नरम हरी घास पर रखा हुआ हर कदम, एक ठंडी लहर उसके शरीर के अंदर भेज रहा था. ऐसा लगता था कि ओस की नमी उसके पैरों से होते हुए थके हुए शरीर के हर हिस्से तक पहुँच रही थी, तेज़ धूप से जले हुए मन प्राण को फिर से ऊर्जा मिल रही थी.
"ये सुबह को हरी घास पर घूमने वाला आईडिया शायद सही है." उसने सोचा और फिर उसकी नज़र सामने लटकी घडी पर गई, सुबह के नौ बज कर पांच मिनट हुए थे. उसे फिर से नींद आने लगी और तभी उसे महसूस हुआ कि वो चल नहीं रही, घास पर लेटी हुई है. उसने वापिस आँखें बंद कर ली. आँखों पर नींद का बोझ अभी बाकी था और सुबह की ताज़ी हवा इस बोझ को नशे में बदल रही थी. अगले कितने मिनट नींद रही या नींद का नशा, इसका पता नहीं चल पाया।
आखिर आँखें खुलीं, और फिर से सीधे नज़र सामने घड़ी की तरफ गई, वहाँ अभी भी सुबह के नौ बज कर पांच मिनट हुए थे. उसने करवट बदली और देखा … एक आदमी जिसके लम्बे बाल उसके कन्धों तक बिखरे थे, वही पास में लेटा उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा रहा है. वो उठी; असहजता, अचरज, असुरक्षा, बहुत सारे ख्याल एकसाथ आये और लौट गए.
"कौन हो तुम ?"
"मैं तो हमेशा तुम्हारे साथ, अंग संग चलता हूँ. तुम्हारी कलाई पर बंधा, दीवार पर लटका हुआ … मैं वही वक़्त हूँ जिसे देख कर, जिसका हिसाब लगा कर तुम रोज़ का शेड्यूल तय करती हो. भागती हो घड़ी के कांटो के हिसाब से और रूकती हो मिनटों के हिसाब से."
"ये मेरी जगह है. मैं यहां रहता हूँ. इसे मेरा घर समझ लो." वो बोलता गया.
विश्वास कर सकने जैसी बात ये थी नहीं और विरोध करने के लिए तर्क उसे सूझ नहीं पाया और इसलिए उसने तेज़ कदमो से चलना शुरू कर दिया। जहां तक नज़र जाती थी बस हरी घास का मैदान दिखाई देता था. एक ख्याल और मन में आया, अगर ये एक मैदान है तो घडी किस दीवार पर लटकी है ?? उसने दुबारा मुड़ कर घड़ी को देखा और इस बार गौर से देखा, नौ बज कर पांच मिनट। घड़ी की सुइयां थमी हुई थी.
" क्या मैं सपना देख रही हूँ ?? शायद हाँ …"
घास के उस अनंत तक फैले मैदान पर चलते चलते उसने एक मेज़ के चारो ओर कुछ लोगों को बैठे देखा। पास गई, और मुंह से चीख निकलते रह गई, वहाँ ऐलिस चाय की टेबल पर हैटर के साथ बैठी थी और उनका साथ देने लिए cheshire cat भी थी. उसने विस्फारित आँखों से वक़्त नाम के उस आदमी को देखा, वक़्त ने उसे चुप रहने का इशारा किया और आगे चलता गया.
फिर कहीं नज़र पड़ी ; वहाँ असलान और लूसी, प्रिंस कास्पियन के साथ घूम रहे थे. उनको ये चीखना पसंद आया या नहीं ये मालूम नहीं चल सका क्योंकि उन्होंने पलट कर उसकी तरफ देखा नहीं।
" ये सब यहां कैसे आये, कौनसी जगह है ये ?? और मैं यहां कैसे आई ??"
" इन सबको तुम अपने साथ ही लाइ हो, ये सब, एलिस और उसका वंडरलैंड, नार्निया के राजा और रानी, तुम्हारी फंतासी का, तुम्हारे कल्पनालोक का हिस्सा हैं, तुम्हारी पसंद हैं और शायद किसी दिन तुम नार्निया जाना भी चाहती हो. तुम यहां इसलिए हो क्योंकि तुम आना चाहती थी यहां। देखना चाहती थी वो जगह जहां वक़्त रुक जाता है." वक़्त ने एक सांस में जवाब दिया।
" ये सपना नहीं है गुड़िया, उस नीली डायरी में तुम्ही ने लिखा था ना कि भगवान की बनाई हुई इतनी बड़ी दुनिया में वक़्त को ठहरने, रुकने और सुस्ताने को कोई जगह नहीं है क्या ?? तो लो, तुम आ गई यहां, जहां वक़्त भी ठहर जाता है, दो घड़ी आराम करने के लिए."
"तुम नीली डायरी के बारे में क्या जानते हो ?"
" तुम भूल रही हो, कि मैं इस ब्रह्माण्ड के हर कोने में, हर पल मौजूद हूँ तो फिर तुम्हारी डायरी क्या मेरी नज़रों से छुपी रह सकती है? चलो आओ, तुम्हे कुछ दिखाऊं … "
वो उसके पीछे चलने लगी, हरी घास के अंतहीन कालीन के एक हिस्से में कागज़ बिछे हुए नज़र आये, पास गए तो समझ आया कि असल में ये किताबें है जिनके पन्ने हवा में फड़फड़ा रहे हैं. थोड़ा और गौर से देखा, किताबें हर कहीं, ज़मीन पर हवा में तैरती हुई, पन्ने बोलते हुए, अपनी कहानी सुनाते ....किताबों के अंदर की तसवीरें पन्नों से बाहर झांकती हुई .... कहीं एक पर्दा सा या दीवार सी खड़ी नज़र आई जिस पर तसवीरें और दृश्य चलते दिखे …
"Ink-heart, Silver-tongue " लड़की बुदबुदाई।
"एक और फैंटेसी, तुम फिल्में बहुत देखती हो ?" … वक़्त हंसा। एक नीली किताब हवा में तैरती हुई उन दोनों की तरफ आई. ये किताब वही नीली डायरी है.
"ये सब किताबें और उनके पन्ने ऐसे बिखरे हुए क्यों है ?"
"ये सब किताबें दुनिया के हर कोने से यहां आई है, मेरा मतलब ब्रह्माण्ड के हर कोने से. सभ्यताओं और बियाबानो का इतिहास बताती हैं, मेरे आज की तस्वीर और मेरे आने वाले कदमों के संकेत मुझे बताती रहती हैं. इन्ही के ज़रिये मैं हर जगह हूँ और सब कुछ देखता सुनता हूँ. "
" तो फिर तुम आराम कब करते हो ? मैंने तो डायरी में ऐसी जगह के बारे में लिखा था जहां वक़्त भी आराम करता है, तुम तो लगता है कि कभी सोते ही नहीं। यहां बैठे किताबें देखते या सुनते रहते हो …"
" लगता है तुम्हारी मोटी बुद्धि है. क्या इतना भी नहीं जानती कि फैंटेसी की दुनिया में तुम्हारे संसार की घड़ियों के नियम नहीं चलते। इसलिए तो इतनी देर से वो घड़ी एक ही वक़्त दिखा रही है … नौ बज कर पांच मिनट।"
" दिन और रात, शाम और दोपहर वाले हिसाब यहां नहीं है."
" अगर दिन रात का हिसाब नहीं है तो फिर वो घड़ी ये नौ बज कर …" बात अधूरी ही रह गई.
"ये वक़्त, ये exact वक़्त तुमने उस नीली डायरी में लिखा था, ठीक इसी वक़्त पर तुमने सोचा था कि घड़ी के कांटे थम क्यों नहीं जाते।" वक़्त ने एक रहस्य्मयी मुस्कान के साथ जवाब दिया।
"अगर ये वक़्त, ये ऐलिस और असलान और ये जगह … सिर्फ मेरी ही कल्पना होने के कारण यहां हैं तो फिर मेरी जगह अगर कोई और होता तो उसकी कल्पनायें ...." अबकी बार जान बूझ कर बात अधूरी छोड़ दी.
हरी घास के मैदान का ओर छोर नहीं था और चलने से वे दोनों थकते नहीं थे. वक़्त की इस दुनिया के चमत्कार अभी बाकी थे.
"ये लोग कौन हैं और इस तरह क्यों यहां लेटे हैं?"
"श्ह्ह, धीरे बोलो, ये सब सो रहे हैं, चलो यहां से, इन्हे डिस्टर्ब मत करो अपने सवालों से."
हवा में स्थिर कुछ मानव शरीर, जैसे चैन से कोई अपने नरम गुदगुदे बिस्तर पर सो रहा हो वैसे हवा में ज़मीन से कुछ ऊपर वे सब सोये थे. वक़्त उसे, उन लोगों से कुछ दूर ले गया.
" ये सब लोग अभी सो रहे हैं अपने घरों में. दुनिया के जिस भी हिस्से में जब लोग सो जाते हैं तब मैं उन्हें यहां ले आता हूँ. ताकि उनकी नींदों में से कुछ हिस्सा चुरा सकूँ और उस कुछ देर के लिए मैं भी आराम कर लेता हूँ । तुम्हारे शब्दों में दो घड़ी सुस्ता लेता हूँ. "
"उनकी नींदों में वक़्त की सुइयां रुक जाती हैं और जितनी देर तक वे सोते हैं उतनी देर तक उनका वक़्त ठहर जाता है."
" क्या तुम उनकी परछाइयाँ यहां ले आते हो ?" उसने थोड़ा डर कर पूछा।
" कुछ ऐसा ही समझ लो …" वक़्त ने हँसते हुए जवाब दिया लेकिन फिर थोड़ा संभल कर कहा, " ये परछाइयाँ नहीं है असल में ये उनका अवचेतन मन है जो सोये हुए शरीर में जाग उठा है."
" वो इन्सेप्शन फिल्म के जैसा ?" उसने थोड़ा दबी हुई आवाज़ में पूछा।
" इन्सेप्शन या मैट्रिक्स कहीं बाहर नहीं होता, वो हमारे ही अंदर, हमारे आस पास होता है. फर्क सिर्फ इतना है कि तुम सारा दिन कम्प्यूटर, मोबाइल और पता नहीं कौन कौन सी मशीनों से और उनकी नित नई तकनीक से इतना ज्यादा घिरे हो कि जीवन के सीधे सरल रूप देख नहीं पाते। हर वो चीज़ जो आश्चर्यों से भरी है और तुम्हारी कल्पना से आगे की है उसकी व्याख्या या तो इंटरनेट पर ढूंढते हो या किसी फिल्म की कहानी से जोड़ देते हो." वक़्त ने एक लम्बा और उबा देने वाला प्रवचन दिया।
"लेकिन फिल्में भी तो आम ज़िन्दगी से ही निकलती हैं." उसने जवाब देने की सोची पर फिर चुप रह गई.
"वैसे तुम्हारी ये जगह ब्रह्माण्ड के किस कोने में है, किस ग्रह या गैलेक्सी में है ?" उसने तीखा सवाल किया।
" हर कहीं, हमेशा तुम्हारी नज़रों के सामने, बस उसे देखने भर की देर है." वक़्त ने जवाब दिया।
"तो फिर मुझे या किसी और को आज तक कभी दिखी क्यों नहीं?"
"क्योंकि इस से पहले कभी तुमने इसे देखने की कोशिश भी नहीं की."
"तुम बात बदल रहे हो और मुझे अपनी इन रहस्य भरी बातों से बहलाने की कोशिश कर रहे हो."
" ये ठहरी हुई वक़्त की दुनिया हमेशा तुम्हारे आँखों के सामने होती है पर तुमको ठहरने की फुर्सत आमतौर होती नहीं।" धीमी आवाज़ में जवाब आया.
" वो रंगीन रौशनी कैसी है और ये आवाज़ें कहाँ से आ रही हैं." अब उसने खुद ही बात को बदलते हुए सवाल किया और रौशनी की दिशा में इशारा भी किया।
" ये रौशनी तुम्हारी दुनिया से आ रही है, वो आवाज़ें घरों और सडकों पर पसरा शोर है जो अब तुम्हे वापिस बुला रहा है. लौटने का समय हो गया है." इतना कह कर वक़्त ने हवा में लटकी घडी को देखा जो उनके साथ साथ चल रही थी.
उस घडी में अब नौ बज कर दस मिनट हो रहे थे.
घास का मैदान अब दीवारों और छत में तब्दील होने लगा.
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