रोटी तो गरम लोहे के तवे पर सेकी और आग की लपटों पर पकाई जाती है। चाँद का नाज़ुक सफ़ेद ठंडा रूप और रोटी की गरम ताज़ी खुशबू , कहीं कोई मेल ही नहीं।
रोटी तो ज़मीन से निकला खरा सोना है जिसको आदमी अपनी मेहनत की आग में तपा के अनाज के रूप, रंग और स्वाद में ढालता है। फिर चाँद फूली हुई रोटी कैसे हो गया ??
चाँद आसमान की किसी एक ही जगह पर खड़ा रहता है या चलता जाता है , ये प्रश्न बादलों से पूछा जाना चाहिए क्योंकि वही चाँद को एक झीनी परदे वाली पालकी में बिठाये चलते हैं, जिसमे कभी चाँद दीखता है कभी छिप जाता है। ये बादल चाँद के राज़दार है , कब, किसने, कहाँ चाँद से बात की, उसे देखा, निहारा ?? चाँद ने किसको देखा, क्या कहा, क्या पूछा या बताया ? चाँद जब छुपा था तब कहाँ था और जब कहीं भी नहीं था तब कहाँ था ?? चाँद अपने आप में एक रहस्य है, आदमी के धैर्य की परीक्षा है; अभी दिखेगा, फिर नहीं भी दिखेगा ; अभी कल परसो तक गोल था बिलकुल मोती की तरह, लेकिन आज ज़रा कम गोल या अर्ध वृत्त सा कुछ दिख रहा है। चाँद के पास कितनी बातें हैं कहने के लिए, सुनने के लिए। चाँद बटोही। चाँद डाकिया। चाँद हमसफ़र।
फिर ऐसा नाज़ नखरों वाला चाँद फूली हुई रोटी कैसे हो गया ??
चाँद की रौशनी भी अलग अलग रंग बिखेरती हुई चलती है। जब काले बादलों में चाँद छिपता है तब भी उसकी हलकी सफ़ेद गुलाबी झाईं बादलों के पार दिखती है और आदमी अंदाज़ा लगाता है कि देखो चाँद अभी यहां इस बादल के पीछे है। चाँद की आभा में सफ़ेद रंग की जाने कितनी परतें दमकती हैं, फिर चाँद फूली हुई रोटी कैसे हो गया ? चाँद तो किसी महल के झरोखे पर परदे की ओट में खड़ी किसी सुंदरी सुकन्या का रूप है।
चाँद को फूली हुई रोटी कैसे ??? चाँद तो कवियों का काव्य और साहित्य का सारंग है। कितने सारे नाम धरे हैं चाँद के; हर नाम का एक अर्थ है, विस्तार है , प्रतीक हैं और कहानी है। यह शिव की जटाओं का श्रृंगार है। इसे देख कर व्रत उपवास खोले जाते हैं। राजवंशों का आदि और आरम्भ।
फिर नींद आ गई मुझे। सुबह जब जागे और प्राणायाम का अनुलोम विलोम करने बैठे तब तक चाँद की स्मृति शेष हो चुकी थी। अब आज याद आया कि उस रात चाँद को देखकर कितने ख्याल आये थे।