लहसुन के ढेर के बीच मैं एक काजू हूँ। दिखता भी हूँ मगर पहचान में नहीं आता। जानता हूँ कि लहसुन गुणों की खान है, आम आदमी का खास सहारा है। दवा है, स्वाद है , नुस्खा है, रौनक है सब है। लेकिन मैं भी अपनी मर्ज़ी से काजू नहीं बना। मुझे आलू गाजर मूली कांटा झाडी घास कुछ भी बनाया जा सकता था लेकिन कुदरत ने मुझे काजू ही बनाया। यूँ मैं भी मीठे स्वाद की शान हूँ, मिठाई की रौनक और कीमत हूँ। मेरा अपना जलवा है लेकिन मैं सिर्फ उन्हीं का साथी हूँ जो मेरी कीमत चुका सकें। वैसे काजू बन पाना भी आसान नहीं था। मेरे साथ के कितने बीज सड़ गए, फूल को पक्षी खा गए या फल निकला तो उसमे कीड़े लगे, कभी हवा उड़ा ले गई कभी और कुछ। इन सब में, मैं और मेरे कुछ खुश किस्मत साथी पूरा फल बने और समय आने पर खेत से मंडी तक का सफर तय कर यहां पहुंचे। बस यहां आकर किस्मत पलट गई, बनिए की दुकान के बजाय मैं इधर लहसुन प्याज के ढेर पर गिर गया। और बस क्षण भर में मेरी जाति बदल गई , अब मैं लहसुन हूँ। लेकिन जब मुझे देख कर पहचाना जायेगा तब शायद खुश होकर खरीदार मुझे ये सोच कर खायेगा कि लहसुन के भाव काजू मिल गया। मुझे सब्ज़ी में नहीं डाला जायेगा, बस यूँही खा लिया जायेगा स्वाद बदलने की खातिर। इसलिए मैंने कहा ना कि काजू बनना मेरे हाथ में नहीं था। फिर भी अभी के लिए लहसुन के ढेर के बीच मैं एक काजू यहां पड़ा हूँ। यह सब लहसुन मुझे देखते हैं और बार बार इधर उधर ठेल देते हैं। इनके लिए मैं घुसपैठिया, अतिक्रमणकारी और बाहरी। और मेरे लिए ये अजनबी, विजातीय और अमित्र।
Tuesday, 24 November 2020
लहसुन के बीच काजू
Thursday, 10 September 2020
वनीला कॉफ़ी --- 5 अंतिम भाग
"अब तुम अचानक से ये बात बता रही हो !!! पहले तो कभी तुमने इसका ज़िक्र भी नहीं किया। रातों रात तो ये सब होता नहीं। तुम्हें इसका कैसे पता चला ? क्या तुम .... "
"Sunayna, why on earth did you not tell me about this ? Why are you so introverted when it comes to your life and events."
"Introvert!!! you are calling me an introvert !!!. Do you remember how many times I tried calling you, texting you ? but have you ever bothered to pick my call up ? That fine early morning, when I called you to enquire about that Ayurvedic national institute and what you said.. you don't have time to visit there, it was far from your work place and from your residence as well as. do you remember all that ??"
"Sunayna, I was actually busy, I wasn't making any excuses.. and even though you did the same with me a couple of years ago, you were also not picking my calls, not messaging me back; so what i did initially was just normal from my side. and as for that hospital thing, it is actually quite far and you know that cosmo city traffic... it will consume a whole day."
" fine then, Any other excuse do you have ?"
"it is not an excuse!!!"
"well, it is .. from my perspective, it is quite a good one. anyway, I am not asking for an explanation."
"Sunayna..."
"stop calling my name again and again. am I calling your name ?"
"why ? what is wrong in it ?"
"I don't like that. it sounds like you are dragging me in some sort of question answer session."
"ठीक है।" your Iron Curtain... and silent treatments were logical when applied to others but became irrational when others did the same to you. "
"वादी के मौसम भी इक दिन तो बदलेंगे"
Thursday, 2 July 2020
वनीला कॉफ़ी - 4
Wednesday, 10 June 2020
वनीला कॉफ़ी -- 3
Monday, 25 May 2020
जगाये रखने के सफर पर
अब याद कुछ नहीं आता। याद करते , याद रखते, मैं भी थक गई। याद का ठेका अकेले मेरा तो है नहीं।
मुझे अब कोई याद नहीं करता। मेरे बारे में वे every small little things भी अब कोई नहीं बताता, जानता। और मुझे इसमें कुछ भी नया, अनोखा, अजब नहीं लगता।
यह बरसों की याद, शताब्दियों का संसार और रिवाज हैं। यह इक्कीसवीं शताब्दी के शुरुआती दशक हैं। ये प्रयोग और अनुभव के दिन हैं, लकीरों को लांघने के दुस्साहस के सफर हैं।
और मैं याद रखने और याद आने के कारोबार पर मिट्टी बिछाती जा रही हूं। क्या कोई देख रहा है ? कोई जान रहा है कि मिट्टी की परत हर रोज एक अंगुल ऊपर उठ रही है?
मैं लकीरों और उनकी बनाई ज्योमेट्री को मिटोरती जा रही हूं। यह उत्तर होगा उस औपचारिक याद को जो यदा कदा शिष्टाचार वश या दिखावे वश जागती है। जिसकी उपेक्षा करने के लिए सहस्त्राब्दी का इंतज़ार करना होता है।
और फिर मेरी आँखों में नींद भर आती है। यह आभासी सत्य पर विश्वास करने के दिन हैं।
मेरी नींद इस सतरंगी आभास में फिर से खुलती है। यहां हर निषेध एक निमंत्रण है, मुझे याद दिलाने के लिए कि मेरा स्वागत है, नए सफर पर नई शताब्दी में नए परिचय के साथ।
Saturday, 16 May 2020
Parted
He was shouting and screaming; bitterness was in the air. His voice touched the walls. His long and strong bonny fingers were tightened in a fist of anger and disgust.
"You always tried to insult me, you never left a single chance for that."
"You were mocking me all the time, making me feel inferior and posed yourself some sort of superior person. And you still enjoy this, don't you ??"
"Atleast you should respond; where are all your words ?"
You thought, I am not going to make it, but look now; I have this wonderful career , handsome salary and yes, I am the most eligible bachelor of Friday night parties."
"Have you ever been to any Friday night or weekend party ?? No, you have never been to any such place loser."
"Yes, this what you are, a loser. After all these years, you are a loser." His fingers flipped in the air. Bitter words were floating in the air.
She was listening to it, every word, every sentence while carefully looking at his face. Now he was standing at the window, his fair face was drained, his warm and angry blood was giving a pinkish hue to his cheeks. She saw the wrinkled patches under his eyes and a crease on his forehead. His breath was heavy and nerves were tensed.
Years ago, she met a charming young man; this man is not him. The warmness and livelyness of that charming young lad was gone.
Where it has gone ? What on earth has caused this bitterness ? She asked and her question reached to the empty walls.
Meanwhile, he left the room in a quick moment without giving a glance to the woman who was still looking at him.
She stood up from the couch, put on her shoes and murmured, ' he broke the aura, his aura, finally I am free. The magic spell of fairytale is broken, he created and now he broke it into pieces. He did the good thing for me.'
She picked up her handbag and stepped towards the door; before pushing the door outwards, she looked at the room, it was full of various decoratives and emptiness all together.
Wednesday, 1 April 2020
मूर्ख होने का विज्ञान
Monday, 24 February 2020
उस पार ---3
"कहाँ जा रही हो ? रुको !!! "
Saturday, 8 February 2020
चूड़ियाँ
"ऐ मन्नू, मुझे देर हो जाएगी, तू ये पैकेट रख। मुझे शाम को दे देना। "
" क्या है इसमें ? चूड़ियां !!! ये औरतों की चीज़ें मैं कहाँ रखूं ? तू ले जा। "
"मुझे देर हो रही ऑफिस के लिए , वहाँ ड्यूटी पर कहाँ रखूंगी। तू रख, शाम को बस स्टैंड पर पकड़ा देना। मेरे को गाँव जाना है. "
" कुशियो तू ले जाना याद से नहीं तो मैं इधर उधर फेंक दूंगा। "
"कुसमा !!! नाम तो सही ले, दिवालका। "
" जा रे "
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" ऐ मन्नू, तू मेरी चूड़ियां कब वापिस देगा , अब ऐसा कर तू ही रख ले। घर में मम्मी या किसी बहन को दे देना।मेरे गाँव के ब्याह शादी तो सब निपट गए , अब कहाँ पहनूंगी चूड़ियां ? इतनी महँगी !! ढाई सौ रूपए का सेट ख़रीदा था। "
"अरे मैंने वो तेरा पैकेट अटाले में कहीं धर दिया कि कोई देखे नहीं। अब तो मैं भूल गया कि कहाँ रखा है। "
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"ऐ मन्नू, तूने वो चूड़ियां कहाँ रखी ? ढूंढी कि नहीं ?"
"अरे कंजूस काकी, तू ढाई सौ रूपए मेरे से ले लेना जब मेरी नौकरी लगे। अब मैं कहाँ अटाले में ढूंढने जाऊं स्टोर रूम में ज्यादा छानबीन करूँगा तो घरवाले पूछेंगे नहीं क्या ?"
"कब लगेगी तेरी नौकरी और तब तक मेरे तो पैसे डूब गए."
"अरे देखना IAS नहीं तो RAS बन ही जाऊँगा , एकाध साल में। "
"मन्नू तेरे कोई भरोसा नहीं। मेरी तो छोटी सी प्राइवेट नॉकरी है।"
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बरस दो बरस बीत चला
" ऐ मन्नू ये चूड़ियां तो देखी हुई लग रही। "
"हाँ वहीँ पैकेट है न. देख कितना संभाल के रखा हुआ था. ढूंढा फिर। "
"अरे दिवालिया, कम से कम आज तो नई ले आता। ये फिर बाद में दे देता। "
"क्यों इसमें क्या खराबी है, अरे मिनकी ये भी एकदम नई है, एकदम कोरी है, किसी ने नहीं पहनी। पूरे ढाई सौ रूपए की है। "
"पर आज तो तू मुझे प्रोपोज़ कर रहा है ना , आज तो,,,,,,,,,,,,,,"
"कुशियो, अब नई पर फिर से पैसे क्यों खर्च करूं !!!"
"तू ज़िन्दगी भर दिवालका ही रहेगा "
"ये तो देख कि संभाल के रखा हुआ था ,,,,,,,,,,,,,,,"
"मेरा माथा, कुसुुुम नाम है ,,,,,,,,,,,"