक राजकुमारी .(एक मिनट , फिर confusion की गुंजाइश है) कोई सचमुच की राजकुमारी की बात नहीं हो रही..और ना ही उसका नाम राजकुमारी था. पर फिर भी अपनी customized दुनिया में हर कोई राजा-रानी और राजकुमार होता है. इसलिए हम इस लड़की को भी उसकी छोटी सी मगर उसकी अपनी दुनिया की राजकुमारी माने लेते हैं. ( इस से कहानी सुनाने में आसानी होती है और दादी-नानी के वक़्त से यही रिवाज भी चला आ रहा है).
एक थी दुनिया की वो पुरानी नरमी अब सख्त ज़मीन में ढल गई ..सबसे पहले उस सख्त फर्श पर राजकुमारी के काँटों और पत्थरों से छिले पैरों का खून बिखरा, फिर पैर भी उस सख्ती के आदी बन गए (adjustment you see )..फिर धीरे-धीरे दुनिया के हर कोने में राजकुमारी की आँखों से बहे पानी की नमी दिखाई देने लगी, पानी में घुला नमक , राजकुमारी की हर ख़ुशी, हर ख्वाहिश, हर सपने में खारापन घोलता चला गया...मिठास का तो जैसे नामो-निशान ही मिट गया ..ना अन्दर, ना बाहर ..बचा रहा तो सिर्फ नमक, सफ़ेद, खारा नमक...
पर आखिर उस कशमकश का भी अंत आय़ा. transformation की प्रक्रिया पूरी तरह रुकी तो नहीं लेकिन अब उसकी रफ़्तार काफी धीमी पड़ गई. राजकुमारी ने चैन की सांस ली..उसे लगा कि जैसे पूर्ण परिवरतन के ऐन पहले कालचक्र का पहिया दूसरी दिशा में घूम गया.. पर जैसे फिर भी जब तक पहिये ने दिशा और दशा बदली तब तक बहुत बड़े -बड़े परिवर्तन हो गए थे..अब राजकुमारी वो पहले वाली राजकुमारी नहीं रही थी..(अब आप पूछेंगे कि यहाँ तो हमको यही नहीं पता कि पहले कैसी थी तो अब क्या बदल गया, ये कहां से समझ आये..खैर छोडिये, बस इतना जानिये कि अब राजकुमारी ज़रा सयानी हो गई और परीकथा पीछे छूट गई). वो सब सपने देखे या अनदेखे..सोचे हुए, सजाये हुए, दूर क्षितिज के ख्वाब ..अब अचानक ही हाथ से छिटक गए.. लगा कि अब ना वो सब राजकुमारी के लिए है ना राजकुमारी उनके लिए..राजकुमारी को बड़ी हैरानी हुई कि ये क्या हुआ..क्या ये हो सकता है कि समय का एक हिस्सा, उसकी ज़िन्दगी में आय़ा ही नहीं और गुज़र भी गया ..? कब..किस वक़्त..और जो बातें, जो ज़िन्दगी उस हिस्से में होनी चाहिए थी..वो भी गायब है ..अजीब गोरखधंधा है ..क्या तिलिस्म है..खैर...अब क्या किया जा सकता था..गया सो गया ..या गुम हो गया..कुछ भी कह लीजिये ..
पर फिर भी राजकुमारी को अपनी पुरानी दुनिया की कुछ चीज़ें बेहद पसंद थीं..इतनी कि लगता था कि उन चीज़ों के बिना, उन खूबसूरत अहसासों के बिना ज़िन्दगी अधूरी , कठोर और बेजान हो जायेगी. और हर नए परिवर्तन को अपनाते हुए भी राजकुमारी बस इतना भर चाहती थी कि ये कुछ पुरानी कोने में पड़ी, बहुत ज्यादा ज़रूरी ना सही पर फिर भी ये कुछ छोटी -मोटी चीज़ें, जो राजकुमारी के ख्याल से उसके अस्तित्व को थामे रखती थीं, वो कैसे भी करके बस बनी रहे ..शायद राजकुमारी को इन outdated चीज़ों से प्यार था. पर जैसा कि अब दिखने लगा था कि transformation प्रोसेस के दौरान जो उथल-पुथल मची, उसका सबक ये था कि अब इस नए परिदृश्य में, नए वातावरण में इन चीज़ों की अब कोई ख़ास जगह रह नहीं गई है ..और अब तो शायद वो राजकुमारी से "belong " भी नहीं करती. अब चाह कर भी उन पीछे छूट गई चीज़ों को इस रंग-रूप बदल चुकी दुनिया में नहीं लाया जा सकता..शायद वो अब यहाँ मिसफिट होंगी.
अब हालांकि इस नई बनी दुनिया में थोड़ा कुछ ऐसा है जो राजकुमारी का जाना-पहचाना है. पर बहुत कुछ ऐसा है जो अजनबी है या जो अब जाना-पहचाना होते हुए भी कहीं दूर खडा दिखता है , जिसका चेहरा अब उतना जाना-पहचाना नहीं लगता. पर अजनबी रास्तों से भरी इस इस नई दुनिया में राजकुमारी को कोई डर नहीं कि वो खो जायेगी या ऐसा कुछ.. (बेकार कल्पनाएँ ना करें, राजकुमारी इतनी भी परीकथा वाली राजकुमारी नहीं)
राजकुमारी की "एक थी दुनिया" कुछ बदली, कुछ ना बदली. कुछ राजकुमारी बदली और कुछ ना बदली. पर फिर भी इस नई दुनिया से तालमेल बिठाते हुए भी, राजकुमारी रह-रह कर अपनी उस पीछे छूट गई दुनिया को याद करती है और कभी खुद से और कभी दूसरों से कहती है, " एक थी दुनिया"....मेरी दुनिया..कहां चली गई, क्या फिर कभी मिलेगी, या कभी फिर से में वहाँ जा सकूंगी...या अब तो किसी अगले ही जन्म में; (जो अगर होता हो तो, हमारे धार्मिक मिथक-मान्यताएं बहुत सारी बातें कहते हैं इस बारे में..अब झूठ तो नहीं कहते ना..)....मिलेगी वो एक दुनिया...
(अब शीर्षक से और इस introduction से आप confuse ना हों..."एक थी दुनिया" कहने का मेरा मतलब सिर्फ इतना है कि जिस संसार में हम सब रहते है ..वहाँ हम सब की अपनी अलग-अलग दुनिया होती है... छोटे छोटे संसार, मेरा , आपका , किसी और का या कह लीजिये लगभग हर इंसान की अपनी एक दुनिया होती है..जो उसके आस-पास रहती है, उसके साथ सोती-जागती और सांस लेती है. ये दुनिया बनती है, घर-परिवार, दोस्त-रिश्तेदार, पास-पड़ोस, दफ्तर, स्कूल-कॉलेज , बाज़ार वगैरह से. कहने का अर्थ है कि जितना हम चाहें , उतना इस दुनिया का विस्तार किया जा सकता है और ना चाहें तो इसे छोटा भी किया जा सकता है )
...तो ऐसी ही कहीं एक दुनिया थी, जिसमें रहती थी एक राजकुमारी .(एक मिनट , फिर confusion की गुंजाइश है) कोई सचमुच की राजकुमारी की बात नहीं हो रही..और ना ही उसका नाम राजकुमारी था. पर फिर भी अपनी customized दुनिया में हर कोई राजा-रानी और राजकुमार होता है. इसलिए हम इस लड़की को भी उसकी छोटी सी मगर उसकी अपनी दुनिया की राजकुमारी माने लेते हैं. ( इस से कहानी सुनाने में आसानी होती है और दादी-नानी के वक़्त से यही रिवाज भी चला आ रहा है).
राजकुमारी की ये दुनिया बहुत साधारण थी, छोटी ही थी , बेहद सीधी-सादी
और सरल तरीके से बनी हुई थी. इस एक थी दुनिया का हर रंग पानी की तरह साफ़,
चमकीला और पारदर्शी था. जिसका हर रूप, सुबह के सूरज की तरह शांत, सुन्दर और
आँखों को ठंडक देने वाला था. जिसका हर चेहरा हिमालय की बर्फ की तरह
बेदाग़ था. ऐसी एक थी दुनिया , जिसकी एक थी राजकुमारी.
एक थी दुनिया, राजकुमारी के लिए उसकी ज़रूरतों के लिए शुरुआत में पर्याप्त ही थी . दुनिया सुन्दर थी, दुनिया का हर शख्स अच्छा था , राजकुमारी से सब प्यार करते थे. उसके पैदा होने से लेकर बड़े होकर स्कूल -college तक या उसके बाद भी, हर तरह से उसे बड़े लाड प्यार से ही रखा गया था. दुनिया बड़ी ही नर्म-नाज़ुक, फूलों और रंगों से सजी थी. हाँ, कहीं कहीं, कभी कुछ कांटे भी उग आते थे, घर के बगीचे में खरपतवार भी. पर सब मिलाकर सब कुछ बढ़िया चल रहा था. राजकुमारी का अब तक उस बाहर की बड़ी, बहुत बड़ी, अनेकानेक रंगों, परतों, चेहरों और आयामों से भरी दुनिया से अब तक कुछ ख़ास वास्ता नहीं पड़ा था ..या यूँ कहें कि पड़ने ही नहीं दिया गया .और शायद यही वजह रही होगी कि राजकुमारी ने इस समतल , चिकनी सतह (smooth and flat surface ) वाली दुनिया को ही शाश्वत सत्य मान लिया ..उसे लगा कि सब कुछ हमेशा ऐसे ही सुन्दर और प्यारा सा बना रहेगा..उसका ख्याल था कि आने वाले जीवन में चाहे जो पड़ाव आयें..पर ये दुनिया ऐसी ही रहेगी ...(अब वहम का तो कहीं कोई इलाज नहीं..हकीम लुकमान के पास भी नहीं था...)
एक थी दुनिया, राजकुमारी के लिए उसकी ज़रूरतों के लिए शुरुआत में पर्याप्त ही थी . दुनिया सुन्दर थी, दुनिया का हर शख्स अच्छा था , राजकुमारी से सब प्यार करते थे. उसके पैदा होने से लेकर बड़े होकर स्कूल -college तक या उसके बाद भी, हर तरह से उसे बड़े लाड प्यार से ही रखा गया था. दुनिया बड़ी ही नर्म-नाज़ुक, फूलों और रंगों से सजी थी. हाँ, कहीं कहीं, कभी कुछ कांटे भी उग आते थे, घर के बगीचे में खरपतवार भी. पर सब मिलाकर सब कुछ बढ़िया चल रहा था. राजकुमारी का अब तक उस बाहर की बड़ी, बहुत बड़ी, अनेकानेक रंगों, परतों, चेहरों और आयामों से भरी दुनिया से अब तक कुछ ख़ास वास्ता नहीं पड़ा था ..या यूँ कहें कि पड़ने ही नहीं दिया गया .और शायद यही वजह रही होगी कि राजकुमारी ने इस समतल , चिकनी सतह (smooth and flat surface ) वाली दुनिया को ही शाश्वत सत्य मान लिया ..उसे लगा कि सब कुछ हमेशा ऐसे ही सुन्दर और प्यारा सा बना रहेगा..उसका ख्याल था कि आने वाले जीवन में चाहे जो पड़ाव आयें..पर ये दुनिया ऐसी ही रहेगी ...(अब वहम का तो कहीं कोई इलाज नहीं..हकीम लुकमान के पास भी नहीं था...)
तो...राजकुमारी अपनी इस दुनिया में मजे से रह रही थी. लेकिन अब धीरे
धीरे उसकी आँखों में किसी और ही नई, विस्तृत दुनिया, किसी अनजानी, समय के
किसी और ही आयाम में बसी हुई एक दुनिया के सपने जगह बनाने लगे. उसकी बड़ी-बड़ी आँखों के सपने अब बहुत बड़े होने लगे ..इतने कि पलकें उन सपनों
को आँखों में समेट नहीं पाती थी. पर उस नई, अनजानी दुनिया में जाना आसान न
था..पर जाने की इस चाहत में राजकुमारी की ज़िन्दगी में बहुत से उतार-चढ़ाव
आये ..जिनके लिए हमारी ये नाजों से पली रानी ज़रा भी तैयार ना थी.
(sympathy ना दिखायें और ना ही चिंतित हों ..हाँ यहाँ आप राजकुमारी के
unprepared होने पर हंस ज़रूर सकते हैं) अब इसकी वजह ये हो सकती है कि हर
इंसान को अपनी निजी दुनिया के तौर-तरीकों से रहने की आदत हो जाती है यही
समस्या हमारी राजकुमारी के सामने भी आ रही थी...खैर..एक लम्बी कशमकश शुरू
हुई ..छोटी दुनिया के अन्दर भी और बाहर भी ..एक लम्बी कठिन प्रक्रिया..कह
लीजिये कि दुनिया का हुलिया ही बदल गया.
एक थी दुनिया की वो पुरानी नरमी अब सख्त ज़मीन में ढल गई ..सबसे पहले उस सख्त फर्श पर राजकुमारी के काँटों और पत्थरों से छिले पैरों का खून बिखरा, फिर पैर भी उस सख्ती के आदी बन गए (adjustment you see )..फिर धीरे-धीरे दुनिया के हर कोने में राजकुमारी की आँखों से बहे पानी की नमी दिखाई देने लगी, पानी में घुला नमक , राजकुमारी की हर ख़ुशी, हर ख्वाहिश, हर सपने में खारापन घोलता चला गया...मिठास का तो जैसे नामो-निशान ही मिट गया ..ना अन्दर, ना बाहर ..बचा रहा तो सिर्फ नमक, सफ़ेद, खारा नमक...
पर आखिर उस कशमकश का भी अंत आय़ा. transformation की प्रक्रिया पूरी तरह रुकी तो नहीं लेकिन अब उसकी रफ़्तार काफी धीमी पड़ गई. राजकुमारी ने चैन की सांस ली..उसे लगा कि जैसे पूर्ण परिवरतन के ऐन पहले कालचक्र का पहिया दूसरी दिशा में घूम गया.. पर जैसे फिर भी जब तक पहिये ने दिशा और दशा बदली तब तक बहुत बड़े -बड़े परिवर्तन हो गए थे..अब राजकुमारी वो पहले वाली राजकुमारी नहीं रही थी..(अब आप पूछेंगे कि यहाँ तो हमको यही नहीं पता कि पहले कैसी थी तो अब क्या बदल गया, ये कहां से समझ आये..खैर छोडिये, बस इतना जानिये कि अब राजकुमारी ज़रा सयानी हो गई और परीकथा पीछे छूट गई). वो सब सपने देखे या अनदेखे..सोचे हुए, सजाये हुए, दूर क्षितिज के ख्वाब ..अब अचानक ही हाथ से छिटक गए.. लगा कि अब ना वो सब राजकुमारी के लिए है ना राजकुमारी उनके लिए..राजकुमारी को बड़ी हैरानी हुई कि ये क्या हुआ..क्या ये हो सकता है कि समय का एक हिस्सा, उसकी ज़िन्दगी में आय़ा ही नहीं और गुज़र भी गया ..? कब..किस वक़्त..और जो बातें, जो ज़िन्दगी उस हिस्से में होनी चाहिए थी..वो भी गायब है ..अजीब गोरखधंधा है ..क्या तिलिस्म है..खैर...अब क्या किया जा सकता था..गया सो गया ..या गुम हो गया..कुछ भी कह लीजिये ..
पर फिर भी राजकुमारी को अपनी पुरानी दुनिया की कुछ चीज़ें बेहद पसंद थीं..इतनी कि लगता था कि उन चीज़ों के बिना, उन खूबसूरत अहसासों के बिना ज़िन्दगी अधूरी , कठोर और बेजान हो जायेगी. और हर नए परिवर्तन को अपनाते हुए भी राजकुमारी बस इतना भर चाहती थी कि ये कुछ पुरानी कोने में पड़ी, बहुत ज्यादा ज़रूरी ना सही पर फिर भी ये कुछ छोटी -मोटी चीज़ें, जो राजकुमारी के ख्याल से उसके अस्तित्व को थामे रखती थीं, वो कैसे भी करके बस बनी रहे ..शायद राजकुमारी को इन outdated चीज़ों से प्यार था. पर जैसा कि अब दिखने लगा था कि transformation प्रोसेस के दौरान जो उथल-पुथल मची, उसका सबक ये था कि अब इस नए परिदृश्य में, नए वातावरण में इन चीज़ों की अब कोई ख़ास जगह रह नहीं गई है ..और अब तो शायद वो राजकुमारी से "belong " भी नहीं करती. अब चाह कर भी उन पीछे छूट गई चीज़ों को इस रंग-रूप बदल चुकी दुनिया में नहीं लाया जा सकता..शायद वो अब यहाँ मिसफिट होंगी.
अब हालांकि इस नई बनी दुनिया में थोड़ा कुछ ऐसा है जो राजकुमारी का जाना-पहचाना है. पर बहुत कुछ ऐसा है जो अजनबी है या जो अब जाना-पहचाना होते हुए भी कहीं दूर खडा दिखता है , जिसका चेहरा अब उतना जाना-पहचाना नहीं लगता. पर अजनबी रास्तों से भरी इस इस नई दुनिया में राजकुमारी को कोई डर नहीं कि वो खो जायेगी या ऐसा कुछ.. (बेकार कल्पनाएँ ना करें, राजकुमारी इतनी भी परीकथा वाली राजकुमारी नहीं)
राजकुमारी की "एक थी दुनिया" कुछ बदली, कुछ ना बदली. कुछ राजकुमारी बदली और कुछ ना बदली. पर फिर भी इस नई दुनिया से तालमेल बिठाते हुए भी, राजकुमारी रह-रह कर अपनी उस पीछे छूट गई दुनिया को याद करती है और कभी खुद से और कभी दूसरों से कहती है, " एक थी दुनिया"....मेरी दुनिया..कहां चली गई, क्या फिर कभी मिलेगी, या कभी फिर से में वहाँ जा सकूंगी...या अब तो किसी अगले ही जन्म में; (जो अगर होता हो तो, हमारे धार्मिक मिथक-मान्यताएं बहुत सारी बातें कहते हैं इस बारे में..अब झूठ तो नहीं कहते ना..)....मिलेगी वो एक दुनिया...
10 comments:
" एक थी दुनिया"....मेरी दुनिया..कहां चली गई
सरल, सहज और बहुत ही खुबसूरत...
जहा तक मुझे समझ आता है यह जीवन का साधारण सा प्रवाह है, जिसे आपने बड़ी कारीगरी से लिखा है |
बीच में जो description दिया गया है शायद उसकी कोई खास जरुरत नहीं थी
@Manish...thnk u very much..aapne theek hi kahaa hai ye jeevan ka aisa pravaah hai jo ba sbahtaa jata hai aur insaan ko us ke sath taalmel baithaanaa hi padta hai..
Wonderful....really wonderful work !!
राजकुमारी अपनी इस दुनिया में मजे से रह रही थी. लेकिन अब धीरे धीरे उसकी आँखों में किसी और ही नई, विस्तृत दुनिया, किसी अनजानी, समय के किसी और ही आयाम में बसी हुई एक दुनिया के सपने जगह बनाने लगे. उसकी बाद-बड़ी आँखों के सपने अब बहुत बड़े होने लगे ....
hum sab ko apni duniya se bhahr nikalna hi padta h...ek na ek din ...aur phir suru hoti h kahani "ek thi duniya"
@Namisha..haan ek lamhaa aata hai zindagi mein ...jab purani duniya ko chhod k nayi duniya ka daaman thaamnaa padta hai...thnksssss a lot for appreciation..
there is a saying in punjabi...'jedaa paani thallon lang geya o mud ke ni auna"....shayad rajkumari apni duniya se bahar hi nai aana chahti thi....ya fir kisi baat ka darr tha...par ab jab sab badal gaya toh rajkumari ko bhi us nayi duniya mai dhall jaana chahiye...wo shayad nai duniya ki naye surprises ke liye tayar nai thi....par ab usne jeena seekh liya hai....
@Mayank...ab aage kuchh kahne ki mujhe zaroorat nahi...
Nahi yarr.. Yaha fir se wo hi galti kar di tumne jo aksar kiya karti ho.. is baar meri baat nazar andaaz na karna, kyuki ab tum me bahut hi acchi lekhika ban'ne wali ho.... bus, is ek galti ko sudhar lo juldi se..
उम्मीद तो बनाए ही रखनी चाहिये क्या पता राजकुमारी की वह दुनिया फिर से मिल ही जाए ।
सादर
मासूम सी अभिव्यक्ति ने बचपन लौटा दिया.. बधाई
Thank u Sir
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