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Friday, 19 August 2011

मेरा सपना भी तुम और सच भी तुम...

मेरा सपना भी तुम और सच भी तुम..खुली आँखों के चमकते जुगनू  भी तुम और बंद आँखों की पलकों का सुकून भी तुम ...जागती  हुई  आँखों  के आगे का नज़ारा भी तुम और बंद आँखों का भ्रम भी तुम.   क्या सच , क्या सपना ..सब कुछ सिमट कर एक ही रंग,  एक ही रूप, एक ही आकार, एक ही सांचे में ढल गए... मेरा तो सपना भी तुम और सच भी तुम...तुम्हारे लिए सपना , मेरे लिए वही जीवन...चमकती सुबहों की मसरूफियत या थकी हुई शामों का अँधेरा ...


जो सपना तुमने बंद आँखों से देखा , वो मेरी खुली आँखों का सच बन गया , तुमने तो सपना देखने को कहा  लेकिन मेरी आँखों ने उस दूर के क्षितिज के तारे को ही सच मान लिया ..सपने हम दोनों ने मिलकर देखे या शायद तुमने दिखाए और कहा कि एक दिन हम मिलकर इन्हें ज़मीन पर उतार लायेंगे ....

सपने ही तो एक दिन सच बनते हैं ..सपनों के बीज से सच की फुलवाड़ी खिलती है ..सपनों के रंगों से सच की तस्वीर आकार लेती है.....  और इस तरह  धीरे-धीरे  दबे पैर, बिना हमें बताये , कब चुपके से सपने ज़िन्दगी के सच को ढक देते हैं पता ही नहीं चलता....


मेरा तो सपना भी तुम और सच भी तुम,  कहने को तो सपना एक भ्रम  है, illusion है,  परछाई है पर जब सपना जागती आँखों का सच बन जाए तो भ्रम और वास्तविकता के बीच की सीमाएं  मिट जाती हैं ..और मैंने भी मिटा दीं... जागती आँखों का सपना, बंद आँखों का सपना, जागती आँखों का सच और बंद आँखों की परछाई कब ये सबकुछ एक दूसरे में मिल गए, मुझे  खबर तक ना हुई.

समय के तीन आयामों में चौथा आयाम और जुड़ गया, सपनों का आयाम.  सुबह की रौशनी  और दिन की भागदौड, शाम की थकान और रात के धुंधले  जुगनुओं की चमक सब कुछ सपनों के आयाम से जुड़ गए,  मिल गए उसमे और खो गए.  कुछ खबर नहीं कि ज़िन्दगी सपने में जी रहे हैं या वास्तविकता  के धरातल पर , जो कुछ खबर है तो सिर्फ यही कि बड़ा ही सुन्दर  नज़ारा आस-पास है, जैसे किसी कैनवास पर बड़े ध्यान और लगन से बनी एक मोहक तस्वीर, जो छू देने भर से मैली हो जाती हो.


ऐसे सुन्दर सपने  तुमने दिखाए,  मैंने देखे, हमने मिल कर देखे , सपनों में जीने लगे , भूलने लगे शेष तीन आयामों को . पर फिर एक दिन ..सपना तो ना टूटा पर लगा कि इस सपने में कुछ कमी आ गई है , कैनवास की तस्वीर के रंग फीके हो गए हैं, मिटने लगे हैं ..नज़रें कुछ तलाशने लगीं, आस-पास, दूर कोने-अंतरों में,  कहीं कुछ जाना पहचाना दिख जाए शायद..

पर नहीं , अब सपना था, मैं भी, पर तुम नहीं हो,  इस सच जैसे दिखने वाले और मेरे जीवन के बन चुके  सच वाले  सपने में अब तुम नहीं हो...कहां हो, इसकी खबर नहीं,  मेरा तो सपना भी तुम और सच भी तुम...

अब सपना  ही  सच बन गया है, आदत हो चली है इस सपने की, इसमें रहने और जीने की,  कि अब इस से बाहर निकलना तकलीफ देता है,  कि अब मानने को जी नहीं चाहता कि सपना अब नहीं रहा, कहीं उसका नाम निशान भी नहीं , फिर भी उस गुज़ार चुके सपनों के संसार की  याद में कि जिसका हर पत्थर हमने अपनी कल्पना और आँखों की चमक से सजाया था..एक बार फिर से कह लेने दो कि मेरा सपना भी तुम और सच भी तुम ...सपना ही सही पर .. मेरा अपना हो तुम ..

8 comments:

  1. beautiful lines...
    kalpana aur kavita ki layabadhata drishtigat ho rhi hai. gadya me padya ki lay ka sundar samanvay.
    likhale ki shaili kuchh had tak John Keats jaisi, flow of thoughts from happiness to sadness.

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  2. puri rachana ek hi shabd par kendrit.

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  3. Manish..ab ye toh bahut jyada hi taareef ho gai..aur is se adhik main kya kah sakti hun..thnk u vry much..baki jin ka aapne naam liya hai "Keats" he is known for his romantic poetry ..kyunki unka apmaan kar rahe hain..unki aatma aapko chhodegi nahi..lolzz

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  4. my english teacher had told me about Keats, those words are not mine...
    he had told me about keats' style. ab unki atma mere saath jo bhi kare...

    aur agr kuchh jyada tarif kar di hai to jitana aap se pach sake utna rakhiye baki return kr dijiye... :)

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  5. @Manish...alryt thn I will keep only 1 gram of yr appreciation rest I am returning back wid a thnk u note.

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