मेरा नाम भावना है. बहुत सीधा सादा सा नाम है, काफी पुराना और शायद आउट ऑफ़ फैशन किस्म का भी.
एक लम्बे अर्से तक मेरा यही ख्याल था कि मेरा नाम इस दुनिया का सबसे बोरिंग और शायद सबसे खराब नाम है. बचपन से ही मुझे मेरा नाम बेहद नापसंद था. मुझे अपने नाम के अलावा बाकी सब लोगों के नाम बहुत अच्छे लगते थे. मैं अक्सर मम्मी पापा से बहस करती थी कि मेरे लिए इतना dull और boring नाम क्यों चुना गया ?? मुझे उस पंडित पर भी बहुत गुस्सा आता था जिसने "भ" अक्षर पर नाम रखने की सलाह दी, वैसे ये उसकी गलती नहीं थी, ये तो उन नक्षत्रो और ग्रहों की गलती थी जिनमे मैं पैदा हुई थी. और अब उन्ही के हिसाब से मेरी राशि तय हुई "धनु" ; अंग्रेजी में sagittarius … और इस राशि के अनुसार मेरा नाम "भ" अक्षर से रखा जाना था.
कई तरह के नाम सोचे गए.
कई तरह के नाम सोचे गए.
पंडित जी ने सीधा सरल नाम बताया "भारती", पापा को पसंद आया "भुवनेश्वरी" क्योंकि उन्होंने अखबार में किसी रजवाड़े की राजकुमारी का यही नाम पढ़ा था (ज़ाहिर है मैं क्या किसी राजकुमारी से कम हूँ), पर ये नाम बोलने में ज़रा कठिन था, इसलिए कम स्वीकार्य था; कुछ रिश्तेदारों ने नाम सुझाया "भूमि या भूमिका". कुछ भले लोग और आगे गए और उन्होंने एकदम साहित्यिक नाम बताया "भंगिमा". ये सब नाम मेरी मम्मी को पसंद नहीं आये और उन्होंने इन्हे सिरे से ख़ारिज करके कूड़ा दान में डाल दिया।
नाम चुनने की बहस का अंत पार ना देख कर पंडित ने फिलहाल काम चलाने के लिए जन्म कुंडली में मेरा नाम भारती लिख दिया (और अगर ये नाम ही फाइनल हो जाता तो वो पंडित मेरे हाथ से नहीं बच सकता था, पक्का)!!!! लेकिन फिर आखिर पापा ने "भावना" नाम ढूंढ निकला और ये सोच कर कि भुवनेश्वरी जैसे भारी भरकम नाम को टक्कर दे सके जैसा यही एक नाम बचा है इस भ अक्षर पर और इसको फाइनल कर दिया ( पर कुंडली में भारती ही चलता रहा क्योंकि पंडित जी ने अमेंडमेंट करने से मना कर दिया)
नाम चुनने की बहस का अंत पार ना देख कर पंडित ने फिलहाल काम चलाने के लिए जन्म कुंडली में मेरा नाम भारती लिख दिया (और अगर ये नाम ही फाइनल हो जाता तो वो पंडित मेरे हाथ से नहीं बच सकता था, पक्का)!!!! लेकिन फिर आखिर पापा ने "भावना" नाम ढूंढ निकला और ये सोच कर कि भुवनेश्वरी जैसे भारी भरकम नाम को टक्कर दे सके जैसा यही एक नाम बचा है इस भ अक्षर पर और इसको फाइनल कर दिया ( पर कुंडली में भारती ही चलता रहा क्योंकि पंडित जी ने अमेंडमेंट करने से मना कर दिया)
खैर, तब से यही नाम हो गया मेरा, अब नाम तो जो है सो है. क्या करें ??? मेरा नाम boring है या अच्छा नहीं है ये चीज़ मुझे तब समझ आई जब मैं पहली या शायद दूसरी क्लास में पढ़ती थी, उन दिनों क्लास में एक लड़की तुतलाने के कारण या किसी और स्पीच डिसऑर्डर के कारण मुझे भावना के बजाय "भागना" कह कर बुलाती थी और तब बड़ा मज़ाक बनता था. उन दिनों बड़े अच्छे अच्छे नाम वाली सुन्दर लडकियां क्लास में थी, जैसे श्यामला (जो बहुत गोरी थी ), रश्मि (जो बिल्कुल परी लगती थी) वगैरह। ऐसे में मेरा नाम बिलकुल आउट ऑफ़ डेट किस्म का था. शुक्र सिर्फ इस बात का था कि मेरी सबसे अच्छी सहेली का नाम बीना था जो मेरी ही तरह एक boring नाम था. और लगभग तभी से मैंने अच्छे नाम की तलाश करनी शुरू की.
अच्छे नाम कहीं भी मिल सकते थे, टीवी पर, स्कूल की किताबों में, स्कूल में, आस पड़ोस या रिश्तेदारों में, कॉमिक्स में, अखबार में। …कहीं पर भी, कभी भी, बस दिमाग और कान खुले रखने की ज़रूरत थी. आये दिन मैं कुछ नए नाम ढूंढ कर लाती और मम्मी पापा को बताती कि इनमे से कोई भी एक नाम रखा जा सकता है, अब याद तो नहीं है कि कौन से नाम उन दिनों शॉर्ट लिस्टेड थे पर अक्सर मेरी कॉपी के आखिरी पन्ने पर अलग अलग नाम लिखे हुए मिल सकते थे. भारतीय नाम से लेकर वेस्टर्न नाम, सभी का स्वागत था. लेकिन खाली स्वागत से क्या होता है ??
मैंने हज़ार कोशिशें की, नए नए सुन्दर नाम सुझाये कि ये रख दिया जाए या वो नाम रख दो; पर ये हो ना सका। ये कसरत बहुत सालों तक चली, इन फैक्ट मुझे याद है कि हमारे पड़ोस में एक दीदी रहती थी जो लगभग हर रोज़ मुझे नए, अनोखे और फैशनेबुल नाम बताया करती थी और हम लोग इस बात पर लम्बी चर्चा भी करते थे कि कौनसा नाम ज्यादा अच्छा लगेगा या ज्यादा सोफिस्टिकेटेड लगेगा। दीदी को सचमुच मेरे लिए एक अच्छा नाम ढूंढने की फिकर थी इसलिए जब भी हम मिलते थे तो वो मुझसे हमेशा पूछती थी कि "कल जो नाम पसंद किये थे वो रख लिया ? मम्मी पापा ने भी पसंद किया?" लेकिन हर बार जवाब ना में होता था तो हम लोग फिर से नए नाम ढूंढने के महाभियान में जुट जाते थे ....
मैंने हज़ार कोशिशें की, नए नए सुन्दर नाम सुझाये कि ये रख दिया जाए या वो नाम रख दो; पर ये हो ना सका। ये कसरत बहुत सालों तक चली, इन फैक्ट मुझे याद है कि हमारे पड़ोस में एक दीदी रहती थी जो लगभग हर रोज़ मुझे नए, अनोखे और फैशनेबुल नाम बताया करती थी और हम लोग इस बात पर लम्बी चर्चा भी करते थे कि कौनसा नाम ज्यादा अच्छा लगेगा या ज्यादा सोफिस्टिकेटेड लगेगा। दीदी को सचमुच मेरे लिए एक अच्छा नाम ढूंढने की फिकर थी इसलिए जब भी हम मिलते थे तो वो मुझसे हमेशा पूछती थी कि "कल जो नाम पसंद किये थे वो रख लिया ? मम्मी पापा ने भी पसंद किया?" लेकिन हर बार जवाब ना में होता था तो हम लोग फिर से नए नाम ढूंढने के महाभियान में जुट जाते थे ....
कारण, मम्मी पापा ये बताते थे कि (या कि मुझे समझाया जाता था कि ) भावना एक बहुत अच्छा और सुन्दर सा नाम है और ये कि नाम केवल राशि के अनुसार ही रखा जा सकता है. . थक हार कर मैंने भ अक्षर वाले अच्छे नाम ढूंढें पर वो होते तो मिलते ना. अब ये ऐसा अक्षर है कि जिस पर कोई अच्छा ढंग का नाम हो ही नहीं सकता।
ऐसे ही रोते पीटते स्कूल पास हो गया, लेकिन इतना ज़रूर हुआ कि समय गुज़रने के साथ मुझे ये अहसास होने लगा कि मेरा नाम इतना या उतना भी बुरा तो नहीं है, ठीक ही है, काम तो चल ही सकता है। फिर हम पधारे कॉलेज में; अब यहाँ आकर ये नाम वाला किस्सा बिलकुल ही ख़त्म हो गया क्योंकि अब तक इतनी समझ आ गई थी कि दसवी के सर्टिफिकेट में जो नाम लिख दिया है वो बार बार change नहीं किया जा सकता और इसके दुष्परिणाम हो सकते हैं.
और लगभग उन्ही दिनों की ये बात है जब एक फैशन सा होता था कि अक्सर लोग एक दुसरे के नाम का अंग्रेजी अर्थ भी पूछ लेते थे (ये बीमारी अक्सर लड़कों में पाई जाती थी) मैंने भी दिमाग लगाया कि "भावना" को अंग्रेजी में क्या कहा जाए ??? feelings या emotions .... मुझे feelings ज्यादा ठीक लगा. और जब एक बार किसी ने ये कहा " भावना, इसका मतलब emotions?" तो मैंने तुरंत जवाब दिया " नहीं feelings" और उसकी बोलती बंद कर दी (थ्री चियर्स)
और फिर एक दिन बैठे बिठाये एक ख्याल दिमाग में आया; अपने नाम का मतलब समझ आया और इस से भी ज्यादा उसमे छुपा एक गहरा रहस्य समझ आया. इस से पहले कभी इस दिशा में नहीं सोचा था पर अब। ....
भावनाएं सदा के लिए होती हैं, वे अनंत है, सृष्टि के आरम्भ से लेकर उसके अंत तक या शायद जब "कुछ नहीं होगा" तब भी भावनाएं रहेंगी हमेशा … भावनाएं हमेशा सुरक्षित रहती हैं, बनी रहती हैं जब तक दिल धड़क रहा है, जब तक दिमाग सोच रहा है. भावना उस दिन से इंसान के साथ है जब से वो इस धरती पर आया है और जब तक साँसे हैं तब तक भावनाएं भी हैं. यही वो एक चीज़ है जो हमको एक दुसरे से जोड़ती है या अलग करती है, हमारे अंदर अलग अलग संवेदनाएं जगाती है, यही वो अहसास है जो कह कर नहीं बताया जा सकता और जो बोल कर भी अनकहा रह जाता है. भावना कभी भी पूरी तरह अभिव्यक्त नहीं हो पाती, यही तो शिकायत होती है एक दुसरे से कि हम भावनाओं को नहीं समझ पाते।
और सब कुछ ख़त्म हो सकता है, हमारे अंदर से भी और बाहरी दुनिया से भी, लेकिन भावनाएं कभी नहीं मिटेंगी। सब फैशनेबुल नाम समय के साथ गायब हो सकते हैं पर भावना बनी रहेगी।
और जब से अपने नाम का ये अर्थ मुझे समझ आया है तब से मुझे अपना नाम कुछ ज्यादा ही प्यारा और भरा पूरा लगने लगा है. लगता है मेरी हर कमी और कमज़ोरी का कुछ सम्बन्ध मेरे नाम से भी है. मेरे कई दोस्त कहते भी हैं कि जैसा तुम्हारा नाम है वैसी ही तुम हो, जल्दी भावनाओं में बह जाती हो, इन शॉर्ट impulsive हो.
और शायद हूँ भी, आखिर अपने नाम को सार्थक भी तो करना है ना …
5 comments:
bahut badhiya ...bahut sari shubhkaamnaye bhavna ji
shukriya Upasana ji ..achha lagaa jaan kar ki aapko ye essay pasand aaya.
अच्छा नाम कुछ वर्षों तक कचोटता रहा, गलत है। काश पहले ही आप अपने नाम की सार्थकता पहचान लेते।
shukriya Vikesh ji .. wo kahaavat hai naa jab Jaago Tabhi Savera :) :)
अच्छा लगा आपके नाम के बारे में जानना.
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