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Tuesday, 23 July 2019

Part 2 : वनीला कॉफ़ी




 "क्योंकि, मैं तुम्हारा  लौह आवरण उतरते देख रहा हूँ। "

'और तुम खुश हो रहे हो ?"

" नहीं, लेकिन इतना अंदाज़ा नहीं लगाया था मैंने।"

"किस बात  का अंदाज़ा ?"

"तो क्या अंदाज़ा था तुम्हारा ?"

"जो भी था, जाने दो। "

"मेरे ख्याल से एक एक कंकर  फेंकने के बजाय तुम पूरा पत्थर एक बार में ही पटक दो."

"तुम फिर फालतू सोचने लगीं, ऐसा कुछ नहीं कहा मैंने।'

"तुम बात को बदल सकते हो लेकिन उसका अर्थ नहीं बदल सकते।  शब्दों के अर्थ  उनके कहे जाने से ज्यादा गहरे होते हैं। "

"हो गई तुम्हारी फिलॉसोफी शुरू। "

"खैर."

"ये बारिश के छींटे खिड़की के कांच पर  ऐसे लगते हैं जैसे कांच में  जगह जगह छोटे महीन से  डिज़ाइन  आ गए  हो। "

"ये तुम्हारी नज़र है, मुझे तो सीधी सादी  बरसात की बूँदें ही दिख रही हैं। "

"हाँ, ये अब गोल बूँद ही दिख रही है। "

"तुम sci  fi  फिल्में बहुत देखती हो ना , उसी का असर है।  आजकल में कोई नई  फिल्म देखी ?"

"अरसा बीत गया फिल्म देखे तो। "

"क्यों , अब ये एक शौक भी बरसात में बह गया क्या तुम्हारा ? और तो कुछ तुम करती नहीं। "

"ऐसे ही, अब इच्छा  नहीं होती। "

"मतलब अब फिल्म देखने की भी कोई बाकायदा सिचुएशन होनी चाहिए। "

"अब तुम जो भी कहो। "

"मैंने बहुत से कहानी के थीम और बेस लाइन सोचे पर किसी को भी आगे नहीं बढ़ा पा रही हूँ। "

'क्योंकि तुम खुद आगे नहीं बढ़ रही हो।  सुनयना,  कहानी लिखने से ज्यादा कहानी जीना भी ज़रूरी है। "

"पर मैं कुछ लिखना चाहती हूँ , मुझे लगता है कि कहीं कोई सूत्र है जो मुझे मिल नहीं रहा या मैं देख नहीं पा रही।"

"वहम  है तुम्हारा। "

"चलो अब बारिश रुक ही गई। बाहर कितना पानी जमा हो गया है। "

"मौसम खुल गया है, चलो ड्राइव पर चलते हैं."

"तुम चलती हो या मैं अकेला ही निकल  जाऊं ?"

"रुको, मैं  आती हूँ। "

"आसमां ने खुश होकर रंग सा बिखेरा है। "

  "और कुछ नहीं तो अलग अलग गानों के टुकड़े जोड़ कर ही एक कहानी नुमा कुछ लिख मारो. तुम्हारा शौक पूरा हो जाएगा। "

"तुम फिर मजाक उड़ा रहे हो। मेरी समझ नहीं आ रहा कि आखिर अब इतने वक़्त बाद  तुम ठहरे पानी में कंकर फेंकने क्यों आये हो ? "

"मैं सिर्फ तुमको आज में खींचने की कोशिश कर रहा हूँ। और तुम इतनी चिढ क्यों रही हो. ? "

" तुम पहले ऐसे नहीं थे या  अब कोई नया बदलाव है ?  मुझे महसूस होता है कि तुम पहले ऐसे नहीं थे।  तुम्हारी भाषा ही बदल गई है।"

"कुछ नहीं बदला है सुनयना।  वक़्त के साथ हम सब ज्यादा परिपक़्व  और व्यावहारिक हो जाते हैं लेकिन तुम ओवर pampered रही हो इसलिए कोई भी नई  चीज़ तुम्हे आसानी से पसंद नहीं आती। come  out  of   your  shell . "

"तुम उन दिनों ज्यादा अच्छे इंसान थे। तब तुम्हारे पास वक़्त हुआ करता था।  अब तो तुम्हारा  वक़्त छतीस हज़ार कामों में फंसा है।"

'क्योंकि तब  मैंने कभी भी तुमको आइना दिखाने की कोशिश नहीं की। और सिर्फ यूँही इधर उधर की बातों के लिए वक़्त आजकल किसी के पास नहीं है।  और  तुम बार बार पलट कर उन पुराने दिनों में क्यों पहुँच जाती हो ?"


" ऐसा नहीं है। तुम्हारे हिसाब से तो परिपक्व होना मतलब सब तरह से इमोशंस को उठा कर ताक  पर रख देना।"

"अब तुम फिर वहीँ  पहुँच गईं। "

"रहने दो फालतू बहस है।  लम्हे फिल्म देखी  है तुमने ?"

"वो श्रीदेवी वाली ? इतनी पुरानी  फिल्म का अभी  यहां क्या काम है ?'

"एक  scene  है उसमे , जब वहीदा रहमान कहती है अनिल कपूर से  कि " हुकुम अब बड़े हो गए हैं और मेरा हाथ छोटा हो गया है."

"इसका क्या मतलब ?  तुम एक पूरी तरह से गैर ज़रूरी बात  को यहां quote  कर रही हो।  तुम वो डेन्यूब वाली बात ही करो।  तुम्हारा आवरण तुम्हारे इस बेसिर पैर की फ़िल्मी कल्पना से ज्यादा ठीक है। हाँ, कहानी वाली बात।  देखो इस बढ़िया मौसम और इन नज़ारों पर ही कुछ लिखो। "

"वो कोई आवरण नहीं है।  मैं सचमुच विएना देखना चाहती हूँ।  यूरोप का आर्किटेक्चर , वहाँ  का लोकल कल्चर  .... "

"अभी तुम ठहरे पानी की बात कर रही थीं और अभी दो घंटे पहले तुमको डेन्यूब सूझ रही थी।  क्या तुम सोचती हो कि डेन्यूब का पानी हज़ार साल से एक जैसा ही है ?  तुम जिस डेन्यूब को ढूंढ रही हो वो तुम्हारी एक पसंदीदा इमेजिनेशन है जिसे तुमने किताब में पढ़ा है और बस एक रोमांटिक सा ऑरा  बन गया। "

"ऐसा तुमको लगता है मुझे नहीं।  और कल्पना क्या कभी सच नहीं होती ? कोई ज़रूरी है कि जो आज दूर का ख्वाब है हमेशा  ऐसा ही रहेगा ? हो सकता है कि तुम को हंसी आ रही है पर ...

'तो चलो, कब फुर्सत है तुम्हें ? टिकट बुक करवानी होगी,  रहने का arrangement , सब देखना पड़ेगा  ना।  तुम को सुविधा से रहने की आदत है।"

"ऐसे अचानक  अभी ?"

"तो और कब ? वहीँ लिखना डेन्यूब पर कहानी।  यहां तो सूखी नदी पर कुछ लिखने का हाल बन नहीं रहा तुम्हारा। "

"बोलो ?"

"अच्छा, कॉफ़ी का कौनसा फ्लेवर पसंद है तुम्हे ? चॉकलेट, हेज़लनट, आयरिश या वनीला ?"


"वक़्त की क़ैद में है ज़िन्दगी , चंद  घड़ियाँ हैं जो आज़ाद हैं "

"कॉफ़ी का फ्लेवर साहब !!!"

"नहीं चाहिए। "

"वनीला से शुरू करो. बेसिक और मीठा  और खुशबू वाला। "






Image Courtesy : google









2 comments:

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