वो झील के किनारे बैठी थी. उसके पैर एडियों तक पानी में डूबे हुए थे और उसके लम्बे रेशमी बाल उसकी पीठ पर बिखरे थे और ज़मीन को छू रहे थे. उसने एक लम्बा सा फ्रौक पहन रखा था जिस पर नीले, सफ़ेद और पीले रंग ऐसे लग रहे थे जैसे किसी चित्रकार ने यूँ ही ब्रश चलाया हो.. उसके चेहरे पर एक मुस्कराहट थी और वो अपने ही जाने कौनसे ख्यालों में खोई हुई थी. उसकी आँखें अपने आस पास के वातावरण की हर चीज़ को एक आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी के साथ देख रही थी, जैसे उस खूबसूरत, शांत और अनछुए कुदरत के नजारों को अपनी आँखों में क़ैद करती जा रही हो...उस वक़्त उसे सिवाय उन नजारों के और किसी चीज़ का शायद ही कुछ ध्यान रहा होगा..अचानक उसे अपने हथेली के पास कुछ गुदगुदी सी महसूस हुई, उसने देखा एक मखमल सा सफ़ेद खरगोश उसके हाथ के पास अपनी छोटी सी नाक से ज़मीन रगड़ रहा था..उसे हंसी आई, जैसे कोई छोटा बच्चा हंसा हो ...
उसने एकदम से बढ़कर खरगोश को पकड़ने की कोशिश की..पर ये क्या, वो तो एक ही क्षण में जाने कितनी दूर तक दौड़ गया..वो भी उसके पीछे भागी ..और फिर एक झाडी से दूसरी झाडी के पीछे, एक पेड़ से दूसरे पेड़ की तरफ, एक कोने से दूसरे तक..वो खरगोश के पीछे दौड़ती रही कि शायद पकड़ में आ जाए..उसकी साँसे तेज़ हो रही थीं पर उसकी हंसी पूरे माहौल में गूँज रही थी ..अचानक उसने कुछ महसूस किया, वो रुक गई, पीछे मुड़ी, उस दिशा में देखने के लिए, जिसने अचानक उसके खेल में विघ्न डाल दिया था..
वहाँ एक लड़का खड़ा था, उसे अजीब सी निगाहों से देखता हुआ, जैसे किसी अनिश्चय में डूबा हुआ...उसने भी लड़के को देखा..सर से पैर तक ..उसकी निगाहों में एक कठोरता थी ..एक उपेक्षा, लापरवाही और थोडा सा गुस्सा भी ..जाने कितने सवाल थे उन आँखों में..शायद पूछना चाह रही थीं, " कौन हो तुम और किसकी इज़ाज़त से यहाँ तक चले आये हो?" पर फिर वो बिना कुछ कहे चुपचाप मुड गई , जिस तरफ से आई थी , उसी तरफ वापिस चली गई.. लड़का अभी भी उसे घूर रहा था और फिर कुछ सोच कर वो उसके पीछे चलने लगा..
"कौन हो तुम?" उस लड़के ने पूछा.
लड़की ने एक बार फिर उसकी तरफ तीखी नज़रों से देखा जैसे कह रही हो, " तुम कौन होते हो पूछने वाले या क्यों पूछ रहे हो?"
एक बार फिर से उसकी आँखें उस खरगोश को तलाशने लगीं जो अब पता नहीं कहाँ खो गया था और कहीं भी नहीं दिख रहा था..वो चुपचाप फिर से झील की तरफ चली गई और वहीँ उसी जगह जाकर बैठ गई. उसका प्रतिबिम्ब पानी में झिलमिला रहा था और वो उसे देखे जा रही थी या शायद उसमे कुछ तलाश रही थी ..कहा नहीं जा सकता.
लड़का भी अब तक उसके पास पहुँच चुका था. उसने पानी में लड़की के प्रतिबिम्ब को देखते हुए धीरे से पूछा, "क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ ?" वो इतना नज़दीक खडा था कि अब उसका प्रतिबिम्ब भी पानी में दिखाई देने लगा था, बिल्कुल लड़की के प्रतिबिम्ब के पास..उन दोनों की परछाइयां झील की शांत और पारदर्शी सतह पर एक-दूसरे में घुल मिलकर एक अलग ही तस्वीर बना रही थीं.
"कौन हो तुम?" सवाल दोहराया गया लेकिन लड़की ने एक बार फिर इसे उपेक्षित कर दिया और पलट कर प्रति प्रश्न किया..
"तुम कहाँ से आये हो?"
वो मुस्कुराया, " उस पार से.."
" उस पार..!! कहाँ से.." निश्चित रूप से इस जवाब ने लड़की की जिज्ञासा बढ़ा दी.
"पहाड़ के उस पार से.." उसने थोड़ी दूर एक पहाड़ की तरफ अपनी ऊँगली से इशारा करके बताया. वो अब तक उसकी इस दिलचस्पी को समझ गया था. लड़की ने उस दिशा में देखा और दूसरा सवाल किया, " क्या तुम यहाँ अक्सर आते हो?"
"नहीं ज्यादा नहीं, सिर्फ कभी कभार, लेकिन कभी किसी को यहाँ नहीं देखा इसलिए तुमको देख कर कुछ हैरानी सी हुई."
"वैसे तुम कहाँ से आई हो?" अब पूछने की बारी लड़के की थी.
"उस पार से".
वही जवाब उसे भी मिला और फिर उसने भी वही सवाल लड़की की तरफ दोहराया...
"नदी के उस पार से," अबकी बार लड़की ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया.
"लेकिन मैंने तो यहाँ कभी कोई नदी नहीं देखी."
"क्योंकि तुमने कभी देखने की कोशिश नहीं की".
"अच्छा.." अब हंसने की बारी लड़के की थी.
थोड़ी देर बाद लड़की के पैर पानी में छप छप कर रहे थे..
"तुम्हारा नाम क्या है?" लड़के ने पूछा.
"क्या उस से कुछ फर्क पड़ता है?" वो एक बार फिर हंसी. फिर उसने पूछा, "अच्छा, पहाड़ के उस पार कैसी दुनिया है? मैं कभी वहाँ नहीं गई."
लड़के ने धीरे धीरे बताना शुरू किया, और इस तरह उन दोनों के बीच बातों का सिलसिला चल निकला...और यूँ ही चलता चला गया जाने कब तक, वहीँ झील के किनारे बैठे .. ऐसा लग ही नहीं रहा था कि दोनों अजनबी हैं और अभी कुछ देर पहले ही मिले हैं...ऐसा लग रहा था जैसे दो पुराने दोस्त एक लम्बे अंतराल के बाद मिल रहे हों .. समय के कांटे भी जैसे कहीं रुक गए, सुस्ताने लगे, उनकी बातें सुनने लगे...अचानक लड़की बातें करते करते रुक गई जैसे किसी चीज़ ने बेसाख्ता उसका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया हो..उसने लड़के की तरफ कुछ झिझकते हुए देखा..उसने समझा, और पूछा, "क्या हुआ?"
"मुझे वो फूल चाहिए." लड़की ने उंगली से इशारा करके बताया...वहाँ झील में फूल था..पूरा खिला हुआ, थोडा गुलाबी, थोडा किनारों पर सफ़ेद और थोडा सा कुछ और हरे भूरे रंगों का मिश्रण.. फूल झील के किनारे से थोडा दूर था, वहाँ तक पहुंचना ज़रा मुश्किल सा था..
"वो तो काफी दूर है, और कुछ है भी नहीं कि वहाँ तक जाया जा सके.." लड़के ने थोडा परेशान होते हुए समझाना चाहा.. पर लड़की इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुई. लेकिन उसने आगे कुछ न कहा न पूछा पर उसका चेहरा कुछ नहीं, बहुत कुछ कहता हुआ सा लग रहा था..लड़के ने देखा , कुछ समझा और कुछ महसूस किया..फिर कहा..
"तुम वो फूल क्यों नहीं ले लेतीं..वो भी तो बहुत सुन्दर हैं...हैं ना?" उसने कुछ झाड़ियों की तरफ इशारा करते हुए कहा..और लगा जैसे कि लड़की को ये सुझाव पसंद आ गया और वो तुरंत ही उन झाड़ियों की तरफ तेज़ कदमों से चली गई.. फिर जैसे उसे कोई नया ही खेल मिल गया ..उसने कुछ फूल डंठल समेत तोड़ लिए और कुछ को उनके डंठल और नरम छोटी पत्तियों समेत ....कुछ फूलों को उसने अपनी कलाई पर कंगन की तरह लपेट लिया, कुछ फूलों को कानों के बुन्दों की तरह सजा लिया और कुछ का एक हार बना कर गले में पहन लिया.. और अपने माथे पर फूलों का छोटा ताज भी सजा लिया..उसकी हंसी, खिलखिलाहट रुकने का नाम नहीं ले रही थी, एक पेड़ से दूसरे की तरफ जाती हुई, पेड़ों से लटकती फूलों की लताओं से लिपटती हुई, उनमे खुद को उलझाती हुई..बस यहाँ से वहाँ..
वो उसे देख रहा था... आश्चर्यचकित और चमत्कृत सा, ..ये उसकी आँखों के सामने क्या है...ये कोई लड़की है या फूलों की एक बेल जो उस लड़की की तरह दिख रही है.. दोनों में अंतर करना मुश्किल लग रहा था..थोड़ी देर में लड़की का ध्यान उस पर गया, उसकी निगाहों पर गया...और उसने भी अपनी आँखें लड़के के चेहरे पर टिका दीं.. उसकी तेज़ नज़रें लड़के की आँखों के परदे को भेदते हुए उसके दिल और आत्मा तक पहुँच रही थीं..जैसे सब कुछ जाने ले रही हो, सब देख रही हों.. लड़के ने अपनी आँखें झुका ली और बड़ी मुश्किल से बोला..
"तुम.. तुम बहुत..बहुत.."
"सुन्दर लग रही हूँ.." उसने वाक्य पूरा किया और फिर से एक खिलखिलाहट हवा में बिखर गई..
"हाँ बहुत सुन्दर.."
वो मुस्कुराई..और फिर अगले कुछ लम्हों तक खामोशी ही उन दोनों के बीच बातें करती रही..कुछ कहती रही और सुनती रही..ऐसा लगा जैसे सारा जहान..ये सारी कायनात, वक़्त के उस एक लम्हे पर आकर थम गई हो..कुदरत की बनाई हर चीज़, हर रचना जैसे उस खामोशी से सम्मोहित हो कर वहीँ रुक कर उन दोनों को देख रही थी..खामोशी के उस जादू में सिर्फ साँसों की आवाज़ ही हवाओं में प्रतिध्वनित हो रही थी..
अचानक एक तेज़ आवाज़ ने उस प्रवाह को तोड़ दिया..लड़का तुरंत मुड़ा और उस दिशा में देखने लगा जहाँ से आवाज़ आई थी.. "मुझे बुला रहे हैं, मुझे जाना होगा.." उसने धीमी आवाज़ में कहा..लड़की चुप रही, बगैर एक भी शब्द बोले..
"मुझे जाना है.."
वो वैसी ही खामोश रही, उसकी आँखें अब किसी शून्य में खो गईं सी लगती थीं...
वो कुछ देर, कुछ क्षण वहाँ खड़ा रहा, इतनी देर में वो तेज़ आवाज़ फिर से गूंजी..लड़का अब उस आवाज़ की दिशा में दौड़ चला..लेकिन फिर जैसे कुछ याद आया और फिर एक पल के लिए रुका और चिल्लाया..
"तुमने मुझे अभी तक अपना नाम नहीं बताया..?"
"जून ..मेरा नाम जून है.."
"जून.. अजीब नाम है.." लड़के ने अपने आप से कहा और फिर चला गया. लड़की अब उस दिशा में देखने लगी जहाँ वो भागता हुआ गया और फिर कहीं खो गया. अगले कुछ क्षणों तक वो वहीँ खड़ी रही, निरुद्देश्य सी और फिर धीरे धीरे पेड़ों की तरफ वापिस चली गई. वो सोच रही थी.. समझ नहीं पा रही थी..
"क्या मैं दुखी हूँ..क्या कुछ कमी सी है, क्या मुझे उसकी कमी महसूस हो रही है..क्या मैं..???