Saturday, 25 February 2012

एक खुला दरवाजा

जब खुदा अपना दरवाजा बंद कर लेता है तब...दुनिया अपना दरवाजा खोल देती है...अपनी बाँहें फैला देती है ..समेट लेती  है अपने आँचल में, अपनी गोद में, इस तरह कि अपना ही होश नहीं रहता, ऐसे कि उसके प्यार का नशा जागते हुए  भी सोते रहने को मजबूर कर देता है, ख्वाब दिखाता  जाता है  ...

जब खुदा अपना रास्ता बदल देता है तब ....दुनिया का हर रास्ता खुल जाता है....उसका हर रास्ता जाना पहचाना हो जाता है..हर गली अपनी और हर मोड़ ठिकाना बन जाता है...खुदा जब अपना दरवाजा बंद कर लेता है तो...दुनिया के सारे दरवाजे, खिड़कियाँ और परदे खुल जाते हैं..हर चेहरा, हर नाम, हर पता, हर वो रास्ता जो कहीं आगे जाता है या नहीं जाता या आगे जाकर बंद हो जाता है , वो सब आगे बढ़कर गले लगाने  लगते हैं ...और आखिर में भुला देते हैं कि कौनसी वजह थी, कौनसा सफ़र था, कौनसा रास्ता था, कौन था, कहाँ था ...कुछ था भी या नहीं...

और इसलिए खुदा के बंद दरवाजों को हमेशा खटखटाते रहना चाहिए, याद दिलाते रहना चाहिए...उसे नहीं खुद को, कि कहाँ जाना है, क्यों जाना है, किस राह पर रुकना है और इसलिए  कि कहीं हम खो ना जाएँ ....