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Saturday, 7 January 2012

ज़िन्दगी इस पार, ज़िन्दगी उस पार

यहाँ से वहाँ तक...ज़िन्दगी के इस छोर से उस अनंत  तक जाने वाले दूसरे छोर तक एक नए रास्ते,  नई दिशा और नए सपने की तलाश है..ज़िन्दगी के इस किनारे से उस दूसरी तरफ के किनारे तक, जहाँ मेरी नज़रों का विस्तार नहीं पहुँच सकता ..उस किनारे के रंग-ढंग, आकार और रूप को मैं अभी से जान लेना चाहती हूँ....जान लेने के लिए पा लेने के लिए और थाम कर रख लेने के लिए मैं बेकरार हूँ...ज़िन्दगी इस पार से चलकर जब तक उस पार  पहुंचेगी, तब तक का इंतज़ार बहुत लम्बा और थका देने वाला लगता है..ऐसा लगता है कि वक़्त बहुत कम बचा है, बहुत थोड़े  से लम्हे हैं  जिनमे बहुत सारी दूरियां तय कर लेनी हैं, बहुत सी दिशायें और रास्ते जान लेने हैं...धरती के इस छोर पर खड़े वक़्त को उसके वर्तमान आयाम से अलग कहीं किसी और आयाम तक ले जाना है.. 

ज़िन्दगी इस पार या ज़िन्दगी उस पार..इस छोर से उस छोर तक, कि जिसके आगे अनंत आकाश की सीमा आरम्भ होती है..जहाँ से अगर लड़खड़ा के कदम फिसल भी जाएँ, पैरों का संतुलन बिगड़ भी जाए तो भी free -fall की तरह अनत में खो जाने, उसमे मिल जाने का अहसास हो...

ऐसा एक पल ज़िन्दगी का इस पार या उस पार..इस छोर पर या उस छोर पर...आकाश और धरती के बीच जहाँ नज़रों का भ्रम जन्म लेता है ..उस क्षितिज की तलाश में ...

1 comment:

  1. zindagi ka koi or-chhor nahi, na hi aarambh hai na ant...bas chalti chali aayi hai aur yun hi raste banati rahegi, hum bhale hi ruk jaye...
    baharhal, ek achha article

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