Friday, 14 January 2011

यात्रा

हर यात्रा अपने साथ एक नया अनुभव लेकर आती है, अब इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि एक ही जगह की  यात्रा बार-बार की  जा रही है या यात्रा के लिए हर बार नया स्थान चुना जा रहा है. यात्रा का अर्थ ही यही है कि हम घर से रवाना तो हो चुके हैं लेकिन अभी अपनी मंजिल तक नहीं पहुंचे, अभी सफ़र ज़ारी है. हर बार यात्रा में  हमें ट्रेन और बस की  खिडकियों के अन्दर और  बाहर नए चेहरे, नए दृश्य और नए नज़ारे देखने को मिलते हैं.
सुबह के वक़्त जल्दी-जल्दी घर के कम निपटाते हुए, यही सब ख्याल पूर्वा के मन में चल रहे थे कि उसके मोबाइल की  घंटी बजी. दूसरी तरफ उसके पति अर्जुन थे.
"पूर्वा तुम्हारी मुंबई की ए.सी फर्स्ट क्लास की  टिकेट  कंफिर्म हो गई है."
"ठीक है, कब की है ?"
"दो दिन बाद की."
पूर्वा को मुंबई अपने मामाजी के बेटे की शादी में जाना था और अर्जुन को अपने बिज़नस से फुर्सत नहीं होने की वजह से उसे अकेले ही जाना पड़ रहा था.
तय तारीख को अर्जुन पूर्वा को स्टेशन छोड़ने आय़ा, डिब्बे में सामान  रखते वक़्त उन दोनों की  नज़र अपने सहयात्रियों पर पड़ी. एक उम्रदराज़ जोड़ा सामने वाली सीट पर बैठा था. नज़रें मिलने पर आपस में परिचय हुआ और बातों का सिलसिला चल पड़ा. अर्जुन को तसल्ली  हुई कि अब पूर्वा को अकेलापन नहीं लगेगा.

ट्रेन चलने पर श्रीमती रेखा अग्रवाल ने पूर्वा से पूछा,"बेटा तुम मुंबई में पढती हो या वहाँ कोई नौकरी करती हो ?"
पूर्वा को हंसी आ गई, " नहीं आंटी, मैं मुंबई एक शादी में शामिल होने के लिए जा रही हूँ,  मेरे कुछ रिश्तेदार हैं वहाँ पर... मेरी तो  शादी हो चुकी है और जो मुझे छोड़ने आये थे वो मेरे पति थे और  मेरी एक बेटी भी है".
"ओह, हमारी भी  तुम्हारे जितनी एक बेटी है और उस से छोटा एक बेटा है वो  IIT कर रहा है और बेटी मुंबई में ही एक प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज में lecturer है ".
"क्या उसकी भी शादी हो गई है?".
"हाँ, हो गई है और उसकी शादी में तो कोई आया  भी नहीं था...." ऐसा कहते -कहते जैसे श्रीमती अग्रवाल के अन्दर का दुःख एक अजनबी के सामने ज़ाहिर हो गया. एक क्षण के लिए जैसे वो थोड़ा अचकचा गई, पूर्वा भी कुछ समझ नहीं पायी. फिर उसने पूछा, "क्यों, ऐसा क्यों हुआ ?" कुछ क्षणों के लिए श्रीमती अग्रवाल कुछ  नहीं बोली....फिर जैसे उनके अन्दर जो कुछ दबा हुआ था वो जैसे धीरे -धीरे बाहर आने लगा....


"दरअसल हम लोग जैन हैं और हमारी बेटी ने हमारी मर्ज़ी के बिना एक मराठी लड़के से शादी कर ली. और इसीलिए हमारे सरे रिश्तेदारों ने उस से सम्बन्ध तोड़ लिए."
"ओह ये तो बुरा हुआ", पूर्वा इस से ज्यादा कुछ नहीं कह पायी.
"यहाँ तक अब हम उसे पारिवारिक समारोहों और  social gathering में भी नहीं बुला सकते  क्योंकि उन दोनों के आने से हमें अपने रिश्तेदारों के सामने काफी शर्मिंदगी सी महसूस होती है .  खासतौर पर उस मराठी लड़के का आना.... और सच कहूं तो... सबको उस से मिलवाना बहुत ही असुविधाजनक लगता है."

पूर्वा ने नोटिस किया कि श्रीमती अग्रवाल  अपने दामाद को नाम से नहीं बुला रही. वो कुछ कहे उसके पहले ही श्रीमती अग्रवाल ने कहना  शुरू किया, "दरअसल हम भी देख रहे हैं कि उन दोनों का रिश्ता कैसा चलता है, अगर ३-४ साल ठीक से गुज़र गए तो हम एक फ्लैट जो उसके दहेज़ के लिए था वो उसे दे देंगे. लेकिन अगर वो वापिस आ गयी तो ये सारा किस्सा ही ख़तम हो जाएगा."
एकबारगी तो पूर्वा ये सुन कर हैरान रह गई कितनी आसानी से ये लोग ऐसा कह रहे हैं, जैसे शादी ना हुई कोई मजाक है या कोई trial base पर होने वाला प्रयोग की ३-४ साल देखते हैं अगर सफल रहा तो वाह-वाही नहीं तो सिवाय एक बुरे अनुभव के कुछ नहीं, जिसे कुछ दिन बाद भुला दिया जाएगा. और फिर ये भी ख्याल आय़ा कि इतने बड़े शहर में रहकर भी ये लोग अभी तक अंतर जातीय विवाह संबंधों को स्वीकार नहीं कर पाए हैं, उसे अपने लिए शर्मिंदगी की वजह मान रहे हैं.यानि जाति सम्बंधित बंधन और वर्जनाएं उनकी मानसिकता पर अब भी छाये हुए हैं. और फिर ये कैसी मानसिकता है कि शादी भले ही टूट जाए पर  लड़की घर वापिस आ जाए.

 पूर्वा के मन में एक उथल-पुथल सी मच गई, उसके मन में ख्याल आया कि अगर इन मेट्रो और कॉस्मो cities को छोड़  दें तो बाकी शहरों में आज भी कोई माता पिता ऐसा नहीं चाहेंगे क़ि  उनकी बेटी शादी के बाद बिना किसी  बड़ी या गंभीर समस्या के यूँ इस तरह अपने पति का घर छोड़ के लौट आये फिर चाहे अंतरजातीय विवाह ही क्यों न करे. तभी श्रीमती अग्रवाल ने उसे आवाज़ दी, " क्या सोच रही हो तुम, अरे बेटा हमारे इन  बड़े शहरों में तो ये रोज़मर्रा की कहानी है. अच्छा अब हम लोग सोयेंगे, good night बेटा."
"good night आंटी."
वे लोग तो सो गए पर पूर्वा एक बार फिर से अपने  ख्यालों में खो गयी, (ऐसा क्यों है कि  महानगरों में रहने वाले लोगों की मानसिकता शादी जैसे स्थाई  और महत्वपूर्ण सम्बन्ध को, लेकर भी इतनी casual और बेफिक्र होती जा रही है. यहाँ तक की युवाओ के साथ-साथ उनके माता पिता की सोच भी वैसी होती जा रही है. क्या सच में  तलाक, संबंधों का टूटना और बिखरना रोज़मर्रा की एक साधारण सी बात है. माता -पिता भी ये सोचने लगे हैं कि अगर पति-पत्नी में ठीक से  निभ गई  तो  अच्छा है वरना उस गैर-ज़ात वाले से पीछा छूटेगा.रिश्ते को निभाने की  कोशिश करने  और आपस में  सामंजस्य  बिठाने के बजाय यही सीख दी जा रही है कि कुछ वक़्त देख लो, ना  समझ आये तो अलग हो जाना. )

शायद महानगरों में fast और instant ज़िन्दगी जीने वाले ये लोग अब रिश्तों को भी  instant मानने लगे हैं.एक तरफ वे खुद को आधुनिक भी मानते हैं  कि यूँ विवाह संबंधों के टूटने से  कोई फर्क नहीं पड़ता, वहीँ  दूसरी और अपनी जाति, परिवार, ऊँचे कुल, धर्म इन सब बंधनों को भी छोड़ नहीं पा रहे. यानि एक दोराहे जैसी स्थिति  में जी रहे हैं, जिसमे किसी एक पक्ष को पूरी तरह चुन पाना उनके लिए मुश्किल है .  

पूर्वा को कुछ वक़्त पहले की एक घटना याद आ गई, उसकी छोटी बहन विनीता के लिए एक विवाह प्रस्ताव आय़ा था, लड़का बंगलौर में एक लीडिंग  MNC में hardware engineer , handsome , अच्छी सेलेरी और सब से बड़ी बात वे लोग खुद ही इस रिश्ते के लिए बहुत  उत्सुकता दिखा रहे थे और  उनके बार- बार फोन आये जा रहे थे, पूर्वा के माता पिता को भी ये प्रस्ताव  पसंद   आया था. ये रिश्ता एक matrimony सर्विस की तरफ से आया था, लड़के का नाम मनीष था उसने विनीता से इन्टरनेट पर chat  के लिए पूछा और अगले १५-२० दिन विनीता उससे बात करती रही. मनीष ने उससे कहा कि वो अपने कुछ  फोटोग्राफ्स उसे mail करे. जो matrimony फोटोग्राफ्स के अलावा हो.लेकिन पूर्वा ने विनीता को फिलहाल फोटो भेजने से मना कर दिया.  उसके एक दो दिन बाद ही मनीष ने विनीता से नेट पर बात कर बंद कर दिया वो भी बिना  कोई कारण बताये. विनीता, पूर्वा और उनके माता -पिता समझ नहीं पाए कि अचानक क्या हुआ.

करीब एक हफ्ता गुज़र जाने और इस बीच मनीष की तरफ से कोई response न होने के कारण पूर्वा के पिता ने मनीष के घर फोन किया तो ज़वाब मिला कि उसकी एक हफ्ता पहले ही सगाई कहीं और तय हो गई है. 

इस अचानक  हुए घटनाक्रम ने सबको हैरान कर दिया. सबसे ज्यादा हैरान और परेशान  विनीता थी कि अगर उस लड़के को कहीं और शादी करनी थी तो फिर वो उस से फोटोग्राफ्स क्यों मांग रहा था, क्यों उसके साथ इस तरह घुल मिलकर बातें कर रहा था और उस से बार-बार उसके भविष्य की योजनायें खासतौर पर परिवार को लेकर क्या हैं?   ये सब इतना डिटेल में क्यों जानना चाह रहा था? पर उसके किसी सवाल का कहीं कोई जवाब नहीं था. कुछ दिन वो बेहद उदास रही, पूर्वा खुद ही जब कुछ समझ नहीं पायी तो उसे  क्या  समझा सकती थी ? पर अगले कई दिन तक विनीता के सवाल क्यों और किसलिए के रूप में उसके सामने आते रहे जिनका कोई जवाब वो दे नहीं पाती थी. उसने कितनी बार उस अनदेखे इंसान को कोसा था उसे  भला -बुरा कहा था.... और  आज जब उसने अग्रवाल दम्पति की  बातें सुनी तो ये पुराना ज़ख़्म फिर ताज़ा हो गया . 

पूर्वा के मन कई तरह के सवाल और ख्याल एक साथ उलझने लगे, आखिर महानगरों में रहने वाले इन लोगों को किस चीज़ की तलाश है ? क्या इस मृगतृष्णा का... भटकाव का कोई अंत है. परफेक्ट मैच और suitable मैच की अंतहीन तलाश का  कोई उद्देश्य भी है ? क्या हमारी संवेदनाएं और भावनाएं मर गई हैं कि हम जीवन के इस सबसे खूबसूरत रिश्ते को इतने गैर-ज़िम्मेदार और हलके ढंग से  लेने लगे हैं?
यही सब सोचते -सोचते कब पूर्वा की आँख लगी और उसे   नींद आ गई उसे खुद पता नहीं चला. सुबह श्रीमती अग्रवाल ने उसे उठाया और बताया कि मुंबई सेंट्रल स्टेशन  आने में अब सिर्फ एक घंटा ही बाकी है. पूर्वा ने अपना luggage संभाला. नियत  समय पर ट्रेन स्टेशन पर  पहुंची, जहां पूर्वा को receive  करने उसके मामाजी के घर से  कोई आय़ा था. उसने श्रीमती  अग्रवाल  से विदा ली और रवाना  हो गई .

1 comment:

Yashwant R. B. Mathur said...

एक बेहद गंभीर सामाजिक समस्या पर बेहतरीन कहानी। वास्तव में अनतरजातीय और अंतरधार्मिक तथा दहेज रहित विवाह ही सांस्कृतिक आदान प्रदान यानि अलग अलग संस्कृति को भी समझने मे मदद कर सकते हैं। इस दिशा मे सकारत्मक रूप से सोचने की ज़रूरत है।


सादर