Thursday, 19 January 2012

दो अलग परछाइयां

तुम और मैं दो अलग जिंदगियां हैं. हम दोनों दो अलग दुनिया हैं. हम दोनों समय के दो अलग -अलग आयाम, दो अलग टुकड़े हैं. हम कभी नहीं मिलेंगे, हम कभी नहीं जुड़ेंगे या जुड़ पायेंगे एक--दूसरे से. हम में इतना ज्यादा फर्क है कि मिलना नामुमकिन है. हमारी दुनिया, हमारे सपने, हमारे रास्ते और हमारी ख्वाहिशें सब इतनी जुदा हैं कि मिलने या साथ होने के बारे में सोचना ही असंभव है.

हम दोनों की नज़रें अलग-अलग दिशाओं में अलग अलग नज़ारे देख रही हैं. एक--दूसरे को जो नाम और जो पहचान  हमने दी  है, उनका अर्थ भी हम दोनों के लिए अलग-अलग है.और इसलिए हम दोनों दो अलग  दुनिया, दो अलग वक़्त हैं जो कभी एक--दूसरे से नहीं मिल सकते. हम दोनों सिर्फ दो अलग इंसान ही नहीं, उस से भी ज्यादा "हम दोनों" जैसा कहने के लिए कोई आधार तुम्हारे और मेरे बीच नहीं है. जो है तो सिर्फ "हम" जैसा कुछ होने का वहम, कहीं कुछ एक परछाईं सा, एक नाज़ुक धागा जो "हम" होने के वहम को बनाये हुए है. लेकिन "हमदोनो" ही जानते हैं कि  ये सिवाय वहम के और कुछ भी तो नहीं.

2 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

कुछ रास्ते साथ चलते है पर मिलते नहीं.....

RAMESH MAISHERI candlemould.com said...

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