Wednesday, 1 April 2020

मूर्ख होने का विज्ञान 

फिल्में देखने का शौक फिर से जागा है और इसलिए रोज की एक फिल्म  देखने पर कमर बाँध रखी है।  और उसमे भी  sci  fi  और fantasy  वाली फिल्में मुझे ज्यादा पसंद हैं।  तो इसी जोश के चलते इंटरस्टेलर,  एड अस्त्रा और क्रिस्टोफर रोबिन समेत कुछ फिल्में देखीं और फिर विचारों का रेला चल निकला।  

आदमी को कितना दूर जाना पड़ता है, कहीं पास पहुँचने के लिए ?  कितने  सौ या हज़ार किलोमीटर चलना या दौड़ना पड़ता है ? जिस दीवार और छत से बाहर निकल कर आदमी चलना शुरू करता है अंतत: वहीँ  वपिस लौट आता है या लौट आने को उसका इरादा और मजबूत होता जाता है।  यानी जितना ही दूर गए उतना ही वापिस आने की इच्छा ज़ोर होती गई।  यह  गोरखधंधा ही सारे एक्सपेडिशन्स या एडवेंचर्स की जड़ है !!! 
ये सवाल मुझे इसलिए सूझ रहा है कि  आज अप्रैल फूल का दिन है , मूर्ख दिवस !!! याद होगा हम सबको कि  कैसे एक  ज़माने में इस दिन का हफ्ता भर पहले से इंतज़ार होता था और योजनाएं बनाई जाती थीं कि  कैसे अपने पडोसी, रिश्तेदार या मित्रों को "फूल" बनाया जाए. कैसे लोग बड़ी सावधानी बरता करते थे।  साबुन के टुकड़ों को टॉफ़ी चॉकलेट के रैपर में लपेट के डब्बे में रख के दिया जाता था , नकली फल थैले  में रख के दिए जाते थे, लड्डू में लाल मिर्च भरी  जाती थी, चाय में नमक या मिर्च कुछ मिलाया जाता था।  यही तो मनोरंजन था उस  वक़्त जब मोबाइल नहीं था , कंप्यूटर भी नहीं था।  

तो अब अप्रैल फूल इसमें आने जाने की कथा में कैसे जुड़ गया ??  ऐसे जुड़ा कि इंटरस्टेलर  और एड अस्त्रा  एक ऐसे वक़्त की कथा सुना  रही हैं जब दुनिया के पास तकनीक तो ऊँचे से ऊँचे दर्जे की होगी पर मजबूरियां भी उतनी ही ऊँची होगी।  कभी धरती का बैलेंस बिगड़ा होगा तो कभी आसमान आग बरसायेगा।  और इसलिए मानव का नाम और निशान बचाये रखने की खातिर अंतिम सीमा के परे इंसान को जाना होगा।  आज जिस चीज़ पर हम विश्वास नहीं कर सकते कि  ऐसा कोई तकनीक हो  सकती है या ऐसी भी कभी परिस्थिति हो सकेगी ?!!! यह सोचना या मानना भी मूर्ख हो सकने का प्रमाण माना  जा सकता है।  लेकिन ये फिल्में कहती हैं की ऐसा हो क्यों नहीं सकता ?? यह "क्यों "  सवाल ही अंतर है मूर्ख और समझदार के बीच।  कल्पना ही तो करनी है कि  ऐसा कुछ  अघट  भी  घट  सकता है धरती पर !!!! कोरोना ने हमें समझाया कि  हाँ हो सकता है,  इंसान अपने घर में  बंद रहने को मजबूर हो सकता है. वो सारी  फिल्में जो आपने देखीं  जिसमे ज़ोंबी, वायरस , एलियन  और अलाना और फलाना थे वो सब हो सकता है। यहां आकर समझदारी और मूर्खता के किरदार बदल  जाते है। क्रिस्टोफर रोबिन देखते वक़्त भी यही ख्याल आया कि  हंड्रेड एकर वुड्स की तरफ जो रास्ता और दरवाजा  जिस पेड़ की खोह से होकर खुलता है, उस पेड़ और उस दरवाजे को देख पाना किसी समझदार के बस की बात नहीं।  इसे देखने के लिए  आपको विश्वास की और खाली कोरे दिमाग की ज़रूरत है। जहां तर्क और  स्थापित ज्ञान  रुकने को कहता है, वहाँ से एक दरवाजा खुलता है जो एक ऐसी दुनिया में जाता है जहां तर्क की कोई खास जगह नहीं है, जहां बुद्धि केवल नाप तौल और ऊँचा नीचे का साधन नहीं हैं, जहां नफा और नुकसान का कायदा भी नहीं है।  

क्रिस्टोफर रोबिन में में एक दृश्य है, जब पूह और उसके साथी लंदन जा रहे हैं तब पिगलेट रुकता है और झिझक रहा है जाने से, तब पूह कहता है,  कि  पिगलेट हमें वहाँ तुम्हरी ज़रूरत होगी, हमें हमेशा तुम्हारी ज़रूरत होगी। और तब पिगलेट थोड़ा खुश सा होता हुआ  अभी भी डरता हुआ सा कहता है, अच्छा ज़रूरत है मेरी ; ठीक है तो फिर चलो।  ये पिगलेट हम सब हैं ;  किसी ऐसे विन्नी the  पूह  की उस आवाज़ की ज़रूरत है जो ये कहे कि  हमें तुम्हारी ज़रूरत हमेशा होगी।  क्योंकि आदमी अकेला नहीं रह सकता इसलिए ये जो जगह जगह छोटे झुण्ड और ग्रुप से दिखते  हैं ना गली , मोहल्ले, दफ्तर , बाजार  सब जगह पर, ये सब पिगलेट और पूह  के संवाद का  ही पसारा  है।  कोई नहीं चाहता कि उसे मूर्ख समझा जाए या "फूल" बना दिया जाए या "फूल" माना जाए ;  और खुद को "फूल" कहलाने से बचाने के लिए ही पूह चाहिए जो  खुद को मूर्ख मान ले  और आपको बुद्धिमान होने का अहसास दिलाये। 
भला खिलोने भी बोल सकते हैं या आपकी तलाश में आपको ढूंढते हुए आप  तक पहुँच सकते हैं  ?? कोई समझदारी इसे स्वीकार नहीं कर सकती लेकिन कल्पना की दुनिया में ये हो  सकता है।  एक सपाट कोरी स्लेट की दुनिया में ये हो सकता है।  

  इंटरस्टेलर  में एक दृश्य है जिसमे कूपर  ब्रह्माण्ड के आखिरी संभव कोने तक जाकर फिर एक पांच आयामी  संसार के ज़रिये  अपनी बेटी के कमरे में पहुँचता है और तब वो कहता है कि  समय  और समाधान  दोनों हमेशा से इस छोटी लड़की के कमरे में मौजूद थे।  यह ग्रेविटी की विसंगति और  कुछ नहीं केवल एक संकेतक थी किसी के यहां होने की जो उसी समय कहीं और भी है।  एस्ट्रोफिजिक्स की यह भाषा और  सिंद्धांत सुनते देखते समय एक आम दर्शक अचंभित होता है और उसकी बुद्धि बिना सवाल किये  केवल स्वीकार करती है कि  जो कहा जा रहा है वह सही सत्य है।  तब हम अपने समझदारी के लबादे को भूल जाते हैं क्योंकि आखिरकार  मनोरंजन के लिए  सिनेमा देख रहे  हैं,  हमने टिकट ख़रीदा, पैसे दिए हैं।  उस समय अपने को मूर्ख मानने या अज्ञानी मानने में हमें झिझक नहीं होती क्योंकि तब हम एक बड़ी भीड़ में शामिल हैं।  जब सारे अज्ञानी हैं तो हम कौनसे अलग हैं !!!!!   



फिर ख्याल आया कि  नई  समझदारी जो  सितारों के पार जाने की बात कहती है वही समझदारी याद  दिलाती है कि  इंसान  सिर्फ एक वल्नरेबल  बीइंग है।  ह्यूमन बीइंग।  एड अस्त्रा में एक दृश्य है जहां ब्रैड पिट Neptun के दो  महीने के सफर पर अकेला जा रहा है तब वो कहता है कि  मैं हमेशा सोचता था कि  मुझे अकेला रहना पसंद है लेकिन ऐसा नहीं है और वो रोता है  अपने अकेले होने के  ख्याल पर। इसी  फिल्म का एक और दृश्य है लगभग आखिरी दृश्य जहां  लीमा प्रोजेक्ट के स्टेशन से निकल कर स्पेस वाक करते हुए उसे अपने शटल में वापिस जाना है ; उसके सामने  और कुछ नहीं का विस्तार है ;  अँधेरे में चमकता ब्रह्माण्ड  और उस शून्य में एक अकेला आदमी ; यहां अस्तित्व है कोई नहीं के होने का ; कोई भी नहीं  केवल आप हैं और आपकी मूर्खता या समझदारी जो भी गठरी आप उठा के लाये हैं।  

 एक और  दृश्य है जहां वो मंगल पर पहुंचा है और कहता है कि  ये मैं कहाँ जा रहा हूँ ? सूर्य से दूर, रौशनी से दूर, धरती से दूर।  यह धरती से दूरी है जो इंसान बरसों में, उम्र के साल के हिसाब से और समय के धीमे या तेज़ होने के हिसाब से  नापता है।  इंटरस्टेलर में कूपर  नई  दुनिया की खोज में इसलिए निकला है कि  अपने बच्चों  को , सबको  इस नष्ट होते ग्रह  से निकाल कर ले जाए एक हरे भरे संसार में जहां आदमी फिर से दुनिया बसाएगा।  और इसलिए वे लोग एक मिनट एक घंटा सब कुछ नाप रहे हैं ; 124 साल का कूपर आखिर लौटता है धरती पर  फिर से  उस दुनिया तक पहुँचने के लिए जहां इंसान के लिए एक नई  दुनिया बस रही  है।  

एक और फिल्म देखी , "सर्चिंग ",  हमारे पास महँगी टेक्नोलॉजी वाले बढ़िया गैजेट हैं , हम नियमित फेस टाइम और texting  करते हैं लेकिन हम आमने सामने बात नहीं कर पाते. जितनी ऊर्जा टाइप करने और वीडियो कॉल में लगाते हैं  उतना तो किसी को जाकर मिलने या बतियाने में भी नहीं लगाते।  ये  बेहद दक्ष तकनीक आपके कब कहाँ होने को एक सेकंड में बता देती है।  आपकी ब्राउज़िंग हिस्ट्री आपके बहुत से गतिविधियों को बता देती है।  कब किस से क्या बात की। .. सब रिकॉर्ड है यहां साइबर स्पेस में , बस नहीं है तो इंसान के पास असल ज़िन्दगी में कोई नहीं  है जिस  से बात की जाए बिना झिझके बिना डरे , बिना कुछ फ़िक्र चिंता कि  कहीं ये मुझे मूर्ख  ना समझ ले !! कहीं मुझ पर मूर्ख होने का लेबल ना लग जाए; इसलिए हम भागते फिरते हैं पिगलेट होने के लिए।  आदमी की तलाश में तकनीक बेहद मददगार है लेकिन जब वो आदमी आपके सामने है आस पास कहीं बैठा है तब उसके पास आप  क्यों नहीं गए ??? इस फिल्म का एक दृश्य है जहां मार्गोट की तलाश का ट्रेंड हैश टैग twitter पर चल रहा है , यूट्यूब पर वीडियो हैश टैग किये जा रहे हैं वो साथ पढ़ने वाले जिन्होंने कभी उसके साथ बैठ  कर खाना भी नहीं  खाया वे लोग बड़ी ही इमोशनल पोस्ट इंस्टाग्राम, फेसबुक और यूट्यूब पर अपलोड करते हैं कैप्शंस देते हैं।  उस लड़की को हर कोई याद कर रहा है और आंसू बहती फोटो अपलोड कर  रहा है जिसको कभी उन्होंने शायद क्लास में देखा भी नहीं होगा  या अनदेखा कर दिया होगा।  न्यूज़ चैनल को एक दिलचस्प खबर मिली हुई है जिसके दर्शक हैं और बाजार को एक मुद्दा मिला  हुआ है जिसे एन  कैश  किया जा सकता है।  

और अब मूर्ख दिवस की शुभकामनायें  
 



Image Courtesy : Google