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Monday, 18 November 2013

राधा बाई की लव स्टोरी --- अंतिम भाग

इस से पहले कि कोई सवाल जवाब हो, राधा ने खुद ही बताना शुरू किया कि पिछले कुछ दिन से लगातार  लक्ष्मण फोन पर उस से बात कर रहा था  और शादी के लिए तैयार हो गया है. उसने वकील से बात भी कर ली है और अब दिन भी तय हो गया है.

"क्याआअ, तूने शादी की तारीख भी तय कर ली." माताजी अभी तक इस आकस्मिक ट्विस्ट को  सम्भाल नहीं पा रही थी.

"मैंने नहीं किया, लक्ष्मण ने सब ठीक कर दिया है." राधा ने शर्माते हुए कहा.

"तो तू कब शादी कर रही है?" मुझे नई बाई ढूंढने की फिकर हो रही थी.

"इसी  महीने की छब्बीस को." राधा ने एक चौड़ी मुस्कराहट के साथ जवाब दिया।


"इतनी जल्दी !!!!!!! तू मज़ाक कर रही है ?"  माताजी के चेहरे पर थोड़ी चिंता दिखी।

"नहीं,  सब तय कर लिया है. मैं दो या तीन दिन पहले से ही काम छोड़ दूँगी। अभी घर में किसी को  कुछ नहीं बताया और ना बताउंगी। उनको पता चलेगा तो मेरा घर से निकलना ही बंद कर देंगे। आप भी किसी से कुछ मत कहना,  किसी से भी नहीं।" आखिरी शब्दों में राधा का डर , उसकी आशंकाएं और आने वाले समय की चुनौतियां साफ़ सुनाई दे रही थी.

मैं और मम्मी कई सवाल  पूछते रहे पर कोई  सीधा सरल जवाब नहीं मिला और सारा मामला किसी  मोटे भारी परदे के पीछे छिपा सा लगने लगा. राधा घर से भाग कर, छुप कर शादी कर रही है, कोर्ट मैरिज कर रही है। ... पर, लेकिन, किन्तु और साथ में परन्तु की पूंछ। …

 इसके बाद घटनाचक्र बहुत तेज़ी से चलता गया, दिन बीते और आखिर छब्बीस तारीख वाला हफ्ता भी आ गया. और जैसा राधा ने कहा था, चौबीस तारीख को हम  इंतज़ार करते रहे पर वो नहीं आई और उसके बाद भी नहीं। राधा के बारे में कोई खबर या कोई बात भी सुनने  को नहीं मिली सिवाय उस खोजबीन अभियान के जो छब्बीस तारीख के बाद उसके घरवालों ने शुरू किया। जिन घरों में वो काम करती थी, उन सबके यहाँ फोन करके पूछा गया. जानते सभी थे कि वो कहाँ और किसके साथ और क्यों गई होगी पर मानने को कोई तैयार ना था.

राधा गई और उसकी शादी हुई या नहीं अगर हुई तो आगे क्या हुआ, ससुराल कैसा है, पति कैसा है और सबसे बड़ी बात राधा खुद कहाँ और कैसी है इस बात कि कोई खबर अगले तीन चार महीनों तक किसी को नहीं मिली।  मम्मी अक्सर याद करती कि राधा का ना जाने क्या हुआ.

आखिरकार  एक दिन फोन आया, राधा ने  महज़ दो मिनट बात की और कहा कि वो जल्दी ही  मिलने आएगी। पर वो जल्दी वाला वक़्त उसके बाद भी एक महीने तक नहीं आया.

दीवाली से  कुछ पहले राधा का फिर से फोन आया, इस बार उसने वादा किया कि वो ज़रूर मिलने आएगी।  और सचमुच वो आई, दीवाली के अगले दिन और अकेले नहीं अपने पति के साथ आई. लाल रंग का राजस्थानी बेस पहने हुए, हल्का मेकअप, हाथों में लाल सुनहरी रंग वाली चूड़ियाँ और तो और राधा के चेहरे  की रंगत भी कुछ निखरी हुई सी लगी.  मम्मी ने हर तरह से उन दोनों की  मेहमान नवाजी की. राधा ने शर्माते हुए मुझसे रसोई में आकर पूछा कि "दीदी, लक्ष्मण  को देखा? कैसा लगा ?" 

राधा के पूछने से पहले ही मैंने लक्ष्मण को गेट से अंदर आते देखा था, दुबला पतला, गहरे सांवले रंग का आदमी  जो शायद अट्ठाइस या उन्नतीस का होगा या शायद इस से एकाध वर्ष आगे पीछे। दोनों जोड़े में अच्छे लग रहे थे.  एक नज़र देखने से सबकुछ भरा पूरा और सामान्य से कुछ ज्यादा ही अच्छा जान पड़  रहा था.



 और फिर  राधा से बतियाते हुए इस अजीब लव स्टोरी के रंग बिरंगे  पहलू सामने  आये. 

विश्वास  करना मुश्किल था, लेकिन ऐसा सम्भव नहीं ये भी नहीं कहा जा सकता था. राधा ने बताया कि उसकी शादी के बाद उसकी माँ ने पुलिस थाने  में शिकायत दर्ज करवाई कि राधा घर से गहने चुरा कर ले गई है, लक्ष्मण  और उसके घर वाले राधा को जबर्दस्ती ले गए हैं, वगेरह।. उसके पति को धमकियां दी गई कि वो राधा को वापिस भेज दे वर्ना बुरे नतीजे हो सकते हैं. कई हफ़्तों तक ये मामला चला, थाने  के कई चक्कर काटने और कागज़ी खानापूरी के बाद  कुछ ले देकर राधा के ससुराल वालों ने मामला रफा दफा करवाया। 

"लेकिन तेरी माँ ने पुलिस में चोरी की  रिपोर्ट क्यों की?"  मैंने पूछा।

"हमारे गाँव और जाति  में रिवाज है कि शादी के वक़्त लड़के वाले लड़की वालों को रुपये  देते है।  कई बार लाख दो लाख तक मिल जाता है. लेकिन मैंने अपनी मर्ज़ी से शादी की, इसलिए घर वालों को कुछ नहीं मिला।"

इस तरह का रिवाज कुछ आदिवासी इलाकों में है ये तो मैं जानती थी पर राधा के गाँव में भी ऐसा कुछ है ये पहली बार पता चला. खैर, कहानी अभी और आगे थी. 

"मेरी बहन शोभा ने भी मेरे घर से जाने के तीन चार दिन बाद भाग कर शादी कर ली. पर उसकी शादी गाँव के ही लड़के से हुई और उन्होंने मेरी माँ को एक लाख रुपये  दिए है.  मेरा रिश्ता जिस बूढ़े से तय किया था वो दो लाख देने वाला था पर मैं पहले ही घर से भाग गई." इतना सब बताते हुए राधा के चेहरे पर एक गर्व की  चमक और आवाज़ में जीत की खनक थी. 

"पर अब मैं खुश हूँ, ससुराल बहुत अच्छा है." मुस्कुराते हुए उसने अपनी कहानी पूरी की. 

ज़ाहिर है ये सुनकर माँ को तसल्ली हुई. पर अभी कुछ परतें और बाकी थी.

लेकिन जाने से पहले राधा ने मम्मी से अपने आधे महीने की  तनख्वाह के पैसे मांगे, ये कहकर कि उसे रुपयों की  बड़ी ज़रूरत है.  सुनकर थोडा अजीब तो लगा कि जब उसका पति अच्छा कमाता है तब उसे एक छोटी सी रकम की  क्या ज़रूरत, खैर उस समय रुपये  दे दिए गए. 

उस दिन मम्मी पूरे वक़्त राधा के बारे में ही बोलती रही। … "बढई  का काम है, कह रही थी कि महीने के  नौ दस हज़ार कमा लेता है." 

"अगर सच में इतना  कमाता है  तो इस तरह चार सौ रुपये के लिए नहीं कहती।" मेरी आवाज़ तीखी और संदेह से भरी थी. 

अगले दिन राधा फिर से आई, बिना फोन किये, अचानक ही दोपहर के तीन बजे. सीधे मम्मी के पास गई। . 

"मेरा एक काम कर दो, मुझे तुरंत दो हज़ार रुपयों की  सख्त ज़रूरत है, मेरे ससुराल वालों के गाँव जाना है. मुझे किसी भी हालत में अभी पैसे चाहिए।" 

कुछ देर तक मैंने उसे टालने की  कोशिश की लेकिन मम्मी को यकीन था कि उसे सचमुच किसी बहुत बड़ी और गम्भीर वजह से रुपयों की ज़रूरत है, इसलिए दे देने चाहिए।  मैंने बात घुमाने कि गरज से पूछा कि जब तेरा पति इतना कमा रहा है तो फिर उधार  लेने की  क्या ज़रूरत पड़ी वो भी  त्यौहार के समय?? 

जवाब मिला कि आजकल काम ज़रा मंदा चल रहा है, जैसे ही नया काम मिलेगा वो तुरंत रूपये  लौटा देगी या फिर " आप अपने घर में लकड़ी का जो  काम अधूरा पड़ा है वो करवा लेना उस से, हिसाब पूरा हो जाएगा।"  

राधा का ये हिसाब मेरी समझ में नहीं आया, लेकिन मम्मी का चेहरा देख कर आखिर उसे पांच सौ रुपये देने पर सहमति बनी. वो भी इस वादे पर कि वो ये रुपये  और उसके पहले के उधार लिए हुए एक हज़ार रुपये जो उसने शादी से काफी पहले लिए थे, सब एक साथ चुका  देगी , इस महीने के आखिर तक. 

राधा के जाने के बाद कहीं ना कहीं इतना तो समझ आ ही गया कि वो "खुद का काम, दुकान और नौकर, अमावस को नौकरों की  मजदूरी का हिसाब, महीने के नौ हज़ार की  कमाई" सब केवल बातें थी, कथाएं थी.  क्योंकि इस बार राधा खुद ही बता गई थी कि लक्ष्मण किसी सेठ  के यहाँ काम करता है, जिसके पास  इस बार कोई बड़ा काम हाथ में ना होने की वजह से, उसके ज्यादातर मजदूर खाली बैठे हैं. और यही वजह थी कि त्यौहार के दिन राधा माताजी को मिलने नहीं केवल अपने बकाया पैसे लेने आई थी. इस बात का अहसास होने  पर कि राधा अपने पुराने लगाव के  कारण नहीं सिर्फ रुपयों कि ज़रूरत के चलते मिलने आई थी, माताजी का मूड थोडा उखड़ा सा रहा; पर उन्हें अभी भी विश्वास  है कि जैसे ही स्थितियां सामान्य होंगी,  राधा उनसे मिलने  वापिस आएगी और  उधार लिए रुपये भी दे जायेगी।


और अब एक बार फिर से राधा की  कोई खबर नहीं है. मुझे यकीन है कि वे रुपये अब डूबत खाते में जा चुके हैं.   हमें अभी तक नई बाई भी नहीं  मिली है, तलाश ज़ारी है.  


Image Courtesy --- Google


First Part of the Story can be read Here

 Second Part of the Story can be read Here

Tuesday, 25 June 2013

राधा बाई की लव स्टोरी -- भाग 1

"नालायक आज भी नहीं आएगी". 

"क्यों ?? अब आज कहाँ मर गई ? इस हफ्ते ये तीसरी बार हो गया।"

" कहीं नहीं मर रही, वो जो गाँव के रिश्तेदारों का कुनबा आया है दस - ग्यारह लोगों का, उनको  बाज़ार घुमाने, खरीद दारी  कराने और पता नहीं  कौन कौन से मंदिरों के दर्शन करवाने ले जायेगी।" 

"अब निकाल दो इस निकम्मी, नालायक को .. हद ही हो गई है अब .. कभी खुद कहीं मेले ठेले में डोलने जा रही है .. कभी गाँव में शादी है, कभी बीमार पड़ी है (वैसे है तो पैदायशी बीमार ) और कभी गाँव से रिश्तेदार आकर इसी के घर में डेरा डाले बैठे हैं और ये इनकी पलटन को खिला  रही है (वो भी उधार लेकर )".

इस रामकथा के बाद मैंने झाड़ू उठाया और लग गई सफाई में .. ज़ाहिर है अन्दर से पचास गालियाँ देते हुए .."काम वाली बाई" को  जिसका नाम है "राधा" .

हमारी राधा को हम "राधा-बाई" नहीं कहते सिर्फ राधा कहते हैं ...ये बाई शब्द सीरियल और फिल्मों में ही ठीक लगता है।  और हमारी राधा मैडम को आप ऐसा वैसा मत समझिये .. उनको हर चीज़ का शौक है .. घूमने का,  नई  ड्रेसे पहनने का, मोबाइल का, टीवी सीरियल देखने का और अगले दिन एपिसोड की कहानी के बारे में बातें करने का ... (मोबाइल का शौक ऊँचे दर्जे का है, उस में रेडियो चलता रहता है और राधा काम करती रहती है, गलती  से भी  अगर उसके मोबाइल को किसी ने हाथ लगाया या उसमे कुछ ताक झांकी की तो  राधा को  अच्छा नहीं लगेगा .. बताये देते  हैं आपको .... और रेडियो को बंद करने के बारे में तो बात करना  ही बेकार है क्योंकि संगीत की सुमधुर लहरी के बिना राधा का मन नहीं लगता काम में ... और अभी कोई दो चार महीने हुए है कि  राधा ने नया मोबाइल खरीदा है जिसमे कैमरा भी है !!!! )

और  हाँ,  घूमने का उनका शौक कोई मामूली नहीं है इसमें मेले, शादी-ब्याह, कोई  सा भी त्यौहार और रिश्तेदारों के घर जाना सब कुछ शामिल है ..बस मौका मिलना चाहिए डोलने का और भटकने का ..

    तो बस उन्ही सब झमेलों के चलते राधा देवी छुट्टियां लेती ही रहती हैं और अक्सर इसकी पूर्व सूचना देना बिलकुल गैरज़रूरी मानती हैं या कभी कभार सूचना आ भी जाए तोह वो देर से ही पहुँचती है (जी नहीं डाक विभाग को या टेलिफोन के घटिया नेटवर्क को ना कोसिये ये तो उनके छोटे भाईसाहब हैं जो मर्ज़ी हुई तो आ जाते हैं बताने वर्ना जय राम जी की ) 

तो बस ऐसा ही एक दिन था जब सन्डे था और मेरे एग्जाम सर पर थे और मम्मी की तबिअत भी कुछ ठीक नहीं थी और हमारी राधा बाई के आने के आसार दिख नहीं  रहे थे और  इसलिए मैंने हाय तौबा मचाते हुए सफाई करना शुरू किया .. पूरे घर का झाडू लगा चुकने के बाद मैंने अभी सांस भी नहीं ली थी कि  राधा देवी दरवाजे पर प्रकट हुई .. गुस्सा तो पहले ही दिमाग पर सवार था इसलिए मैंने वहीँ दरवाजे पर ही राधा को कुछ मधुर वचन सुनाये लेकिन फिर मम्मी बीच में आ गई तो मुझे अपना रेडियो बंद करना पड़ा।  

मैं वापिस पढने बैठ गई और थोड़ी देर बाद कुछ आधी अधूरी बातें सुनाई दी, राधा कुछ बता रही थी और मम्मी खुश हो रही थी। खैर,  उसके जाने के बाद  दोपहर का खाना निपटा कर, कूलर चला कर जब मैं शुतुरमुर्ग की तरह  किताबों में अपना सिर घुसा के पढ़ रही थी तब मम्मी ने कहना शुरू किया ...

" अब राधा शायद काम छोड़ देगी". 

"क्यों अब क्या हुआ इस नालायक को".

"अरे, अब उसकी शादी होने वाली है, और उसका होने वाला पति नहीं चाहता कि  राधा अब  बाई का काम करे।"  मम्मी ने एक झटके में कह दिया और मेरा शुतुरमुर्ग वाला सिर  बाहर निकल आया। 

"क्याआआआ ... शादीईईईईईई ... किस से करेगी ??????"  

अब यहाँ थोडा विवरण और देना पड़ेगा कि  मैं इतनी हैरान क्यों हो रही हूँ .. किस्सा--मामला ये है कि  राधा कि  उम्र तो ज्यादा नहीं है  लेकिन गाँव के रिवाज के मुताबिक़ बचपन में ब्याह हो गया फिर वही घिसा पिटा  किस्सा, मारपीट वगेरह और फिर राधा अपने साल दो साल के लड़के को लिए वापिस माँ के पास आ गई।  तो हैरानी ये है कि  ऐसा कौन मिल गया जो राधा को उसके बेटे  समेत ले जाने को तैयार है ???


तो अब किस्सा कुछ यूँ है कि  राधा की मौसी को राधा की बड़ी फिकर थी इसलिए उन्होंने ढूंढ निकाला एक दूज वर राधा के लिए (वैसे राधा भी तो  दूसरी  बार ब्याह करेगी ना ) तो  "लड़का"   राधा को मिलने  उसके घर आया  मौसी के लड़के  के साथ .. और राधा को  बाहर चलने के लिए पूछा,  जहां बैठ के दो घडी बतियाया जा सके. ( घर में तो बैठने की जगह ही नहीं है ना .. वैसे ये और बता दूँ कि  उस वक़्त राधा की माँ और छोटी बहन भी घर पे नहीं थे .. लेकिन श्ह्ह्ह )

तो फिर राधा उस लड़के की बाइक  पे बैठ कर गई नेहरु गार्डन, जहां उन्होंने खाई आइसक्रीम और पिया जूस और घर छोड़ने से पहले लड़के ने राधा को दिलाई एक बड़ी सी डेरी मिल्क। और हाँ अपना नंबर देना नहीं भूला लेकिन ये तो बुरा हो उस बुरे वक़्त का जिसमे राधा के फोन में  सिम ही नहीं थी, इसलिए फोनियाना संभव नहीं था .. खैर .. 

और बस तभी से राधा को प्यार हो गया  "इश्क वाला लव .."

 "लड़का मेरी ही उम्र का है .. बीवी उसकी भाग गई शादी के कुछ महीने के बाद (थोड़े दुःख क साथ कहते हुए ) और मेरे छोटू को भी साथ रखने को तैयार है और कहता है कि  काम छोड़ दो , अब कोई ज़रूरत नहीं (बड़े प्यार से मुस्कुराते हुए, शरमाते हुए ) "  राधा देवी मेरी माता जी को बता रही थी।

"लड़के का कुछ नाम भी है कि  नहीं?" बाउंसर जैसा, बेसुरी आवाज़ में मेरा सवाल।

"लक्ष्मण दास" .. कहते कहते राधा की बत्तीसी खिल गई और अपने ख़ास अंदाज़ में हंसी।

"करता क्या है?" 

"लकड़ी का काम है .. खुद का .. मजदूर नहीं  है, नौ  हज़ार महीना कमाता है, घर में माँ बाप के अलावा एक छोटा भाई है वो भी काम करता है।" 

  यानी लव स्टोरी फुल स्विंग पर थी। 

राधा को बाइक  पर घूमने, आइसक्रीम  खाने और गार्डन में घूमने के सपने आ रहे होंगे।  अब घूमने के लिए बस के धक्के या ऑटो का किराया खर्च नहीं करना पड़ेगा। 

लेकिन अब यहाँ भी एक पेंच था .. हर लव स्टोरी में होता है इसमें कैसे नहीं होगा। तो पेंच ये है कि  राधा की माँ को लक्ष्मण पसंद नहीं आया,  उसको तो ये रिश्ता, घर  और यूँ  कहें कि पूरा मामला ही पसंद नहीं आया। अब क्यों, किसलिए, जैसे सवालों के पीछे एक दुःख भरी कथा और है।

राधा के अलावा उसके घर में उसके दो भाई और एक बहन है और माता  पिता है  और ये सब लोग कुछ ना काम करते ही हैं, राधा उसकी  बहन शोभा  और उसकी माँ तीनों अलग अलग  घरों में  काम करती है और हर महीने मिलकर  तीन चार हज़ार  तो कमा ही लेती है. लेकिन फिर भी घर का खर्च, बेटे की पढाई  और भी कई खर्चे आम तौर  पर राधा के ही हिस्से आते हैं। शोभा अपनी कमाई या तो बचा के रखते है या फिर अपने ऊपर ही खर्च करती है। घर के सारे काम, अक्सर आने वाले और लम्बे वक़्त तक ठहरने वाले गाँव के मेहमानों की आवभगत और महीने का राशन लाना जैसे सभी काम राधा की ज़िम्मेदारी है। शोभा और  उसकी माँ  का इन सब से कोई लेना देना नहीं .. सुनने में काफी अजीब और फ़िल्मी  लग सकता है लेकिन  है सच .. राधा घरों में काम करती है और अपने घर का भी हर छोटा बड़ा काम करती है। उसकी माँ जो साल के छह महीने घर से बाहर ही रहती है (कभी रिश्तेदारों से मिलने , कभी खेत बुआई के वक़्त मजदूरी करने जैसे कामों के कारण) तब घर की पूरी ज़िम्मेदारी अकेली राधा की होती है. 

ऐसे में अगर राधा शादी करके चली गई तो ज़ाहिर है कि ना सिर्फ  घर का एक  कमाऊ सदस्य चला जाएगा पर फिर घर कौन संभालेगा ..????? और  इसलिए राधा की माँ ने साफ़ शब्दों से कह दिया ... "नहीं, नहीं, नाहीं .. बिक्लुल नाहीं". 

इस "नाहीं" ने बेचारी राधा के नन्हे दिल को तकलीफ दी , रिश्ता लाने वाली मौसी और राधा के पिता ने भी माँ को समझाया पर कोई फायदा नहीं हुआ. 

"मैंने पहले ही तुझे कहा था कि  तेरी माँ तो किसी हालत में राज़ी नहीं होगी". ये हमारी माताजी हैं जो परेशान हैं ( नहीं, नहीं आप समझे नहीं, परेशानी की वजह  ये है कि  अब राधा काम छोड़ देगी तो नई  बाई   इतनी जल्दी कहाँ से मिलेगी) 

" पर मैंने भी कह दिया है कि  शादी करुँगी तो सिर्फ उसी से वर्ना करुँगी ही नहीं". 

"पर तेरी माँ .." 

"माँ तो ऐसे रिश्ते ला रही थी कि  बस .. मैं ना करूँ उनसे ब्याह और फिर शोभा भी तो रोज़ झगडती है मुझसे, कहती है कि  शादी करले और अलग घर लेके रह." 

"लेकिन ..??" 

" उसकी माँ ने भी मुझसे कहा है कि  घरवाले ना माने तो भी कोई बात नहीं, तू तो बस अपनी दो ड्रेस लेकर आ जा।  मैं कोर्ट मैरिज कर लूंगी।"

" क्याआआआ ..क्या करेगीईइ।" फिर से बाउंसर।

"उसने कहा है हम कोर्ट मैरिज  कर सकते हैं, फिर  कोई कुछ नहीं बोलेगा, कोर्ट का आर्डर होगा तो सबको मानना पड़ेगा।"  

मुझे उसके ज्ञान कोष पर और उसकी हिम्मत दोनों पर हैरानी और थोड़ी जलन भी हो रही थी। 

"तू कोर्ट मैरिज करेगी .." माताजी चकित और मुदित थी।