किंतु इसका अर्थ, इसका व्यवहारिक रूप और असल जिंदगी में इसे देखने समझने की जिज्ञासा कभी पूरी नहीं हुई। कम से कम मुझे अब तक ऐसा चेहरा या ऐसे मुखमंडल या हाल चाल वाली कोई दिखी नहीं । ऐसा नहीं है कि मेरे आस पास के लोगों में प्रेम का अकाल है या मैं कोई नुक्ताचीनी कर रही हूं पर यह जो फेसबुक, व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर प्रेम का दरिया तस्वीरों, रीलों, वीडियो क्लिपों में बहे जाता है उसमे वह आकंठ डूबी तरूणी मुझे नहीं दिखती तो नहीं ही दिखती।
मुझे बढ़िया पोज दिखे, सुंदर चेहरे दिखे, सुंदर बैकग्राउंड और नजारे दिखे, बेहतरीन फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी, कपड़े गहने, चश्मे, जूते, बैग सब दिखता है लेकिन प्रेम में आकंठ डूबी तरूणी नहीं दिखी।
पर फिर अभी कुछ ही दिन हुए, हफ्ता दस दिन शायद। मैंने देखा ; एक साधारण सा घर जिसमे रहने वाले किरायेदार को। वैसे इतने महीने हुए, मेरा कभी भी ध्यान नहीं गया पर एक छुट्टियों के दिन ठाले बैठे मेरी नज़र गई उस लड़की पर । दोपहर है और वह मेन गेट पर खड़ी है, उसके कपड़े भी साधारण हैं, एक गहरे रंग का प्रिंटेड फिटिंग वाला ट्यूनिक टॉप और उसके साथ ट्राउजर जिनकी कीमत उस रंग प्रिंट से आराम से लग जाती है। गेट के भीतर रस्सी पर ऐसे कुछ कपड़े टंगे हैं, एक तरफ पोछे की बाल्टी रखी है जिस पर पोछा लटका है।
और इस सब के बीच वह लड़की गेट पर खड़ी मुस्कुरा रही है, धूप तेज है और गेट के ठीक बाहर एक लड़का मोटर साइकिल पर है और बस रवाना होने से पहले वे दोनो कुछ बात कर रहे हैं। मोटर साइकिल ने रफ्तार पकड़ी, लड़की अब भी मुस्कुराती हुई उस दिशा में देखती जाती है और वह मुस्कुराहट कोई साधारण नहीं है।
यह वही प्रेम में डूबी मुस्कुराहट है। चेहरे से छलकता प्रेम है, भीतर का सुख और आनंद है। वह एक साधारण सा चेहरा, पीछे बंधा जूड़ा नुमा कोई पोनीटेल , मेकअप दिखा नहीं और होने की संभावना भी नहीं दिखी। लेकिन " प्रेम में आकंठ डूबी तरूणी" साक्षात दिख गई।
फिर उस दिन के बाद मेरा ध्यान उस घर की तरफ अक्सर जाता है। मैं उस तरफ देखती हूं, कभी झाड़ू लग रहा है, कभी कपड़े निचोड़ कर टांगे जा रहे हैं, कभी दरवाजा बंद है। और कभी दरवाजा खुला है।
फिर एक शाम , वही दृश्य, मेन गेट है और मोटरसाइकिल है। इस बार मैंने लड़के को भी देखने का विचार किया। हालांकि, सीधा यूं घूर कर देखना बेहद अटपटा और एकदम वह पड़ोस वाली आंटी की तरह दूसरों के घर में तांक झांक वाला मामला लगता पर फिर भी यह रिस्क लेते हुए मैने थोड़ा चोर नज़रों से देखा।
एक मझौले कद का, न गोरा न कला बस एक साधारण सा चेहरा जो मोटरसाइकिल के शीशे में अपने बाल ठीक कर रहा था।
"प्रेम में आकंठ डूबी तरूणी" का जीता जागता उदाहरण गेट पर खड़ा था। चेहरे के वह भाव कौनसे शब्दों में बांधे जा सकते थे ? वह साधिकार प्रेम का संतोष, वह स्नेह में पगी मुस्कुराहट जो एक गाल से दूसरे गाल तक जाती है और मोटरसाइकिल के रवाने होने के बाद भी टाटा करते हाथों के साथ उस दिशा को देखते हुए, गेट बंद करते हुए भी जैसे चेहरे से जाने का नाम नहीं लेती।
कौन है ये दोनों ? मुझे पता नहीं । इनका इतिहास, भूगोल, समाज शास्त्र, राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र कुछ भी नहीं पता। और पता करने की कोई जिज्ञासा भी नहीं जागी। क्योंकि इस समस्त सूचनाओं के पहाड़ पर वह एक नजारा भारी पड़ता मालूम हुआ मुझे।