Tuesday, 24 November 2020

लहसुन के बीच काजू

 लहसुन  के ढेर के बीच मैं एक काजू हूँ।  दिखता  भी हूँ  मगर पहचान में नहीं आता।  जानता हूँ कि  लहसुन गुणों की खान है, आम  आदमी का  खास सहारा है।  दवा है, स्वाद है , नुस्खा है, रौनक है सब है।  लेकिन मैं भी अपनी मर्ज़ी से काजू नहीं बना।  मुझे आलू गाजर मूली कांटा झाडी घास कुछ भी बनाया जा सकता था लेकिन कुदरत ने मुझे काजू ही बनाया।  यूँ मैं भी मीठे स्वाद की शान हूँ, मिठाई की रौनक और कीमत हूँ।  मेरा अपना जलवा है लेकिन मैं सिर्फ उन्हीं का साथी हूँ जो मेरी कीमत चुका सकें।  वैसे काजू बन पाना भी आसान नहीं था।  मेरे साथ के कितने बीज सड़  गए, फूल को पक्षी खा गए या फल निकला तो उसमे कीड़े लगे, कभी हवा उड़ा ले गई कभी  और कुछ।  इन सब में, मैं और मेरे कुछ खुश किस्मत साथी पूरा फल बने और समय आने पर खेत से मंडी  तक का  सफर तय कर  यहां  पहुंचे। बस यहां आकर किस्मत  पलट गई, बनिए की दुकान के बजाय मैं इधर लहसुन प्याज के ढेर पर गिर गया। और बस क्षण भर में मेरी जाति  बदल गई , अब मैं लहसुन हूँ।  लेकिन जब मुझे देख कर पहचाना जायेगा तब शायद खुश होकर खरीदार मुझे ये सोच  कर खायेगा कि लहसुन के भाव काजू मिल गया।  मुझे सब्ज़ी में नहीं डाला जायेगा, बस यूँही खा लिया जायेगा स्वाद बदलने की खातिर। इसलिए मैंने कहा ना कि काजू बनना मेरे हाथ में नहीं था।  फिर भी अभी के लिए लहसुन के ढेर के बीच मैं एक काजू यहां पड़ा हूँ।  यह सब लहसुन मुझे देखते हैं और बार बार इधर उधर ठेल देते हैं।  इनके लिए मैं घुसपैठिया, अतिक्रमणकारी और बाहरी।  और मेरे लिए ये अजनबी, विजातीय और अमित्र।  

लहसुन का दबदबा है, उसमे तीखापन है, तेज है और तुरंत असर है।  मैं ना फीका ना मीठा, ना तीखा न हल्का , ना गंध न रंग।  असर बस इतना कि कुछ कहते हैं कि सेहत के लिए फायदेमंद हूँ वैसे ऐसा कोई खास इसका प्रमाण नहीं पर मेरी बिरादरी वालों के साथ मेरी भी इज़्ज़त रह जाती है।  इसलिए तो कहता हूँ कि  लहसुन के बीच काजू होना बड़ा कठिन है, मैं अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा हूँ कि  कोई मुझे पहचान ले और मुझे  काजू के ढेर में रख दे। कैसा हो कि  लहसुन को काजू समझ के कोई खा ले और काजू को लहसुन समझ के सब्ज़ी में छोंक लगा दे या चटनी बना दे।  तब क्या पहचान बदल जाएगी ? क्या काम बदल जायेगा ? क्या रुआब बदलेगा ? 


Thursday, 10 September 2020

वनीला कॉफ़ी  --- 5 अंतिम भाग

 "ना जाने वक़्त की मर्ज़ी हैं क्या, क्यों हैं मिली ये दूरियां,  ओ मेरी जां "


"अब तुम अचानक से ये बात बता रही हो !!! पहले तो कभी तुमने इसका ज़िक्र भी नहीं किया।  रातों रात तो ये सब होता नहीं। तुम्हें इसका कैसे पता चला ? क्या तुम .... "
"चुप रहो तुम, फालतू के सवाल या कयास लगाने की कोई ज़रूरत नहीं। और मैंने कब कहा कि  रातों रात हुआ।  और तुम्हें कब बताती मैं ? और क्यों बताती ? तुम्हारे पास कौन सा वक़्त था ये सब सुनने का या किसी की मुसीबत को समझने का। "
"अब बिना बताये कैसे पता चल सकता है !!! मैं क्या कोई  अन्तर्यामी  हूँ जिसे अपने आप  भूत भविष्य  पता चल जाए." 
"पता चल भी जाए तो क्या कर लेगा इंसान।"

  "Sunayna, why on earth did you not tell me about this ? Why are you so introverted when it comes to your life and events."
"Introvert!!! you are  calling me an introvert !!!. Do you remember how many times I tried calling you, texting you ? but have you ever bothered to pick my call up ?  That fine early morning, when I called you to enquire about that Ayurvedic national institute and what you said.. you don't have  time to visit there, it was far from your work place and from your residence as well as. do you remember all that ??"
"Sunayna, I was actually busy, I wasn't making any excuses.. and even though you did the same with me a couple of years ago, you were also not picking my calls, not messaging me back; so what i did initially was just normal from my side. and as for that hospital thing, it is actually quite far and you know that cosmo city traffic... it will consume a whole day."
" fine then, Any other excuse do you have ?"
"it is not an excuse!!!"
"well, it is .. from my perspective, it is quite a good one. anyway, I am not asking for an explanation."
"Sunayna..."
"stop calling my name again and again. am I calling your name ?"
"why ? what is wrong in it ?"
"I don't like that. it sounds like you are dragging me in some sort of question answer session."


"ठीक है।" your Iron Curtain... and silent treatments were logical when applied to others but became irrational when others did the same to you. "


"Whatever it is.. it saves me from many uncomfortable situations." 

"Will you now tell me, what exactly happened ? and is this your reason for feeling miserable ?"

"Long story short, it was due to an internal injury, got hit by a vehicle, at first everything was fine, I was fine, minor bruises and cuts and then after a couple of weeks things strated getting bitter and tough. and then this decision was taken."

"and how an ayurvedic treatment was going to help?"
"they could have resolved the internal swellings or any wounds that were causing the ... the problem; at least this is what I was told by some people."

"Okay, let's not detail it. let's deal with it. let's think that it does not exist."

"I don't need any sympathy, it is not me who needs to think like this, it is the rest of the society, will they ever feel like this ? how am I supposed to marry or can have a family of my own?"

"You can adopt, of course with the consent of your ... alright.. I got it. But wait, Sunayana, the world is not that blanck or dull.. I am sure you will find a sensitive person. why do you not hope for good ?"

"because I don't want fake hopes."

"Anyway, next week , I am going back to delhi and then.. i don't know.  I will miss you Sunayna. will you remember me or not...?"

"I don't know... I don't want to keep a track of memories."

Four Months...

"Where are you ? why are you not picking up my calls? is everything ok ? are you alright ?"
"Sunayna, answer my question. this time I am actually asking a question." a message flashed on whatsapp screen and got seen after a couple of hours.
"I am at Dalhousie, it has been fifteen days since I am here. the internet and social media is not much allowed."
"what the hell on earth are you doing there ? and with whom you went there ? Sunayna , you ok ? tell me everything."

"relax, nothing to worry, do you remember, once I talked about visiting a place like Kothi or Sanavar .. a studio cottage .. here it is. It is a resort spa for those who want to heal themselves. and I am alone here, no one accompanied me here, no one brought me here, I came by myself."

"Are you happy ? is this your danube ? that Blue Danube?"

"I am still wandering.. I am looking for answers and lost pieces of the puzzle."

"shall I join you over there for the weekend, I am still in Delhi and not much occupied these days."

"No, I don't want to."

"Why ?"

"we all have our own journeys."
"What is that !!! ehh, can you ever be normal like normal people."
"it is normal, absolutely normal, as normal as playing pool and drinking beer in a pub."
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"तिशा, वापिस फोन कर रही है, क्या  जवाब दूँ ? तुम कुछ बताओ, उसका ब्वॉयफ़्रेंड तो जर्मनी चला गया बिना शादी किये। और अब मेरी फैमिली को   ऐतराज है।"

"मैं क्या कह सकती हूँ, मैं तो उसे जानती भी नहीं।  और मुझे इन सब मामलों की कोई ख़ास समझ भी नहीं। "
'अच्छा, तो तुम अपना बताओ, उस रिसोर्ट  से आने के बाद  अब आगे क्या ... ?"
"पता नहीं. बस कहानियां लिखने की कोशिश करती हूँ."
" कहानी  लिखने से ज़िंदगी चलेगी ?" 
"तो क्या नहीं लिखने से चल पड़ेगी ? तुम तो नहीं लिखते कहानी पर फिर भी अटके हो।   तुम क्या ढूंढ रहे हो ? तुम तिशा,  रिद्धि या वो हरिता किसी को भी नहीं ढूंढ रहे हो।  तुम अपने  फैसले की वजह ढूंढ रहे हो।  एक सही फैसले  के लिए एक सही और तार्किक वजह। तिशा वापिस आना चाहती है  पर क्या तुम उस मोड़ पर वापिस जाओगे या नहीं जाओगे या अब तुम कहीं और जा चुके हो ?"

"मैं कहीं नहीं जा रहा।  और तिशा से मैं बात नहीं करूँगा। अब इतना सब बखेड़ा करने के बाद उसको क्या चाहिए।"
"अगर ऐसा है तो तुम उसके बारे में मुझसे सलाह क्यों ले रहे हो ? अगर ये क्लोज्ड चैप्टर है तो इस पर विचार क्यों कर रहे हो ? क्योंकि अभी तक तुम इसे एक ओपन opportunity की तरह मान रहे हो ? है ना ?"

"नहीं, ऐसा कुछ नहीं सोच रहा मैं।"
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Three Months  .... 

"तो अब आखिर कुछ तो सोचा होगा ना तुमने। कहानी तो पूरी हो गई तुम्हारी।  अब ज़िंदगी की कहानी को आगे बढ़ाओ। सुनयना, तुम सुन  रही हो।"

"हाँ, मैं विएना के म्यूजिक फेस्टिवल का एक वर्चुअल कॉन्सर्ट  देख रही हूँ।  मैं सुन रही हूँ।"
"तुम कुछ नहीं सुन रही।  तुम कहो तो मैं तुम्हें कुछ अच्छा प्रपोजल बताऊँ, यहां मेरे कंपनी के कैंपस के पास वाले सेक्टर में में एक कंपनी में काम करता  ...."

"क्या उसे यह कॉन्सर्ट पसंद आएगा ? यह संगीत जिसकी भाषा अजनबी और शब्द अनोखे से हैं। "
"मैं समझा नहीं ?" 


"वादी के मौसम भी इक दिन तो बदलेंगे"




कहानी श्रृंखला समाप्त। 

Vanilla Coffee--Part 1


Thursday, 2 July 2020

वनीला कॉफ़ी - 4


ये वादियां, ये फ़िज़ाएं बुला रहीं हैं तुम्हें ......

Two months since then ...

"I am going to Dalhousie, do you want something from there ? shall I bring some souvenirs ?"
" I will be back in one week. "  a message flashed on whats app screen. 

"I don't want to bother you. I don't want anything." a short  text got typed.

"as you wish."

Four months...

"At least you can respond. such ego is not going to make your point better or superior."  another text flashed on facebook window. 
"I do not have any point anymore. and as you said those vanilla talks are useless, so why are you stretching this ?" 

Six months ...

" तुम आजकल कहाँ बिजी हो ? और वो तुम्हारे हॉलिडे ट्रिप का क्या रहा ?"
"कुछ नहीं, अकेले तो कहीं जा नहीं सकते और हर किसी का ट्रेवल हॉलिडे का अपना अलग mindset  है।  किसी को सस्ता पैकेज चाहिए किसी को ज्यादा दिन का। "
"तुम्हें क्या चाहिए ?" 
"मुझे बस एक कॉटेज या होम स्टे  चाहिए किसी दूर पहाड़ी जगह पर जैसे वो दीप्ति नवल का घर जिस लोकेशन पर है हिमाचल में, वो क्या नाम है !  हाँ, कोठी।  वहाँ से सुन्दर घाटियों के नज़ारे देखते हुए कुछ दिन गुज़ारे।"
" तो तुम्हें जाना  चाहिए। तुम किस  इंतज़ार  में हो ?"
"नहीं, मैं  फ़िलहाल कहीं नहीं जा रही।" 
"ये तुम्हारा हमेशा का जवाब है। "
"  मैं जाना चाहती हूँ  मुझे कोई ले जाने वाला नहीं मिलता। " 
" तो, तुम इस इंतज़ार में बैठी हो कि कोई तुम्हें लेकर जाए उन जगहों पर जो तुम्हारे पसंद मुताबिक हों ? ज़रूरी नहीं होगा कि  वो जगह, वो मौसम  दुसरे के पसंद मुताबिक हो। " 
"फिर ?" 
"फिर अब  मुझे  क्या पता ?" 
" तुम सोलो ट्रैवलर बन जाओ। क्या कहती हो ?"
"मुझे ये सब नहीं बनना, इतना कोई एडवेंचर नहीं करना। "
"तुमको तो डेन्यूब जाना था ? उसका क्या हुआ ?"

"हाँ जाना है। पता है, मैं चाहती हूँ कि  घर के आस पास एक अच्छा सा किचन गार्डन हो जिसमें  मौसमी  सब्ज़ियां और फल उगाये जाएँ, एक रेन हार्वेस्टिंग सिस्टम हो  ओवरआल एक सेल्फ सस्टेनेड घर। "
"पहले तुम खुद तो सेल्फ सस्टेनेड बनो।  और किसी एक बात पर स्टिक रहो, कभी तुम कुछ प्लान करती हो कभी कुछ।  पहले तुमको डेन्यूब जाना था, अब तुमको हिल साइड कॉटेज चाहिए। और ये हार्वेस्टिंग वगैरह तो शायद नया आईडिया है तुम्हारा, पहले तो कभी कहा नहीं तुमने।"

"ऐसे ही सोचा,  ये भी एक तरीका है खुद को अपने आस पास से जोड़ने का। "
"आस पास से जोड़ने का !!!!  मतलब अभी  जुडी  हुई नहीं हो ??  तुम कितना ज्यादा सोचती हो !!!" 

"ये जगह कब ढूंढी तुमने ? कैसे पहुंचे यहां ?" सामने उस आर्टिफीसियल लेक पर नज़रें टिकाये पूछा।  
"ये बात बदल देने का हुनर तुमको गॉड गिफ्ट है ? या तुमने सीखा है , कोई कोर्स  वगैरह ? ऐसे ही एक दिन घूमते  ड्राइव करते इधर निकले तो दिख गया ये रिसोर्ट।  तुमको ऐसी ही जगहें पसंद है , इसलिए .... "

"मेरा काम अब यहां लगभग पूरा हो ही गया है। मुझे और मेरे उस सीनियर खरबूजे को  यहां जिस  नए प्लांट को सेट अप  करने के लिए यहां भेजा था  कंपनी ने, अब वो OPERATIONALIZE हो गया है ।  इसलिए अब नेक्स्ट वीक मैं वापिस जा रहा हूँ। "
"इतनी जल्दी तुम्हारे वापिस जाने का भी टाइम हो गया। कितने महीने हो गए तुम्हें यहां आए ? अभी चार पांच महीने पहले ही तो आये थे तुम ।" 
" चार पांच महीने नहीं, डेढ़ साल हो गया है मुझे यहां आए। अब तुम्हें तो वाकई कुछ याद भी नहीं है।"

"अच्छा, इतना समय हो गया !!! पता ही नहीं चला कब दिन गुज़रे। क्या तुम कुछ वक्त और नहीं  रुक सकोगे ? अब वापिस दिल्ली जाओगे या बैंगलोर ?" 

"फिलहाल तो दिल्ली, अभी एक प्लांट हरियाणा के पास लगा रहे हैं तो शायद वहां भेजेंगे, कुछ पक्का नहीं है।"
"फिर आखिर ज़िन्दगी में पक्का क्या है ?"
"पता नहीं।"

"तुम्हारे पास नहीं है ऐसा कोई प्लान या कोई ड्रीम ज़िन्दगी के लिए ?? या सिर्फ  वीकडेज़ और वीकेंड और इस शहर से उस शहर के बीच ही भाग रहे हो ? तुम किसी एक जगह को क्यों नहीं चुन लेते ?"

"तुम सोचती हो कि इन बड़ी कम्पनीज  में काम करने और कॉस्मो सिटी में रहने के कारण हम सिर्फ इन गिनी चुनी बातों में ही उलझे हैं ? यही लगता है तुम्हें ?"

" ज़िन्दगी के और भी चैलेंजेस हैं।  वर्क स्मार्ट रिटायर अर्ली !! वर्किंग नॉन वर्किंग स्पाउस , कितनी सारी  बातें  हैं।  financial security in old age and handsome savings for those times. I am probably going to Canada for a better career opportunity and a quick financial growth." 

"पर तुम तो अच्छी जॉब में हो और तुम्हें क्या फर्क पड़ेगा वर्किंग या नॉन वर्किंग से ? नॉन वर्किंग हो तो भी तुम्हारा काम तो चल ही जायेगा। " 
"अब तुम सरकारी बाबू के पास  फिक्स सैलरी है और  फिक्स रिटायरमेंट के प्लान हैं।  लेकिन हमको सब सोचना पड़ता है।  समझी तुम !!!  और अब मैं ये अरेंज्ड मैरिज  वाले  सुनहरे सपने में नहीं फंसने वाला।  मैंने घर पर बोल दिया है कि  अब मैं इस कास्ट, लैंग्वेज, स्टेट जैसे किसी क्राइटेरिया को नहीं  देखने वाला। पहले ही इतना सब ड्रामा हो गया अब और कोई मेलोड्रामा नहीं चलेगा। "

"मतलब ?? लव मैरिज ही चाहते हो ना !! इसमें क्या बड़ा मुद्दा है ? यह तो उलटे आसान है, तुम्हें आसानी से कोई भी अच्छी, पसंद की लड़की मिल सकती है। मैंने तो ज्यादातर यही  देखा है कि  जो लोग कॉस्मो सिटीज में नौकरी कर रहे हैं वो ढूंढ  लेते हैं अपनी तरह बढ़िया नौकरी स्टेटस वाला कोई।" 

"जितना लग रहा है उतना है नहीं आसान। और हाँ, तिशा के बाद एक शार्ट हुक अप भी हुआ था,  पर हमारी  आपस में जमी नहीं।  उसको बहुत ज्यादा ही जल्दी थी, कुछ डिसाइड  करो,  फिक्स करो, so many commitments and expectations. तिशा भी यही करती थी, उसके पास हर चीज़ की एक प्लानिंग थी,  कौनसा काम मुझे करना होगा, कौनसी ज़िम्मेदारी उसकी होगी, मेड  का क्या सीन  रहेगा।  शादी के बाद गाडी कौनसी वाली चलाएगी ये तक  डिसाइड कर लिया था उसने लेकिन जो सबसे ज़रूरी बात थी वो उसने मुझे सिर्फ पंद्रह  दिन पहले बताई  शुक्र है कि  मैंने अपने ऑफिस में इनविटेशन कार्ड्स नहीं बांटे थे वर्ना  सेण्टर ऑफ़ तमाशा बन जाता मैं।" 

" and you shouted at me when I asked  about  your dinner date !!! ... anyways,  why don't you want any commitment ? what is wrong with it ? all women want some sort of commitments or responsibilities from their husbands or partners. Am I wrong ??"

"I think I need more time and energy to prepare myself to deal with all this shit again. I will rather prefer to stay single and enjoy life than binding myself in a melodrama again. Many people in my circle are planning for a luxurious old age home stay; they don't want this responsibility of marriage and children and rather ready for a single and easy going no responsibility life. Some are in Live-ins, some others are single and want to live a life of their own choices.  I too am thinking on the same lines.. let see, what is stored in future.. right now, my focus is on good earnings and a luxurious life.. I don't want to compromise on that front."
between,how much YOU know about this relationship and love and marriage thing !!!! how many expectations or responsibilities are you ready to take over ?? you never talk about your personal life, relationships or any Hook up, if any such thing ever happened."

"I ... I want commitments, responsibilities and ... I always wanted to but I may not be able to  fulfill ..."

"तुम इतनी कन्फ्यूज्ड सी क्यों हो गई हो ? क्या है जो तुम्हें इतना उलझा रहा है ?  तुम खुद तो ज़िम्मेदारी उठा नहीं सकती और मुझे समझा रही हो।"

"कुछ भी तो  नहीं है। ज़िम्मेदारी उठाना कोई ऐसी बड़ी  बात नहीं है, जितना तुम सोच रहे हो, पर कभी कभी ज़िन्दगी आपको इज़ाज़त नहीं देती।"
"अब फिर तुमने  फलसफा शुरू कर दिया। "
" ऐसा कुछ नहीं है।"
"तो क्या है ? बोल सकने की हिम्मत है तुम में ?  दूसरों की ज़िन्दगी में झांकना और सलाह देना और कुछ जज करना बेहद आसान है लेकिन अपनी ज़िन्दगी के परदे  खोलना बेहद मुश्किल है ना !!! डेन्यूब जाना आसान है सुनयना, कहानी लिखना भी पर बोल कर बताना मुश्किल है। " 

"क्या मुश्किल मानते हो तुम ?"
" जो तुम कह नहीं पा रही।"

"I may not be able to ... conceive .. may not be able to carry on the pregnancies and ..." 

"What the hell are you talking about !!! Are you in sense ? Sunayna, you okay ??"

"Yes, I am alright, I am all in my sense. you wanted me to raise the curtain, see, I did. I am not a coward; I am not hiding my weakness, I am not covering up my incompetency. I am not giving any goddamn excuse."
"shut up, you are out of your mind. Do you even know what you are saying ?? Are you reading some sort of tragic novels and such stuff ? what is that crap you are reading these days ?" 
"This is no crap, this is the fact, I am talking ... you said, I am judging you, you said I am arrogant and do not know anything about relationships. I do want to know, I do want to experience all that  crap. you shouted at me, when I asked about your dinner date; you said, I have no right to enquire about your personal life.  And now, you are asking me to raise the curtain of life; atleast, I didn't hesitate, I have courage to accept and speak out. I am not escaping from responsibility and commitment; it is just, will anybody be ready to commit with me, to fulfill my expectation ?? Do I even have a right of expectation, when I myself can't fulfill this biggest expectation of  a married life ?"

"Sunayna, why have you never told me about this ? you could have at least .."
"have you ever asked ? Are you even interested in all these miseries of others ? nobody wants to listen to the sorrows and miseries of others."

"You can find an understanding person, these days it is not as  such a big issue, at least to a certain extent ... so many latest technologies are there. You can go for treatments and ..."

"Shutup, Gaurav, it is not a disease nor an illness for which I should sought a treatment. it is a health condition and that's it.  accept or reject. nothing more, nothing less."

To Be Continued... 

Image Courtesy : Google

Part--3

Wednesday, 10 June 2020

वनीला कॉफ़ी -- 3

"दो सदियों के संगम पर मिलने आये हैं, एक समय लेकिन दो सदियां , दो सदियां ". 

"तुम गाने भी इतने बोरिंग और डिप्रेसिंग किस्म के गाती  हो कि  मेरा मन होता है  कि अभी यहां से भाग जाऊं !!"

"क्यों, इतना अच्छा गाना है।  तुम्हें क्या पसंद है ?"

"कुछ भी, थोड़ा lively, कुछ full  of spirit जैसा। "

"तो हाई स्कूल musicals कैसा रहेगा ? पर मुझे वो गाना नहीं आता। "

"अब मैंने हाई स्कूल musicals  के लिए तो नहीं कहा ना !!"

" खैर, तुम यहां इस छोटे शहर में क्यों आये ?"

"अब ये तुम्हारा छोटा बड़ा शहर बीच में कहाँ से आया ? हम लोग तो कुछ गाने की बात कर रहे थे। "

'लेकिन हम कोई अंताक्षरी नहीं खेल रहे कि  और कोई बात बीच  में नहीं कही जा सकती। "

"ओके, i  Surrender .  मैं यहां डेजर्ट सफारी के लिए आया हूँ, कंपनी ने मुझे पेड हॉलीडेज पर यहां भेज दिया।  मुझे कहा कि  भाई गौरव, तुम हमारे बड़े ही काबिल एम्प्लॉई हो  तो जाओ और ऐश करो। और बस, मैंने कहा कि  मुझे ये सूखा रेगिस्तान और ये पुराने  महल हवेलियां और ये शानदार हेरिटेज होटल्स देखने हैं, घूमने हैं तो उन्होंने मेरे लिए टिकट करवा दी और रहने को कुछ allowance भी  दे दिया।  गाडी मैं अपनी लाया ही हूँ।  " 

"बस इसलिए या और भी कोई  बहाना है तुम्हारे पास ?" 

"बहाना !!!! सुनयना, तुम क्या कोई खास बहाना सुनना चाहती हो ?"

"नहीं, मैं सिर्फ कोशिश कर रही हूँ कि  समझ सकूँ तुम्हारे यहां आने की असली वजह क्या है ? तुम्हारी अच्छी खासी कॉस्मो सिटी लाइफ के बीच ये ट्रैन का छोटा स्टेशन कैसे आ गया ? " 

"ऐसे ही,  यहां से  कुछ नए बड़े रास्ते भी निकल सकते हैं।"

 "आज हम मैरिएट जायेंगे। मैं बोर हो गया तुम्हारे इन हेरिटेज होटल्स का इंटीरियर देख देख कर। "

''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''"

"तुम, तुमको याद है कि एक बार तुमने मुझसे कहा था कि, तुम्हारे लिए मसूरी से थोड़ी बर्फ और पहाड़ लेकर आऊं।  पहाड़ का नज़ारा और पता नहीं क्या क्या कबाड़। 
"अब कबाड़ है तो तुम  क्यों याद कर रहे हो ? और मुझे क्यों बता रहे हो ? 

"पर्बतों के पेड़ों पर शाम का बसेरा है, सुरमई उजाला है, चम्पई अँधेरा है।"

"तुम्हारी वो एक्स .. फ्रेंड, रिद्धि   वो अभी वहीँ है या कहीं  दूसरे  शहर शिफ्ट हो गई ?"

"वो एक साल पहले ऑस्ट्रेलिया  चली गई। बात होती है  पर अब वो वहीँ सेटल्ड है  फ़िलहाल के लिए  और मैं  शायद कनाडा जाऊँगा अगले साल।  और कोई जानकारी चाहिए मोहतरमा आपको ? वैसे, आपका क्या चल रहा है, आप का क्या मूड है ? कब तक आप ऐसे कहानी लिखने में और कहानी का थीम ढूंढने में ....? "

"अब तुम अपनी असहजता को मेरी तरफ मोड़ रहे हो। तुम  अब तक चार या पांच  बार डेटिंग एंड मीटिंग एंड कोर्टशिप के किस्से मुझे बता चुके हो  और फिर भी मुझसे पूछ ऐसे रहे हो जैसे  तुमने बड़े  अच्छे ढंग से ..... "

"मैं  तुम्हारी तरह  खुद को दायरों में बिना वजह के क़ैद नहीं रखता।  सुनयना, तुम्हें नहीं  लगता कि  तुम खुद की ही खींची हुई  बॉउंड्रीज़ में बंद हो और बाहर देखना भी नहीं चाहती। "

"तो तुम्हारी तरह इस  टेबल से उस टेबल तक, इस मेनू कार्ड से उस मेनू कार्ड तक एक एंडलेस तलाश में घूमते  रहे ? ये ठीक लगता है तुम्हें ?"

"क्या मेनू कार्ड और कौनसी टेबल ? तुम क्या कहना चाहती हो ? तुम कहना चाहती हो की मैं यूँही टाइम पास कर रहा था और फ़्लर्ट कर रहा था !!!!!! और चार पांच बार कौनसा कैलकुलेशन किया तुमने ?? ज़रा बताओ ? किस किस की बात कर रही हो तुम ? अगर तुम रिद्धि की बात कर रही हो तो उस वक़्त हम लोग सीरियस थे पर उसके पेरेंट्स नहीं माने। जो कोशिश कर सकता था वो की ही थी।  तिशा  अपने बॉयफ्रेंड से शादी करना चाहती थी और ये उसने मुझे बहुत बाद में बताया जब ऑलमोस्ट सब फाइनल हो चुका  था। मैं इस अधूरे मन वाले रिश्ते को ज़िन्दगी भर नहीं झेल सकता था। "

"मुझे तो नहीं लगता कि  रिद्धि के लिए तुमने कोशिश की थी, वर्ना वो ऑस्ट्रेलिया क्यों जाती  और रही बात तिशा की,  तो तुम्हीं ने बताया था कि  उसने अभी तक शादी नहीं की है। "

"तिशा, अपनी ज़िन्दगी में आराम से है, किस से शादी करेगी, नहीं करेगी ये मेरा सिरदर्द नहीं  है। मेरी उस से कभी कभी बात होती है, पार्टीज में, पब में मिलते हैं कभी कभी।  बस। कोई ज़रूरी है कि  हम उसी रास्ते वापिस जाएँ ?" 

"तुमने  तिशा  से  नहीं पूछा, हो सकता है कि ... ?"

"सुनयना, तुम ये ज़रूरत से ज्यादा  ही फ़िल्मी कहानी बनाने की सोच रही हो। "

"मुझे लगता है कि, it was all your fault . And even after those experiences, you are still wandering and roaming around. It doesn't seem that you have learnt anything."

"What learnt, and what fault are you talking about ? what are you trying to say ? and what are those 4-5 times !!! will you please bother to explain ? I am losing my patience, be clear with your words. There is a limit for everything."

"How do I know, last month, you were talking about a dinner date and all ... I guessed you might have found a new girlfriend. am I right ?"

 "dinner date !!! I used to hang out with my friends and colleagues for dinner and parties; how can it be called a Date ?? and even if I am having a new girlfriend then how it is related with my past relationships ? However, Sunayana, I am not having any girlfriend these days. How did you reached to this conclusion of wandering and all ?"

"And if you are trying to blame me for all those things which were out of my control or where I had a little role to manage the situation then it is your own bias, your own judgmental mindset. You have always been rude and harsh with me; you think I am some sort of romeo ... is this what you think about me ??? I do not expect any answer." Anger mounted in his mind and a flow of unexpected thoughts rolled out from his mouth.

"I never wanted to say this, thought it will hurt you and I really never wanted to do that. But I think if you continued this type of behavior;  this being rude and judgmental to other people's lives and giving your half-baked opinion  on their relationship matters, provided that you never had been in any relationship before; how can you even imagine or understand about all this love and romance and emotions that get attached with all these things."

"What do you mean by rude, harsh and judgmental ?? I was trying to understand... why are you venting on  me ? what wrong did I said ? was it so wrong to ask  about your past relationships ?"

"You don't want to understand, you only want baseless allegations and negative points. we better not talk about this, I already said you won't be able to handle it;  but Sunayana, you are not a little kid. And with this arrogance, I fear you will end up destroying your future if ever happened relationships, in fact you will ruin things with your judgmental attitude." 

"I never thought my words are hurting you this much. I bothered you a lot. I was not aware..."

"Yes, it does hurt when you speak such harsh words. And these useless vanilla talks are useless, why the hell did you started it, why are you interested in my relationships." His voice tone was rough.

"I will not bother you from now onward, I want to go home." With a choking voice she spoke. 

"Ok."

"Can't I get a cab or auto ?"

"What cab auto you want !!!! we came here together and I will drop you home. Get in the car. "

"No, I will go myself." Moist eyes yet a firm slow voice.

"Don't create scene here and get in the car." Every word was spoken with a strong tone.

 "Will you not stop crying?" His anger was now turning into frustration and helplessness.

With this question the timid sound of tears stopped. A harsh silence prevailed between them.

She turned her face towards window and set her gaze in a vacuum. The car was running at a faster pace and so does the feelings of heart.

"Say something, Sunayana ...."

"Being quiet and bearing with this was an easy thing." he murmured and stared hard at the road.

finally, the destination arrived. She got out of the car and stepped towards the gate. With a decision of Not Bothering Back.



To Be Continued ...

Part 1
  







Monday, 25 May 2020

जगाये रखने के सफर पर 


अब याद कुछ नहीं आता। याद करते , याद रखते, मैं  भी थक गई। याद का ठेका अकेले मेरा तो है नहीं।

मुझे अब कोई याद नहीं करता। मेरे बारे में वे every small little things भी अब कोई नहीं बताता, जानता। और मुझे इसमें कुछ भी नया, अनोखा, अजब नहीं लगता।

यह बरसों की याद, शताब्दियों का संसार और रिवाज हैं। यह इक्कीसवीं शताब्दी के शुरुआती दशक हैं। ये प्रयोग और अनुभव के दिन हैं, लकीरों को लांघने के दुस्साहस के सफर हैं।

और मैं याद रखने और याद आने के कारोबार पर मिट्टी बिछाती जा रही हूं। क्या कोई देख रहा है ? कोई जान रहा है कि मिट्टी की परत हर रोज एक अंगुल ऊपर उठ रही है?
मैं लकीरों और  उनकी बनाई ज्योमेट्री को मिटोरती जा रही हूं। यह उत्तर होगा उस औपचारिक याद को जो यदा कदा शिष्टाचार वश या दिखावे वश जागती है। जिसकी उपेक्षा करने के लिए सहस्त्राब्दी का इंतज़ार करना होता है।

और फिर मेरी आँखों में नींद भर आती है। यह आभासी सत्य पर विश्वास करने के दिन हैं।
मेरी नींद इस सतरंगी आभास में फिर से खुलती है। यहां हर निषेध एक निमंत्रण है, मुझे याद दिलाने के लिए कि मेरा स्वागत है, नए सफर पर नई शताब्दी में नए परिचय के साथ।

Saturday, 16 May 2020

Parted

He was shouting and screaming; bitterness was in the air. His voice touched the walls. His long and strong bonny fingers were tightened in a fist of anger and disgust.
"You always tried to insult me, you never left a single chance for that."
"You were mocking me all the time,  making me feel inferior and posed yourself some sort of superior person. And you still enjoy this, don't you ??"
"Atleast you should respond; where are all your words ?"

You thought, I am not going to make it, but look now;  I have this wonderful career , handsome salary and yes, I am the most eligible bachelor of Friday night parties."
"Have you ever been to any Friday night or weekend party ?? No, you have never been to any such place loser."
"Yes, this what you are, a loser. After all these years, you are a loser." His fingers flipped in the air. Bitter words were floating in the air.

She was listening to it, every word, every sentence while carefully looking at his face. Now he was standing at the window, his fair face was drained, his warm and angry blood was giving a pinkish hue to his cheeks. She saw the wrinkled patches under his eyes and  a crease on his forehead. His breath was heavy and nerves were tensed.

Years ago,  she met  a charming young man; this man is not him. The warmness and livelyness of that charming young lad was gone.
Where it has gone ? What on earth has caused this bitterness ? She asked and her question reached to the empty walls.

Meanwhile, he left the room in a quick moment without giving a glance to the woman who was still looking at him.

She stood up from the couch, put on her shoes and murmured, ' he broke the aura, his aura,  finally I am free. The magic spell of fairytale is broken, he created and now he broke it into pieces. He did the good thing for me.'

She picked up her handbag and stepped towards the door; before pushing the door outwards, she looked at the room, it was full of various decoratives and emptiness all together.

Wednesday, 1 April 2020

मूर्ख होने का विज्ञान 

फिल्में देखने का शौक फिर से जागा है और इसलिए रोज की एक फिल्म  देखने पर कमर बाँध रखी है।  और उसमे भी  sci  fi  और fantasy  वाली फिल्में मुझे ज्यादा पसंद हैं।  तो इसी जोश के चलते इंटरस्टेलर,  एड अस्त्रा और क्रिस्टोफर रोबिन समेत कुछ फिल्में देखीं और फिर विचारों का रेला चल निकला।  

आदमी को कितना दूर जाना पड़ता है, कहीं पास पहुँचने के लिए ?  कितने  सौ या हज़ार किलोमीटर चलना या दौड़ना पड़ता है ? जिस दीवार और छत से बाहर निकल कर आदमी चलना शुरू करता है अंतत: वहीँ  वपिस लौट आता है या लौट आने को उसका इरादा और मजबूत होता जाता है।  यानी जितना ही दूर गए उतना ही वापिस आने की इच्छा ज़ोर होती गई।  यह  गोरखधंधा ही सारे एक्सपेडिशन्स या एडवेंचर्स की जड़ है !!! 
ये सवाल मुझे इसलिए सूझ रहा है कि  आज अप्रैल फूल का दिन है , मूर्ख दिवस !!! याद होगा हम सबको कि  कैसे एक  ज़माने में इस दिन का हफ्ता भर पहले से इंतज़ार होता था और योजनाएं बनाई जाती थीं कि  कैसे अपने पडोसी, रिश्तेदार या मित्रों को "फूल" बनाया जाए. कैसे लोग बड़ी सावधानी बरता करते थे।  साबुन के टुकड़ों को टॉफ़ी चॉकलेट के रैपर में लपेट के डब्बे में रख के दिया जाता था , नकली फल थैले  में रख के दिए जाते थे, लड्डू में लाल मिर्च भरी  जाती थी, चाय में नमक या मिर्च कुछ मिलाया जाता था।  यही तो मनोरंजन था उस  वक़्त जब मोबाइल नहीं था , कंप्यूटर भी नहीं था।  

तो अब अप्रैल फूल इसमें आने जाने की कथा में कैसे जुड़ गया ??  ऐसे जुड़ा कि इंटरस्टेलर  और एड अस्त्रा  एक ऐसे वक़्त की कथा सुना  रही हैं जब दुनिया के पास तकनीक तो ऊँचे से ऊँचे दर्जे की होगी पर मजबूरियां भी उतनी ही ऊँची होगी।  कभी धरती का बैलेंस बिगड़ा होगा तो कभी आसमान आग बरसायेगा।  और इसलिए मानव का नाम और निशान बचाये रखने की खातिर अंतिम सीमा के परे इंसान को जाना होगा।  आज जिस चीज़ पर हम विश्वास नहीं कर सकते कि  ऐसा कोई तकनीक हो  सकती है या ऐसी भी कभी परिस्थिति हो सकेगी ?!!! यह सोचना या मानना भी मूर्ख हो सकने का प्रमाण माना  जा सकता है।  लेकिन ये फिल्में कहती हैं की ऐसा हो क्यों नहीं सकता ?? यह "क्यों "  सवाल ही अंतर है मूर्ख और समझदार के बीच।  कल्पना ही तो करनी है कि  ऐसा कुछ  अघट  भी  घट  सकता है धरती पर !!!! कोरोना ने हमें समझाया कि  हाँ हो सकता है,  इंसान अपने घर में  बंद रहने को मजबूर हो सकता है. वो सारी  फिल्में जो आपने देखीं  जिसमे ज़ोंबी, वायरस , एलियन  और अलाना और फलाना थे वो सब हो सकता है। यहां आकर समझदारी और मूर्खता के किरदार बदल  जाते है। क्रिस्टोफर रोबिन देखते वक़्त भी यही ख्याल आया कि  हंड्रेड एकर वुड्स की तरफ जो रास्ता और दरवाजा  जिस पेड़ की खोह से होकर खुलता है, उस पेड़ और उस दरवाजे को देख पाना किसी समझदार के बस की बात नहीं।  इसे देखने के लिए  आपको विश्वास की और खाली कोरे दिमाग की ज़रूरत है। जहां तर्क और  स्थापित ज्ञान  रुकने को कहता है, वहाँ से एक दरवाजा खुलता है जो एक ऐसी दुनिया में जाता है जहां तर्क की कोई खास जगह नहीं है, जहां बुद्धि केवल नाप तौल और ऊँचा नीचे का साधन नहीं हैं, जहां नफा और नुकसान का कायदा भी नहीं है।  

क्रिस्टोफर रोबिन में में एक दृश्य है, जब पूह और उसके साथी लंदन जा रहे हैं तब पिगलेट रुकता है और झिझक रहा है जाने से, तब पूह कहता है,  कि  पिगलेट हमें वहाँ तुम्हरी ज़रूरत होगी, हमें हमेशा तुम्हारी ज़रूरत होगी। और तब पिगलेट थोड़ा खुश सा होता हुआ  अभी भी डरता हुआ सा कहता है, अच्छा ज़रूरत है मेरी ; ठीक है तो फिर चलो।  ये पिगलेट हम सब हैं ;  किसी ऐसे विन्नी the  पूह  की उस आवाज़ की ज़रूरत है जो ये कहे कि  हमें तुम्हारी ज़रूरत हमेशा होगी।  क्योंकि आदमी अकेला नहीं रह सकता इसलिए ये जो जगह जगह छोटे झुण्ड और ग्रुप से दिखते  हैं ना गली , मोहल्ले, दफ्तर , बाजार  सब जगह पर, ये सब पिगलेट और पूह  के संवाद का  ही पसारा  है।  कोई नहीं चाहता कि उसे मूर्ख समझा जाए या "फूल" बना दिया जाए या "फूल" माना जाए ;  और खुद को "फूल" कहलाने से बचाने के लिए ही पूह चाहिए जो  खुद को मूर्ख मान ले  और आपको बुद्धिमान होने का अहसास दिलाये। 
भला खिलोने भी बोल सकते हैं या आपकी तलाश में आपको ढूंढते हुए आप  तक पहुँच सकते हैं  ?? कोई समझदारी इसे स्वीकार नहीं कर सकती लेकिन कल्पना की दुनिया में ये हो  सकता है।  एक सपाट कोरी स्लेट की दुनिया में ये हो सकता है।  

  इंटरस्टेलर  में एक दृश्य है जिसमे कूपर  ब्रह्माण्ड के आखिरी संभव कोने तक जाकर फिर एक पांच आयामी  संसार के ज़रिये  अपनी बेटी के कमरे में पहुँचता है और तब वो कहता है कि  समय  और समाधान  दोनों हमेशा से इस छोटी लड़की के कमरे में मौजूद थे।  यह ग्रेविटी की विसंगति और  कुछ नहीं केवल एक संकेतक थी किसी के यहां होने की जो उसी समय कहीं और भी है।  एस्ट्रोफिजिक्स की यह भाषा और  सिंद्धांत सुनते देखते समय एक आम दर्शक अचंभित होता है और उसकी बुद्धि बिना सवाल किये  केवल स्वीकार करती है कि  जो कहा जा रहा है वह सही सत्य है।  तब हम अपने समझदारी के लबादे को भूल जाते हैं क्योंकि आखिरकार  मनोरंजन के लिए  सिनेमा देख रहे  हैं,  हमने टिकट ख़रीदा, पैसे दिए हैं।  उस समय अपने को मूर्ख मानने या अज्ञानी मानने में हमें झिझक नहीं होती क्योंकि तब हम एक बड़ी भीड़ में शामिल हैं।  जब सारे अज्ञानी हैं तो हम कौनसे अलग हैं !!!!!   



फिर ख्याल आया कि  नई  समझदारी जो  सितारों के पार जाने की बात कहती है वही समझदारी याद  दिलाती है कि  इंसान  सिर्फ एक वल्नरेबल  बीइंग है।  ह्यूमन बीइंग।  एड अस्त्रा में एक दृश्य है जहां ब्रैड पिट Neptun के दो  महीने के सफर पर अकेला जा रहा है तब वो कहता है कि  मैं हमेशा सोचता था कि  मुझे अकेला रहना पसंद है लेकिन ऐसा नहीं है और वो रोता है  अपने अकेले होने के  ख्याल पर। इसी  फिल्म का एक और दृश्य है लगभग आखिरी दृश्य जहां  लीमा प्रोजेक्ट के स्टेशन से निकल कर स्पेस वाक करते हुए उसे अपने शटल में वापिस जाना है ; उसके सामने  और कुछ नहीं का विस्तार है ;  अँधेरे में चमकता ब्रह्माण्ड  और उस शून्य में एक अकेला आदमी ; यहां अस्तित्व है कोई नहीं के होने का ; कोई भी नहीं  केवल आप हैं और आपकी मूर्खता या समझदारी जो भी गठरी आप उठा के लाये हैं।  

 एक और  दृश्य है जहां वो मंगल पर पहुंचा है और कहता है कि  ये मैं कहाँ जा रहा हूँ ? सूर्य से दूर, रौशनी से दूर, धरती से दूर।  यह धरती से दूरी है जो इंसान बरसों में, उम्र के साल के हिसाब से और समय के धीमे या तेज़ होने के हिसाब से  नापता है।  इंटरस्टेलर में कूपर  नई  दुनिया की खोज में इसलिए निकला है कि  अपने बच्चों  को , सबको  इस नष्ट होते ग्रह  से निकाल कर ले जाए एक हरे भरे संसार में जहां आदमी फिर से दुनिया बसाएगा।  और इसलिए वे लोग एक मिनट एक घंटा सब कुछ नाप रहे हैं ; 124 साल का कूपर आखिर लौटता है धरती पर  फिर से  उस दुनिया तक पहुँचने के लिए जहां इंसान के लिए एक नई  दुनिया बस रही  है।  

एक और फिल्म देखी , "सर्चिंग ",  हमारे पास महँगी टेक्नोलॉजी वाले बढ़िया गैजेट हैं , हम नियमित फेस टाइम और texting  करते हैं लेकिन हम आमने सामने बात नहीं कर पाते. जितनी ऊर्जा टाइप करने और वीडियो कॉल में लगाते हैं  उतना तो किसी को जाकर मिलने या बतियाने में भी नहीं लगाते।  ये  बेहद दक्ष तकनीक आपके कब कहाँ होने को एक सेकंड में बता देती है।  आपकी ब्राउज़िंग हिस्ट्री आपके बहुत से गतिविधियों को बता देती है।  कब किस से क्या बात की। .. सब रिकॉर्ड है यहां साइबर स्पेस में , बस नहीं है तो इंसान के पास असल ज़िन्दगी में कोई नहीं  है जिस  से बात की जाए बिना झिझके बिना डरे , बिना कुछ फ़िक्र चिंता कि  कहीं ये मुझे मूर्ख  ना समझ ले !! कहीं मुझ पर मूर्ख होने का लेबल ना लग जाए; इसलिए हम भागते फिरते हैं पिगलेट होने के लिए।  आदमी की तलाश में तकनीक बेहद मददगार है लेकिन जब वो आदमी आपके सामने है आस पास कहीं बैठा है तब उसके पास आप  क्यों नहीं गए ??? इस फिल्म का एक दृश्य है जहां मार्गोट की तलाश का ट्रेंड हैश टैग twitter पर चल रहा है , यूट्यूब पर वीडियो हैश टैग किये जा रहे हैं वो साथ पढ़ने वाले जिन्होंने कभी उसके साथ बैठ  कर खाना भी नहीं  खाया वे लोग बड़ी ही इमोशनल पोस्ट इंस्टाग्राम, फेसबुक और यूट्यूब पर अपलोड करते हैं कैप्शंस देते हैं।  उस लड़की को हर कोई याद कर रहा है और आंसू बहती फोटो अपलोड कर  रहा है जिसको कभी उन्होंने शायद क्लास में देखा भी नहीं होगा  या अनदेखा कर दिया होगा।  न्यूज़ चैनल को एक दिलचस्प खबर मिली हुई है जिसके दर्शक हैं और बाजार को एक मुद्दा मिला  हुआ है जिसे एन  कैश  किया जा सकता है।  

और अब मूर्ख दिवस की शुभकामनायें  
 



Image Courtesy : Google

Monday, 24 February 2020

उस पार ---3

लड़की एक  बार फिर से उसी  झील के किनारे बैठी है।  पानी में पैर  डुबोने  और छप  छप करें , का ख्याल आया लेकिन गंदले और काई जमे किनारे ने उसे दूर से ही छिटका दिया। पानी अब बहुत दूर तक खिसक गया था , झील के किनारे वाला हिस्सा सूख गया लगता है।  अब इसे  झील तो नहीं तालाब जैसा कुछ मान लें ऐसा ख्याल आया उसके मन में। उसका मन जो अब समय की धुरी पर चारों दिशाओं और चौदह भुवन को देख आया है ; उस मन में अब कोई कविता या संगीत नहीं उपज रहा।  बस केवल कुछ परिचित कुछ जाना पहचाना  चिन्ह दिख जाए तो यहां आने का सुकून  पूरा हो जाए।

'खरगोश अभी तक नहीं दिखा' , एक सवाल आकर टंग  गया हवा में।

"ऐसे उजाड़, सूखे में कौनसा खरगोश रह सकता है ?"  चौदह भुवन में से किसी एक भुवन ने उत्तर दिया।  
उसने खुद को देखा या हाथ लगा कर खुद को महसूस किया।   रूखे  टूटे बाल जो कंधे से नीचे तिनकों की तरह झूल रहे थे। चेहरे पर जगह जगह सूखा खुरदुरापन  महसूस हुआ।  फिर हाथ भींच कर उसने आस पास नज़र घुमाई।  वो जादू, वो रहस्य से भरे नज़ारे जो उसने देखे थे  इस जगह पर; कुछ नहीं था।  सूखी कांटे वाली झाड़ियाँ थीं,  पेड़ कहीं इधर उधर अकेले खड़े जैसे सोचते हों कि आखिर कौन उन्हें यहां छोड़ गया  और लेने कब आएगा ? कोई फूल पत्ता , हरी टहनियां और झुकी हुई डालियाँ  .....  यह सब कविता अब  यहां क्यों नहीं दिखती ?  

"खरगोश नहीं हैं क्या ?" 
"नहीं हैं। " फिर से किसी भुवन या दिशा  ने जवाब दिया  स्पष्ट ही सुनाई दिया उसे. उसे जिसका नाम शायद ,,,,, 

किसी के चलने  और धीरे धीरे पैर  रखने की आहट  है , शायद खरगोश !!! उसने पीछे मुड़  कर देखा, वही लड़का  वहाँ खड़ा है,  जहां तब पहली बार उसे आता देखा था। एक पहचानी हुई सूरत देख कर इंसान खुश हो जाता है या दुखी होता है या अपने में ही सिमटने की कोशिश करने लगता है ?? यह प्रश्न जगा।  

"तुम, जून ; तुम यहां वापिस कब आईं ?"
"क्यों नहीं आ सकती क्या ?"
"ऐसा कब कहा ?"
"पर इतने दिन तुम कहाँ थीं ?"
"मैं, मैं ... वहाँ उस पार से आगे , वहाँ ,,,,,"
जवाब अधूरा ही रहा।  वो तीर तीक्ष्ण दृष्टि जिसने कभी आगे बढ़ते पैरों के आवेग को रोक दिया था , वो दृष्टि अब झुकी हुई थी। 
"तुम कहाँ थीं ?" 
"तुम, तुम इतने दिन क्या करते रहे ?" पलट कर सवाल आया।  तीक्षणता  आसानी से जाती नहीं; यही तो धागा है जोड़े रखने का।  इस प्रतिप्रश्न ने पुराने उल्लास को जगा दिया।  
"मैं बहुत बहुत से कामों में उलझा था।  मुझे बहुत कुछ करना था। जाना था और पहाड़ पार करने थे।" लड़के का मन जाग उठा , हर वो बात बताने को जिसका कोई श्रोता अभी तक नहीं मिला है।  
"अच्छा, मुझे भी बहुत कुछ करना था। मैंने नदियां और समंदर पार किये। ये पेड़ कहाँ गए और वो खरगोश और वो फूल, वो झील का पानी ??? वो डालियाँ जिन पर मैंने झूला लगाया था। " लड़की ने कहीं दूर पहाड़ पर नज़र टिकाते कहा।  
"बहुत दिन हुए बरसात नहीं हुई। और पेड़ हमने काट दिए। "  क्या बस इतना ही  कहना है इसे , क्या यह मुझसे नहीं पूछेगी कि मैं कहाँ गया था और मैंने क्या देखा ? क्या वो अभी भी उस फूल को जो  झील में से निकाला था उसे याद कर रही है; यह सब ख्याल लड़के के मन में तैरने लगे.  
"क्यों !!!!" एक संवेग जगा लड़की के अंदर।  
"पहाड़ पर लकड़ी चाहिए  आग जलाने के लिए। " बेहद सपाट जवाब दिया उस लड़के ने। 
"आग तो हर जगह जल रही है।"
"तुमने फिर से उलझी हुई बातें करनी शुरू कर दी।  "
  " तुम यहां दुबारा कभी नहीं आये थे ?" 
"आता था, कभी कभी लकड़ियां काटने।   

लड़की ने उसकी तरफ अजब निगाह से देखा ; और आज पहली बार लड़के ने उसकी आँखों में देखने की कोशिश की. वहाँ अनसुने सवाल थे , आँखों के परदे के पीछे छिपे जवाब थे ; ना सुनी गई ख्वाहिशे और इच्छाएं थीं ; कामनाएं और  लालसाएं  जहां सो रही थीं गहरी नींद में।  इतना कुछ था वहाँ पर पहले कभी देखा नहीं।  अचानक लड़के को कुछ महसूस हुआ, उसे समझ आया कि अब कोई उलझन या दुविधा नहीं है ; यह उलझनें जिस अलबेले समय की थीं वो समय कब का बीत गया।  उसने ये भी जाना  कि अब वो लड़की महज वो अल्हड फूलों की बेल नहीं है जिसने उसने उस दिन देखा था , जिसके साथ झील के किनारे बैठ कर फूलों का संसार देखा था।  अब वो एक अलग दुनिया  लेकर आई है जिसमे उस लड़की के चेहरे के पीछे से एक औरत झाँक रही है।  लेकिन फिर ये और जाना कि अब  वो खुद भी बदल गया है,;  आश्चर्य और आवेगों का उसका वक़्त  भी गुजर गया है , अब उसमे बर्दाश्त और समझ आ गई है। अचानक उसने खुद से कहा ; 'अब तुम मुझे बहला नहीं सकोगी , अब मैं नाम चेहरे और रूप की दुनिया देख चुका। ' 
जो पता नहीं कहाँ से और कहाँ आगे जायेंगे 
एक सम्पूर्ण संसार बस गया उस एक निमिष में उन दोनों  के बीच।  समय का पहिया एक क्षणांश के लिए शायद थमा , कुछ देखा और फिर चल पड़ा , अनवरत अनंत की तरफ।  उस चलने को लड़की ने जान लिया।  

"अब मैं जाऊं ?"
"नहीं रुको,. " यह आदेश का स्वर था  जो पहली बार इस कायनात ने सुना  था।  एक मजबूत हड्डियों वाला हाथ आगे बढ़ा और उसने उस दुसरे उतने ही मजबूत लेकिन कोमल नसों वाले हाथ को थामा। 
लेकिन वो रुकी नहीं, रोक सकने  जितनी ताकत अभी उस हाथ में नहीं आई थी। लड़की को पता था कि इस मजबूत हाथ की ताकत  कितनी दूर कितने पास तक जा सकती है, इसलिए निश्चिन्त होकर  चलती गई एक नामालूम दिशा में।  एक पेड़ था उस चलने की दिशा में; कुछ पत्ते, टहनियों और सूखी डालियों को समेटे हुए।  वो बैठ गई वहाँ एक पत्थर पर; उस पेड़ के आस पास अब सिर्फ पत्थर थे जिनको शायद बैठने की गरज से ही वहाँ होना था।  एक फ्रेम था , जिसमे पत्थर हैं, पेड़ की सूखी झुर्रियों वाली डालियाँ हैं और पेड़ के नीचे  बैठे ये  मुसाफिर ; जो कहीं दूर रास्ते से आये हैं और अब किसी दूर देस को जायेंगे। यह सब समय का  एक फ्रेम था,  जिसमे ये सारे तय किरदार थे अपनी अपनी लाइन्स भूले हुए।

लड़की अभी भी सोच रही है कि यहां  क्यों  आ बैठी हूँ ? चली ही जाऊं ! और ये लड़का अब इतना अजनबी क्यों लग रहा है,  इसे अब चले ही  जाना चाहिए ; शायद इसके जाने के बाद मैं फिर से वो ढूंढ  सकूँ जिसके लिए यहां आई हूँ ? पर क्या ढूंढने आई हूँ ?  
'वो हंसी , वो फूलों की महक और सिंगार ; झील के पानी का जादू और उस पानी का ठंडा नशा जो चमड़ी को भेदता अंदर हड्डियों तक को भिगो देता है। ' फिर से कोई दिशा उसके पास आकर बुदबुदाई।  

"यहां, वो झुरमुट होते थे न, जिनमे खरगोश रहते थे।" 
" पता नहीं, मैंने तो  पहले भी कभी देखे नहीं थे। " लड़का अब थकने और ऊबने लगा था. क्यों बैठा है यहां ? ये कौन है जिसके लिए एक बार फिर  छलावे के फर्श पर चल रहा हूँ मैं ?

"वहाँ पहाड़ के पार एक झील है, वहाँ सुना है खरगोश भी हैं और वो सब फूल वगैरह भी. तुम वहाँ चली जाओ।"
पर लड़की  ने शायद सुना नहीं, वो कुछ बोल रही थी, " वो जादू, वो रंगीन नज़ारा ; वही सब देखने तो आई थी। नदी के इस पार ये था और उस पार मैं थी। तुमने पहाड़ के पार क्या देखा ? बताओ ?"  

और एक थकी निराश  जिज्ञासा ने  सिलसिला जगा दिया  किस्से और कहानी का। वक़्त का पैमाना रेत  गिराता  रहा,  कब फिर से हाथ  की अंगुलियां कंकड़ों से उलझती खुद में उलझीं ये सिर्फ वक़्त के कतरे ने देखा।  और शायद झील के किनारों ने भी देखा।  उन पथरीले किनारों ने फिर से पानी को आवाज़ दी। और देखते देखते एक रहस्य उस झील के भीतर से निकल  किनारों तक पहुँचने लगा।  लड़की के नज़र बेसाख्ता ही उस तरफ उठी और उसने पुकारा,

"अरे ये क्या है !!! देखो, क्या पानी बरसा है ? झील तो पानी से भरी दिख रही है !!!" लड़की के शरीर में जितना उत्साह और उल्लास का खून था वो सब इस वक़्त उसकी साँसों में भरा भाग रहा था।  

"कहाँ से आया पानी ?? तुम  फिर  से .."  लड़का अब की बार झुंझला गया।  मगर लड़की तो बगैर उसके जवाब  सुने दौड़ रही थी झील की तरफ, उसके ठन्डे पानी की छुअन की तरफ। 

"ये इतना पानी कहाँ से आया।  ये तो कब से सूखा ही पड़ा था ?"  संशय था, संदेह था और हैरानी की हद से भी ऊपर जाते सवाल थे लड़के के मन में।  उसके समझ में नहीं आता था कि  आखिर ये क्या गोरख धंधा है।  

"तुम कोई जादू मंत्र जानती हो क्या ? पिछली बार खरगोश थे , इस बार झील का पानी।  कौन हो, कहाँ से आई हो ?" 

"मैं, मैं तो उस पार ,,,,,,,,,,,,,," छप छप करते पैर थम गए। खिलखिलाहट लौट आई।  उपेक्षा लौट आई, बेपरवाही ने अपना चोला ओढ़ लिया। झील में  खूबसूरत फूल खिल रहे थे। 

"तुम, तुम जवाब दो ?" लड़के ने इस बार उस का हाथ ज़ोर से खींचा।  और उस सूखे उजाड़ बियाबान में पेड़ों पर डालियाँ फल रही थीं ,  लड़के के पैरों के नीचे नरम घास थी।  फूलों की बेलें महक रही थीं। 
लड़की ने मुस्कुरा कर ये सब देखा फिर मुड़ कर  लड़के की तरफ देखा।  जैसे पूछती हो,  तुम्हें रहस्य और जादू के संसार से इतनी हैरत क्यों है ??  इतने सवाल ही क्यों हैं, बस मान क्यों नहीं लेते कि  बस, ये है और यहां है।  

"मैं तुम्हारे लिए , उस दूर पहाड़ से बहती नदी के साथ आई  हूँ। चलो तुम्हें अब खरगोश दिखाऊं। " 

लड़के के माथे पर पानी की बूँदें थीं, उसकी सांस में तेजी और दिल में हज़ार बातें थी। मगर वहाँ  किसे परवाह थी;  उसका हाथ एक नर्म  हथेली ने थाम रखा था जिसमे गर्माहट थी एक पुराने परिचय की।  और वो दोनों चल रहे थे, उस  अनजानी  दिशा  और उस अनदेखे भुवन की तरफ।   

किसी ने पुकारा, आवाज़ दी।  लड़के के पैर  थमे , यह एक पहचानी आवाज़ का संकेत था।  कोई बुला रहा है उसे।  उसने लड़की की तरफ देखा और उसकी हथेली को कस के थामा  पर इतने में फूलों की वो बेल उसके ठन्डे हाथों से फिसलने  लगी।

"कहाँ जा रही हो ? रुको !!! "  

"वीरेन , क्या आज  भी  हम घूमने नहीं जाएंगे ? चलो ना, देखो हलकी हलकी बारिश हो रही है। "  और  वीरेन को किसी ने जगाया है।  

"तुम कब सोये ? उठो " 


Saturday, 8 February 2020

चूड़ियाँ


"ऐ मन्नू, मुझे देर हो जाएगी,  तू ये पैकेट रख।  मुझे शाम को दे देना। "
" क्या है इसमें ? चूड़ियां !!!  ये औरतों की चीज़ें मैं कहाँ रखूं ? तू ले जा। "
"मुझे देर हो रही ऑफिस के लिए , वहाँ ड्यूटी पर कहाँ रखूंगी।  तू रख, शाम को बस स्टैंड पर पकड़ा देना।  मेरे को  गाँव जाना है. "

"  कुशियो  तू ले जाना याद से नहीं तो मैं इधर उधर फेंक दूंगा। "

"कुसमा !!! नाम तो सही ले, दिवालका। "

" जा रे "

  ''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
"ऐ मन्नू तू आया क्यों नहीं बस स्टैंड पर ? फोन भी नहीं उठाया। मेरी चूड़ियां तो यहीं रह गई ? इतना सा काम भी नहीं संभला तेरे से।"
"अरे काम में फंस गया था, ज़रूरी जाना पड़ा। फोन की बैटरी ही खत्म हो गई थी। कल ला दूंगा।"
”'""""”''''''''"""""""""""'""""""""""""""""''''''''''''"'""'''''''''''''''''""'""""""

"  ऐ मन्नू, तू मेरी चूड़ियां कब वापिस देगा , अब  ऐसा कर तू ही रख ले।  घर में मम्मी  या किसी बहन को दे देना।मेरे गाँव के ब्याह शादी तो सब  निपट गए ,  अब कहाँ पहनूंगी  चूड़ियां ?  इतनी महँगी !! ढाई सौ रूपए का सेट ख़रीदा था। "

"अरे मैंने वो तेरा पैकेट अटाले में कहीं  धर  दिया कि कोई देखे नहीं।  अब तो मैं भूल गया कि कहाँ रखा है। "

''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''

"ऐ मन्नू,  तूने वो  चूड़ियां कहाँ  रखी  ? ढूंढी कि  नहीं ?"
"अरे कंजूस काकी, तू ढाई सौ रूपए मेरे से ले लेना जब मेरी नौकरी लगे।  अब मैं कहाँ अटाले में ढूंढने जाऊं  स्टोर रूम में ज्यादा छानबीन करूँगा तो घरवाले पूछेंगे नहीं क्या ?"
"कब लगेगी तेरी नौकरी और तब तक मेरे तो पैसे डूब गए."
"अरे देखना IAS नहीं तो RAS  बन ही जाऊँगा , एकाध साल में। "
"मन्नू तेरे कोई भरोसा नहीं। मेरी तो छोटी सी प्राइवेट  नॉकरी है।"
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बरस दो बरस बीत चला 

" ऐ मन्नू ये चूड़ियां तो देखी  हुई लग रही। "
"हाँ वहीँ पैकेट है न. देख कितना संभाल के रखा हुआ था. ढूंढा फिर। "
"अरे दिवालिया,  कम  से कम आज तो  नई  ले आता।  ये फिर बाद में दे देता। "
"क्यों इसमें क्या खराबी है,  अरे मिनकी ये भी एकदम नई  है, एकदम कोरी है, किसी ने नहीं पहनी।  पूरे ढाई सौ रूपए की है। "
"पर आज तो तू मुझे प्रोपोज़ कर रहा है ना , आज तो,,,,,,,,,,,,,,"
"कुशियो,  अब नई  पर फिर से पैसे क्यों खर्च करूं !!!"
"तू ज़िन्दगी भर दिवालका  ही रहेगा "
"ये तो देख कि  संभाल के रखा हुआ था ,,,,,,,,,,,,,,,"
"मेरा माथा, कुसुुुम नाम है ,,,,,,,,,,,"