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Sunday, 16 September 2012

मुझे कबूल नहीं

टुकडो में चलती सरकती ज़िन्दगी..

तुम्हारी दी हुई रोटी से  मेरी भूख नहीं मिटती.. तुम्हारे दिए पानी से मेरे गले की प्यास और भी बढ़ जाती है. 

तुम्हारे दिए हुए टुकड़े मेरे पसरे हुए आँचल का मज़ाक बनाते हैं और मैं कुछ नहीं कर पाती..

तुम्हारे चलाये हुए रास्तों पर सिवा काँटों और पत्थरों के और कुछ नहीं मिलता.. इसलिए वहाँ पैर  अब जाना नहीं चाहते..

तुम्हारे हाथ मेरे गले पर कसते जा रहे हैं और तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए प्रशंसा के कुछ शब्द कहूँ .. तुम्हारे लिए कोई गीत गाऊं.. नहीं ये नहीं हो सकेगा..

तुम्हारे पैर मेरा चेहरा कुचलते जा रहे हैं और तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे आगे सर झुकाए श्रध्दा से खड़ी रहूँ .. नहीं अब ये भी नहीं हो सकेगा..

तुम्हारी बनाई इस  सल्तनत में मेरे रहने के लिए जो बाड़ा तुमने दिया है वहाँ अब मेरा दम घुटता है.. 

मेरे लिए जो टुकड़ा ज़िन्दगी का तुमने भेजा है वो मुझे अब कबूल नहीं है..

मुझे पता है कि तुमको मेरे कहे शब्दों से ऐतराज है पर मुझे भी तुम्हारे बनाये नियम कानूनों  से ऐतराज है..

मुझे रूसो के शब्द याद आते हैं .. "मनुष्य स्वतंत्र पैदा हुआ है लेकिन हर जगह जंजीरों में जकड़ा है"

तुमने भी मेरी ख्वाहिशों और तमन्नाओं पर अपने हुकुम की जंजीरें, बंदिशें और बंधन सजा रखे हैं...पर मैं  इस पवित्र बोझ को हमेशा के लिए उठा कर नहीं  चलना चाहती...

मैं तुमसे  रास्ता बचा कर चलती हूँ.. दूर, ज़रा हट कर ही निकलती हूँ.. पर तुम हर बार मेरे रास्ते के बीच में आकर खड़े हो जाते हो.. ये बहुत बुरी आदत है तुम्हारी .. रास्ता काटने की .. अपना  रौब और अपनी मर्ज़ी ज़ाहिर करने की आदत है तुम्हारी..

पर तुम आजकल  भूलने लगे हो कि  अब तुम्हारी ये आदतें, ये तरीके... मुझे विद्रोही बनाने लगे हैं.. बना चुके हैं.. पर तुम देखते नहीं क्योंकि देखने और सुनने को तुम्हारे पास समय और क्षमता नहीं ...

18 comments:

  1. इतना आक्रोश, इतना क्षोभ किस लिए...?

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  2. आह!!!!

    सशक्त अभिव्यक्ति.....
    इतनी सहजता से भी कोई मन के संताप प्रकट कर सकता है भला....????
    बेहतरीन लेखन भावना जी...

    अनु

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  3. thank u Anu ji..aur kya kahun ab..

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  4. bahut khoob... bahut sundar... aapko padh raikrishna das ki yaad aati hai.. bahut badhiya.

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  5. Thank u Mishra ji.. par ye raikrishn das koun hain?

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  6. बहुत अच्छा लिखती हैं आप।
    आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा।


    सादर

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  7. yashwant.. thnk u very much.. prashansa ke liye bhi aur us video k link k liye bhi.. maine ab word verification hata diya hai. ab kisi reader ko pareshani nahin hogi.

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  8. गलत के विरुद्ध आवाज़ जब तक नहीं उठेगी तब तक गलती करने वाले को अहसास कब होता है ..

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  9. सच कहा भावनाजी ..कुछ समय बाद यह हरकतें बेअसर हो जाती हैं .....

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  10. कबूल करना भी नहीं चाहिए .... आखिर कब तक यूं ही ज़िंदगी जीती रहेगी नारी ।

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  11. सशक्त अभिव्यक्ति

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  12. उम्दा प्रस्तुति |
    इस समूहिक ब्लॉग में पधारें और हुमसे जुड़ें |
    काव्य का संसार

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  13. ज़्यादा रोक टोक...जोर ज़बरदस्ती ...विद्रोही बनाते हैं .सच !

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  14. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद...इस से ज्यादा और कुछ नहीं कह सकती.

    Regards,
    Bhavana

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  15. कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
    बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
    और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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