मैं ज़िन्दगी का एक अधूरा ख्वाब हूँ जिसे उसने अपने सफ़र के सबसे सुहाने और बेपरवाह दौर में देखा... मैं उसकी रात के आखिरी पहर की गहरी बेफिक्र मीठी नींद का हिस्सा हूँ, उसकी सुबह की प्रभात बेला की अलसाई, अधमुंदी - अधखुली आँखों की धुंधली सी चमक ... वो ख्वाब जो अब शायद अब उसे कुछ याद है, कुछ भूला हुआ सा.. कुछ फीकी लकीरें, कुछ गहरे निशान, कुछ मिट गए , कुछ रह गए...इस ख्वाब की ताबीर कब, किस रास्ते, किस मोड़ पर, कैसे होगी या ना होगी... अब ये सवाल वक़्त और ज़िन्दगी की अपनी सामर्थ्य के परे जा चुका सा लगता है..
कैसा है ये सपना कि जिसकी मृगतृष्णा का कोई ओर छोर नहीं, जिसकी कभी ना बुझ सकने वाली प्यास शायद आबे-हयात से भी ना बुझे, जिसकी रात कभी ख़त्म नहीं होती और सुबह आती है दबे पाँव... और फिर जल्दी ही शाम की मटमैली सी परछाइयों में डूबते सूरज के काले-भूरे, लाल-नारंगी और पता नहीं कौन कौन से रंगों में घुल जाती है ऐसे कि उसके आने या चले जाने का भी पता नहीं चलता ... समय भागता जाता है और ज़िन्दगी अपने अधूरे ख्वाब के लिए हर लम्हे से कुछ और ..थोड़ा और ..बस ज़रा सा और ...मांग लेना चाहती है..समेट के मुट्ठी में रोक लेना चाहती है..और इसलिए इस अधूरे से, कुछ टूटे , कुछ बिखरे और कुछ सिमटे हुए और कुछ बनते- बिगड़ते ख्वाब का हर हिस्सा अब सिर्फ अपनी अधूरी तस्वीर को किसी तरह कुछ सुन्दर रंगों के धब्बों से पूरा कर लेना चाहता है.. पर कौन जाने कि ज़िन्दगी को किन रंगों के धब्बे ...मिल पायेंगे और उनका रंग कितना चमकीला, कितना फीका या कितना मुकम्मल होगा....ये भी तो अधूरा सा ही सवाल है ...
कैसा है ये सपना कि जिसकी मृगतृष्णा का कोई ओर छोर नहीं, जिसकी कभी ना बुझ सकने वाली प्यास शायद आबे-हयात से भी ना बुझे, जिसकी रात कभी ख़त्म नहीं होती और सुबह आती है दबे पाँव... और फिर जल्दी ही शाम की मटमैली सी परछाइयों में डूबते सूरज के काले-भूरे, लाल-नारंगी और पता नहीं कौन कौन से रंगों में घुल जाती है ऐसे कि उसके आने या चले जाने का भी पता नहीं चलता ... समय भागता जाता है और ज़िन्दगी अपने अधूरे ख्वाब के लिए हर लम्हे से कुछ और ..थोड़ा और ..बस ज़रा सा और ...मांग लेना चाहती है..समेट के मुट्ठी में रोक लेना चाहती है..और इसलिए इस अधूरे से, कुछ टूटे , कुछ बिखरे और कुछ सिमटे हुए और कुछ बनते- बिगड़ते ख्वाब का हर हिस्सा अब सिर्फ अपनी अधूरी तस्वीर को किसी तरह कुछ सुन्दर रंगों के धब्बों से पूरा कर लेना चाहता है.. पर कौन जाने कि ज़िन्दगी को किन रंगों के धब्बे ...मिल पायेंगे और उनका रंग कितना चमकीला, कितना फीका या कितना मुकम्मल होगा....ये भी तो अधूरा सा ही सवाल है ...
8 comments:
very gud bhavana.ur writing is bcuming mature day by day.
Thanks a lot Namisha..maine bas yunhi kuchh random feelings ko shabdon mein baandhne ki koshish ki hai
beautiful lines...
i like to say some lines,
' one day dreams asked life, "when we will come true...?"
life smiled and replied, " my dear..., if we'll come true, we'll loss our meaning. do you really want to come true...?" '
@Manish...very beautiful lines..dreams are like a tear on the cheeks of time and circumstances.
Dreams are generally classified as the mental thoughts you attain while sleeping further categorizing them into good dreams and nightmares. But in truth dreams are woven with love and imagination. Dreams are the best gift bestowed by God to its creature. There are no boundaries while you dream you can reach the places that are beyond reach. And sometimes these dreams become your strength to attain the impossible. All the best possible things created by men are the result of a dream. It depends on you how you utilize your capacity of dreaming and becoming.
@Mayank...Thanks a million...I don't know what more I should say after reading your comment. dreams are the best gift..yes I agree, but may be sometimes when they remain unfulfilled, they give pain only..but yes that should not be an excuse to stop dreaming.
another beautiful piece of expression of ur feelings.. thank you..
Osome i must say.
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