जब खुदा अपना दरवाजा बंद कर लेता है तब...दुनिया अपना दरवाजा खोल देती है...अपनी बाँहें फैला देती है ..समेट लेती है अपने आँचल में, अपनी गोद में, इस तरह कि अपना ही होश नहीं रहता, ऐसे कि उसके प्यार का नशा जागते हुए भी सोते रहने को मजबूर कर देता है, ख्वाब दिखाता जाता है ...
जब खुदा अपना रास्ता बदल देता है तब ....दुनिया का हर रास्ता खुल जाता है....उसका हर रास्ता जाना पहचाना हो जाता है..हर गली अपनी और हर मोड़ ठिकाना बन जाता है...खुदा जब अपना दरवाजा बंद कर लेता है तो...दुनिया के सारे दरवाजे, खिड़कियाँ और परदे खुल जाते हैं..हर चेहरा, हर नाम, हर पता, हर वो रास्ता जो कहीं आगे जाता है या नहीं जाता या आगे जाकर बंद हो जाता है , वो सब आगे बढ़कर गले लगाने लगते हैं ...और आखिर में भुला देते हैं कि कौनसी वजह थी, कौनसा सफ़र था, कौनसा रास्ता था, कौन था, कहाँ था ...कुछ था भी या नहीं...
और इसलिए खुदा के बंद दरवाजों को हमेशा खटखटाते रहना चाहिए, याद दिलाते रहना चाहिए...उसे नहीं खुद को, कि कहाँ जाना है, क्यों जाना है, किस राह पर रुकना है और इसलिए कि कहीं हम खो ना जाएँ ....
वाह ,कमाल का दर्शन है भावना जी । बहुत खूब । अच्छी पोस्ट
ReplyDeletegood...
ReplyDeletephilosopher bhavnaji bahut badhiya.... your writing is getting matured one... u r capable to write whole book...
ReplyDeletemujhe samajh nahi aaya, ye likha kya hai aapne?
ReplyDeletehey good one ..and crispy
ReplyDeletekhud ka darwazaa hi nhi khatkhatana chate hum... kab kaun sa jinn nikal aaye...
ReplyDeletekam se kam koi jawaab toh milega .. us jawaab ki aas mein hi sahi .. ek baar darwaja khulwaa k toh dekho .. pata toh chale ki Khuda ke ghar mein koun koun rahta hai
Delete१.
ReplyDeleteखटखटा तो दूँ,
दरवाज़ा
तेरा, खुदा
या खुद का।
बंद हैं, दरवाज़े
हम तीनो के।
२.
एक ही, सांकल
छूटना है
हमें।
बस मौत आर पार है।
३.
तहखानो के
खुले दरवाज़े,
तमाम ज़िन्न कैद जिनमें।
बंद कर रखा है,
तहखानों को,
खुद के अन्दर।