Saturday, 21 April 2012

आयशा --भाग 2

 .....और उनके बाद आयशा की सास यानि तरुण की माँ भी कुछ दिन रहकर लौट गई..अब मेघना उनको पहचानती तो नहीं और ना ही किसी किस्म की भावनाएं या संवेदनाएं उसके अन्दर जाग पाती हैं पर फिर भी जब तक वो रहीं तब तक कुछ हद तक  मेघना को तसल्ली रही कि वो घर में ..एक अनजाने घर में अकेली नहीं है ....अब उनके जाने के बाद, घर है, मेघना है, तरुण है, एक कोई नौकरानी भी है जिसका नाम राधा है और हैं घर की दीवारें, छत और पता नहीं कौन कौन सी चीज़ें, सामान जिनके बारे में कभी तरुण तो कभी कोई और उसे कुछ बताते या याद दिलाने की कोशिश करते ही रहते हैं..पर कुछ याद आये  जब ना... मेघना इन चीज़ों और तस्वीरों को देखती रहती है, किसी आयशा का चेहरा है उन सब में, किसी आशु की छाप है घर के सामान  पर..अब इसमें मेघा कहाँ है, उसका कहीं कोई निशाँ भी नहीं दिखता,  ऐसा क्यों? ..और अब तो उसकी स्मरण शक्ति थोड़ी सी कमज़ोर भी  हो गई है, कोई भी बात दो बार बताओ तब कहीं  याद रह पाती है..पर doctors  का कहना है कि ये तो धीरे धीरे  ठीक हो ही जाएगा..

सबके जाने के बाद मेघना ने अपने लिए अलग बेडरूम माँगा...तरुण ने अपना बेड लिविंग रूम में लगा  लिया..(और रास्ता भी क्या है)  शायद यही सोचा होगा उसने..  
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
तरुण के कुछ करीबी दोस्त, खुद  मेघना के दोस्त  और कुछ रिश्तेदार जो इसी शहर में हैं,  मेघना को मिलने आते रहते हैं.. मेघना इनमे से ज्यादातर को अस्पताल में ही मिल चुकी है इसलिए ये चेहरे उसके लिए अनजाने तो  नहीं..पर इसके आगे और कुछ भी उसे याद नहीं है.  कुछ बेहद सामान्य सी बातचीत होती है जिनसे वो बहुत जल्दी उकता जाती है ..ज्यादातर वक़्त वो चुप रहती है और सबको यूँही देखती रहती है..उस वक़्त मेघना को लगता है कि जैसे वो किसी जू में रखा हुआ खूबसूरत जानवर या पक्षी है जिसे देखने  के लिए लोग आ रहे हैं..एक दो बार उसने तरुण को ये बताया भी लेकिन अब आप किसी को बीमार का  हाल चाल पूछने  आने से तो मना नहीं कर सकते ना . ...मेघना ये सोच के मन को तसल्ली देती कि कुछ दिन और..बस  कुछ दिन और ...अब इन कुछ दिनों के बाद क्या होगा या कैसा परिवर्तन आ जाएगा इसके बारे में तो उसे खुद भी नहीं पता.
-----------------------------------------------------------------------------------------------
"ये  सब क्या है..?"
"ये कैंडल मोल्ड्स और chocolate  मोल्ड्स हैं ना...तुमने कैंडल और chocolate मेकिंग सीखा था."
"कब..क्यों?"
"अब तुम्हारी पसंद थी..और फिर तुम तो आर्डर पर customized  कैंडल्स और chocolates भी बनाती हो.."
मेघा को समझ तो कुछ ना आया..बस सिर  हिला दिया...जो अगर कभी ऐसा कुछ  सीखा भी था तो वो भी अब याद नहीं है.

२-४ दिन और रातें  जैसे तैसे बीते...एक रात तरुण की नींद खुली..कुछ आवाज़ आ रही है..बत्तियां जल रही हैं.."आशु......."
आशु कमरे में नहीं है..वो हॉल में सोफे पर सिमट कर बैठी  है ..कुछ बोल रही है या बुदबुदा रही है ..
"आशु..क्या हुआ..?"
" कुछ नहीं, नींद नहीं आ रही थी, इसलिए.." उसकी नज़रें फर्श को देख रही थीं.. और उसे हिचकियाँ  भी  आ रही थी ... इन हिचकियों को  तरुण खूब अच्छे से  समझता  है कि कोई  चिंता, परेशानी  या बोझ सा है  मेघना के मन में जो वो कह कर बता नहीं रही.
" क्यों, क्या हुआ...मुझे उठा दिया होता..."  कोई जवाब नहीं..
"तुम ठीक हो..कोई और परेशानी तो नहीं..आशु?"  तरुण की आवाज़ में स्नेह है...उसने शायद मेघना का हाथ थामना चाहा ..पर मेघना थोडा और सिमट गई.  कुछ देर तक शांति रही..
"सोने की कोशिश करो, नींद आ जायेगी..क्या मैं आकर सॉऊ तुम्हारे कमरे में ?"
मेघना ने पलट के सवाल किया, "तुम कहाँ सोते हो?"
"वहाँ.." तरुण ने इशारे से बताया.
"मैं भी वहीँ सो जाऊं..?"
"ठीक है."
"स्वीट निन्नी, आशु".
"क्या..??? क्या कहा",  मेघना ने अपने लिए बिछे बिस्तर पर सोते हुए  पूछा.
"स्वीट निन्नी, अच्छी नींद आ जायेगी." तरुण ने मुस्कुराते हुए कहा.
मेघना को कितना अच्छा लगा ये तो वो ही जाने पर नींद ज़रूर आ गई.  तरुण  जागता रहा, देखता रहा, मद्धिम  रोशनी में उस सोते हुए चेहरे को जो कहने को तो अभी उसकी बीवी आयशा  है  पर "आशु" कहाँ है इस चेहरे में,  ये ढूँढने  में ही सारी  रात गुज़र गई.

"पानी पानी रे  खारे  पानी रे, नैनों में भर जा ....नींदें खाली कर जा.. 
पानी पानी,  इन पहाड़ों की ढलानों से गुज़र जाना ....."  ये मेघना के गाने की आवाज़ है. जो कुछ याद रहा गया है उसमे मेघा की पसंद के  गानों की भी बड़ी संख्या है.  शाम को वो रोज़ छत पर गमलों के पास आकर बैठ जाती है... किसी चीज़ में उसका मन नहीं लगता, ना इस घर में  ना इस से जुड़े किसी मुद्दे में... तरुण समझता है पर क्या करे, ये नहीं  जान पाता ....   एक दो बार कहा भी कि फिर से अपना काम शुरू करो, उसमे मन लगेगा तो शायद ज़िन्दगी थोडा जल्दी नॉर्मल ट्रैक पर आ जायेगी, पर...

आज तरुण घर पर है...उसे पता है कि ये गाना ही क्या ऐसे कितने ही गीत आशु को इस तरह याद हैं जैसे कि कोई सामने रखे कागज़ पर लिखा पढ़ रहा हो.. पर फिर वो ज़िन्दगी का सबसे खूबसूरत और प्यारा गीत क्यों भूल गई है, याद क्यों नहीं करती.
"आशु,..कुछ याद आता है तुम्हें.."
"नहीं..." उसने ऐसे सर झुका लिया जैसे ये कोई बड़ी गलती है और इसके लिए उसे बेहद पछतावा है. फिर पूछ बैठी..
"तुम..तुम्हे..तुमको ये सब.. गुस्सा नहीं आता क्या तुम्हे.? ये कैसी ज़िन्दगी है हमारी.. मैं और तुम.. ये घर, ये रिश्ते..पर कुछ नहीं  जानती मैं इनके बारे में...मुझे कुछ याद नहीं तुम्हारे बारे में ...और शायद कभी कुछ याद आएगा भी नहीं..."

"हाँ हो सकता है कि तुम्हे कभी कुछ भी याद ना आये..हो सकता है कि तुम्हे मेरे बारे में, इस घर के बारे में कभी कोई चीज़  याद ना आ  पाए...पर ये भी तो हो सकता है ना कि तुम्हे सब याद आ जाए..हम इस तरह उम्मीद तो नहीं छोड़ सकते ना.."
मेघना बोली कुछ नहीं पर चेहरा और झुकी हुई पलकें बहुत कुछ कह गईं.

"पता है तुम में कोई बदलाव नहीं है.. तुम वैसी ही हो..वैसी ही जिद्दी कि अगर कोई चीज़ समझ ना आये या पसंद  ना आये तो तुम उसे क़ुबूल करने से साफ़ मना कर देती थी...फिर कोई लाख समझाए..अगर तुम्हारी समझ में नहीं आये तो सब बेकार..दुनिया सारी की पसंद एक तरफ और तुम्हारी टेढ़ी नाक एक तरफ.." तरुण ने मेघना का मन बहलाने के लिए बात बदली...पर लगा नहीं कि उसका कुछ असर हुआ है. .आखिर वो उसके पास बैठ गया..
"आशु....तुम्हे अब शायद याद ना हो...पर एक दिन तुमने मुझसे कहा था कि जब कभी तुम मुझसे नाराज़ हो जाओ तो मुझे तुम्हे मनाना ही होगा...पर मुझे कभी तुमसे नाराज़ होने का हक नहीं..ये हक सिर्फ तुम्हारा है...और मैंने यही मान लिया है कि तुम मुझसे  बहुत नाराज़ हो किसी बात पर और मुझे तुम्हे मनाना होगा.."

मेघना तरुण को थोड़ी देर देखती रही..एकटक, कुछ कहने की भी कोशिश की शायद, पर कह नहीं पाई..बस देखती रही..उसकी आँखों  का पानी अब भी उसके चेहरे पर अपने निशान बनाता बह रहा था..

"और तुम्हारे शब्दों में कहूँ ना तो It's your Absolute Right, Fundamental Right, Civil Right...." तरुण  ने  हंसने की कोशिश की इस उम्मीद में कि शायद मेघना भी हंस दे..हंसी तो ना आई पर हाँ एक मुस्कराहट ज़रूर उस चेहरे पर आ गई, ऐसे जैसे, तेज़ धूप में अचानक बारिश होने लगे, ऐसे जैसे बादलों से घिरे आसमान में कहीं बिजली चमक जाए... मुस्कराहट उस चेहरे पर जिसकी पहचान वक़्त के ऐसे जंगल में  कहीं खो गई है, जहाँ से एक नहीं कई रास्ते निकलते हैं...और हर रास्ते पर उसी चेहरे का एक अलग ही अक्स है..

अब इतने दिन बीत गए हैं कि शरीर से तो मेघना बिलकुल ठीक हो ही गई है..पर मन अभी भी कहीं गुज़रे वक़्त में ठहर गया है..वहाँ से निकल नहीं पा रहा और निकलना भी नहीं चाह रहा. घर में खाली बैठे बैठे मेघना के पास वक़्त बहुत है, सोचने के लिए, घर को देखने और घर के  सामान   से जान पहचान करने के लिए. बहुत सारी बातें सोचती रहती है मेघा...जो आज है, जो कल था, जो आने वाले समय में हो  सकता  है या नहीं भी हो सकता है.. तरुण के बारे में भी सोचती रहती है..और अब इतना तो मान ही चुकी है कि अब वो सिर्फ मेघना नहीं आयशा भी है...और तरुण अब सिर्फ नाम नहीं है,  एक रिश्ता भी है ..याद भले ही ना हो, पहचानती भी ना हो पर इतना ज़रूर समझती है कि इस तरह ख्याल रखने वाला, देखभाल करने वाला साथी कोई अनजान या नामालूम सा शख्स नहीं है. अब वो जो भी है,  वर्तमान में  उसकी ज़िन्दगी का हिस्सा है और भविष्य में भी रहेगा...शायद ... विश्वास जैसा कहीं कुछ होता हो तो फिलहाल तो मेघना या आयशा जो भी कह लें ..तरुण का और उसकी हर बात का विश्वास कर पाती हो या नहीं पर रोज़  उसके घर लौट आने का इंतज़ार ज़रूर करती है..उसके साथ बैठ कर बातें करने और उसकी बातें सुनने में निश्चित रूप से उसकी दिलचस्पी है..

"show me the way take me to love......."  ये गाना चल रहा था किसी म्यूजिक चैनल पर, जब आयशा कमरे में आई...अब तक गाने का अंतरा शुरू हो गया था..पर तभी लाइट चली गई...पर तभी तरुण ने सुना..
"A wish a dream, magic go it does seem, has time stood still just for me... just for me... यहाँ आकर  आयशा का गाना रुक गया.. "आगे याद नहीं आ रहा."

"It's saying that we're meant to be together forever one another's destinies" 
तरुण ने आगे की पंक्ति पूरी की..
जैसे अचानक से ही आयशा को बहुत पहले किसी की कही  हुई बात याद आ गई, "इस दुनिया में विश्वास जैसा कहीं कुछ नहीं होता..हमें सिर्फ ये तय करना होता है कि कोई इंसान हमारे लिए ठीक है या नहीं, क्या हम उसे पसंद करते हैं , हमें बस एक चुनाव करना होता है..और चुन लेने के बाद हमारे दिल को तसल्ली होनी चाहिए कि हमने सही इंसान को चुना है..इसी तसल्ली की परख में ही सारे सच झूठ, विश्वास-अविश्वास, फरेब और सरलता के राज छुपे हैं.  वो बस तरुण को थोड़ी देर तक यूँही टकटकी बांधे देखती रही..
"क्या हुआ?"
"कुछ नहीं...बस यूँही.." एक बार फिर  से उसे हिचकियाँ होने लगीं..
"आशु...." पर आयशा रुकी नहीं..सीधे अपने रूफटॉप गार्डेन को देखने चली गई..

"हमारे यहाँ हरसिंगार और डेहलिया के फूल क्यों नहीं हैं...मुझे वो बहुत पसंद हैं.."
"दोनों थे..पर इतने दिन से किसी ने देखभाल की नहीं..इसलिए ज्यादातर फूलों के  पौधे मुरझा गए तो मैंने माली से कहकर उन गमलों को हटवा दिया. अब सिर्फ palms  और दूसरे पौधे  ही हैं. "
 "तो माली को बुलाओ, मुझे नए पौधे लगाने हैं..ख़ास तौर पर फूलों के."

अगले दिन माली आया, आयशा उसे बहुत सारी चीज़ें समझाती रही, बताती रही, खुद भी पता नहीं  किन किन कामों में उलझी रही..ऐसा लगता था कि  एक ही दिन में बगीचे का नक्शा ही बदल देगी..आज तरुण को एक लम्बे वक़्त के बाद मेघना में आशु दिख रही है..सिर्फ नाम की आशु नहीं , वही आशु जिसने कभी खुद इस घर का interior  डिजाईन किया था.

अब सांझ हो गई है..आयशा थक गई है, पर चेहरे पर संतुष्टि है..उसकी पसंद के पौधे लग गए हैं और अब तो बालकनी में भी एक छोटा गार्डेन space  बना दिया गया है. तरुण वहीँ गमलों के पास खड़ा है... आयशा  भी पास आकर खड़ी हो गई. तरुण ने उसका हाथ थाम लिया और अब  आयशा का सिर उसके कंधे पर था...विचारों और भावनाओं का तूफ़ान अभी भी थमा नहीं है मेघना के अन्दर पर अब उस तूफ़ान में भी उसे  जीवन का संगीत, लय, संतुलन और एक समतल किनारा दिखाई दे रहा है...और अब उसे मेघना और आयशा के बीच के उलझे धागे अब  सुलझते दिखाई दे रहे हैं..



Part -- 1























2 comments:

Sawai Singh Rajpurohit said...

Very very nice post ..

Yashwant R. B. Mathur said...

मैम आपकी हर कहानी बेहतरीन होती है। और आगे भी दोबारा पढ़ते रहने के लिए इसे मैंने बुकमार्क कर लिया है।

सादर