संसार कथा -- भाग एक
"बताओ !!! यह हवा खाने की क्या सूझी ?? "
"और अब देखो गले में हवा भर गई ना। और ये कि अगर साधारण तापमान वाली हवा खाई होती तो फिर भी कुछ ठीक था। लेकिन यह ठंडी सूखी शीत लहर वाली हवा खाने को किसने कहा ?"
"और फिर उसका संतुलन या एडजस्टमेंट बिठाने को यह हीटर की हवा खाने की सलाह किस समझदार नासपीटे ने दी ?"
"वो मिंटू ने कहा कि थोड़ी देर हीटर चला के बैठ जाओ तो ठण्ड का असर कम हो जाएगा और शरीर नार्मल फील करेगा। "
"नास जाए इस मिंटे का। निकम्मा दिन भर मोबाइल पर जाने क्या आँखे फोड़ता है। और अब तुम्हें वही उलटे सीधे नुस्खे बता रहा। अरे तुम तो इतनी उम्र हुए, अब क्या इस घास के टोकरे से मौसम की संभाल करना सीखोगे ?"
"और कहे देती हूँ, आजकल अगर हवा खाने की इच्छा इतनी ही ज्यादा हो रही है तो साफ़ सुथरी sanitized मास्क वाली हवा ही खाओ। अगर कहीं तुम कोरोना और उसके रिश्तेदार ओमीक्रॉन को घर ले आये तो याद रखना तुम्हें ही टप्पर समेत घर से बाहर क्वारंटाइन कर दूंगी. समझ रखना।"
संसार कथा -- भाग दो
"तुम्हें पूछना तो चाहिए था, कि आखिर पत्थर खाने की क्या सूझी ?"
"यह कोई भले आदमियों का काम है कि कंकड़ पत्थर खाते रहे ?? फिर अब क्या रहा ?"
"ऑपरेशन आज हो गया और कह रहे कि अब चिंता फ़िक्र की कोई बात नहीं है। तीन दिन बाद छुट्टी दे देंगे। बाकी खाने में परहेज कही है। ख़ास तौर से सब्ज़ियां बार बार धोकर ही रांधनी हैं ; चावल, दलिया, चिवड़ा भी अच्छे से साफ़ करके ही पकाने होंगे और कच्ची सब्ज़ी या पत्ते वाली सलाद नहीं खानी। "
"लो यह नया नखरा सम्भालो। मैं कहती हूँ कि आखिर इतने पत्थर खाता ही क्यों था ?"
"यह सब बचपन की आदतें हैं, मिट्टी, स्कूल की चॉक और बाटा पेन्सिल, दीवार का चूना और प्लास्टर खाने की आदत पहले से ही रही होगी। "
"हाँ, ब्याह के वकत बताये नहीं होंगे और अब पेट से पत्थर पहाड़ निकल रहे। "
No comments:
Post a Comment