तीसरी चिट्ठी
तुमको मेरी हर बात किसी फंतासी वर्ल्ड का किस्सा ही क्यों लगती है ? मैं क्या यहां परियो की कहानी सुनाने बैठी हूँ, मैं हमारी यानी तुम्हारी और मेरी बात कर रही हूँ और तुम इसे मेरी डे ड्रीमिंग और ज़रूरत से ज्यादा सेंसिटिव होने की आदत कहते हो. ये सब सुन कर लगता है कि मैं और तुम धरती के दो अलग किनारो पर खड़े हैं, ठीक ही तो है … ज़सूम और बरसूम।
खैर तुम्हारी बात को ज़रा और साबित करने के लिए तुम्हे कुछ और बताऊँ , हर रोज़ जब मैं ड्राइव कर रही होती हूँ तब मुझे ऐसा लगता है कि तुम पास बैठे हो और मैं तुमसे बातें किये जा रही हूँ, है ना दिलचस्प बात. पता है मुझे, तुम फिर कहोगे कि मेरा crack up हो रहा है. पर क्या करू, तू ना सही तेरी बातें ही सही … इसलिए खुद को ये अहसास दिलाये रखती हूँ कि तुम दूर नहीं यही आस पास हो. क्या तुमने भी कभी ऐसा किया है ? जानती हूँ कभी नहीं किया होगा, कर ही नहीं सकते, ऐसी बेसिर पैर की हरकत के लिए तुम्हारे पास वक़्त भी कहाँ है, जब यहां आने के लिए वक़्त नहीं तो assumptions और presumption के लिए कहाँ से वक़्त मिले …
एक और बात बताऊ, अब तुम कहोगे कि मेरी बातों का अंत नहीं पर और किसको मैं ये सब बता सकती हूँ. मुझे कह लेने दो, कभी कभी मुझे डर लगता है … बहुत सारा … और तब मैं किसी को ये बता नहीं सकती कि मैं अंदर से कितनी डरी हुई हूँ, तब मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है और मैं खुद से ही बातें करने लगती हूँ. इसलिए तो हर बार तुमसे पूछती हूँ कि कब आओगे ?
कल सेंट्रल पार्क गई थी, यूँही अकेले, बस मन हो गया हरी हरी घास पर नंगे पैर चलने का और एक कप कॉफ़ी पीने का. उस वक़्त वहाँ कैफ़े में बैठे कॉफ़ी पीते हुए तुम बहुत याद आये. वहाँ बैठे खिलखिलाते लड़के लड़कियों के ग्रुप कितने बेफिक्र, ज़िन्दगी की आने वाली ज़िम्मेदारियों और दुश्वारियों से अनजान अपने अपने साथियों के साथ कितने खुश खुश कहकहे लगा रहे थे. तब लगा कि कॉफ़ी का कप, टेबल पर बैठा कितना अकेला और बेचारा सा लग रहा है जबकि कॉफ़ी पर चोको पाउडर छिड़का गया है और ऊपर की क्रीम वाली परत पर एक नफीस डिज़ाइन बनी हुई है.
अच्छा एक दिलचस्प बात बताऊँ तुम्हे, अभी पिछले हफ्ते एक वेडिंग रिसेप्शन में सज धज के जाना हुआ, कार मैं ही चला रही थी और अचानक से मैंने कुछ सुना, गियर बदलते वक़्त कलाई को जो झटका लगता है उसके कारण हाथ में पहनी चूड़ियाँ खनकने लगते थे. ये किसी धुन का एक टुकड़ा कहीं गिर गया हो, पियानो पर बजता संगीत का एक अधूरा नोट या बरसात की रिमझिम के बीच बैकग्राउंड में बजता संगीत, ऐसा कुछ लग रहा था. तुमने कभी ध्यान दिया है ऐसी आवाज़ों पर ?? अब तुम कहो कि मैं फिर से तुमको भावुकता में घसीट रही हूँ पर असल में, मैं कुछ और बात कहने के लिए भूमिका बाँध रही थी. कल फेसबुक पर किसी की वाल पर पढ़ा कि प्यार एक जादुई अहसास है लेकिन मुझे लगता है कि ये एक illusion है जो दिखाई तो नहीं देता पर इसके होने का अहसास हम खुद को दिलाये रखते हैं या कभी कभी ज़िन्दगी कुछ सिंबॉलिक तरीकों से इसकी मौजूदगी का अहसास हमें करवाती है. चूड़ियों की खनक का संगीत मुझे तीसरे चौथे गियर की स्पीड और ब्रेक के झटकों के बीच सुनाई दिया, क्या ये भी एक Illusion नहीं है ??
शायद तुम ठीक ही कहते हो कि मैं फिलॉसॉफी और व्यवहारिकता का और बचपने और मैच्योरिटी का एक अजीब कार्टून या मॉकटेल सा बन गई हूँ. सच कहूँ तो मुझे भी यही लगता है. खैर, ये किस्सा छोडो, अब चिट्ठी काफी लम्बी हो गई है. फिर बात करेंगे।
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अमृता ने अपनी डायरी बंद की और उसे टेबल के ऊपर वाले शेल्फ में सलीके से रखा. खिड़कियों और दरवाजों के बाहर चाँद और तारों वाली रात अब पूरी तरह रौशन थी.
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" यार, ये तो बहुत बोरिंग सी कहानी है, मुझे इसकी थीम ही नहीं जमी. काफी confusing और अजीब किस्म की है, मुझे नहीं लगता कि ज्यादातर पाठक इसे समझ पाएंगे।"
"इसे कहानी तो कह ही नहीं सकते, ये तो एक मेमॉयर किस्म की चीज़ या कुछ निबंध जैसा है."
"लेकिन इस पर एक प्ले बना सकते हैं, मेरा मतलब सिंगल करैक्टर वाला प्ले। क्या ख्याल है ?"
" मेरे ख्याल से तो इसे दुबारा लिखो और अबकी बार इसमें कुछ दोतरफा कन्वर्सेशन भी डालो, शायद तब ये बेहतर लगने लगे."
"देखते हैं, अभी कुछ सोचा नहीं है."