Tuesday, 3 April 2012

ये बाज़ार है

हम सब फूलों से  प्यार करते हैं. हम सबको फूल  ही चाहिए.

हम सब फूलों के मखमली कालीन पर चलना चाहते हैं. 

हम सब फूलों के नाज़ुक बिछौनों पर सोना चाहते हैं. 

हम सब  फूलों से बनी  नर्म और महकती हुई गर्म रजाइयां ओढ़ कर सुख के सपने देखना चाहते हैं.

हम सब  फूलों की तस्वीरों से ज़िन्दगी की दीवारों को सजाना चाहते हैं. 

हम सब फूलों के गहनों से अपनी अलमारियों और दिलों की तिजोरियां भरकर उन पर ताले लगा देना चाहते हैं. 

हम सब को फूलों की ख्वाहिश है..

कितना कुछ चाहिए हमें, कितना ज्यादा, अपने हक से ज्यादा..अपने हिस्से से भी ज्यादा  हमें ज़िन्दगी से चाहिए.

पर मिलता नहीं, दिया नहीं जाता. 

जितना हिस्सा है उस से भी थोडा  कम  मिलता है. 

जीवन का तराजू बनिए की तरह हम को तौलकर देखता है, फिर बाज़ार में हमारी कीमत का अंदाज़ा लगाता है. 

फिर उतना ही देता है जितने के हम काबिल है या जितना हम संभाल सकते हैं और जितनी हमारी बाज़ार के मुताबिक़ हैसियत भी है. 

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हम सब को फूल चाहिए पर असल में हम सब हैं पत्थरों के व्यापारी. 

हम फूलों का सौदा पत्थरों के बदले करना चाहते हैं.

हमें नज़र ही नहीं आता कि कब इस अदला बदली में  इन पत्थरों के नीचे फूल कुचल गए और मर गए.

हम पत्थरों के सिक्कों से फूलों की खुशबू खरीदने चले हैं. क्योंकि और कुछ देने को हमारे पास है नहीं और खरा मुनाफे का  सौदा किये बिना हम रह नहीं सकते.

हमें फूल चाहिए जिनसे हम अपने पत्थरों को ढक सकें, जिनसे हम अपने खुरदुरेपन को छुपा सकें.

हमने फूल खरीदे हैं, हम उनके मालिक हैं, हमने कीमत अदा की है और इसलिए बनिया भी हम, तराजू भी हमारा और इसकी परख भी हम ही तय करेंगे.



 

3 comments:

Pallavi saxena said...

अपने जो कहा वो भी सही मगर एक बात और भी जोड़ी जा सकती है की चाइए तो अदा हमें फूल ही मगर फूलों के दर्द को कभी महसूस ही नहीं किया हमने कि किस तरह से फूल कांटो पर सोते हुए भी या यूं कहें ही कटों पर रहते हुए भी अपनी कोमलता बननाए रखता और दूसरों को सुख प्रदान करता है। कशा हम भी इन फूलों से कुछ सीख पाते तो हमरे यह लोके हे पत्थर जिन से हम फूलों को खरीदना चाहते हैं वो बेमानी न कह लाते....

Yashwant R. B. Mathur said...

बिलकुल सही कहा आपने !

सादर

Bhavana Lalwani said...

Thank u Pallavi ji and Yashwant ji.