इस से पहले कि कोई सवाल जवाब हो, राधा ने खुद ही बताना शुरू किया कि पिछले कुछ दिन से लगातार लक्ष्मण फोन पर उस से बात कर रहा था और शादी के लिए तैयार हो गया है. उसने वकील से बात भी कर ली है और अब दिन भी तय हो गया है.
"क्याआअ, तूने शादी की तारीख भी तय कर ली." माताजी अभी तक इस आकस्मिक ट्विस्ट को सम्भाल नहीं पा रही थी.
"मैंने नहीं किया, लक्ष्मण ने सब ठीक कर दिया है." राधा ने शर्माते हुए कहा.
"तो तू कब शादी कर रही है?" मुझे नई बाई ढूंढने की फिकर हो रही थी.
"इसी महीने की छब्बीस को." राधा ने एक चौड़ी मुस्कराहट के साथ जवाब दिया।
"इतनी जल्दी !!!!!!! तू मज़ाक कर रही है ?" माताजी के चेहरे पर थोड़ी चिंता दिखी।
"नहीं, सब तय कर लिया है. मैं दो या तीन दिन पहले से ही काम छोड़ दूँगी। अभी घर में किसी को कुछ नहीं बताया और ना बताउंगी। उनको पता चलेगा तो मेरा घर से निकलना ही बंद कर देंगे। आप भी किसी से कुछ मत कहना, किसी से भी नहीं।" आखिरी शब्दों में राधा का डर , उसकी आशंकाएं और आने वाले समय की चुनौतियां साफ़ सुनाई दे रही थी.
मैं और मम्मी कई सवाल पूछते रहे पर कोई सीधा सरल जवाब नहीं मिला और सारा मामला किसी मोटे भारी परदे के पीछे छिपा सा लगने लगा. राधा घर से भाग कर, छुप कर शादी कर रही है, कोर्ट मैरिज कर रही है। ... पर, लेकिन, किन्तु और साथ में परन्तु की पूंछ। …
इसके बाद घटनाचक्र बहुत तेज़ी से चलता गया, दिन बीते और आखिर छब्बीस तारीख वाला हफ्ता भी आ गया. और जैसा राधा ने कहा था, चौबीस तारीख को हम इंतज़ार करते रहे पर वो नहीं आई और उसके बाद भी नहीं। राधा के बारे में कोई खबर या कोई बात भी सुनने को नहीं मिली सिवाय उस खोजबीन अभियान के जो छब्बीस तारीख के बाद उसके घरवालों ने शुरू किया। जिन घरों में वो काम करती थी, उन सबके यहाँ फोन करके पूछा गया. जानते सभी थे कि वो कहाँ और किसके साथ और क्यों गई होगी पर मानने को कोई तैयार ना था.
राधा गई और उसकी शादी हुई या नहीं अगर हुई तो आगे क्या हुआ, ससुराल कैसा है, पति कैसा है और सबसे बड़ी बात राधा खुद कहाँ और कैसी है इस बात कि कोई खबर अगले तीन चार महीनों तक किसी को नहीं मिली। मम्मी अक्सर याद करती कि राधा का ना जाने क्या हुआ.
आखिरकार एक दिन फोन आया, राधा ने महज़ दो मिनट बात की और कहा कि वो जल्दी ही मिलने आएगी। पर वो जल्दी वाला वक़्त उसके बाद भी एक महीने तक नहीं आया.
दीवाली से कुछ पहले राधा का फिर से फोन आया, इस बार उसने वादा किया कि वो ज़रूर मिलने आएगी। और सचमुच वो आई, दीवाली के अगले दिन और अकेले नहीं अपने पति के साथ आई. लाल रंग का राजस्थानी बेस पहने हुए, हल्का मेकअप, हाथों में लाल सुनहरी रंग वाली चूड़ियाँ और तो और राधा के चेहरे की रंगत भी कुछ निखरी हुई सी लगी. मम्मी ने हर तरह से उन दोनों की मेहमान नवाजी की. राधा ने शर्माते हुए मुझसे रसोई में आकर पूछा कि "दीदी, लक्ष्मण को देखा? कैसा लगा ?"
राधा के पूछने से पहले ही मैंने लक्ष्मण को गेट से अंदर आते देखा था, दुबला पतला, गहरे सांवले रंग का आदमी जो शायद अट्ठाइस या उन्नतीस का होगा या शायद इस से एकाध वर्ष आगे पीछे। दोनों जोड़े में अच्छे लग रहे थे. एक नज़र देखने से सबकुछ भरा पूरा और सामान्य से कुछ ज्यादा ही अच्छा जान पड़ रहा था.
और फिर राधा से बतियाते हुए इस अजीब लव स्टोरी के रंग बिरंगे पहलू सामने आये.
Image Courtesy --- Google
"क्याआअ, तूने शादी की तारीख भी तय कर ली." माताजी अभी तक इस आकस्मिक ट्विस्ट को सम्भाल नहीं पा रही थी.
"मैंने नहीं किया, लक्ष्मण ने सब ठीक कर दिया है." राधा ने शर्माते हुए कहा.
"तो तू कब शादी कर रही है?" मुझे नई बाई ढूंढने की फिकर हो रही थी.
"इसी महीने की छब्बीस को." राधा ने एक चौड़ी मुस्कराहट के साथ जवाब दिया।
"इतनी जल्दी !!!!!!! तू मज़ाक कर रही है ?" माताजी के चेहरे पर थोड़ी चिंता दिखी।
"नहीं, सब तय कर लिया है. मैं दो या तीन दिन पहले से ही काम छोड़ दूँगी। अभी घर में किसी को कुछ नहीं बताया और ना बताउंगी। उनको पता चलेगा तो मेरा घर से निकलना ही बंद कर देंगे। आप भी किसी से कुछ मत कहना, किसी से भी नहीं।" आखिरी शब्दों में राधा का डर , उसकी आशंकाएं और आने वाले समय की चुनौतियां साफ़ सुनाई दे रही थी.
मैं और मम्मी कई सवाल पूछते रहे पर कोई सीधा सरल जवाब नहीं मिला और सारा मामला किसी मोटे भारी परदे के पीछे छिपा सा लगने लगा. राधा घर से भाग कर, छुप कर शादी कर रही है, कोर्ट मैरिज कर रही है। ... पर, लेकिन, किन्तु और साथ में परन्तु की पूंछ। …
इसके बाद घटनाचक्र बहुत तेज़ी से चलता गया, दिन बीते और आखिर छब्बीस तारीख वाला हफ्ता भी आ गया. और जैसा राधा ने कहा था, चौबीस तारीख को हम इंतज़ार करते रहे पर वो नहीं आई और उसके बाद भी नहीं। राधा के बारे में कोई खबर या कोई बात भी सुनने को नहीं मिली सिवाय उस खोजबीन अभियान के जो छब्बीस तारीख के बाद उसके घरवालों ने शुरू किया। जिन घरों में वो काम करती थी, उन सबके यहाँ फोन करके पूछा गया. जानते सभी थे कि वो कहाँ और किसके साथ और क्यों गई होगी पर मानने को कोई तैयार ना था.
राधा गई और उसकी शादी हुई या नहीं अगर हुई तो आगे क्या हुआ, ससुराल कैसा है, पति कैसा है और सबसे बड़ी बात राधा खुद कहाँ और कैसी है इस बात कि कोई खबर अगले तीन चार महीनों तक किसी को नहीं मिली। मम्मी अक्सर याद करती कि राधा का ना जाने क्या हुआ.
आखिरकार एक दिन फोन आया, राधा ने महज़ दो मिनट बात की और कहा कि वो जल्दी ही मिलने आएगी। पर वो जल्दी वाला वक़्त उसके बाद भी एक महीने तक नहीं आया.
दीवाली से कुछ पहले राधा का फिर से फोन आया, इस बार उसने वादा किया कि वो ज़रूर मिलने आएगी। और सचमुच वो आई, दीवाली के अगले दिन और अकेले नहीं अपने पति के साथ आई. लाल रंग का राजस्थानी बेस पहने हुए, हल्का मेकअप, हाथों में लाल सुनहरी रंग वाली चूड़ियाँ और तो और राधा के चेहरे की रंगत भी कुछ निखरी हुई सी लगी. मम्मी ने हर तरह से उन दोनों की मेहमान नवाजी की. राधा ने शर्माते हुए मुझसे रसोई में आकर पूछा कि "दीदी, लक्ष्मण को देखा? कैसा लगा ?"
राधा के पूछने से पहले ही मैंने लक्ष्मण को गेट से अंदर आते देखा था, दुबला पतला, गहरे सांवले रंग का आदमी जो शायद अट्ठाइस या उन्नतीस का होगा या शायद इस से एकाध वर्ष आगे पीछे। दोनों जोड़े में अच्छे लग रहे थे. एक नज़र देखने से सबकुछ भरा पूरा और सामान्य से कुछ ज्यादा ही अच्छा जान पड़ रहा था.
और फिर राधा से बतियाते हुए इस अजीब लव स्टोरी के रंग बिरंगे पहलू सामने आये.
विश्वास करना मुश्किल था, लेकिन ऐसा सम्भव नहीं ये भी नहीं कहा जा सकता था. राधा ने बताया कि उसकी शादी के बाद उसकी माँ ने पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवाई कि राधा घर से गहने चुरा कर ले गई है, लक्ष्मण और उसके घर वाले राधा को जबर्दस्ती ले गए हैं, वगेरह।. उसके पति को धमकियां दी गई कि वो राधा को वापिस भेज दे वर्ना बुरे नतीजे हो सकते हैं. कई हफ़्तों तक ये मामला चला, थाने के कई चक्कर काटने और कागज़ी खानापूरी के बाद कुछ ले देकर राधा के ससुराल वालों ने मामला रफा दफा करवाया।
"लेकिन तेरी माँ ने पुलिस में चोरी की रिपोर्ट क्यों की?" मैंने पूछा।
"हमारे गाँव और जाति में रिवाज है कि शादी के वक़्त लड़के वाले लड़की वालों को रुपये देते है। कई बार लाख दो लाख तक मिल जाता है. लेकिन मैंने अपनी मर्ज़ी से शादी की, इसलिए घर वालों को कुछ नहीं मिला।"
इस तरह का रिवाज कुछ आदिवासी इलाकों में है ये तो मैं जानती थी पर राधा के गाँव में भी ऐसा कुछ है ये पहली बार पता चला. खैर, कहानी अभी और आगे थी.
"मेरी बहन शोभा ने भी मेरे घर से जाने के तीन चार दिन बाद भाग कर शादी कर ली. पर उसकी शादी गाँव के ही लड़के से हुई और उन्होंने मेरी माँ को एक लाख रुपये दिए है. मेरा रिश्ता जिस बूढ़े से तय किया था वो दो लाख देने वाला था पर मैं पहले ही घर से भाग गई." इतना सब बताते हुए राधा के चेहरे पर एक गर्व की चमक और आवाज़ में जीत की खनक थी.
"पर अब मैं खुश हूँ, ससुराल बहुत अच्छा है." मुस्कुराते हुए उसने अपनी कहानी पूरी की.
ज़ाहिर है ये सुनकर माँ को तसल्ली हुई. पर अभी कुछ परतें और बाकी थी.
लेकिन जाने से पहले राधा ने मम्मी से अपने आधे महीने की तनख्वाह के पैसे मांगे, ये कहकर कि उसे रुपयों की बड़ी ज़रूरत है. सुनकर थोडा अजीब तो लगा कि जब उसका पति अच्छा कमाता है तब उसे एक छोटी सी रकम की क्या ज़रूरत, खैर उस समय रुपये दे दिए गए.
उस दिन मम्मी पूरे वक़्त राधा के बारे में ही बोलती रही। … "बढई का काम है, कह रही थी कि महीने के नौ दस हज़ार कमा लेता है."
"अगर सच में इतना कमाता है तो इस तरह चार सौ रुपये के लिए नहीं कहती।" मेरी आवाज़ तीखी और संदेह से भरी थी.
अगले दिन राधा फिर से आई, बिना फोन किये, अचानक ही दोपहर के तीन बजे. सीधे मम्मी के पास गई। .
"मेरा एक काम कर दो, मुझे तुरंत दो हज़ार रुपयों की सख्त ज़रूरत है, मेरे ससुराल वालों के गाँव जाना है. मुझे किसी भी हालत में अभी पैसे चाहिए।"
कुछ देर तक मैंने उसे टालने की कोशिश की लेकिन मम्मी को यकीन था कि उसे सचमुच किसी बहुत बड़ी और गम्भीर वजह से रुपयों की ज़रूरत है, इसलिए दे देने चाहिए। मैंने बात घुमाने कि गरज से पूछा कि जब तेरा पति इतना कमा रहा है तो फिर उधार लेने की क्या ज़रूरत पड़ी वो भी त्यौहार के समय??
जवाब मिला कि आजकल काम ज़रा मंदा चल रहा है, जैसे ही नया काम मिलेगा वो तुरंत रूपये लौटा देगी या फिर " आप अपने घर में लकड़ी का जो काम अधूरा पड़ा है वो करवा लेना उस से, हिसाब पूरा हो जाएगा।"
राधा का ये हिसाब मेरी समझ में नहीं आया, लेकिन मम्मी का चेहरा देख कर आखिर उसे पांच सौ रुपये देने पर सहमति बनी. वो भी इस वादे पर कि वो ये रुपये और उसके पहले के उधार लिए हुए एक हज़ार रुपये जो उसने शादी से काफी पहले लिए थे, सब एक साथ चुका देगी , इस महीने के आखिर तक.
राधा के जाने के बाद कहीं ना कहीं इतना तो समझ आ ही गया कि वो "खुद का काम, दुकान और नौकर, अमावस को नौकरों की मजदूरी का हिसाब, महीने के नौ हज़ार की कमाई" सब केवल बातें थी, कथाएं थी. क्योंकि इस बार राधा खुद ही बता गई थी कि लक्ष्मण किसी सेठ के यहाँ काम करता है, जिसके पास इस बार कोई बड़ा काम हाथ में ना होने की वजह से, उसके ज्यादातर मजदूर खाली बैठे हैं. और यही वजह थी कि त्यौहार के दिन राधा माताजी को मिलने नहीं केवल अपने बकाया पैसे लेने आई थी. इस बात का अहसास होने पर कि राधा अपने पुराने लगाव के कारण नहीं सिर्फ रुपयों कि ज़रूरत के चलते मिलने आई थी, माताजी का मूड थोडा उखड़ा सा रहा; पर उन्हें अभी भी विश्वास है कि जैसे ही स्थितियां सामान्य होंगी, राधा उनसे मिलने वापिस आएगी और उधार लिए रुपये भी दे जायेगी।
और अब एक बार फिर से राधा की कोई खबर नहीं है. मुझे यकीन है कि वे रुपये अब डूबत खाते में जा चुके हैं. हमें अभी तक नई बाई भी नहीं मिली है, तलाश ज़ारी है.
Image Courtesy --- Google
8 comments:
अच्छी, रोचक कहानी। पहले के भाग नहीं पड़ पाया। इसलिए क्षमाप्रार्थी हूँ।
Thank u Vikesh ji ... samay mile toh baaki ke dono parts bhi padhiyega.
कल 21/11/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
अत्यंत रोचक कहानी...
dhanywad yashwant ji :)
thank u Anita ji :) :)
bhawna ji sundar kahani man ko chhuti par ye keval kahani nhi iske pichhe sachchayi chhupi hai ..badhayi :)
aapne bilkul sahi kahaa aapne ye kahani vaastvik ghatna par hi likhi hai. dhanywaad aapka.
Post a Comment