साल का सबसे बड़ा त्यौहार दीवाली, पूरे पांच दिन का त्यौहार, धनतेरस से लेकर भाई दूज तक चलने वाला "The Great Indian Festival that can beat A Circus Show as well." अब आप पूछिए कि इसमें सर्कस बीच में कैसे आ गया और मेरी इतनी मजाल कि मैं दीवाली जैसे महत्वपूर्ण त्यौहार को सर्कस कह रही हूँ। हद ही है, घोर नास्तिक लोग हैं भाई. खैर, ये ख्याल यूँही अचानक बैठे बिठाये नहीं आया, कोई रूहानी इल्हाम नहीं हुआ और ना कोई दार्शनिकता से भरी थ्योरी दिमाग में उभरी है. दरअसल, ये ख्याल उस समय दिमाग में आया जब मेरे घर में भी हाँ-ना करते आखिर दीवाली का सफाई अभियान शुरू हो ही गया और फिर उस साफ़ सफाई के महाभियान ने इतना थका दिया कि एक के बाद एक घर में सबको बुखार हो गया. और तब ये महा मौलिक विचार मेरे दिमाग की उपजाऊ ज़मीन में उगा.
ख्याल ये है कि दीवाली से पहले भारतवर्ष का हर घर, गृहिणी, गृहस्वामी, बच्चे और अन्य सभी सदस्य घर के कोने कोने को झाड़ पोंछ, धो धा के चमकाने में जुट जाते हैं. रसोई के बर्तन, डिब्बे, शो केस में सजी क्राकरी और घर की हर चीज़ को घिस मांज के चमका दिया जाता है, कहीं पेंट हो रहा है, कहीं घर का रेंनोवशन तो कहीं नया फर्नीचर और दूसरी चीज़ें लाइ जा रही हैं. इन शॉर्ट, इस पूरे हंगामे और फाँ फूं को देख कर ऐसा लगता है कि ये एक राष्ट्रीय सफाई अभियान है. देवी लक्ष्मी और उनके सम्मानीय वाहन महाशय इस धरती पर हमारे घरों के इंस्पेक्शन, मुआइने के लिए आ रहे हैं. यानि वे लोग निश्चित रूप से "निर्मल एवं स्वच्छ भारत ( चमकता- दमकता, well decorated, glowing, sparkling) अभियान के प्रमुख हैं और उनका काम ये देखना है कि लोग अपने घर, दुकान और दूसरी इमारतों की देखभाल ठीक से कर रहे हैं या नहीं।
मुझे लगता है लक्ष्मी जी और उनके वाहन जी (माफ़ कीजिये, वाहन जी को उनके नाम से बुलाने का अपराध मैं नहीं कर सकती), "राष्ट्रीय कबाड़/अटाला हटाओ परियोजना" के भी निदेशक हैं. क्योंकि आमतौर पर दीवाली के मौके पर ही लोगों को अपने घर से पुराना कबाड़ और रद्दी निकालने की याद आती है. गलियों में कबाड़ी वाले दिन में दस बार आवाज़ लगाते हैं और कबाड़ी की दुकान पर रद्दी सामान की प्रदर्शनी लग जाती है.
और इसी बात पे मेरे मंदबुद्धि दिमाग में ये सवाल भी आ गया कि भगवन श्रीराम के अयोध्या आने और घरों की युद्ध स्तर पर साफ़ सफाई का आपस में क्या सम्बन्ध है ? अब ये तो समझ आया कि राजा साहब पूरे चौदह साल का वनवास काट कर राजधानी वापिस पधार रहे हैं, इस ख़ुशी में शहर को चाँदनी सा चमका दिया गया. लेकिन इसका एक अर्थ ये भी बनता है कि श्रीमान sabstitute राजा भरत ने चौदह साल तक शहर के हाल चाल सुधारने पर कोई ध्यान नहीं दिया और यथा राजा तथा प्रजा की कहावत को चरितार्थ करते हुए जनता ने भी चौदह साल तक अपने घरों और बाज़ारों की साफ़ सफाई नहीं की. इसलिए जैसे ही राम जी के आने का टाइम हुआ तो अचानक आनन् फानन में ओफिसिअल आर्डर ज़ारी किये गए कि भाई, जागो और अपने शहर का नाक नक्शा, हुलिया ख़ास तौर पर अपने घरों का, सब ठीक कर लो. क्योंकि शहर का नक्शा तो चौदह साल से बिगड़ा पड़ा था तो इतनी जल्दी उसके सुधरने की गुंजाइश नहीं हो सकती थी.
ख्याल ये है कि दीवाली से पहले भारतवर्ष का हर घर, गृहिणी, गृहस्वामी, बच्चे और अन्य सभी सदस्य घर के कोने कोने को झाड़ पोंछ, धो धा के चमकाने में जुट जाते हैं. रसोई के बर्तन, डिब्बे, शो केस में सजी क्राकरी और घर की हर चीज़ को घिस मांज के चमका दिया जाता है, कहीं पेंट हो रहा है, कहीं घर का रेंनोवशन तो कहीं नया फर्नीचर और दूसरी चीज़ें लाइ जा रही हैं. इन शॉर्ट, इस पूरे हंगामे और फाँ फूं को देख कर ऐसा लगता है कि ये एक राष्ट्रीय सफाई अभियान है. देवी लक्ष्मी और उनके सम्मानीय वाहन महाशय इस धरती पर हमारे घरों के इंस्पेक्शन, मुआइने के लिए आ रहे हैं. यानि वे लोग निश्चित रूप से "निर्मल एवं स्वच्छ भारत ( चमकता- दमकता, well decorated, glowing, sparkling) अभियान के प्रमुख हैं और उनका काम ये देखना है कि लोग अपने घर, दुकान और दूसरी इमारतों की देखभाल ठीक से कर रहे हैं या नहीं।
मुझे लगता है लक्ष्मी जी और उनके वाहन जी (माफ़ कीजिये, वाहन जी को उनके नाम से बुलाने का अपराध मैं नहीं कर सकती), "राष्ट्रीय कबाड़/अटाला हटाओ परियोजना" के भी निदेशक हैं. क्योंकि आमतौर पर दीवाली के मौके पर ही लोगों को अपने घर से पुराना कबाड़ और रद्दी निकालने की याद आती है. गलियों में कबाड़ी वाले दिन में दस बार आवाज़ लगाते हैं और कबाड़ी की दुकान पर रद्दी सामान की प्रदर्शनी लग जाती है.
और इसी बात पे मेरे मंदबुद्धि दिमाग में ये सवाल भी आ गया कि भगवन श्रीराम के अयोध्या आने और घरों की युद्ध स्तर पर साफ़ सफाई का आपस में क्या सम्बन्ध है ? अब ये तो समझ आया कि राजा साहब पूरे चौदह साल का वनवास काट कर राजधानी वापिस पधार रहे हैं, इस ख़ुशी में शहर को चाँदनी सा चमका दिया गया. लेकिन इसका एक अर्थ ये भी बनता है कि श्रीमान sabstitute राजा भरत ने चौदह साल तक शहर के हाल चाल सुधारने पर कोई ध्यान नहीं दिया और यथा राजा तथा प्रजा की कहावत को चरितार्थ करते हुए जनता ने भी चौदह साल तक अपने घरों और बाज़ारों की साफ़ सफाई नहीं की. इसलिए जैसे ही राम जी के आने का टाइम हुआ तो अचानक आनन् फानन में ओफिसिअल आर्डर ज़ारी किये गए कि भाई, जागो और अपने शहर का नाक नक्शा, हुलिया ख़ास तौर पर अपने घरों का, सब ठीक कर लो. क्योंकि शहर का नक्शा तो चौदह साल से बिगड़ा पड़ा था तो इतनी जल्दी उसके सुधरने की गुंजाइश नहीं हो सकती थी.
पर फिर मैंने सोचा कि ये भी तो हो सकता है कि इस सफाई अभियान वाली बात को बाद के समय में दीवाली और भगवान् राम के अयोध्या आगमन से जोड़ दिया गया हो. क्योंकि इसी बहाने साल में एक बार ही सही लोगों को ( भदेस हिन्दुस्तानियों को ) साफ़ सफाई और cleanliness के लिए प्रेरित किया जा सकता था. ये भी सम्भव है कि बाकायदा मंदिर मठ के महंतों ने इसके लिए आर्डर, आज्ञा वगेरह भी ज़ारी किये हो; और फिर इस तरह ये सिलसिला चल निकला हो.
अब ये सवाल सुलझाने के बाद दूसरा सवाल दिमाग में आ गया. सवाल ये कि दीवाली धनतेरस पर खरीददारी का सिस्टम कैसे बन गया, इसको शगुन कैसे और क्यों मान लिया गया? भारी भरकम प्रश्न था, विशेष रूप से आर्थिक मंदी, economic slowdown, recession वगैरह के ज़माने में इस सवाल कि प्रासंगिकता भी बढ़ गई. आफ्टर आल, हर बार महंगाई और बाज़ार सुस्त है का रोना रोते हुए भी सैकड़ों करोडो रुपये का कारोबार दीवाली पर हर साल हो ही जाता है. सोना चांदी कितने भी महंगे हो फिर भी दीवाली पे खूब बिक जाते हैं. तो, आखिर इसका भी जवाब मिल गया.
मेरा विचार है कि देवी लक्ष्मी और भगवान् गणेश, दोनों संयुक्त रूप से "राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था सार सम्भाल परियोजना" के प्रमुख हैं. और उन्होंने अर्थव्यवस्था की सेहत और व्यापारियों के नफे नुक्सान, लोगों की बचत को खर्च में बदलने जैसे विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखकर खरीददारी के शगुन का आईडिया व्यापारियों को दिया हो. और फिर उस ज़माने (पुराने ज़माने), वैसे पता नहीं कितना पुराना, के व्यापारिक संगठनों ने मंदिरों से सलाह मशवरा करके, उनकी सहमति और आशीर्वाद से इस रिवाज को शुरू करवाया हो. और इस तरह देवी लक्ष्मी और गणेश जी ने साल का सबसे बड़ा त्यौहार अपने लिए सिक्योर कर लिया हो.
और अंत में मेरे उलझे दिमाग में ये विचार आया कि साफ़ सफाई से लेकर खरीददारी, मिठाइयां, पटाखे इन सबका एक बड़ा और सर्वप्रमुख उद्देश्य "राष्ट्रीय उत्साह जगाओ, उत्सव मनाओ परियोजना" से जुड़ा है, जिसके प्रमुख है भगवान् विष्णु, जिन्होंने अपने समस्त परिवार और एक अवतार चरित्र को अपनी इस ड्रीम प्रोजेक्ट की सौ फीसद सफलता और टारगेट पूरे करने के काम पर बखूबी लगा दिया और किसी को ये अंदर की बात पता भी नहीं चली.
सचमुच हम भारतीय हर तरह के मैनेजमेंट (बिज़नेस , फाइनेंसियल, मार्केटिंग, कस्टमर केयर, अलाना फलां ) सब के एक्सपर्ट हैं और दीवाली का त्यौहार इसका सबसे जीवंत उदाहरण है.
P. S . कृपया मेरी इन बातों को गम्भीरता से ना लें, ये तो एक थके हुए दिमाग की काल्पनिक उड़ान का नतीजा हैं.
16 comments:
वाह वाह ज़बरदस्त और मज़ेदार व्यंग्य !
सादर
थके हुए दिमाग की यह काल्पनिक उड़ान अत्यन्त गोपनीय बातों को उघाड़ कर सामने ले आई है जी। आपने दीवाली मनाने के एकदम एक नए आधार को परोस दिया है। बहुत ही अलग बात कह दी आपने। क्या आपको दीपावली की शुभकामनाएं दे सकता हूँ मैं?
dhanywaad yashwant ji ..
dhanywaad vikesh ji .. aapko bhi diwali ki bahut bahut shubhkaamnaayein ..
Nice one Bhawana ji... Aapki bhavana sachmein adhbhuth hain..
सुन्दर व्यंग्य
hahahahha... dhanywaad ji :) :)
dhanywaad Onkar ji ..
बहुत सुन्दर. व्यंग्य के बहाने ही सही ,आपने बहुत कुछ कह दिया .
दीपोत्सव की मंगलकामनाएँ !!
नई पोस्ट : कुछ भी पास नहीं है
नई पोस्ट : दीप एक : रंग अनेक
thank u Rajiv ji ..
वाह!!! बहुत सुंदर !!!!!
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई--
उजाले पर्व की उजली शुभकामनाएं-----
आंगन में सुखों के अनन्त दीपक जगमगाते रहें------
dhanywaad .. aapko bhi diwali ki bahut saari shubhkaamnaayein :) :)
Beautifully scribbled the festivities on paper once again... it takes the reader to the festival itself...Thank You
Thanks for appreciation :)
U r welcum Bhavana..
u r welcum Bhavana...
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