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Sunday, 6 July 2014

खाना स्वादिष्ट ही नहीं खूबसूरत भी होता है

 अक्सर ऐसा होता है कि  खाना बनाने से ज्यादा उसे खाना एक बड़ी मुसीबत लगती है … कारण सिर्फ इतना कि  रोज़मर्रा का भोजन तो सिर्फ रूटीन का खाना बन जाता है, उसमे ना स्वाद का अहसास होता है और ना किसी किस्म  के नयेपन का … लगता है कि  जैसे बस पेट भरना है और एक काम है जो पूरा करना है, इसलिए जो बना है बस खा लो.  एक मुसीबत ये भी है कि  जब कभी बड़ी ज़ोर की भूख लगी होती है तब घर में  कुछ ऐसा स्वादिष्ट खाने को नहीं होता जिससे "पेट भर भी जाए और बहल भी जाए".  हाँ, मेरा मतलब ये है कि खाना ऐसा हो जिससे भूख भी मिट जाए, जिसे देखते ही खाने का मन करे और जो मनपसंद भी हो. अब ये सब चीज़ें एकसाथ कैसे मिलें ? बहरहाल, कभी कभी ऐसा चमत्कार भी हो जाता है. एक सीधे सादे गर्मी के दिन की दोपहर, जब मैं कॉलेज से बंक मार कर घर भाग आई तब रास्ते में चाट खा लेने के कारण भूख ज्यादा नहीं थी. 

लेकिन जब घर पहुंची तो मम्मी का फरमान था कि  "गर्मी में भूखे पेट नहीं  रहना चाहिए (अब उनको तेज़ गर्मी में चाट खाने के लॉजिक  के बारे में नहीं बता सकते ) इसलिए चुपचाप डाइनिंग टेबल पर आ जाओ."  हाथ मुंह धोकर,  ड्रेस चेंज करके  हम आकर डाइनिंग टेबल पर बिराजमान हो गए. (लो भाई आ गए,  परोस दो जो भी आलू भालू कचालू बना है )

टेबल का नज़ारा गज़ब था, कांच के चमकीले, फ्लॉलेस, पारदर्शी, गोल  कैसरोल में आलू भिन्डी की सूखी सब्ज़ी जगमगा रही हैं, उन के बीच में लाल खट्टे मीठे टमाटर के नर्म हलके भुने हुए टुकड़े यहां वहाँ रंगत बिखेर रहे हैं. छोटे छोटे टुकड़ों में कटी भिन्डी का हरा रंग जो कड़ाही में पकने के कारण  गहरा हरा हो गया है उस पर लिपटी पिसे मसाले की परत, सूखे पुदीने, हींग, जीरे और सौंफ की खुशबू  जो देसी घी में छौंके होने के कारण नाक से होती हुई दिल और दिमाग के सोये हुए तार फिर से जगाने लगी. मैंने चखने के लिए अपना हाथ कैसरोल की तरफ बढ़ाया और भिन्डी टमाटर को उँगलियों से उठाने ही वाली थी कि  मम्मी ने किचन की छोटी विंडो से आवाज़ दी, "रीनू, पूरा जूठा मत कर, चम्मच से ले."  और उंगलियां वहीँ रुक  गई.  

मैं आराम से कुर्सी पर बैठ गई और एक प्लेट उठाई, ध्यान गया कि  ये तो रोज़ वाली डिनर सेट की प्लेट नहीं है; ये तो नई  है, प्लेट का शेप भी थोड़ा रेक्टैंगल सा है.  और तब मैंने पहली बार टेबल पर चारों तरफ गौर से देखा, डिनर सेट की प्लेटों, कटोरियों, सर्विंग बाउल, सर्विंग स्पून, राइस ट्रे; इन सब पर इंडिगो ब्लू कलर के जरबेरा जैसे फूल, सफ़ेद बैकग्राउंड पर खिल रहे थे. हर चीज़ में नफासत झलक रही थी  इस चिपचिपी गर्मी में ऐसे ताज़े रंग खाने की मेज़ पर देख कर मजा आ गया, जैसे नीले फूल बिछे हो टेबल पर.  और उन फूलों के बीच में रखे गोल, चौकोर आकार के झिलमिलाते कांच के बाउल। भिन्डी और फूलों से ध्यान हटा तो अब एक बाउल में बूंदी महारानी अपने दही के सागर में हिलोरे ले रही थी, उनका साथ देने के लिए हरा धनिया, लाल मिर्च, हरी मिर्च की कतरन, लाल रसीले अनार दाने और चाट मसाला भी अपने अपनी रंगीनियाँ छलका रहे थे. मन हुआ कि अभी चख लो लेकिन फिर याद आया "पूरा जूठा नहीं करना" . 

अभी और कुछ देखती कि  इसके पहले मम्मी ने गरमागरम चपाती  लाकर प्लेट में रख दी, घर के बने ताज़े घी की खुशबू हवा में तैर गई.  (अब और कंट्रोल नहीं हो सकता ), मैंने फटाफट प्लेट में आलू भिन्डी डाले और एक कटोरी में बूंदी रायता लिया। तभी मम्मी ने एक सर्विंग डिश का ढक्कन खोला और उसे मेरी तरफ सरकाया। 

"अरबी की सब्ज़ी!!!!!!!!. 

सर्विंग डिश की नीले फूलों और सफ़ेद दीवारों के बीच प्याज लहसुन धनिये की चटनी वाली गाढ़ी मसाला ग्रेवी में छिले हुए आलू के रंग वाली अरबी के लम्बे कटे  टुकड़े एक अलग ही  कलर कंट्रास्ट बना रहे थे.  मैंने जल्दी से खाना शुरू कर दिया। 

"कैसा लगा ये नया मैलामाइन सेट? ये बोरोसिल है, कितना सुन्दर है ना?"  मम्मी पूछ रही थी और मेरा ध्यान खाने की तरफ था. 

"उम्म्म, हाँ अच्छा है, अब से रोज़ इसी को इस्तेमाल करेंगे।" 

"मैं लेकर आया हूँ, मम्मी के लिए गिफ्ट है."  मेरा भाई रोहित लॉबी के दरवाजे से अंदर आ चुका था और  बड़े अंदाज़ से उसने ये घोषणा की। (ये गिफ्ट का क्या चक्कर है ). 

पर अभी गिफ्ट के बारे में सोचने  का टाइम नहीं था क्योंकि मेरी आँखें अब कांच की एक खूबसूरत सर्विंग प्लेट पर थी, जिसमे रखे  बेसन के सुनहरे कुरकुरे पकोड़े मुझे बुला रहे थे; उनकी खुशबू  और रंगत मुंह में पानी ला  रही थी. पहला पतला सा पकोड़ा टिंडे की पतली स्लाइस वाला था, दूसरा जो हाथ आया वो थोड़ा बड़ा था, उसमे टमाटर का स्लाइस निकला और उसके बाद वाले में प्याज के छल्लों का स्लाइस था.

"वाह, आई लव पकोड़ा " 

"अब तूने बहुत पकोड़े खा लिए, मोटी  हो जायेगी  तो तेरी शादी कैसे होगी।" भैया ने पकोड़े की पूरी प्लेट उठाई और अपनी तरफ रख ली.

"हाँ,  तू तो जैसे मोटा नहीं होगा ना पकोड़े खाकर।" मैंने प्लेट खींची।

"तुम दोनों बन्दर लड़ना बंद करो और कम  से कम खाते वक़्त तो हंगामा मत करो. रीनू, फ्रिज से आमरस वाला जग निकाल।" ( वाह, आमरस भी बनाया है, ये तो मेरा आल टाइम फेवरेट है ) 

फ्रिज खोला तो देखा एक शानदार चमचमाता नया कांच का जग बीच वाली ट्रे पर रखा है,  जग आधे से ज्यादा आमरस से भरा हुआ था और पहली बार मुझे  ऐसा महसूस हुआ कि  आमरस में मिठास होने के साथ साथ  रंग और चमक भी होती है. ऑरेंज कलर का गाढ़ा, क्रीमी सा आमरस कांच के जग में फ्रिज में चारों तरफ नारंगी  रंग की रोशनी  बिखेर रहा था. 

"ये जग भी नया है ना?" 

"हाँ, ये सारे कांच के कैसरोल, सर्विंग प्लेट, डिश वगैरह बोरोसिल के हैं और इनको डिनर सेट के साथ ही खरीदा है. डिनर सेट ऑनलाइन  आर्डर किया था." मम्मी ने बताया तो मैं हैरान हो गई. (ऑनलाइन आर्डर किया … !!!!!!!! कब !!!!!!!! मुझे किसी ने क्यों नहीं बताया )

"एक मिनट, ये डिनर सेट तो रोहित लाया है ना … गिफ्ट". 

"मैंने तो सिर्फ पेमेंट किया है, पसंद और आर्डर तो मम्मी ने ही किया". रोहित ने आमरस पीते हुए जवाब दिया।  (अच्छा बच्चू, बड़े चालाक बन रहे थे )    

"मुझे पहले ही पता था, ये सब तेरे काम नहीं हो सकते।" 

"ये ग्लास वेयर माइक्रोवेव में भी आसानी से इस्तेमाल हो सकते हैं.  लगातार इस्तेमाल के बावजूद इन पर हल्दी मसाले के दाग भी नहीं लगते और इनमे कोई खराब स्मेल भी नहीं होती।  दुसरे ग्लास वेयर की तुलना में इनकी चमक और क्लैरिटी भी हमेशा बनी रहती है." मम्मी इस वक़्त पूरा ज्ञान देने के मूड में थी, पर इतनी सब जानकारी मिली कहाँ से?? 

"आपको बोरोसिल के बारे में ये सब कैसे पता चला ?" 

"इंटरनेट क्या सिर्फ तुम ही लोग इस्तेमाल कर सकते हो, मैं नहीं ??" मम्मी ने अपनी मिलियन डॉलर विनिंग स्माइल के साथ जवाब  दिया और डाइनिंग टेबल से बर्तन समेटने लगी.  

मैंने चुपचाप वापिस आमरस पर कंसंट्रेट किया, यही सबसे बेस्ट ऑप्शन था; फिलहाल के लिए इतना काफी था कि  रोहित भैया की गिफ्ट स्किल को कोई क्रेडिट नहीं मिला। 


This post is written for the indiblogger.in contest "My Beautiful Food!" sponsored by Borosil. 

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4 comments:

  1. पकवानों के बारे में किए गए बेहतरीन वर्णन से मुंह में पानी भर आया। बहुत सुन्‍दर संस्‍मरण।

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  2. Bilkul khana khoobsoorat bhi hota hai.. hamara noukar itana khoobsoorat khana banata hai ki dekhne waale ka dil lalcha jaaye ...lekin khane ke baad dubaara khane ko man naa kare, :D

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