Tuesday, 12 March 2013

एक कहानी ये भी

ये एक आम कहानी है .. बेहद औसत दर्जे की .. जिसमे कुछ भी बहुत नया, अलग सा या दिलचस्प जैसा कुछ नहीं .. लेकिन फिर भी मैंने इसे लिखने का विचार  किया क्योंकि ये कहानी महज़  "एक रोज़मर्रा की बात" नहीं है ये किसी की ज़िन्दगी में सचमुच हो रहा है, कोई है हमारी इस दुनिया में, हमारी आस पास की दुनिया में  जो हर रोज़ अलग अलग नामों और चेहरों वाली पहचान लिए लगभग ऐसी ही, मिलती जुलती परिस्थितियों से गुज़र रहा है, झेल रहा है, चुपचाप क्योंकि शिकायत करके वो हार गया है और अब उसने हालात से समझौता कर लिया है .. "अब और चारा भी क्या है". 


तो ये कहानी कुछ इस तरह है ....



" वो ऊपर वाला जडाऊ सेट दिखाना तो .. हाँ वही।"  

"देखो, कैसा लग रहा है ..?" 

"बहुत खूबसूरत है .. तुम पर खिल रहा है ..   ओ के,  इसे ही पैक कर दीजिये।" 

"अरे रुको ज़रा .. वो वाला दिखाना तो "

"हाँ अब कहो .. इन दोनों में से कौनसा ज्यादा अच्छा है .."

"दोनों ही बढ़िया है ,, ऐसा करते हैं कि  दोनॊ ले लेते हैं। दोनों को पैक करिए और बिल बनवा दीजिये।"

" जी .." 

अब नाम किसी का ना पूछिए .. नाम तो कुछ भी हो सकता है .. नीता, अनीता सुनीता, निशा, मीना, आशा, लता, कांता या ...शोभा ..हाँ शोभा,  इस शानदार    ज्वेलरी शोरूम में एक सेल्स गर्ल है। और आज सैलरी मिलने का दिन है, इसलिए आज उसका मूड बहुत अच्छा है, आज उसे कोई चीज़ बुरी नहीं लग रही।  वो बस एक शौपिंग लिस्ट बनाती  जा रही है मन में .. गुडिया के लिए नया  फ्राक और नए जूते ..उसके स्कूल प्रोजेक्ट का सामान .. नए बैग का भी कह रही थी .. वो  भाभी की बेटी का पुराना बैग चला रही है जो अब फट गया है। 

और भी ज़रूरत की कुछ चीज़ों को लिस्ट में जोड़ा जा रहा है।  

आखिर शाम को सबको सैलरी चेक मिल गए। घर वापसी के समय शोभा मंदिर भी गई .. वैसे तो रोज़ सुबह  की आरती  में पहुंचना उसका नियम है पर आज का दिन ख़ास है ना इसलिए गई । 

 अगले दिन शोभा ने आधे दिन की छुट्टी ली और गुडिया को लेकर बाज़ार में घूमती फिरी  ... ये भी लेना है वो भी लेना है  और हाँ महीने का राशन भी .. रात को खाने के लिए माँ ने बुलाया है, वापसी में कोई ना कोई घर छोड़ जाएगा। 

गुडिया ने अपना नया फ्राक पहन लिया था .. सबको बताती फिर  रही थी कि  इसे आज ही लिया है ... 

"शोभा,  बबली भी अब दस ग्यारह  साल की हो  गई है ना .."

"हाँ माँ, अगले  हफ्ते ही उसका जन्मदिन भी है .."

"माँ बबली को फोन करो ना " .. ये गुडिया है जो अपनी छोटी बहन का नाम सुनकर मचल गई है .

शोभा ने जवाब दिया नहीं .. चुपचाप मुंह फेर लिया और चुन्नी के छोर से आँखें पोंछने लगी। 
खाने के बाद शोभा का भाई उसे और गुडिया को उनके घर छोड़ आया ..

हफ्ते भर बाद ...

" सुनिए ज़रा एक बार बबली को फोन दीजिये .. मुझे एक बार उसकी आवाज़ सुननी  है .." कहते कहते शोभा रोने लगी है पर लगता नहीं कि  फोन के दूसरी तरफ जो लोग हैं उनको कोई फर्क पडा .. फोन कट गया .. और उसके साथ ही एक आवाज़ और सुनाई दी ..

"फोन क्यों रखा .. मुझे भी बात करनी थी मम्मी से .. मुझे अभी बात करनी है .. मम्मी को बुलाओ।"  कहते कहते बबली ने भी रोना और हाथ पटकना शुरू कर दिया .. पर इसकी प्रतिक्रिया काफी सख्त हुई, उसे ज़बरदस्ती कमरे में ले जाकर बिठा दिया गया .. जोर से डांट  भी पड़ी और शायद थप्पड़ भी पड़ा हो .. मगर देखा किसी ने नहीं।  

वैसे देखा तो बहुत कुछ नहीं .. लोगों ने, दुनिया जहान  ने और बहुतों ने तो सिर्फ सुना भर है। 

महीने भर बाद ...

दूकान पर आज एक के बाद एक ग्राहक आ रहे हैं  और शोभा वाले काउंटर पर कुछ ज्यादा ही रश  है .. नवरात्र हैं ना इसलिए .. शोभा को सांस लेने की भी फुर्सत नहीं .. पर इस व्यस्तता में भी उसकी नज़र एक लड़की पर बार बार टिक रही है .. जिसने शोभा के काउंटर से एक टॉप्स का जोड़ा पसंद किया और अब कंगन देख रही है .. उसे देख कर ही पता लग रहा है कि  शादी हुए अभी ज्यादा वक़्त नहीं हुआ .. 
आखिर उसने कंगन का एक जोड़ा भी लिया और अब  अपने पति के साथ  वो दूकान से बाहर जा  रही है .. पता नहीं  क्यों शोभा उसे देखे जा रही है .. ऐसे तो कितने ही ग्राहक हर दुसरे दिन आते हैं और गहने खरीदते हैं। 

रात को खाना खाकर, घर के काम निपटा, गुडिया का होम वर्क भी पूरा कराया  और अब सोने की कोशिश कर रही है शोभा .. गुडिया सो गई है और उसके चेहरे में शोभा को गुज़रा समय और आज .. और आने वाला समय सब एक साथ दिख रहे हैं। 

इस बड़े से शहर के एक अच्छे  भले  व्यवसायी परिवार की बेटी, पांच भाई बहनों में सबसे छोटी .. ब्याह कर के गई जहां वो भी वैसा ही धन धान्य से भरा पूरा, बड़े से बंगले में रहने वाला परिवार था .. जिसकी इकलौती बहू बनी शोभा..घर में उसे मिलकर कुल चार प्राणी .. सास ससुर, पति और शोभा .. शादी के दो साल बाद एक एक कर गुडिया और बबली पैदा हुई। सब कुछ था उस घर में पर शोभा के लिए कुछ नहीं था ... बिलकुल वही घिसा पिटा किस्सा  कहानी जो पुरानी फिल्मों में दिखाते हैं ...  पर फिल्म की कहानी असल ज़िन्दगी में उतर आएगी ये किसने सोचा था। 

उस बड़े से बंगले की सार संभाल, घर के काम और बिस्तर पर पड़े बीमार ससुर की देखभाल .. बस "इतना ही काम"  शोभा के जिम्मे था।    

कुछ साल पहले ...

"एक काम वाली बाई रख लें .. मुझे थोड़ी मदद हो जायेगी .. सब अकेले नहीं संभलता" 
"ठीक है .. माँ से कह दूंगा कल कि  तुमसे घर का काम नहीं होता .. इसलिए बाई रख लो।"
"मैं ऐसा कहाँ कह रही हूँ .. सिर्फ इतना कहा कि  .." 
 " एक काम  करो .. तुम्हारे बाप  से कहो एक नौकर भेज दें यहाँ .. तुमसे तो अब चार लोगों की रोटी भी नहीं  बनती।" 

आगे कुछ कह सके इतनी हिम्मत शोभा में अब बची नहीं .. उसके थके टूटे शरीर में मार सहने की ताकत  नहीं और सास तक उसकी ये इच्छा पहुंची तो नतीजा  कैसा भी हो सकता था .. शायद पिछली बार से थोडा ज्यादा या थोडा कम।

पिछली बार  पता नहीं किस बात पर झगडा शुरू हुआ था जिसके लिए उसे पीटा  गया .. इतना कि  शरीर पर जगह जगह नीले निशान पड़  गए, आँख  सूज गई थी और उसका हाथ ज़ख़्मी हो गया था .. लेकिन इसके बाद भी सास को चैन नहीं आया और रात बारह बजे उसे घर से बाहर निकाल दिया और दोनों बच्चियों को कमरे  में बंद कर दिया था। रात भर गेट के पास सिकुड़ी सी बैठी शोभा रोती  रही , डरती और सहमती रही .. सुबह हुई .. तब सास ने उसे अन्दर बुलाया .. चाय बनाने के लिए। 

ऐसे ही एक दिन जब बहुत मार खाने के बाद शोभा ने  हार कर पिता को फोन किया जो उसे लिवा  ले गए, ये कह कर कि सास और पति अपना व्यवहार सुधारें वर्ना अब शोभा को वापिस नहीं भेजेंगे। 

बिस्तर पर लेटी  शोभा अब भी जाग रही है .. अब रोना भी नहीं आता ..बस सोचती है ...जब घर से रवाना हो रही थी .. तब सास ने बबली को नहीं आने दिया था .. और वो दिन है और आज का दिन उस घर से ना कोई लेने आया ना किसी ने चला कर उसका हाल चाल पूछा ..माता  पिता ने बड़ी कोशिशें की कि  कुछ समझौता सुलह हो सके .. शायद उसका पति ही मान जाए .. पर ..

कुछ महीने पहले ...

"मेरी ही किस्मत इतनी खराब लिखनी थी .. मैंने ही  क्या  गुनाह कर दिया था .. और मेरी दोनों बच्चियों ने .. उनका क्या भविष्य होगा ..भाई भाभी कब तक बिठा कर खिलाएंगे और कब तक बिठाएंगे .." शोभा का रोना ही बंद नहीं हो रहा था और  जमुना आंटी को समझ नहीं आ रहा कि  कैसे और कौनसे शब्दों का जाल शोभा को  समझा सकता है। 

फिर यहाँ नौकरी मिल गई शोभा को .. ज्वेलरी शो रूम पर  और  फिर उसने एक छोटा मकान किताये पर ले लिया .. मकान मालिक नीचे रहते हैं, भले लोग हैं .. शोभा और गुडिया का ध्यान रखते हैं और इसलिए अब सब लोग निश्चिन्त है कि  शोभा की ज़िन्दगी अब जैसे तैसे कट ही जायेगी।

" अरे शोभा  क्या बात है न बिंदी ना टीका ना सिन्दूर और ना कुछ और .. आज दिवाली है .. ऐसे भी कोई रहता है त्यौहार के दिन"
मंदिर में कोई पूछ रहा था शोभा को ..

"बिंदी सिन्दूर किस पति के लिए लगाऊं .. वो जिसने मेरी ही बच्ची  मुझसे छीन ली और ..." आगे बात उसने अधूरी छोड़ दी। 

आज का दिन ..

"गुडिया अगले साल कॉलेज जायेगी माँ .. इसके लिए अब कोई लड़का .."
"चिंता मत कर .. गुडिया की शादी तो तेरे भाई करवा ही देंगे .. बड़ी वाली ने मुझे कहा भी है कि  गुडिया के लिए एक हार सेट वो देगी .. बाकी दोनों और तेरी बहनें भी देंगी .. चिंता मत कर .. गुडिया को अच्छा दहेज़ देंगे और बबली को तो उसकी  दादी और पिता ही देख्नेगे .."  "बात होती है उस से .. बबली से ?" 

"हाँ, कभी कभी चोरी छुप के खुद  फोन कर लेती है मोबाइल तो अभी है नहीं उसके पास वर्ना मैं करती हूँ तो दादी की मर्ज़ी हो तो बात कराती है वर्ना नहीं .. और मैं तो अब माँ तुम जानती ही हो .. मैंने तो अब बबली से अपना मोह निकाल दिया है .. क्या करूँ तुम बताओ ..?" 



क्या करूँ .. तुम ही कुछ बताओ ... 

ये सवाल आज भी अनुत्तरित है।