Thursday, 25 September 2025

प्रेम में आकंठ डूबी तरूणी "

प्रेम में आकंठ डूबी तरूणी " यह लाइन मैने बरसों पहले कहीं किसी किस्से कहानी में पढ़ी थी, कहां पढ़ी थी यह अब याद नहीं।  फिल्में, tv सीरियल और अब ये कोरियन, जापानी ड्रामा और सीरीज को देख कर निश्चित रूप से आप कहेंगे कि अरे, यही है इसका अर्थ। यही है इसका विवरण या रूप रंग । 
किंतु इसका अर्थ, इसका व्यवहारिक रूप और असल जिंदगी में इसे देखने समझने की जिज्ञासा कभी पूरी नहीं हुई। कम से कम मुझे अब तक ऐसा चेहरा या ऐसे मुखमंडल या हाल चाल वाली कोई दिखी नहीं । ऐसा नहीं है कि मेरे आस पास के लोगों में प्रेम का अकाल है या मैं कोई नुक्ताचीनी कर रही हूं पर यह जो फेसबुक, व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर प्रेम का दरिया तस्वीरों, रीलों, वीडियो क्लिपों में बहे जाता है उसमे वह आकंठ डूबी तरूणी मुझे नहीं दिखती तो नहीं ही दिखती। 
मुझे बढ़िया पोज दिखे, सुंदर चेहरे दिखे, सुंदर बैकग्राउंड और नजारे दिखे, बेहतरीन फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी, कपड़े गहने, चश्मे, जूते, बैग सब दिखता है लेकिन प्रेम में आकंठ डूबी तरूणी नहीं दिखी।
पर फिर अभी कुछ ही दिन हुए, हफ्ता दस दिन शायद। मैंने देखा ;  एक साधारण सा घर जिसमे रहने वाले किरायेदार को। वैसे इतने महीने हुए, मेरा कभी भी ध्यान नहीं गया पर एक छुट्टियों के दिन ठाले बैठे मेरी नज़र गई उस लड़की पर । दोपहर है और वह मेन गेट पर खड़ी है, उसके कपड़े भी साधारण हैं, एक  गहरे रंग का प्रिंटेड फिटिंग वाला ट्यूनिक टॉप और उसके साथ ट्राउजर जिनकी कीमत उस रंग प्रिंट से आराम से लग जाती है। गेट के भीतर रस्सी पर ऐसे कुछ कपड़े टंगे हैं, एक तरफ पोछे की बाल्टी रखी है जिस पर पोछा लटका है। 
और इस सब के बीच वह लड़की गेट पर खड़ी मुस्कुरा रही है, धूप तेज है और गेट के ठीक बाहर एक लड़का मोटर साइकिल पर है और बस रवाना होने से पहले वे दोनो कुछ बात कर रहे हैं। मोटर साइकिल ने रफ्तार पकड़ी, लड़की अब भी मुस्कुराती हुई उस दिशा में देखती जाती है और वह मुस्कुराहट कोई साधारण नहीं है। 
यह वही प्रेम में डूबी मुस्कुराहट है। चेहरे से छलकता प्रेम है, भीतर का सुख और आनंद है। वह एक साधारण सा चेहरा, पीछे बंधा जूड़ा नुमा कोई पोनीटेल , मेकअप दिखा नहीं और होने की संभावना भी नहीं दिखी। लेकिन " प्रेम में आकंठ डूबी तरूणी" साक्षात दिख गई। 
फिर उस दिन के बाद मेरा ध्यान उस घर की तरफ अक्सर जाता है। मैं उस तरफ देखती हूं, कभी झाड़ू लग रहा है, कभी कपड़े निचोड़ कर टांगे जा रहे हैं, कभी दरवाजा बंद है। और कभी  दरवाजा खुला है। 
फिर एक शाम , वही दृश्य, मेन गेट है और मोटरसाइकिल है। इस बार मैंने लड़के को भी देखने का विचार किया। हालांकि, सीधा यूं घूर कर देखना बेहद अटपटा और एकदम वह पड़ोस वाली आंटी की तरह दूसरों के घर में  तांक झांक वाला  मामला लगता पर फिर भी यह रिस्क लेते हुए मैने थोड़ा चोर नज़रों से देखा।
एक मझौले कद का, न गोरा न कला बस एक साधारण सा चेहरा जो मोटरसाइकिल के शीशे में अपने बाल ठीक कर रहा था।  
"प्रेम में आकंठ डूबी तरूणी" का जीता जागता उदाहरण गेट पर खड़ा था। चेहरे के वह भाव कौनसे  शब्दों में बांधे जा सकते थे ?  वह साधिकार प्रेम का संतोष,  वह स्नेह में पगी मुस्कुराहट जो एक गाल से दूसरे गाल तक जाती है और मोटरसाइकिल के रवाने होने के बाद भी टाटा करते हाथों के साथ उस दिशा को देखते  हुए, गेट बंद करते हुए भी जैसे चेहरे से जाने का नाम नहीं लेती। 
कौन है ये दोनों ? मुझे पता नहीं । इनका इतिहास, भूगोल, समाज शास्त्र, राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र कुछ भी नहीं पता। और पता करने की कोई जिज्ञासा भी नहीं जागी। क्योंकि इस समस्त सूचनाओं के पहाड़ पर वह एक नजारा भारी पड़ता मालूम हुआ मुझे। 

Photo Courtesy : Google

Sunday, 6 July 2025

ज़िंदगी की वाशिंग मशीन

वाशिंग मशीन है आपके घर में ? कौनसी वाली ? सेमी ऑटोमैटिक या फुली ऑटोमैटिक ? मेरे घर में अब कुछ वर्ष से फुली ऑटोमैटिक मशीन है , जिसको चलाना सीखने में मुझे कुछ महीने लगे और अब भी कई बार मशीन अटक जाती है, पानी व्यर्थ बह जाता है क्योंकि सेटिंग में कुछ गडबड हो गई।  बार बार पॉज और स्टार्ट का बटन दबाते हैं,  कभी कोई और बटन।
 
जब मशीन में कपड़े ज्यादा डाले जाते हैं कि कम समय और कम पानी के राउंड में ज्यादा कपड़े धुल जाएं ; पर मशीन भी चालाक है। यह पहले कपड़ों को तोलती है, उनका वजन लेती है फिर उस अनुपात में धुलने का समय तय करके टाइमर दिखाती है। माने अगर आप हमारी तरह ऐसे किसी क्षेत्र में रहते हैं जहां पानी की समस्या बनी रहती है तो निश्चित रूप से आप तीन राउंड वाले पानी की सेटिंग का प्रयोग नहीं करना चाहेंगे । बजाय इसके आप कपड़े ही कम कर देंगे।
अब वाशिंग मशीन की अगली कलाकारी देखिए, अगर पानी का लेवल तय सीमा से ज्यादा हो गया तो नहीं चलेगी, अगर कम हो गया तो भी नहीं चलेगी। आप करते रहिए बटन की टिक टिक, यह नहीं चलेगी मतलब नहीं ही चलेगी।  आप एक दो कपड़े बाहर निकलेंगे, यह सोचकर कि क्या मालूम अब चल जाए, अब मशीन में वजन कम हो गया। पर यह फिर भी अटकी ही रहती है। तब तक जब तक कि सभी सेटिंग इसके खुद के मॉड्यूल के हिसाब से सही ना हो। 
थोड़ा सोचिए कि वाशिंग मशीन और हमारा जीवन भी कुछ मिलता जुलता है। कितनी अपेक्षाओं, आकांक्षाओं और उपेक्षाओं का ढेर हमने भर रखा है मन की टंकी में। प्रतिक्षण किनारे तक भरी हुई और क्षण क्षण रीतती हुई मन की टंकी । इसका पानी का लेवल सही बना रहे इसके लिए अथक प्रयासों का बिलोना करता हमारा शरीर, मन और प्राण। पता ही नहीं चलता , कब पानी ज्यादा भर गया तो मशीन अटक गई, पानी कम पड़ गया है तो भी अटक गए। 
और मजेदार किस्सा ये कि दूसरे के जीवन की टंकी बिलकुल बराबर भरी और सही काम करती दिखती है। बस हमारी ही बार बार अटक रही। 
मशीन की सेटिंग में क्या गड़बड़ है ??? कौन बताए ? 
यह पानी क्या है ? यह वो अपेक्षाएं हैं , आशाओं के झूलते सिरे हैं जो किसी दूसरे तीसरे से जुड़े हैं। और इसलिए अक्सर कम ज्यादा या आधे अधूरे पड़े हैं।  इस पानी के लेवल को बराबर कर सकना अपने मन का होता तो मशीन अटकती ही क्यों ? और अटक ही गई है तो वापिस कैसे चले !!!  
मशीन लोहे स्टील की है, बिजली से चलती है, उसमे कोई एक सॉफ्टवेयर प्रोग्राम सेट है, इसलिए वह चलेगी अपने हिसाब से। हमारा इंसान का हार्डवेयर सॉफ्टवेयर सारा कुछ ही इधर उधर के रस्सियों तारों से अटका है।  यह सॉफ्टवेयर अपने मन का होते हुए भी दूसरे के मन और दूसरे के करने धरने से ज्यादा चलना पसंद करता है। और इसलिए पानी से बनी अपेक्षाएं बनती हैं, बहती हैं और बिगड़ती हैं। फिर अपेक्षा से आगे उपेक्षा वाले स्टेज पर पहुंचते हैं। उपेक्षा भी इसलिए कि सेल्फ रिस्पेक्ट और मान अभिमान का बिलोना करके अब कुछ शेष बचा नहीं। इसलिए कुछ समय उपेक्षा के खारे पानी से काम चला लेते हैं। लेकिन फिर  खारा पानी हमारे मन को भाता कहां है। फिर अपेक्षा का मीठा पानी तलाश करने निकल पड़ता है। 
और यह अपेक्षा, आकांक्षा और उपेक्षा की मशीन ऐसे ही चली चलती है। जब तक अपेक्षा का पानी पूरा भरा रहता है तब तक सारे सॉफ्टवेयर सही हैं जब उपेक्षा का पानी आने लगे तो ,,,,,