Friday, 29 January 2021

और हम बाकी लोगों का क्या ??

 कहानियां किसके बारे में कही जाती हैं ? कहानियों से क्या आशा की जाती है कि उन्हें हमेश हैप्पी एंडिंग या कोई स्टीरियो टाइप एंडिंग होनी चाहिए ? अनगिनत फिल्में और उपन्यास जो अब तक रचे जा चुके, उनमे हर उस संभावना पर एक विस्तृत कथा है जिसके होने की कहीं एक ज़रा सी भी संभाव्यता है। इस दार्शनिकता से परे क्या कभी कोई कहानी ऐसी भी हो सकती है जिसम कोई एंडिंग नहीं है जिसमे दो तयशुदा किरदार नहीं है ? जिसमे लवस्टोरी नहीं है !! जिसमे हेट स्टोरी भी नहीं है !! जिसमे कोई प्रवचन या आदर्श या बहादुरी की गाथाएं भी नहीं है !!! क्या ऐसी भी कहानी हो सकती है ? ऐसे लोगों की कहानी जो कहानी का किरदार होने लायक माने नहीं गए ?? क्या किसी एक इंसान की भी कोई कहानी  हो सकती है ? 




आओ ज़रा इसे थोड़ी आसान भाषा में समझें, यह फिल्म "The Holiday" मैंने अभी देखी  तो नहीं लेकिन इसके डायलॉग्स का एक इमेज मुझे इंस्टाग्राम पर कहीं दिखा और मैंने इसका स्क्रीन शॉट लेकर इसे रख लिया. यह फ्रेज कहता है कि  " Most love stories are about those people who fall in love with each other. But what about the rest of Us ? what about our story ?"

यह रेस्ट ऑफ़ अस कौन है ? यह वो लोग हैं जिनके पास  Each Other  कह सकने जैसा कुछ नहीं है।  वो सिंगल हैं ? पता नहीं !!! हमेशा से सिंगल हैं ? पता नहीं !!! कभी कोई Each Other  जैसी उनकी कहानी हुई थी ? पता नहीं !!! अब क्या चाहते हैं ? आखिर कुछ चाहते भी हैं या नहीं ?? जब मैंने वनीला कॉफ़ी लिखी थी तब शायद ऐसे ही किसी रेस्ट ऑफ़ अस के बारे में लिखना चाह रही थी मैं ??   "Eternal Sunshine of The Spotless Mind"  इसका भी एक डायलाग है जिसका स्क्रीन  शॉट लिया था मैंने, यह कहता है, "We met at the wrong time. that's what I keep telling myself anyway. Maybe, one day, years from now, we will meet in a coffee shop in  a far away city somewhere and we could give it another shot.


ये सारे अलग अलग टुकड़े हैं जिनको जोड़ कर एक अधूरी या कभी भी शुरू नहीं हुई कहानी को समझा जा सकता है या उसके एक मुकम्मल कहानी हो सकने का गुमान पाला जा सकता है।  एक और फिल्म है, हैनकॉक, विल स्मिथ वाली, जिसमे एक डिनर टेबल पर कन्वर्सेशन चल रहा है और अपने बारे में बताते बताते वो सुपर हीरो कहता है कि  "Nobody was there to Claim me." "Nobody" यह नोबडी का कुछ अर्थ है।  





इसे दुनियादारी के तराजू से देखिये।  एक बाज़ार है इंसानों का, रिश्तों का, सुपर मार्किट की तरह सब कुछ सजा हुआ है, हर कोई डिस्प्ले पर है, हम ही खरीददार हैं और हम ही दुकानदार।  हमने किसी को खरीद लिया या क्लेम  कर लिया। किसी ने हमको ख़रीदा या क्लेम किया। और जब कोई नहीं खरीदता या क्लेम करता तब हम उस ख्याल पर पहुँचते हैं कि  हमारी कहानी का क्या ?? रेस्ट ऑफ़ अस का क्या ??  तब हम खुद को ये बड़ी प्यारी सी तसल्ली देते हैं कि  यह गलत वक़्त था , यह गलत surroundings थी।  जब सही वक़्त होगा, सही सब कुछ होगा तब हम एक कॉफ़ी शॉप में किसी दूर अजनबी जगह पर मिलेंगे, जहां हमको गुज़रे वक़्त का कुछ पता ना होगा और तब हम नए सिरे से, नए शब्दों से, नए तौर तरीकों से फिर से एक शुरुआत करेंगे।  

एक और फिल्म है, "Meet  Joe  Black" . इसमें भी एक दृश्य है कॉफ़ी शॉप का।  यह बेहद दिलचस्प तरीके से फिल्माया गया है, इसकी कलर स्कीम और  किरदारों का ड्रेस अप  बेहद न्यूट्रल रंगों से तैयार किया गया है  लेकिन सुबह की चमकती रौशनी में यह दृश्य बेहद प्रभावी दिखाई देता है।  आप इसे एक टिपिकल हॉलीवुड रोमांटिक स्टोरी वाली फिल्म का वही घिसा पिटा  सा नज़ारा कह सकते हैं लेकिन मुझे ये दृश्य काफी अच्छा लगा। Meet Joe Black Scene

 इसका हर फ्रेम, संवाद आपको एक परी कथा जैसे रोमांस की शुरुआत  का यकीन दिलाता है।  और फिर दुकान से बाहर निकल कर दोनों किरदारों का बार बार मुड़  कर देखना;  यह सब कई बार अनगिनत बार हम हिंदी और अंग्रेजी फिल्मों में देख चुके हैं लेकिन फिर भी इस नज़ारे को देखना  कभी भी पुराना या बोरिंग नहीं लगता।  इसलिए नहीं कि  यह कोई ओल्ड स्कूल किस्म की चीज़ है, बल्कि इसलिए कि  यह एक स्थापित आदर्श है, एक निश्चित उम्र का; उस उम्र का जिसमे "इमोशंस रन हाई" का नारा  दिया जाता है। यह एक दूर की कौड़ी है उस उम्र की जो ज़िम्मेदारियों और सामाजिकताओं के बंधन तले  दबी है।  यह एक ख्वाहिश है उस उम्र की जो राह तकती है किसी चमत्कार के घटित होने का।  जब कोई मुड़  कर देखे और आवाज़ दे, बुलाये। इसलिए ये दृश्य हमेशा उतना ही जीवंत और गर्माहट भरा रहेगा जितना हमारे दिलों में हिलोरें लेता प्यार।  

अभी  कुछ दिन पहले मैं हॉलीवुड स्टार जॉनी डेप और विनोना रैडर के बारे में पढ़ रही थी।  नब्बे के दशक में जब देश दुनिया रॉक एन  रोल , डिस्को, पॉप, रैप म्यूजिक, मेटालिक म्यूजिक जैसे कई  नई  लहरों से रूबरू हो रही थी, जब जिप्सी और बोहेमियन होना अब भी एक  फैशन था, उस वक़्त में एक 26 साल का  जॉनी था और एक 18 साल की विनोना थी।  और एक किताबों के पन्नों से बाहर निकल आया रोमांस था। जिसमे सब वैसा ही  था जैसा किसी रोमियो जूलियट की कहानी में होता है।   एक कोई सिंड्रेला थी या स्लीपिंग ब्यूटी थी जिसे किसी राजकुमार ने ढूंढ लिया था। एक जादू था जो किसी परियों की रानी के महल की  चमकीली धूल के मन्त्रों से उपजा था।  लेकिन फिर चार  साल बाद जादू आखिरकार टूट गया।  एक हॉलीवुड स्टार  होना भी उस जादू को, उस कहानी को बचा नहीं पाया। इस कहानी ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया और फिर मैंने इससे जुडी हर खबर ढूंढ कर पढ़ी। उन दोनों के ज़िंदगियों में बाद के दिनों  के उतार चढ़ाव, सब पढ़ डाला   और आखिर कार इतना ही समझ आया कि, कहानी मुकम्मल होने के लिए  रुतबा, पैसा, प्रसिद्धि, स्वच्छंदता कुछ भी ज़रूरी नहीं। ज़रूरी सिर्फ इतना है कि कहानी हो, कोई क्लेम हो !! एक उम्मीद हो किसी दूर अनजान स्टेशन के कॉफ़ी शॉप पर दोबारा मिलने का एक बहाना हो।  रास्ते हों, रास्ते दिखें और रास्ते पर चलते जाने को एक कारण ज़रूर हो।  
अब इस वक़्त यह सब लिखते हुए एक और ख्याल आया कि यह तो एक ब्लॉग है जो इतना  आसानी से इस मुद्दे पर लिख पा रही हूँ, यदि कहीं ऐसी दो  लाइन कहीं फेसबुक पर लिख डाली होती तो  लोग सवाल जवाब का पूरा  संसार ही रच डालते।  यह रचनात्मक स्वतंत्रता इंसान को कुछ कोना उपलब्ध करवा देती है अपनी बात  कहने का। यह सोशल मीडिया के ज़रिये पिछले दो तीन दशकों से इंसान को जितने ज्यादा प्लेटफार्म मिले खुद को अभिव्यक्त कर सकने के या अपनी बात को दूर तक पहुंचा सकने के, उतना ही ज्यादा सिमट गया कही गई बातों का अर्थ। जब आप कह कुछ रहे हैं, सोच कुछ रहे हैं और लोग उसके अनेक अर्थ अनर्थ  किये जाते हैं। इसलिए कभी भी इस मुद्दे पर लिखने के लिए विचारों का तारतम्य बैठ ही नहीं पाया।  लेकिन इस बार यह रेस्ट ऑफ़ अस एक अजब ही सवाल बन कर आ गया।  

 जब दुनिया की हर चीज़ टेम्पररी हो चली  है, वायरल सेंसेशन की तरह सिर्फ कुछ घंटे या दिन का मामला रहा तब भी इंसान तलाश कर रहा है कि व्हाट अबाउट रेस्ट ऑफ़ अस ??? जब कहीं कोई अतिमानव भी यही पूछ रहा है कि No Claim ?? इन अधूरी छूटती जा रही कहानियों को पूरा होना चाहिए या नहीं !!!  या कहानी जैसा कुछ वहम  पाल रखा है लोगों ने ? क्योंकि यह सारा दिन फिल्म, टीवी, अख़बार, मैगज़ीन कुछ बाजार में बिक सकने लायक एक प्रेम कथा  के फॉर्मूले को हमें दिन रात सुनाते बताते रहते हैं तो हम लोग यह गुमान पाल कर बैठ जाते हैं कि लो हमारी कहानी क्यों ना हुई ?? क्या कहानियां सबके लिए नहीं लिखी रची जातीं ?? यहां मिनट मिनट पर कोई कहानी बताई जा रही है, इंस्टाग्राम भरा पड़ा है, अनेकों ख़ास आम कहानियों से, जिनके पीछे गहने, कपडे, मेकअप, लोकेशन डेस्टिनेशंस, बढ़िया खाना  और जूते बैग तक बिकने की आस में कहानियों का हिस्सा बन रहे हैं।  तब  इंसान पूछता है कि  हमारी कहानी क्यों नहीं लिखी जा रही ? ? क्या यह बिकने लायक या कहीं फोटो कैप्शन होने लायक कहानी नहीं हो सकेगी ?? 

Claims are not necessary !!! Romance is  a short time flick !!! There is no Dream Fairy tale story !!! 

Image Courtesy : Google 

2 comments:

Onkar said...

सुन्दर प्रस्तुति

Jai Lalwani said...

Honesty to the core..