Sensible तो बहुत लिखा है मैंने, आज सोचा कि कुछ Nonsense भी लिखा जाए. कुछ Idiotic , Stupido , Silly, Absurd, Foolish, Imbecile, किस्म का लिखा जाए. अब इसकी वजह ना पूछिए, क्योंकि जवाब इसका सीधा सा ये है कि हम बोर हो गए हैं, जी हाँ सही पढ़ा आपने "बोर".
बोर हो गए हैं इस ब्लॉगिंग से. कितनी मेहनत से लिखते हैं, मगर क्या फायदा, कोई पढ़ने वाला ही नहीं, कितना ज़ुल्म है ये एक लेखक पर कि वो अपनी सृजनात्मक प्रतिभा का परिचय दे रहा है और कोई देखने पढ़ने सुनने वाला ही नहीं (लानत है ).
रुकिए ज़रा, शायद आप मुझे ये उपदेश देना चाहेंगे कि आजकल जिसे देखो ब्लॉगर बन गया है और ज़रा सा कुछ ऐसा वैसा चार लाइन लिख के खुद को लेखक मान बैठा है. जिसे देखो नई नई कविता रच रहा है, कोई हाइकू तो कोई काइकू (ये भी काव्य की एक विधा है, एक श्रीमान है जो प्रतिदिन फेसबुक के एक पेज पे अपना काइकू छापते हैं ) तो कोई गीत लिख रहा है. यानि हिंदुस्तान में साहित्य का भविष्य अति उज्जवल है और जब इतनी सारी प्रतिभाएं मैदान में है तो ज़ाहिर है कि केवल बहुत अच्छा लिखने वाले को ही तो अटेंशन, अवार्ड, रिवॉर्ड मिलेगा बाकी तो सब संघर्षरत, upcoming , budding वाली केटेगरी में ही संतोष कर सकते हैं.
पर खैर ये इंटरनेट है, संसार में ऊपर ईश्वर है और नीचे गूगल है अर्थात सर्वव्यापी, सर्वसमर्थ, सर्वज्ञानी, ध्यानी और संगी साथी सब कुछ है. दुनिया में मुझ जैसे निरीह, संसाधन विहीन, दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले लेकिन प्रतिभावान लोगों की पीड़ा को गूगल ने ही समझा और ब्लॉगिंग की सुविधा उपलब्ध करवाई। (जय हो गूगल महाराज की). अब यहाँ तक तो ठीक है कि सुविधा मिल गई लिखने की और across the globe पहुँचने की भी. पर भाई, खाली ब्लॉग पर पोस्ट कर देने से क्या होता है, खाली फेसबुक पर लिंक पोस्ट करने या एक पेज बना देने से भी क्या होता है ??? कुछ भी नहीं होता, बिलकुल नहीं होता।
आप भूल रहे हैं कि ये विज्ञापन, प्रचार प्रसार का युग है. बढ़िया पैकिंग और उसकी मार्केटिंग का युग है, इसी बात को ध्यान में रखकर गूगल ने ब्लॉग पर फॉलोअर का आप्शन दिया, फेसबुक ने भी लाइक्स, फॉलोअर के आप्शन लगा रखे हैं. लेकिन श्रीमान रुकिए, ठहरिये, ये फॉलोअर, कमेंट्स और लाइक्स ऐसे कैसे मिल जायेंगे, सीधा सादा give and take वाला मामला है. और इसी बात को ध्यान में रखते हुए blogadda , indiblogger , संकलक, हमारी वाणी, ब्लॉगोदय वगैरह websites हैं. जी हाँ, मैंने भी इनकी सदस्यता ले रखी है और मुझे इनसे कोई शिकायत भी नहीं (हो भी तो किसी की सेहत को क्या फर्क पड़ जाएगा) शिकायत तो मुझे तब होती है जब मैं इन साइट्स पर बेहद बकवास किस्म की तुकबंदी जिसको कविता या कहानी कहा जाता है या कुछ भी बेसिर पैर की तस्वीर पर होने वाली कमेंट्स और वोटों की बारिश को देखती हूँ. (हाँ आप कह लीजिये कि मुझे उन लोगों से बड़ी जलन हो रही है, क्यों आपके ख्याल से नहीं होनी चाहिए क्या ) ज़रा सोचिये indiblogger पर पचासों जाने अनजाने लोगों को वोट करने के बाद भी जब मेरी पोस्ट पर गिनती के वोट आते हैं या आते ही नहीं तो मुझे कैसा लगता होगा। कई बार बिकुल औसत या बोरिंग सी कहानी पर भी तारीफों की बाढ़ आई रहती है और मेरी कहानियाँ और निबंध बेचारे शायद औसत की श्रेणी से भी बाहर है. (थोड़ी सहानुभूति जागी ?? )
उस पर तुर्रा ये है कि कविता और हाइकू लिखने वालों ने अच्छा खासा स्पेस घेर रखा है, मेरे ख्याल से दो तिहाई लोग तो सिर्फ कविता ही लिखते और पढ़ते हैं (शायद सोते बिछाते भी हैं). अब कविता के लिए रोज़ रोज़ नए विषय आ नहीं सकते, इसलिए रो पीट के वही रोमांस का खाता खोल के बैठ जायेंगे या बिरहा का गीत गाया जाएगा या कोई भूले बिसरे दिन याद कर रहा है. (उम्मीद है किसी कवि की नज़र इस पर नहीं पड़ेगी वर्ना उनकी काव्यात्मकता आक्रामकता में बदल जायेगी)
लेकिन इस सबका एक मजेदार पहलू भी है, पता नहीं आप में से कितने लोगों ने ध्यान दिया है या शायद ना भी दिया हो. पर एक सीधा सा तरीका है कि भाई अगर किसी ने आपके पोस्ट पे कमेंट किया या वोट किया है तो श्रीमान/सुश्री/श्रीमती जी, ज़रा शिष्टाचार दिखाइये और … जी हाँ, ये एक किस्म का शिष्टाचार ही है, वर्ना किसके पास टाइम पड़ा है कि आपके लिखे को पढ़ने के लिए अपनी आँखें स्क्रीन पर खपाए। और फिर क्या आप नहीं चाहते कि आपके ब्लॉग पर फॉलोअर्स की एक लम्बी लिस्ट दिखे, हर पोस्ट पर इत्ते सारे कमेंट्स आये, फेसबुक पर फैन हो और ये हो, वो हो (पता नहीं क्या क्या हो ) (समझदार को इशारा काफी है, बेवकूफों का इलाज नहीं है) पर आप कहेंगे कि इसमें ऐसा क्या मजेदार है, ये तो साधारण बात है.
ख़ास बात है कमेंट्स की भाषा। ... अगर हिंदी के ब्लॉग हैं (उसमे भी कविता के मरीज़) तो कमेंट्स इस तरह आते हैं … अत्यंत मार्मिक, मर्मस्पर्शी, अत्यंत भावपूर्ण, अर्थपूर्ण, अत्युत्तम, सार्थक अभिव्यक्ति और सिर्फ ये भारी भरकम विशेषण ही नहीं इनके साथ शुद्ध हिंदी की वाक्य रचना, जिसे पढ़कर कई बार मेरी हिंदी भी इम्प्रूव हो जाती है. और मामला यही नहीं रुकता, वाक्य के अंत में कई लोग सादर, आभार भी जोड़ देते हैं. और यही एक चीज़ मेरे पल्ले नहीं पड़ती कि हर बात के लिए आभार का भार उठाने की क्या ज़रूरत ? अगर किसी ने आपके पोस्ट पर कमेंट किया तो उसका आभार तो समझ आया पर हर बात में बिना बात में भी आभार और सादर की पूंछ और पुछल्ला !!!! तब मेरा मन करता है कि इस आभार को सादर सर पे दे मारा जाए. (कुछ तो इस्तेमाल हो ये भारी भरकम शब्द) जाने क्यों ऐसे समय में अंग्रेजी ज्यादा अच्छी लगती है, शायद इसलिए कि उसमे एक औपचारिकता का भाव है, बेवजह हर बार कमेंट में Thank You और Regards जैसे शब्द आमतौर पर नहीं लिखे जाते जबकि हिंदी में इनका इस्तेमाल एक फैशन की तरह हो गया है और इसीलिए ये "आदर सहित, सादर और आभार" के शब्द बोझिल लगने लगते हैं. (हिंदी की बुराई नहीं कर रही, पर हर जगह शुद्ध हिंदी का हथगोला मारने वालों को मेरा निवेदन है कि भाई कभी कभी अंग्रेजी से भी काम चला लो क्यों हर बार, हर बात में हिंदी के शब्दकोष को खंगालते हो)
पर खैर, अंग्रेजी के ब्लॉग्स में भी कम ज्यादा यही स्थिति है, फर्क सिर्फ इतना कि वहाँ भाषा ज़रा अनौपचारिक किस्म की होती है, बाकी वही कमेंट बैक-कमेंट, वोट बैक-वोट का ही सारा किस्सा है. पर अंग्रेजी ब्लॉगर्स को एक फायदा है, ज्यादातर ऑनलाइन लेखन प्रतियोगिताएं (कांटेस्ट) जिनमे सच में बड़े अच्छे इनाम मिलते हैं ( cash and goodies) वो सब अंग्रेजी में लिखी पोस्ट्स के लिए हैं. हिंदी वालों को उसमे कोई स्कोप नहीं। (यह अत्यंत दुःख का विषय है)
चलिए जी, बहुत कह लिया, निकाल ली अपने मन की भड़ास, बहुत दिनों से मन में ये सब चल रहा था. हाँ हाँ आप कह लीजिये कि जलखुकड़ी होना अच्छी बात नहीं पर अब क्या करू, इतने जतन किये मैंने, जाने किस किस अजनबी के ब्लॉग्स को पढ़ा; फिर कमेंट्स भी किये, वोट भी किये, उनको फॉलो भी किया पर उसका सुफल उतना नहीं मिला जितना मिलने की उम्मीद थी. खैर, ये जलन भी अब पुराना किस्सा हो गई, अब हमने मोह माया त्याग दी है. (हारे को हरी नाम, You See) देखा जाए, तो हम सब इस खेल को समझते भी हैं और जानते भी हैं और फिर Recognition किसे नहीं चाहिए; इसलिए ये अजीब किस्म का उबाऊ खेल (वोट, कमेंट वगैरह) चलता रहता है.
( मैं जानती हूँ और मानती भी हूँ कि ब्लॉगिंग की दुनिया और यहाँ लिखा जाने वाले कंटेंट का एक significant हिस्सा इस खेल की सीमाओं से नहीं बंधा, लोग पढ़ते और सराहते हैं क्योंकि सचमुच बेहतरीन चीज़ें लिखी जा रही हैं पर इस "अजब गज़ब वाहवाही" वाले खेल को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता )
बोर हो गए हैं इस ब्लॉगिंग से. कितनी मेहनत से लिखते हैं, मगर क्या फायदा, कोई पढ़ने वाला ही नहीं, कितना ज़ुल्म है ये एक लेखक पर कि वो अपनी सृजनात्मक प्रतिभा का परिचय दे रहा है और कोई देखने पढ़ने सुनने वाला ही नहीं (लानत है ).
रुकिए ज़रा, शायद आप मुझे ये उपदेश देना चाहेंगे कि आजकल जिसे देखो ब्लॉगर बन गया है और ज़रा सा कुछ ऐसा वैसा चार लाइन लिख के खुद को लेखक मान बैठा है. जिसे देखो नई नई कविता रच रहा है, कोई हाइकू तो कोई काइकू (ये भी काव्य की एक विधा है, एक श्रीमान है जो प्रतिदिन फेसबुक के एक पेज पे अपना काइकू छापते हैं ) तो कोई गीत लिख रहा है. यानि हिंदुस्तान में साहित्य का भविष्य अति उज्जवल है और जब इतनी सारी प्रतिभाएं मैदान में है तो ज़ाहिर है कि केवल बहुत अच्छा लिखने वाले को ही तो अटेंशन, अवार्ड, रिवॉर्ड मिलेगा बाकी तो सब संघर्षरत, upcoming , budding वाली केटेगरी में ही संतोष कर सकते हैं.
पर खैर ये इंटरनेट है, संसार में ऊपर ईश्वर है और नीचे गूगल है अर्थात सर्वव्यापी, सर्वसमर्थ, सर्वज्ञानी, ध्यानी और संगी साथी सब कुछ है. दुनिया में मुझ जैसे निरीह, संसाधन विहीन, दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले लेकिन प्रतिभावान लोगों की पीड़ा को गूगल ने ही समझा और ब्लॉगिंग की सुविधा उपलब्ध करवाई। (जय हो गूगल महाराज की). अब यहाँ तक तो ठीक है कि सुविधा मिल गई लिखने की और across the globe पहुँचने की भी. पर भाई, खाली ब्लॉग पर पोस्ट कर देने से क्या होता है, खाली फेसबुक पर लिंक पोस्ट करने या एक पेज बना देने से भी क्या होता है ??? कुछ भी नहीं होता, बिलकुल नहीं होता।
आप भूल रहे हैं कि ये विज्ञापन, प्रचार प्रसार का युग है. बढ़िया पैकिंग और उसकी मार्केटिंग का युग है, इसी बात को ध्यान में रखकर गूगल ने ब्लॉग पर फॉलोअर का आप्शन दिया, फेसबुक ने भी लाइक्स, फॉलोअर के आप्शन लगा रखे हैं. लेकिन श्रीमान रुकिए, ठहरिये, ये फॉलोअर, कमेंट्स और लाइक्स ऐसे कैसे मिल जायेंगे, सीधा सादा give and take वाला मामला है. और इसी बात को ध्यान में रखते हुए blogadda , indiblogger , संकलक, हमारी वाणी, ब्लॉगोदय वगैरह websites हैं. जी हाँ, मैंने भी इनकी सदस्यता ले रखी है और मुझे इनसे कोई शिकायत भी नहीं (हो भी तो किसी की सेहत को क्या फर्क पड़ जाएगा) शिकायत तो मुझे तब होती है जब मैं इन साइट्स पर बेहद बकवास किस्म की तुकबंदी जिसको कविता या कहानी कहा जाता है या कुछ भी बेसिर पैर की तस्वीर पर होने वाली कमेंट्स और वोटों की बारिश को देखती हूँ. (हाँ आप कह लीजिये कि मुझे उन लोगों से बड़ी जलन हो रही है, क्यों आपके ख्याल से नहीं होनी चाहिए क्या ) ज़रा सोचिये indiblogger पर पचासों जाने अनजाने लोगों को वोट करने के बाद भी जब मेरी पोस्ट पर गिनती के वोट आते हैं या आते ही नहीं तो मुझे कैसा लगता होगा। कई बार बिकुल औसत या बोरिंग सी कहानी पर भी तारीफों की बाढ़ आई रहती है और मेरी कहानियाँ और निबंध बेचारे शायद औसत की श्रेणी से भी बाहर है. (थोड़ी सहानुभूति जागी ?? )
उस पर तुर्रा ये है कि कविता और हाइकू लिखने वालों ने अच्छा खासा स्पेस घेर रखा है, मेरे ख्याल से दो तिहाई लोग तो सिर्फ कविता ही लिखते और पढ़ते हैं (शायद सोते बिछाते भी हैं). अब कविता के लिए रोज़ रोज़ नए विषय आ नहीं सकते, इसलिए रो पीट के वही रोमांस का खाता खोल के बैठ जायेंगे या बिरहा का गीत गाया जाएगा या कोई भूले बिसरे दिन याद कर रहा है. (उम्मीद है किसी कवि की नज़र इस पर नहीं पड़ेगी वर्ना उनकी काव्यात्मकता आक्रामकता में बदल जायेगी)
लेकिन इस सबका एक मजेदार पहलू भी है, पता नहीं आप में से कितने लोगों ने ध्यान दिया है या शायद ना भी दिया हो. पर एक सीधा सा तरीका है कि भाई अगर किसी ने आपके पोस्ट पे कमेंट किया या वोट किया है तो श्रीमान/सुश्री/श्रीमती जी, ज़रा शिष्टाचार दिखाइये और … जी हाँ, ये एक किस्म का शिष्टाचार ही है, वर्ना किसके पास टाइम पड़ा है कि आपके लिखे को पढ़ने के लिए अपनी आँखें स्क्रीन पर खपाए। और फिर क्या आप नहीं चाहते कि आपके ब्लॉग पर फॉलोअर्स की एक लम्बी लिस्ट दिखे, हर पोस्ट पर इत्ते सारे कमेंट्स आये, फेसबुक पर फैन हो और ये हो, वो हो (पता नहीं क्या क्या हो ) (समझदार को इशारा काफी है, बेवकूफों का इलाज नहीं है) पर आप कहेंगे कि इसमें ऐसा क्या मजेदार है, ये तो साधारण बात है.
ख़ास बात है कमेंट्स की भाषा। ... अगर हिंदी के ब्लॉग हैं (उसमे भी कविता के मरीज़) तो कमेंट्स इस तरह आते हैं … अत्यंत मार्मिक, मर्मस्पर्शी, अत्यंत भावपूर्ण, अर्थपूर्ण, अत्युत्तम, सार्थक अभिव्यक्ति और सिर्फ ये भारी भरकम विशेषण ही नहीं इनके साथ शुद्ध हिंदी की वाक्य रचना, जिसे पढ़कर कई बार मेरी हिंदी भी इम्प्रूव हो जाती है. और मामला यही नहीं रुकता, वाक्य के अंत में कई लोग सादर, आभार भी जोड़ देते हैं. और यही एक चीज़ मेरे पल्ले नहीं पड़ती कि हर बात के लिए आभार का भार उठाने की क्या ज़रूरत ? अगर किसी ने आपके पोस्ट पर कमेंट किया तो उसका आभार तो समझ आया पर हर बात में बिना बात में भी आभार और सादर की पूंछ और पुछल्ला !!!! तब मेरा मन करता है कि इस आभार को सादर सर पे दे मारा जाए. (कुछ तो इस्तेमाल हो ये भारी भरकम शब्द) जाने क्यों ऐसे समय में अंग्रेजी ज्यादा अच्छी लगती है, शायद इसलिए कि उसमे एक औपचारिकता का भाव है, बेवजह हर बार कमेंट में Thank You और Regards जैसे शब्द आमतौर पर नहीं लिखे जाते जबकि हिंदी में इनका इस्तेमाल एक फैशन की तरह हो गया है और इसीलिए ये "आदर सहित, सादर और आभार" के शब्द बोझिल लगने लगते हैं. (हिंदी की बुराई नहीं कर रही, पर हर जगह शुद्ध हिंदी का हथगोला मारने वालों को मेरा निवेदन है कि भाई कभी कभी अंग्रेजी से भी काम चला लो क्यों हर बार, हर बात में हिंदी के शब्दकोष को खंगालते हो)
पर खैर, अंग्रेजी के ब्लॉग्स में भी कम ज्यादा यही स्थिति है, फर्क सिर्फ इतना कि वहाँ भाषा ज़रा अनौपचारिक किस्म की होती है, बाकी वही कमेंट बैक-कमेंट, वोट बैक-वोट का ही सारा किस्सा है. पर अंग्रेजी ब्लॉगर्स को एक फायदा है, ज्यादातर ऑनलाइन लेखन प्रतियोगिताएं (कांटेस्ट) जिनमे सच में बड़े अच्छे इनाम मिलते हैं ( cash and goodies) वो सब अंग्रेजी में लिखी पोस्ट्स के लिए हैं. हिंदी वालों को उसमे कोई स्कोप नहीं। (यह अत्यंत दुःख का विषय है)
चलिए जी, बहुत कह लिया, निकाल ली अपने मन की भड़ास, बहुत दिनों से मन में ये सब चल रहा था. हाँ हाँ आप कह लीजिये कि जलखुकड़ी होना अच्छी बात नहीं पर अब क्या करू, इतने जतन किये मैंने, जाने किस किस अजनबी के ब्लॉग्स को पढ़ा; फिर कमेंट्स भी किये, वोट भी किये, उनको फॉलो भी किया पर उसका सुफल उतना नहीं मिला जितना मिलने की उम्मीद थी. खैर, ये जलन भी अब पुराना किस्सा हो गई, अब हमने मोह माया त्याग दी है. (हारे को हरी नाम, You See) देखा जाए, तो हम सब इस खेल को समझते भी हैं और जानते भी हैं और फिर Recognition किसे नहीं चाहिए; इसलिए ये अजीब किस्म का उबाऊ खेल (वोट, कमेंट वगैरह) चलता रहता है.
( मैं जानती हूँ और मानती भी हूँ कि ब्लॉगिंग की दुनिया और यहाँ लिखा जाने वाले कंटेंट का एक significant हिस्सा इस खेल की सीमाओं से नहीं बंधा, लोग पढ़ते और सराहते हैं क्योंकि सचमुच बेहतरीन चीज़ें लिखी जा रही हैं पर इस "अजब गज़ब वाहवाही" वाले खेल को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता )
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