Sunday 16 January 2011

कोयलिया मत कर पुकार--२ : यात्री

२००९ मेरे लिए examination  year  रहा. हाँ ये और बात है कि उन exams  का कोई रिजल्ट या outcome नहीं निकला. शुरुआत जनवरी से ही हो गई. जनवरी में RAS  PT  हुआ उसके बाद मार्च में  IAS mains का रिजल्ट फिर मई में IAS PT . इसके बाद जुलाई में RAS mains और अक्टूबर-नवम्बर  में IAS  mains . कुल मिलाकर  पूरा साल एक fast - rolar-costar -ride की तरह था, जहां सांस लेने या रुकने का कोई मौका नहीं था.
२००८ के IAS  mains के खराब performance के बाद कुछ दोस्तों ने अगले mains के लिए test-series  ज्वाइन करने की सलाह दी. दिल्ली जाकर २-३ महीने के series attend करना संभव नहीं था सो correspondence से ही किया. 2009 को  मैं  अपना  writing-practice-year भी कह सकती हूँ. RAS  और IAS  दोनों के लिए  जम कर answer writing की practice की, वर्ड लिमिट, answer presentation , organization हर चीज़ पर सर खपाया.
इसी दौरान, political science के लिए अनिकेत की  मदद को मैं नहीं भूल सकती. फिर चाहे वो latest think tank report हो, online -discussions , model answer फॉर्मेट तैयार करना हो ya जाने कहां-२ से articles ढूंढ कर उनके लिंक send  करना हो.इस सब का क्रेडिट अनिकेत को ही जाता है. इसीलिए मैंने उसका नाम "मास्टर जी" रख दिया था.

सितम्बर में, मैं दिल्ली  गई, अपने पुराने coaching -teacher से मिलने, अपने answer  चेक कराने और साथ ही उस test series conduct करने वाले teacher से भी मिलना था. दोनों से ही मुझे काफी positive फीडबैक मिला. मुझे बताया गया कि answers  to -the -point हैं, फ्लो है, well -written हैं वगैरह...यानि संक्षेप में फिकर ना करें इस मोर्चे पर  सब ठीक है.

पर जैसा कुछ मित्रों ने बाद में कहा था कि टेस्ट-series का अच्छा प्रदर्शन examination -hall के लिए अच्छे performance की guarantee  नहीं है. ख़ास तौर पर correspondence में तो बिलकुल भी नहीं. फिर भले ही आप  घर में ही exam -like condition में लिखें.
खैर, exam की इस भागा-दौड़ी में  सिर्फ एक अच्छी बात थी कि कोई major health -प्रॉब्लम नहीं हुई, हाँ छोटी-मोटी परेशानियाँ तो चलती ही रही और मुझे तो खैर  उनकी आदत भी हो गई थी. शायद इसलिए मेरी फोन-बुक में physician , डेंटिस्ट, ophthalmologist  के नाम permanently add हो  ही गए हैं.

लेकिन अभी कुछ होना बाकी था . exam में १० दिन ही बचे थे, तैयारी full -on थी , पर कहीं ना कहीं कुछ हो रहा था, मेरा आत्म-विश्वास और खुद पर भरोसा छूटने लगा था, कम होने लगा था, पढ़े हुए पर भरोसा सब गायब हो रहा था. एक nervousness मुझ पर हावी हो रही थी.अगर अंग्रेजी में कहू तो "I was loosing myself ". exam से २-३ दिन पहले तो I completely lost myself .  लगभग तभी अनिकेत ने भी  मुझे समझाया था  कि अगर मैं इसी तरह nervous होती रही तो exam ज़रूर बिगड़ जाएगा.
खैर आश्चर्यजनक रूप से exam वाली सुबह मैं बिलकुल नॉर्मल हो गई. अब ये अजीब तो है..पर आराम से exam दिए. अपनी तरफ से बढ़िया ही लिखा लेकिन शायद examiner को खास पसंद नहीं आय़ा.

mains  के बाद सेरामिक paintiing का शौक चढ़ा, और एक के बाद एक मैंने कुछ clay pots paint  कर डाले. फिर तो लकड़ी, tile  जो हाथ लगा  उस पर रंग और brush चला डाले. सेरामिक powder  पर भी हाथ आजमाया और नतीजे काफी अच्छे  रहे. पर ये सब मेरे लिए टाइम-पास या बेहतर शब्दों में कहू तो अपने दिल-दिमाग को कहीं  उलझाए  रखने, अपनी  क्षमताओं को explore करने का तरीका था.
लेकिन इस मन-बहलाव के बहाने ही सही, मुझे अपने नए talent का पता चला. वरना अब तक मैं खुद और मेरी बेस्ट फ्रेंड मुझे आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स के क्षेत्र में काला अक्षर भैंस  बराबर ही समझते थे. ऐसे ही २-३ महीने गुज़र गए.
मार्च २००९ में IAS mains  का रिजल्ट भी आ गया और बताने  की ज़रुरत नहीं कि मैंने clear नहीं किया. चौथा और आखिरी attempt ....IAS बनने का बचपन का सपना, ज़िन्दगी की एक ही और सबसे बड़ी ख्वाहिश, मेरा सबसे सुन्दर सपना, मेरी सब प्रार्थनाओं, दुआओं का कारण, मेरा उद्देश्य, मेरी महत्वाकांक्षा..सब समाप्त हो गया.

इस रिजल्ट ने जीवन को बिखेर कर रख दिया. अब मैं पूरी तरह से दिशाहीन थी. कुछ समझ नहीं आता था कि  क्या करूँ. कितनी-कितनी रातें, दिन, हफ्ते, महीने ...मैं अवसाद की स्थिति में रही. दिन भर रोती रहती थी. चुपके से अकेले में....कितनी बार ऐसा होता था कि मेरे पास बैठे मम्मी-पापा को पता भी नहीं चलता था कि मैं वहीँ टीवी देखते हुए, खाना खाते या बनाते हुए या सोते हुए  रो रही हूँ.   कितनी रातें मैंने जागते हुए, खाली आँखों में गुज़ार दी, कुछ याद नहीं. ३-४ महीने ऐसी ही हालत रही.
हालांकि इसी बीच कुछ घटनाएं भी हुईं, जैसे boutique exhibition , articles on news -sites , exams वगैरह ..यानि ऐसे ही सब फ़ालतू चीज़ें.  लेकिन निश्चित रूप से इस सब से तो मेरे  मन को शांति नहीं मिल सकती थी. पर अगर उस वक़्त मैं दूसरों की नज़र से अपनी ज़िन्दगी को देखती तो लगता था कि कोई परेशानी ही नहीं है मेरी ज़िन्दगी में लेकिन अगर कोई मेरी नज़र से देखे तो.....  
इस दौरान एक और चीज़ भी हो गई या यूँ कहूं कि जो थोड़ा -बहुत वहम था वो भी दूर हो गया..मैं बात कर रही हूँ अपने नास्तिक होने के बारे में. ... हाँ इस रिजल्ट के बाद ईश्वर से मेरा विश्वास पूरी तरह उठ ही गया..उस दिन मुझे लगा कि क्यों..क्यों मेरी एक इच्छा भी भगवान्  पूरी नहीं कर सके. मेरे दिल-दिमाग में हज़ार  सवाल थे कि मेरे संघर्ष में क्या कमी रह गई...जो मुझे मेरा "आकाश-कुसुम" नहीं मिला.मैं अपनी बाहों में सारा आकाश समा लेना चाहती थी, मेरे ख्वाब तो आसमान छूते थे. मेघे ढाका तारा की नियति.."तारा जो कभी अपनी चमक नहीं बिखेर पाता"  मैंने कभी सपने में भी  नहीं सोचा  था. 

और इसीलिए अब मुझे खुले आसमान  में गाने वाली कोयल की आवाज़ नहीं सुननी....लेकिन कभी कभी पुराने सपनों की आवाजें अब भी कभी सुनाई दे जाती हैं. ...हाँ अब मैंने मन को समझा लिया है, हालाँकि इसमें काफी समय लग गया..पर वैसे भी मेरे साथ कोई चीज़ जल्दी और आसानी से हुई भी नहीं. 
बहुत पहले कहीं पढ़ा था कि " वही बनो जो कुदरत तुम्हे बनाना चाहती है, यदि और कुछ बनने का प्रयास करोगे तो कुछ भी नहीं बन पाओगे." शायद ये मेरे लिए ही कहा गया है, शायद मैं वो बनने चली थी जो मेरे लिए नहीं था ....तो जो मेरे लिए नहीं था उसके लिए मैं कब तक रो सकती थी... और हाँ अब तो मैं  फिर से ईश्वर को तलाश कर रही हूँ  और इसी बहाने अपनी आस्था को भी .. जब ये दोनों मिलेंगे तो इस कहानी का तीसरा भाग लिखा जायेगा. तब तक..."मेघे ढाका तारा"...

पुनश्च : इस कहानी को पढने के बाद कुछ लोगों ने मुझसे कहा कि मैं ईश्वर को अपनी असफलताओं  के लिए दोषी क्यों ठहरा रही हूँ. मैं अपनी ज़िम्मेदारी से भाग रही हूँ और सच्चाई से मुंह फेर रही हूँ. और ये भी कि अपनी असफलता को कम करने का मैं बहाना बना रही हूँ. इसीलिए मुझे लगा कि इस सवाल का जवाब देना  ज़रूरी है.

पहली बात, मैंने ये कहानी इसीलिए नहीं लिखी कि मुझे दुनिया को अपनी दुखभरी कहानी सुना कर उनकी सहानुभूति चाहिए... नहीं बिलकुल नहीं...ना मैं यहाँ अपनी असफलता के कारणों का विश्लेषण करने या अपनी असफलता को किसी भगवान्, किस्मत, परिस्थिति से जोड़ना चाहती हूँ. मैंने सिर्फ अपने अनुभवों को कहने के लिए इस कहानी को एक माध्यम बनाया. पाठक एक बात अच्छी तरह से जान लें कि इस कहानी के ज़रिये ना तो मैंने भगवान् को ना ही खुद को दोषी ठहराया है.....क्योंकि मैं मानती हूँ कि अपनी तरफ से मैंने कोशिशों में कोई कमी नहीं रखी...परिस्थितियों  पर मेरा बस नहीं था, २००७-०८ में मेरा बीमार होना या २००९ का failure ये मेरे हाथ में नहीं था, इसलिए उसके लिए मैं किसी से शिकायत  नहीं कर सकती... किस्मत  अगर कुछ है तो वो मेरे जनम से भी पहले लिखी जा चुकी है और उस पर भी मेरा ज्यादा वश नहीं चल सकता.. रह गया ईश्वर...तो कोई ज़रूरी नहीं कि जो मैंने माँगा वो मुझे दिया ही जाए....

इसलिए "कोयलिया मत कर पुकार" किसी असफल इंसान का किस्मत को कोसने का तरीका  नहीं  बल्कि जीवन के अनुभवों को हिम्मत के साथ कुबूल करने और बयान करने का जरिया है. और इसके लिए मुझे किसी को कोई सफाई देने की  ज़रुरत नहीं.

4 comments:

Dimple Maheshwari said...

tum hindi me bhi bahut achha likht ho....likhti raho....u r the best...

Bhavana Lalwani said...

Thank you dimple...aap khud bhi bahut hi umda likhti hain..

talat said...

ye kahani to nahi...
fir bhi dil me ek sawal zaroor chhor jaati hai , naastik'ta our asafalta ke beech kya koi sambandh hai. jo bhagwan ka sakshatkaar karwane paighambar aaye, kya unke jeevan me sirf safalta hi thi? ya bhagwan khud jab avtar lekar dharti pe utre to unhone her kaam me safalta hi paai?
zindagi ki kuchh talkh hakiqat ko hum apne apne hisaab se naam dete hain.
ishwar ki pooja our ishwar se prem me kuchh to fark hai, is fark ko samajh lo to insaan ki zindagi me shikayte nahi rahti

Bhavana Lalwani said...

Thank you Talat...jo main kah nahi paayi ya shayad sahi lafzon mein samjah nahi paayi wo tumne kah diya ..aur ab mere khayal se aur kuchh kahne ki zaroorat bhi nahi rah gai hai....