Tuesday, 20 August 2013

राधा बाई की लव स्टोरी --- पार्ट २

राधा की कोर्ट मैरिज में अभी कुछ वक़्त था .. लेकिन तब तक प्लानिंग भी तो करनी थी ना .. आखिर शादी होने वाली है। लेकिन तभी राधा ने फिर से ४ दिन की छुट्टी ली। पांचवे दिन देवी जी प्रकट हुई, आकर डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर चुपचाप बैठ गई।

"अब क्या हुआ ?" 

" घर में बहुत झगडा हुआ था ?"  राधा जी उदास हैं।

और फिर जो किस्सा सुनाया गया वो इस तरह कि घर में इसी मुद्दे को लेकर हंगामा मचा  है, झगडा हो रहा है राधा और उसकी माँ के बीच और इसलिए राधा जी ने एलान किया है कि  वो खाना नहीं खायेंगी तब तक नहीं जब तक माँ,  हाँ  नहीं  कह देती और पिछले चार दिन से  सचमुच कुछ नहीं खाया ।

"क्या .. तू पागल हो गई है .." माताजी फिक्रमंद हैं।

"मैंने तो मन्नत मांग ली है, गाँठ बाँध ली है चुन्नी में ..तभी खाना खाऊँगी जब घरवाले मान जायेंगे।"

" खाना नहीं खाएगी तो क्या भूखी मरेगी?" 

"मैंने तो देखो मेहंदी में भी उसका नाम लिखवा  लिया है"   राधा देवी ने अपनी बायें  हाथ की हथेली आगे की … वहाँ लक्ष्मण नाम शोभायमान था. 

"अब अगर बच गई तो "उसकी" वर्ना भगवान् की, " राधा जी ने गहरी सांस ली.  

अब यकीन हो गया कि  कुछ  धमाकेदार होने वाला है.  और उसके लिए ज्यादा इंतज़ार भी नहीं करना पड़ा.  दो  दिन बाद  एक  नई  खबर आई ...

" माँ   मान गई है, कहती है कि लड़के वाले घर आये हमसे रिश्ते की बात  करने। अब परसों आयेंगे उसके घर से "सब लोग".  

"ये कैसे हो गया ??" 

" भगवान् ने सदबुद्धि  दी मेरी माँ  को, मेरी मन्नत पूरी हो गई, आज जाउंगी मंदिर प्रसाद चढाने।"


 उसके बाद शुरू हुआ सलाहों का दौर …. "अच्छी मिठाई और नमकीन मंगवा के रखना,  मेन  रोड वाली श्यामा स्वीट्स से लेना और उसी से गुड डे बिस्किट के पैकेट भी. और सुन तू अच्छी  सी ड्रेस पहनना। . है तेरे पास कोई ढंग की बढ़िया ड्रेस ??"   इस आखिरी सवाल ने मुझे चिंतित कर दिया, कहीं मेरी ही किसी ड्रेस का नंबर ना लग जाए ….  शुक्र था कि  राधा का जवाब हाँ में था.

"उसने मुझे कहा है कि   कोर्ट मैरिज करेंगे तो वो मुझे गोल बाज़ार ले जाएगा और वहाँ से नई  ड्रेस, पायल और मेकअप  का सामान खरीद कर देगा।" 

"वो सब जब होगा तब होगा , फिलहाल तो तू अच्छी ड्रेस पहन के ढंग से तैयार होना।" माताजी ने झिडकी और सीख दोनों एकसाथ  दी. 

फिर दो दिन इसी मुद्दे पर लम्बी और गंभीर किस्म  की वार्ताएं  हमारी डाइनिंग टेबल पर चलती रही. और फिर वो दिन भी आ गया, उस दिन राधा बाई ने छुट्टी ली ना सिर्फ उस दिन बल्कि उसके बाद तीन  दिन और भी. ज़ाहिर अब मेरे साथ माताजी का पारा  उसकी लगातार छुट्टियों की वजह से चढ़ने भी लगा और साथ ही चिंता भी बढ़ने लगी कि  आखिर हुआ क्या। … 

तो आखिर पर्दा उठा,  राधा देवी आई, बैठी और बिना पूछे ही उन्होंने सारा किस्सा शुरू से आखिर तक कह सुनाया। आप भी सुनिये लेकिन संक्षेप में।  

"उस दिन " राधा की होने वाली ससुराल का पूरा कुनबा आया, सास, ससुर,  उनके दोनों सुपुत्र, तीन सुपुत्रियाँ अपने पति-बच्चों समेत. वे लोग आये, लेकिन राधा की माँ ने उनमे से किसी से भी बात नहीं की, पानी तक नहीं पूछा, वे लोग काफी देर रुके, लेकिन ना माँ ने और ना राधा के पिता ने उनसे एक बार भी बात की. राधा ने ही उन्हें खिलाया पिलाया (बड़ी मिन्नतें मनुहार करके ). जाते जाते परिवार के मर्दों ने यही कहा कि उन्हें क्या अपमानित करने के लिए बुलाया गया ? औरतों का रुख फिर भी थोडा सहानुभूति का था. यहाँ तक आते आते राधा का रोना शुरू हो गया, उसने किस्मत को कोसा, अपने नसीब को, अपनी माँ को भी. हमारी माताजी ने उसे तसल्ली दी, चाय पिलाई, बिस्कुट खिलाये, राधा जी का चित्त स्वस्थ हुआ और चुन्नी में एक गाँठ और बाँध के वो फिर से अपने काम में लगी.

लेकिन अब मामला गंभीर हो चला था. राधा की शादी तो दूर उसकी  लव स्टोरी ही खटाई में पड़ती दिख रही थी. और फिर करीब दस दिन और बीत गए,इस  बीच लक्षमण दास का कोई  फोन नहीं  आया और जब राधा ने फोन किये तो उसने ज्यादा बात ही नहीं की. राधा परेशान थी, क्योंकि लक्ष्मण अब या तो फोन उठा नहीं रहा या फिर बाद में बात करने का कह कर काट देता है..

"उसका भाई कहता है कि  ऐसी लड़की को घर में ब्याह के नहीं लाना जिसकी माँ ने हमारी इतनी बेईज्ज़ती की."  राधा उवाच।

" फिर अब लक्ष्मण क्या कहता है?" माताजी उवाच. 

"वो कुछ नहीं कह रहा, लेकिन मैंने उसे समझाया है कि शादी तो  मुझे करनी है, मैं तो तैयार हूँ ना, माँ ना माने  तो ना माने"  राधा का सोत्साह जवाब.  

"तेरी माँ क्या कहती है ?" माताजी गंभीर हो चली हैं.

"माँ तो कहती है कि  अगर मैंने उस से शादी की तो मुझसे सारे रिश्ते तोड़ लेगी और मुझे कभी घर नहीं आने देगी, मेरी बहन शोभा भी यही कहती है."  राधा की आवाज़ भी अब उदास हो गई. 

"फिर तो सोच समझ के ही कदम उठाना, अगर लक्षमण भी अपनी बात से फिर गया तो तू कहाँ जायेगी।" 

"नहीं, मुझे विश्वास है, "उसने मुझे कहा है, वादा किया है, अमावस को छुट्टी होती है, उस दिन हम कोर्ट मैरिज कर लेंगे, उसने वकील से बात कर ली है … गोल बाज़ार जाकर  … " राधा फिर से सुख सपनों में खो गई.

दिन पर दिन बीते, अमावस भी आई और निकल गई पर  उस दिन राधा देर से आई  और कई दिन बाद हमने राधा को बहुत खुश देखा …मोबाइल में रेडियो फुल वॉल्यूम चल रहा था. कारण पूछने की नौबत नहीं आई, राधा धम्म से कुर्सी खींच कर बैठ गई और बोली...  " आज तो हम पिक्चर  जाने वाले थे. उसने फोन किया था दो दिन पहले कि  … वो फिल्म आई है ना आशिकी २  … वो दिखाने ले जाएगा, लेकिन आज उसके पिता जी की तबियत अचानक बिगड़ गई तो उनको लेके अस्पताल गया है, मुझे रास्ते में मिला था तब बताया।  राम करे जल्दी ठीक हो मेरे ससुर जी." 

माताजी और मैं मुंह और कान दोनों खोल कर ये सब सुन रहे थे और सोच रहे थे कि  कहानी में ये नया ट्विस्ट कैसे आ गया.  

  
 To Be Continued ...

Photo Courtesy :-- Google 


Final Part of the Story can be read Here









Thursday, 15 August 2013

चलो कही चलते हैं

ज़िन्दगी तू  मुझसे खफा और मैं तुझसे 

ज़िन्दगी तू मुझसे परेशान और मैं तुझसे 

ज़िन्दगी तुझे मैं नापसंद और मुझे तू पसंद नहीं 

ज़िन्दगी तू मेरी आकांक्षाओं, महत्वकांक्षाओ और सपनों से परेशान  और मैं तेरी लगाईं हुई बंदिशों से 

ज़िन्दगी मैं तुझसे थक गई हूँ और तू तो  जाने कब से मुझसे थक कर अपना हाथ छुड़ा चुकी है.

ज़िन्दगी  तू मेरी नित नई  इच्छाओं के कभी ना खुटने वाले खजाने से झुंझलाई हुई है और मैं तेरे मन के रीते हुए घड़े को देखकर रोये जाती हूँ.
ज़िन्दगी ना तूने मुझसे कुछ पाया और  ना मुझे कुछ दिया 

ज़िन्दगी  ना  जाने कैसे हर रोज़ हम एक दूसरे  का  साथ हँसते हँसते  निभाये जा रहे हैं 

ज़िन्दगी हर रोज़ तू उसी पुराने रास्ते पर मुझे उठाये ले चलती है और हर सुबह मैं एक नए रास्ते की तलाश में अलग अलग दिशाओं में भागती  जाती हूँ  … लौट आने के लिए उसी पुराने रास्ते पर.

ज़िन्दगी तू मुझसे खफा और मैं तुझसे  फिर भी हम चले जा रहे हैं एक साथ, एक ही रास्ते पर अलग अलग मंजिलों की तरफ  ….  जानते  हुए कि रास्ते का अंत नहीं और मंजिल का कोई नाम कोई ठिकाना नहीं फिर भी हम चले जाते हैं।