वो मर गई .. पर हम औरतों को बता गई कि लड़की होना सचमुच गुनाह है ..
वो मर गई पर हमें सिखा और समझा गई कि बेटियाँ क्यों पैदा ना होने पाएं ..
वो मर गई पर हमें आईने में अपनी सूरत दिखा गई कि हमारी आँखों का पानी मर गया है .. हमारी आत्माएं मर गई है, सड़ चुकी हैं ..
वो मर गई, उसकी आत्मा को मुक्ति मिल गई .. पर हमसे सवाल करके गई कि सड़कों पर चीखने और संसद में रोने के अलावा हमने क्या किया है और क्या कर लेंगे ..??
वो मर गई क्योंकि बड़े बड़े दावे करने वाला हमारा मुल्क, अपनी बेटियों को ओढने के लिए इज्ज़त का कफ़न और दफ़न होने के लिए ज़मीन का टुकड़ा भी नहीं दे सकता है .. दे सकता है तो सिर्फ टुकडो टुकडो में मौत .. बेपनाह दर्द, तकलीफ, अपमान और किसी वहशी इंसान के ज़ुल्मों से तय हुई मौत ..
कोई जवाब दे मुझे कि क्या यही नसीब लिखा कर लाइ हैं इस देश की बेटियाँ ????
कोई जवाब दे मुझे कि क्या यही नसीब लिखा कर लाइ हैं इस देश की बेटियाँ ????
वो मर गई .. क्योंकि इस देश का पौरुष और संवेदना मर गई है .. क्योंकि हम ना इंसान हैं ना जानवर ..हम तो सिर्फ बेजान पुतलों का देश है ..
क्योंकि यहाँ का निजाम बहरा और बेबस है .. क्योंकि हमारी व्यवस्था सड गई है .. क्योंकि ये ठन्डे सख्त पत्थरों का मुल्क है ..इसलिए यहाँ बेटियाँ हर दुसरे दिन अखबारों में मरी हुई नज़र आती है .. उन्हें मारा जाता है या कभी जिंदा रखा जाता है कि दुनिया देखे और सबक ले कि लड़की के रूप में पैदा होने पर आपके साथ क्या कुछ हो सकता है ..
वो मरी नहीं .. उसे मार दिया गया .. उससे जीने का हक़ छीना गया .. और भी ना जाने कितनों से छीना जा रहा है ..
हर रोज़ अखबारों में टीवी पर खबरें आती है और हर बार मेरा दिल दहल जाता है .. मेरी साँसे रुक जाती हैं ये सोच कर कि मैं भी एक औरत हूँ और क्यों हूँ .. अगर हूँ भी तो इस धरती पर क्यों हूँ ??? कोई जवाब दे मुझे ........................
हर रोज़ जब मैं घर से बाहर निकलती हूँ तब हर अजनबी चेहरा मुझे डराता है ..
मुझे डर लगता है ये सोच कर कि मैं एक ऐसे वक़्त और समाज में रहती हूँ जहां जीती जागती औरत के शरीर और एक मुर्दे के शरीर में कोई फर्क नहीं किया जाता .. ज़ुल्म करने वालों की आत्मा नहीं कांपती .. उनको किसी औरत ने जन्म नहीं दिया है ..
क्या हम उस दिन जागेंगे जब बेटियाँ पैदा होना ही बंद हो जायेंगी ..
हर रोज़ अखबारों में टीवी पर खबरें आती है और हर बार मेरा दिल दहल जाता है .. मेरी साँसे रुक जाती हैं ये सोच कर कि मैं भी एक औरत हूँ और क्यों हूँ .. अगर हूँ भी तो इस धरती पर क्यों हूँ ??? कोई जवाब दे मुझे ........................
हर रोज़ जब मैं घर से बाहर निकलती हूँ तब हर अजनबी चेहरा मुझे डराता है ..
मुझे डर लगता है ये सोच कर कि मैं एक ऐसे वक़्त और समाज में रहती हूँ जहां जीती जागती औरत के शरीर और एक मुर्दे के शरीर में कोई फर्क नहीं किया जाता .. ज़ुल्म करने वालों की आत्मा नहीं कांपती .. उनको किसी औरत ने जन्म नहीं दिया है ..
क्या हम उस दिन जागेंगे जब बेटियाँ पैदा होना ही बंद हो जायेंगी ..
क़यामत जिस भी दिन होगी .. उस दिन खुदा हमसे सवाल ज़रूर करेगा ,,पर क्या हम उस दिन जवाब दे पायेंगे ..????
वो मर गई और हर रोज़ एक बच्ची आपके और मेरे पड़ोस में मर रही है .. कोई उसे टुकडो टुकडो में मार रहा है .. पर हम अभी जिंदा है .. पर अभी ये साबित होना बाकी है कि हम सचमुच जिंदा है ... और ये कि अन्दर का इंसान अभी जिंदा है ... और ये भी कि अभी भी दूसरों का दर्द देख कर हमारी आँखों से पानी बहता है ...
कोई मुझे जवाब दे ??????
कोई मुझे जवाब दे ??????
जो जिंदा हैं तो जिंदा नज़र आना चाहिए ...
It was sad n shocking start of the day for me....salute to her and condolence with the bereaved's family...in very few lines you have made it clear that this article is a tight slap on the faces of all such hippocrates..shame.. Thanks for sharing it .
ReplyDeleteबहुत सही कहा कि वो मरी नहीं उसे मार दिया गया;जो हालात दिख रहे हैं उन से ऐसा ही लगता है।
ReplyDeleteउसे विनम्र श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteदिनांक 31/12/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
यही सच्ची श्रधांजलि होगी की हम सब आज बदलाव का प्राण करें अपने अपने स्टार पर. सुन्दर रचना.
ReplyDeleteएक औरत की जिंदगी कितनी कठिन है ये एक औरत ही समझ सकती है ...
ReplyDeleteदामिनी का दर्द अपने ही भीतर महसूस किया है :(
RIP the victim... Thank you..
ReplyDeleteshi kha...........bhot khub
ReplyDeleteVery nicely written. Bhavana.
ReplyDeleteTrue that Nirbhaya has made us think of all this & more...
Very sad. I hope there are no rape cases at all...