Wednesday, 21 September 2011

कुछ सही कुछ थोड़ा कम सही

आज George Hegel का एक quote पढ़ा अखबार में, जो बहुत तर्कपूर्ण बात कहता है ..


"असल त्रासदी सही और गलत के बीच टकराव या मतभेद होना नहीं,  असल त्रासदी दो सही के बीच टकराव का होना है.."


सबकुछ सही है, कोई चीज़, कोई शख्स अपनी जगह  गलत नहीं है ...लेकिन फिर भी कुछ तो खटक रहा है... कुछ तो ऐसा है जो होना  नहीं चाहिए. जो अपनी  सही जगह पर ना होकर  किसी गलत जगह पर है. सम्पूर्ण परिदृश्य में कुछ तो कमी है.  ये जो पिक्चर परफेक्ट है इसमें सब कुछ  सही, सुन्दर और सम्पूर्ण नही है. और यही है दो सही के बीच का टकराव. किसी को तो हार माननी होगी, किसी एक को झुकना होगा, पीछे हटना होगा, अपना दावा वापिस लेना होगा , सच होते हुए भी, सही होते हुए भी गलत होने कि स्वीकृति देनी होगी.

इसके अलावा समन्वय, सामंजस्य का कोई दूसरा बहुत सुविधाजनक मार्ग है नहीं.  ऐसा इसलिए कि जो सही है, सत्य है, वो  एक खुली तलवार है  और उस तलवार की पहली चोट उसे थामने वाले को ही लगती है . और दो सही धारणाएं जो दो विपरीत ध्रुवों  पर खड़ी हैं, जिनकी दिशा, उद्देश्य, साधन सब एक-दूसरे से पूरी तरह अलग हैं. ऐसी दो सही तलवारें एक साथ, एक वक़्त में, एक ही जगह पर, एक म्यान में नहीं हो सकतीं.  अगर एक साथ रखा गया तो वे  एक -- दूसरे को चोट पहुंचाने के अलावा और कुछ नहीं कर पाएंगी.

दो सही के बीच का टकराव ही हमारी जिंदगियों की  सबसे बड़ी  उलझन, सबसे  बड़ी  समस्या, सबसे बड़ी  रुकावट और सबसे बड़ी दुखदायी वजह है. जब दो सही चीज़ें टकराती हैं.  तो किसी को, उन टकराने वालों को भी  ख़ुशी नहीं मिलती. लेकिन अपने सही होने का अहसास, समझौतों का रास्ता मुश्किल कर देता है.

हम सब अपनी-अपनी जगह पर सही हैं..हम में से कोई भी गलत नहीं है और इसलिए पिक्चर परफेक्ट को देखने का हमारा नज़रिया भी अलग-अलग है. हम सबके पास सही होने, सही देखने , सही समझने के अपने कारण, अपने चश्मे और अपनी मान्यताएं है..बस फर्क सिर्फ ये है कि ये सब चीज़ें एक - दूसरे से  मेल नहीं खातीं.

10 comments:

RAJANIKANT MISHRA said...

दिन ब दिन मेरा विश्वास कि ललित निबंध लिखने में आपको गंभीर प्रयास करने चाहिए, प्रबल होता जा रहा है..... वाकई अच्छा लिख रही हो.....हार्दिक शुभकामनाएं..

Bhavana Lalwani said...

@MIshra ji...thank you very much..meri dilchaspi bhi nibandh likhne mein jyada badh gai hai bajay koi proper kahaani ya aisa kuchh likhne ke..par haan mere likhne mein paripakwataa aur anubhav ki abhi bahut kami hai..

मनीष said...

सराहनीय विचार...
एक अच्छा लेख है |

Bhavana Lalwani said...

@Manish...thank you.

Neeraj Kumar said...

aapne achchha likha hai aur sateek likha hai... najariya hi hai jo insaan ko insaan banata hai parantu mere najariye ko sabhi sahi maane ye ichchha hi hai jisne duniya me utha-patak macha rakhi hai...
ham sabhi apni baaten kah paayen aur doosron ke najariye ko jaane- chahe use sahi maane ya galat- to kya kahne...
ek baar mere blog pe bhi aaye... dhanywaad

Bhavana Lalwani said...

@KnKayastha..aapne jis tarah sundar shabdon mein apni pratikriyaa dee hai uske liye dhanyawaad..aapne mere essay ka saar prastut kar diya hai.

mayank ubhan said...

sach toh yeh hai ki do vichaar dhaaraaon waale logon main takraav aur unke tareekon mai bhed ka gawah ye itihaas sadiyon se raha hai...chaahe koi bhi sbhyata ho..sanskriti ho ya fir vyaktigat soch....galat koi nai tha...bas ye hua ki jo jyaada balwaan tha...wo reh gaya..aur doosra ya mit gaya ya badal gaya....yahi seekh humne bhi lii hai issey ki ya to badal jaayen aur dhall jaayen us saanche mai jisme kumhaar chahta hai humen badalna...ya fir mit jaaien us ret par likhe shabd ya koi mahal ki tarah jise saagar apne aap mai samaa leta hai....nice flow of thoughts Bhavana...

Bhavana Lalwani said...

@Mayank...jo tumne kahaa wo antim satya hai is poore sangharsh ka aur ab iske aage kuchh kahanaa shesh nahi rahtaa..

Rishu.. said...

nice work.. n now,I must say.. Ab zara bhi aaraam nhi lena,bus,likhte rahna..
bahut acche..

Bhavana Lalwani said...

@Rishi..thanks :)