Saturday, 10 September 2011

कहानी के किरदार मर जाते हैं

कहानी के किरदार मर जाते हैं पर कहानी जिंदा  रहती है.. कहानी में कोई नाम, कोई किरदार जिसका रंग, रूप, आकार हम अपनी पसंद , अपनी कल्पना से गढ़ लेते हैं, जिनका  जीना, मरना, सोचना, समझना हमको अपना सा, अपने करीब सा लगने लगता है. कहानी में  किरदार मरते  हैं, कभी कहानी को आगे बढाने के लिए तो कभी कहानी को वहीँ ख़त्म कर देने के लिए ..किरदारों का जीना मरना सब पहले से तय होता है, उनकी तकदीर कहानी लिखने वाला तय करता है..ठीक   वैसे ही जैसे असल दुनिया में होता है जहाँ भगवान् की मनमर्जी और हुकुम  चलता है ..पर कभी कभी लगता है कि किरदार ना मरे ..फिर से जी उठे ..उसी रंग में, उसी नाम से , उसी चेहरे में ..एक बार फिर से बोल उठे.. और फिर से कहानी वहीँ से वापिस आगे शुरू हो जाए जहाँ वो किरदार उसे  छोड़ गया था ..और अगर कहीं वो कहानी ख़त्म हो जानी हो किरदार के मरने पर तो कहानी और आगे से आगे चलती जाए ...

पर कहानी में किरदार मर जाते हैं ..उनका मरना अच्छा नहीं लगता लेकिन फिर देखा जाए तो किरदार के साथ कहानी नहीं मरती ..वो जीती रहती है ..हमारे दिमाग में ..हमारे ख्यालों में ..हमारी कल्पनाओं में..जहाँ हम उन किरदारों से  मेल खाते कुछ चेहरे या लोग अपने आस पास ढूंढ निकालने की कोशिश करते हैं ...और कभी कभी वो चेहरा मिल भी जाता है तो कभी कुछ कम -ज्यादा  का समझौता भी कर लिया जाता है ..

कहानी के किरदार मर कर भी जिंदा रह जाते हैं...और हम उन्हीं को सोचते रहते हैं..कि ऐसा  क्यों हुआ कि कहीं कोई preppy ...कोई जेनिफ़र ..कोई नताशा रोस्तोवा ..कोई एमा, कोई मरक्युरी  या कोई johnathan या कोई और नाम या रूप   ..अगर कहीं होगा तो कैसा होगा ..क्या सोच रहा होगा ..या कहीं  नहीं हो सकते ये किरदार ..जो किसी कहानी में ..कहानी की  ज़रुरत भर के लिए पैदा हुए फिर मर भी गए ...पर उनके मरने के साथ ही  थोड़ी देर के लिए हमारे दिन का, हमारे ख्यालों का एक हिस्सा भी मर जाता है.. और फिर उसको एक बार फिर जिंदा देखने  के लिए हम अपनी ही तरफ से नए ख्याल बुनते रहते हैं...

एक ख़याल कि कहीं एक ऐसा नाम इस दुनिया में है या होना चाहिए ..जिसका अस्तित्व सिर्फ कहानी तक ना हो..कहानी के पन्नों के बाहर जीता -जागता एक किरदार ...जो हमारे आस-पास जी उठे ..हँसे -बोले, मुस्कुराए और कहे कि देखो मैं तो यहीं हूँ ..तुम मुझे कहां तलाश कर रहे हो..

16 comments:

मनीष said...

पढ़ कर अच्छा लगा...

Bhavana Lalwani said...

Thank you Manish..

nishkam said...

gud one.......a nice reading......

Bhavana Lalwani said...

Thank u Nishkam

Namisha Sharma said...

wonderful !!!!! as i said earlier also ur writing is becoming mature day by day :) ........generally characters of stories r from real world..correct some spelling mistakes

Bhavana Lalwani said...

Thank you Namisha..thnks a lott..ab main aur kya bolun..aur haan thnks for pointing out the spelling mistakes...I will correct thm..

RAJANIKANT MISHRA said...

going on the right path...........
all the best wishes

Bhavana Lalwani said...

Thank you Mishra ji for your kind words..m nt a writer..bas jo man mein aata hai wo hi likh deti hun..

gauri emraan said...

gud one..

Bhavana Lalwani said...

@ Gauri Emraan..Thank you for reading and commenting.

mayank ubhan said...

kahaani mai kirdaar asal mai hamari asal jindagi ki prishthboomi se hi bante hain...tum ye soch rahi hogi ki aaj itni bhaari bharkam hindi kaise bol raha hun...khair ye chodo...kirdaar to asli hi hote hain...bas unko wastavik jeevan main dhoondhne mai samay lag jaata hai..koi milta hai aur koi nahi...par wajood sabka hota hai....

Bhavana Lalwani said...

@Mayank...bas yahi toh sawaal rah jata hai ki kirdaar asli hi hote hain..koi jaadoo se nahi banate..par kabhi kabhi milne par bhi ham pahchaan nahi paate uar kabhi toh mil hi nahi paate...zaroori nahin ki har Jenifer ka koi Preppy ho ya har Preppy k liye ek jenifer ho ya ..Jenifer ko Preppy mil hi jaaye..ya iska ultaa..

Rishu.. said...

bahut khoob..
Aaj ye kahani padh kar laga ki main ise sirf padh nahi raha tha bulki ise bahut jivant roop me mahsoos bhi kar raha tha..
succhi,bahut khoob.. or ab kya kahu..

Bhavana Lalwani said...

@ Rishi...thank u very much ..maine wahi likhne ki koshish ki jo mujhe khud mahsoos hua koi kahaani ya aisa kuchh padhte samay.

Shekhar Chandra's Blog said...

It seems that light which had gone out has been is rekindled by a spark coming from your writing!!!! I'm sure that I've cause to think with deep gratitude of someone who has lighted the flame within me!!!!
Thanks so much!!!

Anonymous said...

यहाँ आकार अच्छा लगा.. जो इतने सालों से महसूस करता था - 'लाईफ विद पेन एंड पेपर्स' -
आपके विचार और अभिव्यक्ति से प्रभावित हुआ... बधाई...
पंकज त्रिवेदी
संपादक-नव्या
www.nawya.in