Monday 18 July 2011

Still Life

खुशफहमियों और गलतफहमियों के परदे जब तक नज़रों के सामने बने रहे, तब तक अच्छा है क्योंकि उनके  होने से दुनिया एक ख़ास रंग और रूप में नज़र आती है... दुनिया बेहद खुशनुमा और ज़िन्दगी से भरपूर दिखती है..ये सोचते हुए कि हमारे आस पास जो नज़ारा है वो पूरी तरह सच है..आँखों  का भ्रम नहीं.. वो सचमुच अस्तित्व रखता है..
...जिस लम्हा ये परदे, ये बेहद झीने और नाज़ुक परदे उठ जाते हैं, उस लम्हे ये दुनिया बहुत बदसूरत और  सारी कायनात नाकाबिले बर्दाश्त लगने लगती  है.... हर बात, हर शै, हर मंज़र  बेवजह और बेमजा लगने लगता  है. .दुनिया की हर बुराई , हर छल,  बिलकुल बेदाग़, कांच की तरह हमारी आँखों में चमकने लगता है तब समझ आता है कि  आज तक जिन अहसासों को हम सीने से ये सोच  के लगाए बैठे थे कि वही ज़िन्दगी का सच है, सुकून है और वही इसका अर्थ भी है ..वो सब एकदम से छिटक कर कहीं दूर जा गिरते हैं और तब समझ आता है कि हम जिन ख्यालों में  अब तक मदहोश, दुनिया से बेपरवाह डूबे थे , वो तो असल में कभी थे ही नहीं. बस उनके होने का एक सलोना सा भ्रम था , जो परदे उठते ही एक झटके से ख़त्म हो गया..


...और इसलिए  खुशफहमियां और गलतफहमियां जब तक बनी रहे तब तक अच्छा है, क्योंकि  उनके होने से ज़िन्दगी और उसकी सच्चाइयां उतनी कडवी नहीं लगतीं जितनी कि असल में वो हैं...  .फिर भी हम हर रोज़ एक नयी गलतफहमी को दिल में लिए उस पुरानी गलतफहमी को फिर से पा लेने के लिए चलते जाते हैं ..

6 comments:

RAJANIKANT MISHRA said...

maya hai... maya hai jo jine ka bharam banaye rakhti hai..... kabhi to zindagi hame apni chal se haankti hai.... kabhi ham chalte jaane ka bharam banaye rakhte hain.......

true that

खुशफहमियों और गलतफहमियों के परदे जब तक नज़रों के सामने बने रहते हैं तब तक दुनिया बेहद खुशनुमा और ज़िन्दगी से भरपूर दिखती है ..जिस लम्हा ये परदे उठ जाते हैं..सारी कायनात बदसूरत और नाकाबिले बर्दाश्त लगने लगती है.... हर बात हर शै बेवजह और बेमजा लगने लगती है. ..फिर भी हम हर रोज़ एक नयी गलतफहमी को दिल में लिए उस पुरानी गलतफहमी को फिर से पा लेने के लिए चलते जाते हैं ..

Namisha Sharma said...

फिर भी हम हर रोज़ एक नयी गलतफहमी को दिल में लिए उस पुरानी गलतफहमी को फिर से पा लेने के लिए चलते जाते हैं ..
so true..good 1 Bhavana

Rishu.. said...

So nice.. but jub tak Zindagi ke sath chalte he tab tak wo hume apne rang dikhlati he n jub hum "khud ke" sath( aatmsaat hokar) chalte he to zidagi bahut hi saral(easy) ho jati he.. bahut hi meethi si..
Rishu..

Bhavana Lalwani said...

Thnks Rishi..bahut achha likha hai aapne...

मनीष said...

bahut khubsurat pantiyan hai

dar-asal hum nirdharit nahi kr pate ki hum gatat-fahami me ji rhe hai ya yahi vastavikata hai; aur jab hakikat samajh me aati hai to bahut der ho chuki hati hai, shayad... yahi zindagi hai.

Bhavana Lalwani said...

yes Manish you are absolutely right...agar yahi samjh aa jaaye ki vastvikta kya hai aur galatfahmi kya toh jeevan ki bahut saari samsyaayein apne aap hi suljh jaayein.