"नालायक आज भी नहीं आएगी".
"क्यों ?? अब आज कहाँ मर गई ? इस हफ्ते ये तीसरी बार हो गया।"
" कहीं नहीं मर रही, वो जो गाँव के रिश्तेदारों का कुनबा आया है दस - ग्यारह लोगों का, उनको बाज़ार घुमाने, खरीद दारी कराने और पता नहीं कौन कौन से मंदिरों के दर्शन करवाने ले जायेगी।"
"अब निकाल दो इस निकम्मी, नालायक को .. हद ही हो गई है अब .. कभी खुद कहीं मेले ठेले में डोलने जा रही है .. कभी गाँव में शादी है, कभी बीमार पड़ी है (वैसे है तो पैदायशी बीमार ) और कभी गाँव से रिश्तेदार आकर इसी के घर में डेरा डाले बैठे हैं और ये इनकी पलटन को खिला रही है (वो भी उधार लेकर )".
इस रामकथा के बाद मैंने झाड़ू उठाया और लग गई सफाई में .. ज़ाहिर है अन्दर से पचास गालियाँ देते हुए .."काम वाली बाई" को जिसका नाम है "राधा" .
हमारी राधा को हम "राधा-बाई" नहीं कहते सिर्फ राधा कहते हैं ...ये बाई शब्द सीरियल और फिल्मों में ही ठीक लगता है। और हमारी राधा मैडम को आप ऐसा वैसा मत समझिये .. उनको हर चीज़ का शौक है .. घूमने का, नई ड्रेसे पहनने का, मोबाइल का, टीवी सीरियल देखने का और अगले दिन एपिसोड की कहानी के बारे में बातें करने का ... (मोबाइल का शौक ऊँचे दर्जे का है, उस में रेडियो चलता रहता है और राधा काम करती रहती है, गलती से भी अगर उसके मोबाइल को किसी ने हाथ लगाया या उसमे कुछ ताक झांकी की तो राधा को अच्छा नहीं लगेगा .. बताये देते हैं आपको .... और रेडियो को बंद करने के बारे में तो बात करना ही बेकार है क्योंकि संगीत की सुमधुर लहरी के बिना राधा का मन नहीं लगता काम में ... और अभी कोई दो चार महीने हुए है कि राधा ने नया मोबाइल खरीदा है जिसमे कैमरा भी है !!!! )
और हाँ, घूमने का उनका शौक कोई मामूली नहीं है इसमें मेले, शादी-ब्याह, कोई सा भी त्यौहार और रिश्तेदारों के घर जाना सब कुछ शामिल है ..बस मौका मिलना चाहिए डोलने का और भटकने का ..
तो बस उन्ही सब झमेलों के चलते राधा देवी छुट्टियां लेती ही रहती हैं और अक्सर इसकी पूर्व सूचना देना बिलकुल गैरज़रूरी मानती हैं या कभी कभार सूचना आ भी जाए तोह वो देर से ही पहुँचती है (जी नहीं डाक विभाग को या टेलिफोन के घटिया नेटवर्क को ना कोसिये ये तो उनके छोटे भाईसाहब हैं जो मर्ज़ी हुई तो आ जाते हैं बताने वर्ना जय राम जी की )
तो बस ऐसा ही एक दिन था जब सन्डे था और मेरे एग्जाम सर पर थे और मम्मी की तबिअत भी कुछ ठीक नहीं थी और हमारी राधा बाई के आने के आसार दिख नहीं रहे थे और इसलिए मैंने हाय तौबा मचाते हुए सफाई करना शुरू किया .. पूरे घर का झाडू लगा चुकने के बाद मैंने अभी सांस भी नहीं ली थी कि राधा देवी दरवाजे पर प्रकट हुई .. गुस्सा तो पहले ही दिमाग पर सवार था इसलिए मैंने वहीँ दरवाजे पर ही राधा को कुछ मधुर वचन सुनाये लेकिन फिर मम्मी बीच में आ गई तो मुझे अपना रेडियो बंद करना पड़ा।
मैं वापिस पढने बैठ गई और थोड़ी देर बाद कुछ आधी अधूरी बातें सुनाई दी, राधा कुछ बता रही थी और मम्मी खुश हो रही थी। खैर, उसके जाने के बाद दोपहर का खाना निपटा कर, कूलर चला कर जब मैं शुतुरमुर्ग की तरह किताबों में अपना सिर घुसा के पढ़ रही थी तब मम्मी ने कहना शुरू किया ...
" अब राधा शायद काम छोड़ देगी".
"क्यों अब क्या हुआ इस नालायक को".
"अरे, अब उसकी शादी होने वाली है, और उसका होने वाला पति नहीं चाहता कि राधा अब बाई का काम करे।" मम्मी ने एक झटके में कह दिया और मेरा शुतुरमुर्ग वाला सिर बाहर निकल आया।
"क्याआआआ ... शादीईईईईईई ... किस से करेगी ??????"
अब यहाँ थोडा विवरण और देना पड़ेगा कि मैं इतनी हैरान क्यों हो रही हूँ .. किस्सा--मामला ये है कि राधा कि उम्र तो ज्यादा नहीं है लेकिन गाँव के रिवाज के मुताबिक़ बचपन में ब्याह हो गया फिर वही घिसा पिटा किस्सा, मारपीट वगेरह और फिर राधा अपने साल दो साल के लड़के को लिए वापिस माँ के पास आ गई। तो हैरानी ये है कि ऐसा कौन मिल गया जो राधा को उसके बेटे समेत ले जाने को तैयार है ???
तो अब किस्सा कुछ यूँ है कि राधा की मौसी को राधा की बड़ी फिकर थी इसलिए उन्होंने ढूंढ निकाला एक दूज वर राधा के लिए (वैसे राधा भी तो दूसरी बार ब्याह करेगी ना ) तो "लड़का" राधा को मिलने उसके घर आया मौसी के लड़के के साथ .. और राधा को बाहर चलने के लिए पूछा, जहां बैठ के दो घडी बतियाया जा सके. ( घर में तो बैठने की जगह ही नहीं है ना .. वैसे ये और बता दूँ कि उस वक़्त राधा की माँ और छोटी बहन भी घर पे नहीं थे .. लेकिन श्ह्ह्ह )
तो फिर राधा उस लड़के की बाइक पे बैठ कर गई नेहरु गार्डन, जहां उन्होंने खाई आइसक्रीम और पिया जूस और घर छोड़ने से पहले लड़के ने राधा को दिलाई एक बड़ी सी डेरी मिल्क। और हाँ अपना नंबर देना नहीं भूला लेकिन ये तो बुरा हो उस बुरे वक़्त का जिसमे राधा के फोन में सिम ही नहीं थी, इसलिए फोनियाना संभव नहीं था .. खैर ..
"लड़का मेरी ही उम्र का है .. बीवी उसकी भाग गई शादी के कुछ महीने के बाद (थोड़े दुःख क साथ कहते हुए ) और मेरे छोटू को भी साथ रखने को तैयार है और कहता है कि काम छोड़ दो , अब कोई ज़रूरत नहीं (बड़े प्यार से मुस्कुराते हुए, शरमाते हुए ) " राधा देवी मेरी माता जी को बता रही थी।
"लड़के का कुछ नाम भी है कि नहीं?" बाउंसर जैसा, बेसुरी आवाज़ में मेरा सवाल।
"लक्ष्मण दास" .. कहते कहते राधा की बत्तीसी खिल गई और अपने ख़ास अंदाज़ में हंसी।
"करता क्या है?"
"लकड़ी का काम है .. खुद का .. मजदूर नहीं है, नौ हज़ार महीना कमाता है, घर में माँ बाप के अलावा एक छोटा भाई है वो भी काम करता है।"
यानी लव स्टोरी फुल स्विंग पर थी।
राधा को बाइक पर घूमने, आइसक्रीम खाने और गार्डन में घूमने के सपने आ रहे होंगे। अब घूमने के लिए बस के धक्के या ऑटो का किराया खर्च नहीं करना पड़ेगा।
लेकिन अब यहाँ भी एक पेंच था .. हर लव स्टोरी में होता है इसमें कैसे नहीं होगा। तो पेंच ये है कि राधा की माँ को लक्ष्मण पसंद नहीं आया, उसको तो ये रिश्ता, घर और यूँ कहें कि पूरा मामला ही पसंद नहीं आया। अब क्यों, किसलिए, जैसे सवालों के पीछे एक दुःख भरी कथा और है।
राधा के अलावा उसके घर में उसके दो भाई और एक बहन है और माता पिता है और ये सब लोग कुछ ना काम करते ही हैं, राधा उसकी बहन शोभा और उसकी माँ तीनों अलग अलग घरों में काम करती है और हर महीने मिलकर तीन चार हज़ार तो कमा ही लेती है. लेकिन फिर भी घर का खर्च, बेटे की पढाई और भी कई खर्चे आम तौर पर राधा के ही हिस्से आते हैं। शोभा अपनी कमाई या तो बचा के रखते है या फिर अपने ऊपर ही खर्च करती है। घर के सारे काम, अक्सर आने वाले और लम्बे वक़्त तक ठहरने वाले गाँव के मेहमानों की आवभगत और महीने का राशन लाना जैसे सभी काम राधा की ज़िम्मेदारी है। शोभा और उसकी माँ का इन सब से कोई लेना देना नहीं .. सुनने में काफी अजीब और फ़िल्मी लग सकता है लेकिन है सच .. राधा घरों में काम करती है और अपने घर का भी हर छोटा बड़ा काम करती है। उसकी माँ जो साल के छह महीने घर से बाहर ही रहती है (कभी रिश्तेदारों से मिलने , कभी खेत बुआई के वक़्त मजदूरी करने जैसे कामों के कारण) तब घर की पूरी ज़िम्मेदारी अकेली राधा की होती है.
ऐसे में अगर राधा शादी करके चली गई तो ज़ाहिर है कि ना सिर्फ घर का एक कमाऊ सदस्य चला जाएगा पर फिर घर कौन संभालेगा ..????? और इसलिए राधा की माँ ने साफ़ शब्दों से कह दिया ... "नहीं, नहीं, नाहीं .. बिक्लुल नाहीं".
इस "नाहीं" ने बेचारी राधा के नन्हे दिल को तकलीफ दी , रिश्ता लाने वाली मौसी और राधा के पिता ने भी माँ को समझाया पर कोई फायदा नहीं हुआ.
"मैंने पहले ही तुझे कहा था कि तेरी माँ तो किसी हालत में राज़ी नहीं होगी". ये हमारी माताजी हैं जो परेशान हैं ( नहीं, नहीं आप समझे नहीं, परेशानी की वजह ये है कि अब राधा काम छोड़ देगी तो नई बाई इतनी जल्दी कहाँ से मिलेगी)
" पर मैंने भी कह दिया है कि शादी करुँगी तो सिर्फ उसी से वर्ना करुँगी ही नहीं".
"पर तेरी माँ .."
"माँ तो ऐसे रिश्ते ला रही थी कि बस .. मैं ना करूँ उनसे ब्याह और फिर शोभा भी तो रोज़ झगडती है मुझसे, कहती है कि शादी करले और अलग घर लेके रह."
"लेकिन ..??"
" उसकी माँ ने भी मुझसे कहा है कि घरवाले ना माने तो भी कोई बात नहीं, तू तो बस अपनी दो ड्रेस लेकर आ जा। मैं कोर्ट मैरिज कर लूंगी।"
" क्याआआआ ..क्या करेगीईइ।" फिर से बाउंसर।
"उसने कहा है हम कोर्ट मैरिज कर सकते हैं, फिर कोई कुछ नहीं बोलेगा, कोर्ट का आर्डर होगा तो सबको मानना पड़ेगा।"
मुझे उसके ज्ञान कोष पर और उसकी हिम्मत दोनों पर हैरानी और थोड़ी जलन भी हो रही थी।
"तू कोर्ट मैरिज करेगी .." माताजी चकित और मुदित थी।
10 comments:
Dhanywaad sarita ji
राधाबाई की इस प्रेम कहानी को आज दूसरी बार फिर पढ़ा। प्रस्तुति का अंदाज़ हल्का फुल्का ज़रूर है लेकिन कहानी पाठक मन में अपना प्रभाव और वातावरण बनाने मे पूरी तरह सफल है।
सादर
Badhiya ji... Badhiya.....
अच्छी कहानी थी बिलकुल किसी हिन्दी धारावाहिक के एक एपिसोड की तरह लगी शुभकामनायें...
shukriya :) :)
Thank u Pallavi ji :)
Nice !
शुभ प्रभात
इतने सुबह क्यो उठी मैं
जानती है
सुमित्रा ने कल ही बता दिया था कल मैं नही आउँगी
सो रात के बर्तन जो साफ करने है
सादर
राधा की सहेली
यशोदा
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Thank u :) :)
:) :) :) bahut bahut dhanywaad ..
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