Saturday, 22 June 2013

बर्फ

अपने 15वीं  मंजिल के फ्लैट की खिड़की से बाहर सड़क और उस से लगी हुई इमारतों का नज़ारा देखते हुए उसका मन और मस्तिष्क जाने कहाँ उड़ता फिर रहा था .. कौन पहाड़ों, नदियों और सागरों के पार भागता फिर रहा था इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल था।

 पिछले तीन दिन से लगातार बर्फ पड़  रही थी, टोरंटो का मौसम बेहद ठंडा हो गया था .. वो अंग्रेजी में कहते हैं ना स्पाइन चिल्लिंग कोल्ड .. वैसा ही। चारों तरफ जहां तक नज़र जाती थी, "सब कुछ" बर्फ से ढका  था, बिल्डिंग्स, सडकें यहाँ तक कि सड़क किनारे के पेड़ और झाड़ियाँ भी। सारी  दुनिया   सफ़ेद रंग में रंग गई थी .. ऋचा को लगा जैसे एक सफ़ेद चादर, बर्फ की सफ़ेद चादर उसे भी ढके हुए हैं .. अन्दर से  लेकर बाहर तक , सर से पैर तक बर्फ की ठंडी चादर उसे समेटे हैं।  अभी और कुछ आगे सोचती या मन किसी और सागर या पहाड़ के किनारे को पार करता इसके पहले एक आवाज़ ने उसका ध्यान तोडा।

"ऋचा .. कहाँ हो ". मानिक घर आ चुका  हैं। ऋचा ने उसे  किचन की तरफ जाते देखा .. कुछ समझ ना आया .. कुछ खाना या पीना है तो मुझसे ही कह देता।  
लेकिन मानिक शायद कुछ और ही सोच रहा होगा क्योंकि अब तक कॉफ़ी मेकर मानिक के लिए कॉफ़ी  बना चुका  था। मानिक ने ड्रिंकिंग चॉकलेट का कैन खोल एक बड़ा स्पून अपनी कॉफ़ी में मिलाया ... ऋचा ध्यान से देख रही थी .. आजतक कभी उसने नोटिस नहीं किया था कि  मानिक को कैसी कॉफ़ी पसंद है ..

"तुमको चोको कॉफ़ी पसंद है?"

अब था तो ये एक सवाल लेकिन ऋचा ने इसे सवाल की तरह नहीं कहा। मानिक ने इस अंतर को पकड़ लिया था  इसलिए उसने    एक लापरवाह नज़र ऋचा पर डालते हुए जवाब दिया ..

"हाँ, जब थक जाता हूँ तब हॉट चोको कॉफ़ी बॉडी और ब्रेन दोनों को रिलैक्स कर देती है" और उस वक़्त बात वहीँ पर आकर रुक गई आगे बढाने का कोई सूत्र नहीं था,  होता तो भी व्यर्थ का औपचारिक वार्तालाप कब तक खींचा जा सकता है। 

दो साल हो गए हैं यहाँ आये और सेटल हुए .. ऋचा एक फर्म में लीगल असिस्टेंट बन गई और मानिक तो खैर पहले ही एक लीडिंग फाइनेंसियल और बैंकिंग फर्म का सीनियर फाइनेंसियल एनालिस्ट है और इस खूबसूरत अपार्टमेंट को, जिसमे ये दोनों रहते हैं इसे मेन्टेन रखने में मानिक की सैलरी का ही बड़ा योगदान है। 

"मैं ज़रा बाहर घूम कर आती हूँ" .. मानिक ने दरवाजे पर खड़ी  ऋचा को देखा और फिर उसे जाते हुए, घर से बाहर निकलते हुए और दरवाजा बंद करते हुए सुना। 

ऋचा के पैर  निरूद्देश्य रास्ता बना रहे थे और आँखें बर्फ की चादर  के आगे कुछ देखने की कोशिश कर रही थी .. कि  एक आवाज़ सुनाई दी .. " कौसानी  कितना खूबसूरत है ना, लगता है कि  हिमालय के शिखरों की शाश्वत  बर्फ यहाँ ज़मीन पर ही उतर आई है". 

ऋचा चौंक गई, ये आवाज़ यहाँ कैसे ??? फिर से सुनाई दिया .. "कौसानी !!!!"  पैर रुक गए, शून्य को निहारती आँखें .. वो चर्च की तरफ मुड गई।  

थोड़ी देर बाद चर्च में बेंच पर बैठी ऋचा दीवारों और छत की चित्रकारी को देखने लगी है, उनके रंग ... "शान्तिनिकेतन की होली याद है तुम्हे?"  फिर से कोई   बोला और ऋचा को सुनाई देने लगा .. " रांगा  नेशा  मेघे मेशा प्रभात आकाशे ... नवीन पाताय  लागे रांगा हिल्लोल .. खोल द्वार खोल" 

इन्ही आवाज़ों  के बीच कुछ और परिचित आवाजें उभरने लगी ... " तुझसे छह साल बड़ा है, शक्ल सूरत तो खैर अब क्या कहें तू खुद भी तो एक बार मिल ही चुकी है .. हाँ well settled तो है  .. पर फिर  एक बार सोच ले .. कहीं बाद में कोई पछतावा ना हो .. उस परदेस में कोई नहीं होगा तेरी बात सुनने वाला .."  ऋचा ने  आवाजों को परे धकेल कर  क्रॉस पर टंगे ईसा पर अपनी नज़रें केन्द्रित करने की कोशिश की 

पर फिर वहाँ नहीं बैठा गया ऋचा से .. लौट आई .. घर .. 

"आज खाना क्या बनाऊं ?" 

"पिज़्ज़ा आर्डर कर दो ". 

खिड़की के बाहर बर्फ की सफेदी अब धूसर मटमैली और स्याह चादर ओढ़े सो गई है लेकिन टोरंटो अभी भी जाग रहा है .. घरों से झांकती रोशनियाँ, सड़कों पर जवान होती "नाईट लाइफ"  और  आवाजें ... हर तरफ से, हर तरह की ..



ऋचा ने अगले दिन के किसी केस की हियरिंग के लिए  क़ानून  के जंगल को खंगालना शुरू  कर दिया है .. पर अब कौसानी की आवाजें , विश्वभारती के रंग और  बहुत सी आवाजें उसके दिमाग में घूमने और शोर मचाने लगे हैं। लिविंग रूम में आई और सब कुछ को देखने लगी  और फिर  अगले कुछ सेकण्ड्स के बाद वो मानिक के कमरे में हैं .. मानिक भी अब स्टॉक मार्किट के आंकड़ों और अर्थव्यवस्था की उठापटक के बीच मुनाफे के रास्ते खोज रहा है. 

"कुछ काम है ?" 

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"कुछ चाहिए .. क्रेडिट कार्ड प्रॉब्लम ?" 

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"क्या फर्क है मुझमें और घर के बाकी सामान में और क्या फर्क है तुम में और घर की दीवारों और  छत में  ?" 

"कुछ भी नहीं .. इन सब को और तुम्हे भी ... मैंने  पैसों से ही खरीदा है लेकिन तुम्हे ना इस घर के लिए कोई EMI देनी पड़ती है और ना ..  ."  लेकिन कहते कहते मानिक समझ ही गया कि  जितना  सवाल बेतुका था उतना ही या उस से भी  ज्यादा बेहूदा उसका जवाब था क्योंकि सवाल करने वाली अब  कमरे से बाहर जा चुकी थी। 

टोरंटो जाग रहा था और बर्फ  गहरी नींद सो रही थी, 

"सब कुछ" घर के अन्दर और खिड़की से बाहर अपनी जगह पर था .. कुछ नहीं बदला था  लेकिन ऋचा के अन्दर कौसानी, विश्वभारती और   छूट गए समय के रंग और आवाजें सब मिलकर एक ऐसा  साइक्लोन पैदा कर रहे थे जो "सबकुछ " को तोड़ फोड़ रहा था। और अब  मानिक  भी उस सबकुछ के बीच आकर खड़ा हो गया .. 

"जाओ, जाकर सो जाओ।" 

" मुझे अब नींद नहीं आती ..." 


पर ये जवाब सुनने के लिए मानिक रुका नहीं था .. कमरे में लौट गया ..


बर्फ अब पिघलने लगी है .. बहने लगी है, रंग भी मिटने लगे हैं .. मानिक उलटे पैरों वापिस आया .. ऋचा अब भी साइक्लोन  के बीच खड़ी है ... नींद को तलाश रही है। 

" क्या तुम्हे मेरी ज़रूरत महसूस नहीं होती ?" 

" ज़रूरत ...!!!!!!" आँखें गुस्से और हैरानी  से फ़ैल गई मानिक की।

"क्या तुम मुझसे प्यार करती हो ... बोलो ..मेरी तरफ देखो और बताओ !!!!!"  मानिक उस साइक्लोन  को बांह पकड़ कर  झिंझोड़ रहा था .. चीख कर पूछा  था लेकिन फिर भी ऋचा को आवाज़ बहुत दूर से आती हुई  महसूस हुई ...




मानिक अब वहाँ नहीं है, ऋचा भी अब अपने कमरे में सो रही है।

टोरंटो सो गया है .. बर्फ जाग गई है ..  उसकी  स्याह चादर अब  और गहरी हो गई है क्योंकि शहर की बत्तियां अब बुझने लगी है। 



बंगला गीत शिवानी गौरा पन्त की किताब "आमादेर शान्तिनिकेतन" से  लिया गया है 

8 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

आपने लिखा....हमने पढ़ा
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 24/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!

Unknown said...

liked it....

Madan Mohan Saxena said...

बहुत सुन्दर.सच कहा

कविता रावत said...

बढ़िया प्रस्तुति ....

Bhavana Lalwani said...

@all above .. bahut bahut dhanywaad aap sabhi ka :) :) :)

Saru Singhal said...

Enjoyed reading a hindi story after a long time.

Bhavana Lalwani said...

Thanks a lot :) :)

Unknown said...

बेह्तरीन अभिव्यक्ति …!!शुभकामनायें.
आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/