Tuesday, 25 June 2013

राधा बाई की लव स्टोरी -- भाग 1

"नालायक आज भी नहीं आएगी". 

"क्यों ?? अब आज कहाँ मर गई ? इस हफ्ते ये तीसरी बार हो गया।"

" कहीं नहीं मर रही, वो जो गाँव के रिश्तेदारों का कुनबा आया है दस - ग्यारह लोगों का, उनको  बाज़ार घुमाने, खरीद दारी  कराने और पता नहीं  कौन कौन से मंदिरों के दर्शन करवाने ले जायेगी।" 

"अब निकाल दो इस निकम्मी, नालायक को .. हद ही हो गई है अब .. कभी खुद कहीं मेले ठेले में डोलने जा रही है .. कभी गाँव में शादी है, कभी बीमार पड़ी है (वैसे है तो पैदायशी बीमार ) और कभी गाँव से रिश्तेदार आकर इसी के घर में डेरा डाले बैठे हैं और ये इनकी पलटन को खिला  रही है (वो भी उधार लेकर )".

इस रामकथा के बाद मैंने झाड़ू उठाया और लग गई सफाई में .. ज़ाहिर है अन्दर से पचास गालियाँ देते हुए .."काम वाली बाई" को  जिसका नाम है "राधा" .

हमारी राधा को हम "राधा-बाई" नहीं कहते सिर्फ राधा कहते हैं ...ये बाई शब्द सीरियल और फिल्मों में ही ठीक लगता है।  और हमारी राधा मैडम को आप ऐसा वैसा मत समझिये .. उनको हर चीज़ का शौक है .. घूमने का,  नई  ड्रेसे पहनने का, मोबाइल का, टीवी सीरियल देखने का और अगले दिन एपिसोड की कहानी के बारे में बातें करने का ... (मोबाइल का शौक ऊँचे दर्जे का है, उस में रेडियो चलता रहता है और राधा काम करती रहती है, गलती  से भी  अगर उसके मोबाइल को किसी ने हाथ लगाया या उसमे कुछ ताक झांकी की तो  राधा को  अच्छा नहीं लगेगा .. बताये देते  हैं आपको .... और रेडियो को बंद करने के बारे में तो बात करना  ही बेकार है क्योंकि संगीत की सुमधुर लहरी के बिना राधा का मन नहीं लगता काम में ... और अभी कोई दो चार महीने हुए है कि  राधा ने नया मोबाइल खरीदा है जिसमे कैमरा भी है !!!! )

और  हाँ,  घूमने का उनका शौक कोई मामूली नहीं है इसमें मेले, शादी-ब्याह, कोई  सा भी त्यौहार और रिश्तेदारों के घर जाना सब कुछ शामिल है ..बस मौका मिलना चाहिए डोलने का और भटकने का ..

    तो बस उन्ही सब झमेलों के चलते राधा देवी छुट्टियां लेती ही रहती हैं और अक्सर इसकी पूर्व सूचना देना बिलकुल गैरज़रूरी मानती हैं या कभी कभार सूचना आ भी जाए तोह वो देर से ही पहुँचती है (जी नहीं डाक विभाग को या टेलिफोन के घटिया नेटवर्क को ना कोसिये ये तो उनके छोटे भाईसाहब हैं जो मर्ज़ी हुई तो आ जाते हैं बताने वर्ना जय राम जी की ) 

तो बस ऐसा ही एक दिन था जब सन्डे था और मेरे एग्जाम सर पर थे और मम्मी की तबिअत भी कुछ ठीक नहीं थी और हमारी राधा बाई के आने के आसार दिख नहीं  रहे थे और  इसलिए मैंने हाय तौबा मचाते हुए सफाई करना शुरू किया .. पूरे घर का झाडू लगा चुकने के बाद मैंने अभी सांस भी नहीं ली थी कि  राधा देवी दरवाजे पर प्रकट हुई .. गुस्सा तो पहले ही दिमाग पर सवार था इसलिए मैंने वहीँ दरवाजे पर ही राधा को कुछ मधुर वचन सुनाये लेकिन फिर मम्मी बीच में आ गई तो मुझे अपना रेडियो बंद करना पड़ा।  

मैं वापिस पढने बैठ गई और थोड़ी देर बाद कुछ आधी अधूरी बातें सुनाई दी, राधा कुछ बता रही थी और मम्मी खुश हो रही थी। खैर,  उसके जाने के बाद  दोपहर का खाना निपटा कर, कूलर चला कर जब मैं शुतुरमुर्ग की तरह  किताबों में अपना सिर घुसा के पढ़ रही थी तब मम्मी ने कहना शुरू किया ...

" अब राधा शायद काम छोड़ देगी". 

"क्यों अब क्या हुआ इस नालायक को".

"अरे, अब उसकी शादी होने वाली है, और उसका होने वाला पति नहीं चाहता कि  राधा अब  बाई का काम करे।"  मम्मी ने एक झटके में कह दिया और मेरा शुतुरमुर्ग वाला सिर  बाहर निकल आया। 

"क्याआआआ ... शादीईईईईईई ... किस से करेगी ??????"  

अब यहाँ थोडा विवरण और देना पड़ेगा कि  मैं इतनी हैरान क्यों हो रही हूँ .. किस्सा--मामला ये है कि  राधा कि  उम्र तो ज्यादा नहीं है  लेकिन गाँव के रिवाज के मुताबिक़ बचपन में ब्याह हो गया फिर वही घिसा पिटा  किस्सा, मारपीट वगेरह और फिर राधा अपने साल दो साल के लड़के को लिए वापिस माँ के पास आ गई।  तो हैरानी ये है कि  ऐसा कौन मिल गया जो राधा को उसके बेटे  समेत ले जाने को तैयार है ???


तो अब किस्सा कुछ यूँ है कि  राधा की मौसी को राधा की बड़ी फिकर थी इसलिए उन्होंने ढूंढ निकाला एक दूज वर राधा के लिए (वैसे राधा भी तो  दूसरी  बार ब्याह करेगी ना ) तो  "लड़का"   राधा को मिलने  उसके घर आया  मौसी के लड़के  के साथ .. और राधा को  बाहर चलने के लिए पूछा,  जहां बैठ के दो घडी बतियाया जा सके. ( घर में तो बैठने की जगह ही नहीं है ना .. वैसे ये और बता दूँ कि  उस वक़्त राधा की माँ और छोटी बहन भी घर पे नहीं थे .. लेकिन श्ह्ह्ह )

तो फिर राधा उस लड़के की बाइक  पे बैठ कर गई नेहरु गार्डन, जहां उन्होंने खाई आइसक्रीम और पिया जूस और घर छोड़ने से पहले लड़के ने राधा को दिलाई एक बड़ी सी डेरी मिल्क। और हाँ अपना नंबर देना नहीं भूला लेकिन ये तो बुरा हो उस बुरे वक़्त का जिसमे राधा के फोन में  सिम ही नहीं थी, इसलिए फोनियाना संभव नहीं था .. खैर .. 

और बस तभी से राधा को प्यार हो गया  "इश्क वाला लव .."

 "लड़का मेरी ही उम्र का है .. बीवी उसकी भाग गई शादी के कुछ महीने के बाद (थोड़े दुःख क साथ कहते हुए ) और मेरे छोटू को भी साथ रखने को तैयार है और कहता है कि  काम छोड़ दो , अब कोई ज़रूरत नहीं (बड़े प्यार से मुस्कुराते हुए, शरमाते हुए ) "  राधा देवी मेरी माता जी को बता रही थी।

"लड़के का कुछ नाम भी है कि  नहीं?" बाउंसर जैसा, बेसुरी आवाज़ में मेरा सवाल।

"लक्ष्मण दास" .. कहते कहते राधा की बत्तीसी खिल गई और अपने ख़ास अंदाज़ में हंसी।

"करता क्या है?" 

"लकड़ी का काम है .. खुद का .. मजदूर नहीं  है, नौ  हज़ार महीना कमाता है, घर में माँ बाप के अलावा एक छोटा भाई है वो भी काम करता है।" 

  यानी लव स्टोरी फुल स्विंग पर थी। 

राधा को बाइक  पर घूमने, आइसक्रीम  खाने और गार्डन में घूमने के सपने आ रहे होंगे।  अब घूमने के लिए बस के धक्के या ऑटो का किराया खर्च नहीं करना पड़ेगा। 

लेकिन अब यहाँ भी एक पेंच था .. हर लव स्टोरी में होता है इसमें कैसे नहीं होगा। तो पेंच ये है कि  राधा की माँ को लक्ष्मण पसंद नहीं आया,  उसको तो ये रिश्ता, घर  और यूँ  कहें कि पूरा मामला ही पसंद नहीं आया। अब क्यों, किसलिए, जैसे सवालों के पीछे एक दुःख भरी कथा और है।

राधा के अलावा उसके घर में उसके दो भाई और एक बहन है और माता  पिता है  और ये सब लोग कुछ ना काम करते ही हैं, राधा उसकी  बहन शोभा  और उसकी माँ तीनों अलग अलग  घरों में  काम करती है और हर महीने मिलकर  तीन चार हज़ार  तो कमा ही लेती है. लेकिन फिर भी घर का खर्च, बेटे की पढाई  और भी कई खर्चे आम तौर  पर राधा के ही हिस्से आते हैं। शोभा अपनी कमाई या तो बचा के रखते है या फिर अपने ऊपर ही खर्च करती है। घर के सारे काम, अक्सर आने वाले और लम्बे वक़्त तक ठहरने वाले गाँव के मेहमानों की आवभगत और महीने का राशन लाना जैसे सभी काम राधा की ज़िम्मेदारी है। शोभा और  उसकी माँ  का इन सब से कोई लेना देना नहीं .. सुनने में काफी अजीब और फ़िल्मी  लग सकता है लेकिन  है सच .. राधा घरों में काम करती है और अपने घर का भी हर छोटा बड़ा काम करती है। उसकी माँ जो साल के छह महीने घर से बाहर ही रहती है (कभी रिश्तेदारों से मिलने , कभी खेत बुआई के वक़्त मजदूरी करने जैसे कामों के कारण) तब घर की पूरी ज़िम्मेदारी अकेली राधा की होती है. 

ऐसे में अगर राधा शादी करके चली गई तो ज़ाहिर है कि ना सिर्फ  घर का एक  कमाऊ सदस्य चला जाएगा पर फिर घर कौन संभालेगा ..????? और  इसलिए राधा की माँ ने साफ़ शब्दों से कह दिया ... "नहीं, नहीं, नाहीं .. बिक्लुल नाहीं". 

इस "नाहीं" ने बेचारी राधा के नन्हे दिल को तकलीफ दी , रिश्ता लाने वाली मौसी और राधा के पिता ने भी माँ को समझाया पर कोई फायदा नहीं हुआ. 

"मैंने पहले ही तुझे कहा था कि  तेरी माँ तो किसी हालत में राज़ी नहीं होगी". ये हमारी माताजी हैं जो परेशान हैं ( नहीं, नहीं आप समझे नहीं, परेशानी की वजह  ये है कि  अब राधा काम छोड़ देगी तो नई  बाई   इतनी जल्दी कहाँ से मिलेगी) 

" पर मैंने भी कह दिया है कि  शादी करुँगी तो सिर्फ उसी से वर्ना करुँगी ही नहीं". 

"पर तेरी माँ .." 

"माँ तो ऐसे रिश्ते ला रही थी कि  बस .. मैं ना करूँ उनसे ब्याह और फिर शोभा भी तो रोज़ झगडती है मुझसे, कहती है कि  शादी करले और अलग घर लेके रह." 

"लेकिन ..??" 

" उसकी माँ ने भी मुझसे कहा है कि  घरवाले ना माने तो भी कोई बात नहीं, तू तो बस अपनी दो ड्रेस लेकर आ जा।  मैं कोर्ट मैरिज कर लूंगी।"

" क्याआआआ ..क्या करेगीईइ।" फिर से बाउंसर।

"उसने कहा है हम कोर्ट मैरिज  कर सकते हैं, फिर  कोई कुछ नहीं बोलेगा, कोर्ट का आर्डर होगा तो सबको मानना पड़ेगा।"  

मुझे उसके ज्ञान कोष पर और उसकी हिम्मत दोनों पर हैरानी और थोड़ी जलन भी हो रही थी। 

"तू कोर्ट मैरिज करेगी .." माताजी चकित और मुदित थी। 



        

  
     

Saturday, 22 June 2013

बर्फ

अपने 15वीं  मंजिल के फ्लैट की खिड़की से बाहर सड़क और उस से लगी हुई इमारतों का नज़ारा देखते हुए उसका मन और मस्तिष्क जाने कहाँ उड़ता फिर रहा था .. कौन पहाड़ों, नदियों और सागरों के पार भागता फिर रहा था इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल था।

 पिछले तीन दिन से लगातार बर्फ पड़  रही थी, टोरंटो का मौसम बेहद ठंडा हो गया था .. वो अंग्रेजी में कहते हैं ना स्पाइन चिल्लिंग कोल्ड .. वैसा ही। चारों तरफ जहां तक नज़र जाती थी, "सब कुछ" बर्फ से ढका  था, बिल्डिंग्स, सडकें यहाँ तक कि सड़क किनारे के पेड़ और झाड़ियाँ भी। सारी  दुनिया   सफ़ेद रंग में रंग गई थी .. ऋचा को लगा जैसे एक सफ़ेद चादर, बर्फ की सफ़ेद चादर उसे भी ढके हुए हैं .. अन्दर से  लेकर बाहर तक , सर से पैर तक बर्फ की ठंडी चादर उसे समेटे हैं।  अभी और कुछ आगे सोचती या मन किसी और सागर या पहाड़ के किनारे को पार करता इसके पहले एक आवाज़ ने उसका ध्यान तोडा।

"ऋचा .. कहाँ हो ". मानिक घर आ चुका  हैं। ऋचा ने उसे  किचन की तरफ जाते देखा .. कुछ समझ ना आया .. कुछ खाना या पीना है तो मुझसे ही कह देता।  
लेकिन मानिक शायद कुछ और ही सोच रहा होगा क्योंकि अब तक कॉफ़ी मेकर मानिक के लिए कॉफ़ी  बना चुका  था। मानिक ने ड्रिंकिंग चॉकलेट का कैन खोल एक बड़ा स्पून अपनी कॉफ़ी में मिलाया ... ऋचा ध्यान से देख रही थी .. आजतक कभी उसने नोटिस नहीं किया था कि  मानिक को कैसी कॉफ़ी पसंद है ..

"तुमको चोको कॉफ़ी पसंद है?"

अब था तो ये एक सवाल लेकिन ऋचा ने इसे सवाल की तरह नहीं कहा। मानिक ने इस अंतर को पकड़ लिया था  इसलिए उसने    एक लापरवाह नज़र ऋचा पर डालते हुए जवाब दिया ..

"हाँ, जब थक जाता हूँ तब हॉट चोको कॉफ़ी बॉडी और ब्रेन दोनों को रिलैक्स कर देती है" और उस वक़्त बात वहीँ पर आकर रुक गई आगे बढाने का कोई सूत्र नहीं था,  होता तो भी व्यर्थ का औपचारिक वार्तालाप कब तक खींचा जा सकता है। 

दो साल हो गए हैं यहाँ आये और सेटल हुए .. ऋचा एक फर्म में लीगल असिस्टेंट बन गई और मानिक तो खैर पहले ही एक लीडिंग फाइनेंसियल और बैंकिंग फर्म का सीनियर फाइनेंसियल एनालिस्ट है और इस खूबसूरत अपार्टमेंट को, जिसमे ये दोनों रहते हैं इसे मेन्टेन रखने में मानिक की सैलरी का ही बड़ा योगदान है। 

"मैं ज़रा बाहर घूम कर आती हूँ" .. मानिक ने दरवाजे पर खड़ी  ऋचा को देखा और फिर उसे जाते हुए, घर से बाहर निकलते हुए और दरवाजा बंद करते हुए सुना। 

ऋचा के पैर  निरूद्देश्य रास्ता बना रहे थे और आँखें बर्फ की चादर  के आगे कुछ देखने की कोशिश कर रही थी .. कि  एक आवाज़ सुनाई दी .. " कौसानी  कितना खूबसूरत है ना, लगता है कि  हिमालय के शिखरों की शाश्वत  बर्फ यहाँ ज़मीन पर ही उतर आई है". 

ऋचा चौंक गई, ये आवाज़ यहाँ कैसे ??? फिर से सुनाई दिया .. "कौसानी !!!!"  पैर रुक गए, शून्य को निहारती आँखें .. वो चर्च की तरफ मुड गई।  

थोड़ी देर बाद चर्च में बेंच पर बैठी ऋचा दीवारों और छत की चित्रकारी को देखने लगी है, उनके रंग ... "शान्तिनिकेतन की होली याद है तुम्हे?"  फिर से कोई   बोला और ऋचा को सुनाई देने लगा .. " रांगा  नेशा  मेघे मेशा प्रभात आकाशे ... नवीन पाताय  लागे रांगा हिल्लोल .. खोल द्वार खोल" 

इन्ही आवाज़ों  के बीच कुछ और परिचित आवाजें उभरने लगी ... " तुझसे छह साल बड़ा है, शक्ल सूरत तो खैर अब क्या कहें तू खुद भी तो एक बार मिल ही चुकी है .. हाँ well settled तो है  .. पर फिर  एक बार सोच ले .. कहीं बाद में कोई पछतावा ना हो .. उस परदेस में कोई नहीं होगा तेरी बात सुनने वाला .."  ऋचा ने  आवाजों को परे धकेल कर  क्रॉस पर टंगे ईसा पर अपनी नज़रें केन्द्रित करने की कोशिश की 

पर फिर वहाँ नहीं बैठा गया ऋचा से .. लौट आई .. घर .. 

"आज खाना क्या बनाऊं ?" 

"पिज़्ज़ा आर्डर कर दो ". 

खिड़की के बाहर बर्फ की सफेदी अब धूसर मटमैली और स्याह चादर ओढ़े सो गई है लेकिन टोरंटो अभी भी जाग रहा है .. घरों से झांकती रोशनियाँ, सड़कों पर जवान होती "नाईट लाइफ"  और  आवाजें ... हर तरफ से, हर तरह की ..



ऋचा ने अगले दिन के किसी केस की हियरिंग के लिए  क़ानून  के जंगल को खंगालना शुरू  कर दिया है .. पर अब कौसानी की आवाजें , विश्वभारती के रंग और  बहुत सी आवाजें उसके दिमाग में घूमने और शोर मचाने लगे हैं। लिविंग रूम में आई और सब कुछ को देखने लगी  और फिर  अगले कुछ सेकण्ड्स के बाद वो मानिक के कमरे में हैं .. मानिक भी अब स्टॉक मार्किट के आंकड़ों और अर्थव्यवस्था की उठापटक के बीच मुनाफे के रास्ते खोज रहा है. 

"कुछ काम है ?" 

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"कुछ चाहिए .. क्रेडिट कार्ड प्रॉब्लम ?" 

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"क्या फर्क है मुझमें और घर के बाकी सामान में और क्या फर्क है तुम में और घर की दीवारों और  छत में  ?" 

"कुछ भी नहीं .. इन सब को और तुम्हे भी ... मैंने  पैसों से ही खरीदा है लेकिन तुम्हे ना इस घर के लिए कोई EMI देनी पड़ती है और ना ..  ."  लेकिन कहते कहते मानिक समझ ही गया कि  जितना  सवाल बेतुका था उतना ही या उस से भी  ज्यादा बेहूदा उसका जवाब था क्योंकि सवाल करने वाली अब  कमरे से बाहर जा चुकी थी। 

टोरंटो जाग रहा था और बर्फ  गहरी नींद सो रही थी, 

"सब कुछ" घर के अन्दर और खिड़की से बाहर अपनी जगह पर था .. कुछ नहीं बदला था  लेकिन ऋचा के अन्दर कौसानी, विश्वभारती और   छूट गए समय के रंग और आवाजें सब मिलकर एक ऐसा  साइक्लोन पैदा कर रहे थे जो "सबकुछ " को तोड़ फोड़ रहा था। और अब  मानिक  भी उस सबकुछ के बीच आकर खड़ा हो गया .. 

"जाओ, जाकर सो जाओ।" 

" मुझे अब नींद नहीं आती ..." 


पर ये जवाब सुनने के लिए मानिक रुका नहीं था .. कमरे में लौट गया ..


बर्फ अब पिघलने लगी है .. बहने लगी है, रंग भी मिटने लगे हैं .. मानिक उलटे पैरों वापिस आया .. ऋचा अब भी साइक्लोन  के बीच खड़ी है ... नींद को तलाश रही है। 

" क्या तुम्हे मेरी ज़रूरत महसूस नहीं होती ?" 

" ज़रूरत ...!!!!!!" आँखें गुस्से और हैरानी  से फ़ैल गई मानिक की।

"क्या तुम मुझसे प्यार करती हो ... बोलो ..मेरी तरफ देखो और बताओ !!!!!"  मानिक उस साइक्लोन  को बांह पकड़ कर  झिंझोड़ रहा था .. चीख कर पूछा  था लेकिन फिर भी ऋचा को आवाज़ बहुत दूर से आती हुई  महसूस हुई ...




मानिक अब वहाँ नहीं है, ऋचा भी अब अपने कमरे में सो रही है।

टोरंटो सो गया है .. बर्फ जाग गई है ..  उसकी  स्याह चादर अब  और गहरी हो गई है क्योंकि शहर की बत्तियां अब बुझने लगी है। 



बंगला गीत शिवानी गौरा पन्त की किताब "आमादेर शान्तिनिकेतन" से  लिया गया है